सौंता जनजाति छत्तीसगढ़ Saunta Janjati Chhattisgarh saunta tribe chhattisgarh

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नमस्ते विद्यार्थीओ आज हम पढ़ेंगे सौंता जनजाति छत्तीसगढ़ Saunta Janjati Chhattisgarh saunta tribe chhattisgarh के बारे में जो की छत्तीसगढ़ के सभी सरकारी परीक्षाओ में अक्सर पूछ लिया जाता है , लेकिन यह खासकर के CGPSC PRE और CGPSC Mains में आएगा , तो आप इसे बिलकुल ध्यान से पढियेगा और हो सके तो इसका नोट्स भी बना लीजियेगा । 

सौंता जनजाति छत्तीसगढ़ Saunta Janjati Chhattisgarh Saunta Tribe Chhattisgarh

सौंता जनजाति की उत्पत्ति 

सौंता उत्तीसगढ़ की एक अल्प संख्यक जनजाति है। उड़ीसा में भी इनकी जनसंख्या पाई जाती है। 2011 की जनगणना में छत्तीसगढ़ में इनकी जनसंख्या 3502 दशाई गई है। इनमें पुरुष 1760 तथा स्त्रियाँ 1742 थी। छत्तीसगढ़ में इनका मुख्य निवास क्षेत्र सूरजपुर, सरगुजा, बिलासुर तथा कोरबा जिला है। रायगढ़ जिले में भी इनकी कुछ जनसंख्या निवासरत है। ( सौंता जनजाति छत्तीसगढ़ Saunta Janjati Chhattisgarh saunta tribe chhattisgarh )

सौता जनजाति के उत्पत्ति के संबंध में ऐतिहासिक अभिलेख नहीं है। दंतकथाओं के आधार पर अपनी उत्पत्ति उड़ीसा के जगन्नाथपुरी से बताते हैं। पुरी के राजा के सेना में दो भाई वीर सिपाही जो खंडायत जाति के थे। इनमें छोटा भाई स्थानीय आदिवासी महिला से विवाह किया। बड़ा भाई इसे अलग कर दिया। इसकी संतानें सौता कहलाई। दूसरी दंतकथा अनुसार आदिवासी समूह के कुछ सदस्यों ने जाति से अलग होकर नई जाति का निर्माण किया जो “साँता” कहलाया।

सौंता जनजाति का रहन-सहन 

सौता जनजाति सामान्यतः अन्य जनजातियों जैसे गोंड, धनवार, कंवर आदि के साथ ग्राम में निवास करते हैं। अन्य जनजातियों की तुलना में इनके कम परिवार ग्राम में पाये जाते हैं। ग्राम के बीचों बीच कच्चा रास्ता होता है, जिसके दोनों किनारे कतार में मिट्टी के घर होते हैं। घर की छप्पर घास-फूस या देशी खपरैल की होती है। घर की दीवार पर पीली या सफेद मिट्टी से पुताई की जाती है। फर्श मिट्टी का बना होता है। घर में सामान्यतः दो कमरे पाये जाते हैं। कमरों के आगे “परछी” होती है। मुख्य कमरे में देव स्थान होता है।

अनाज रखने की कोठी भी पाई जाती है। कपड़े रसोई के बर्तन, चारपाई, कृषि उपकरण आदि इनके प्रमुख घरेलू वस्तुएँ हैं। जानवरों के लिए घर के बाजू में कोठा होता है। स्त्रियाँ प्रतिदिन सुबह उठकर घर की साफ-सफाई करती हैं। घर के फर्श को दो-तीन दिन के अंतराल में गोबर से लीपती हैं। ( सौंता जनजाति छत्तीसगढ़ Saunta Janjati Chhattisgarh saunta tribe chhattisgarh )

पुरुष तथा महिलाएँ सुबह दाँतों की सफाई बबूल, नीम या हरें की दातुन से करते हैं। प्रतिदिन स्नान करते हैं। शरीर से मैल निकालने के लिए पत्थर के छोटे टुकड़े से शरीर को रगड़ते हैं। काली या पीली चिकनी मिट्टी से बाल धोकर, बालों में मूंगफली, गुल्ली, नीम आदि का तेल लगाकर कंपी करते हैं। स्त्रियों जूड़ा बनाती हैं। स्त्रियों गहनों की शौकीन होती हैं।

पैर में सांटी, पैरपट्टी, कमर में करधन, पैर की उँगलियों में बिछिया (विवाहित स्त्री), हाथ की कलाई में काँच की चूड़ियाँ, पटा, बाहों में पहुंची, गले में सुरढ़ा, रुपिया माला, चैनमाला, कान में खिनवा, नाक में फूली पहनती हैं। गोदना की शौकीन होती हैं। गोदना को शरीर के साथ जाने वाला स्थाई गहना मानते हैं। ( सौंता जनजाति छत्तीसगढ़ Saunta Janjati Chhattisgarh saunta tribe chhattisgarh )

पुरुषों के वस्त्र मुख्यतः पंछा, सलूका, थंडी, धोती, कुरता है। स्त्रियाँ लुगड़ा-पोलका पहनती हैं। इनका मुख्य भोजन कोदो या चावल का भात, मौसमी सब्जियाँ उड़द, मूंग, कुलथी की दाल है। जंगली कंदमूल, भाजी, फल-फूल भी खाते हैं। मांसाहार में अण्डे, मछली, मुर्गी, बकरे, खरगोश, आदि का मांस खाते हैं। पुरुष बीड़ी पीते हैं।

सौंता जनजाति का व्यवसाय 

इनका आर्थिक जीवन मुख्यतः कृषि, मजदूरी, जंगली उपज संग्रह, शिकार तथा बाँस बर्तन बनाने पर आधारित है। इस जनजाति के लोग, कोदो, कुटकी, धान, मूंग, उड़द, अरहर, तिवड़ा, तिल आदि की खेती करते हैं। जंगल से हुआ, चार, गोंद, तेंदू पत्ता, हर्रा, लाख आदि एकत्र कर स्थानीय बाजार में बेचते हैं जिनके पास कृषि भूमि कम है, ये अन्य जनजातियों जैसे कंवर, गोंड के घर मजदूरी भी करते हैं।

बाँस से टोकरा टोकरी निर्माण कर बेचते हैं। पहले छोटे-छोटे जानवरों का शिकार भी करते थे; किन्तु वर्तमान में प्रतिबंध होने के कारण शिकार नहीं ए। सीवान बोलेको कारण शिकार करते। वर्षा ऋतु में अपने उपयोग के लिए मछली पकड़ लेते हैं। ( सौंता जनजाति छत्तीसगढ़ Saunta Janjati Chhattisgarh saunta tribe chhattisgarh )

सौंता जनजाति के परम्परा 

सौता समाज पितृवंशीय, पितृसत्तात्मक, पितृ निवास स्थानीय परम्परा पर आध रित है। दो उपजातियाँ क्रमशः छत्तीसगढ़िया और “उड़िया ” में विभक्त हैं, जो 7-8 पीढ़ी से छत्तीसगढ़ में निवास कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ी बोली बोलते हैं, वे छत्तीसगढ़िया सीता कहलाते हैं। जिनके पूर्वज 2-3 पीढ़ी में उड़िसा से उत्तीसगढ़ में प्रवासित होकर रह रहे हैं। घर में उड़िया बोली बोलते हैं, उड़िया सौता कहलाते हैं।

इनके प्रमुख गोत्र धुरवा, पोन्दरू, मरकाम, सोनवानी, तेलासी, लवदरिया, सिराठिया, भैंसा, सुआ, बाघ आदि हैं। इनके गोत्र प्रकृति के वस्तुओं (निर्जीव या जीव) के आधार पर है। सौता जनजाति के लोग इन वस्तुओं के साथ अपना संबंध दर्शाते हैं। वंश चिन्ह (टोटम) के रूप में समय-समय पर इनकी पूजा करते हैं। ( सौंता जनजाति छत्तीसगढ़ Saunta Janjati Chhattisgarh saunta tribe chhattisgarh )

संतानोत्पत्ति को भगवान की देन मानते हैं। रजस्वला स्त्री को अपवित्र माना जाता है। खाना बनाना, पानी भरना, पूजा कार्य नहीं करती। इस जनजाति की गर्भवती महिलाएँ प्रसव के दिन तक अपनी आर्थिक व पारिवारिक कार्य संपन्न करती हैं। गर्भावस्था में कोई संस्कार नहीं किया जाता। प्रसव घर में ही स्थानीय “सुइन दाई” कराती है। बच्चे के नाल सुदन दाई काटती है तथा घर में हो गढ़ाते हैं।

प्रसूता को कुलथी, छिंद की जड़, सरई की छाल, ऐंठी मुद्दी, गोंद, सोंठ तथा गुड़ से निर्मित काढ़ा पिलाते हैं। छठे दिन छठी संस्कार किया जाता है। बच्चे व प्रसूता को नहलाकर देवी-देवता का प्रणाम कराते हैं। रिश्तेदारों को भोजन कराते हैं। ( सौंता जनजाति छत्तीसगढ़ Saunta Janjati Chhattisgarh saunta tribe chhattisgarh )

विवाह उम्र लड़कों में 12-18 वर्ष तथा लड़कियों में 10-16 वर्ष पाई जाती है। विवाह का प्रस्ताव वर पक्ष की ओर से होता है। विवाह में अनाज, दाल, गुड़, तेल तथा कुछ रकम सूक भरना के रूप में वर के पिता वधू के पिता को देता है। विवाह मुख्यतः चार चरणों में क्रमशः मंगनी, फलदान, विवाह, गौना में पूरा किया जाता है। वधू को लुगड़ा, पोलका दिया जाता है। विवाह में फेरा लगाने की रस्म सौता जाति के मुखिया पूर्ण कराता है। फेरा लगाने के बाद विवाह रस्म पूर्ण मानी जाती है।

इसके अतिरिक्त इनमें विनिमय एवं सेवा विवाह पाया जाता है। सहपलायन, घुसपैठ को भी सामाजिक पंचायत में कुछ जुर्माना लेकर मान्यता दी जाती है। ( सौंता जनजाति छत्तीसगढ़ Saunta Janjati Chhattisgarh saunta tribe chhattisgarh )

मृत्यु होने पर मृतक को दफनाते हैं। कुछ संपन्न व प्रतिष्ठित व्यक्ति को जलाते हैं। घर की स्वच्छता कर दसवें दिन पूर्वजों की पूजा कर रिश्तेदारों को भोज देते हैं। दूसरे वर्ष से पितृ पक्ष में मृतक के मृत्यु तिथि को पानी तर्पण कर दाल, भात, बड़ा उनके नाम से रखते हैं। 

सौंता जनजाति में पंचायत 

साँता जनजाति में अपनी परंपरागत जाति पंचायत पाई जाती है। जाति पंचायत का प्रमुख “गोटिया ” कहलाता है। इनका पद वंशानुगत होता है। जाति पंचायत का प्रमुख कार्य जाति के देवी-देवताओं की पूजा व्यवस्था करना, जाति में विवाह, छुटा आदि विवादों का निपटारा करना, जाति के सदस्यों का जाति या अन्य जाति में अनैतिक संबंध रोकना अन्य जाति में विवाह तथा झगड़ा आदि का निपटारा करना है।

सौंता जनजाति के देवी-देवता 

इस जाति के प्रमुख देवी-देवता ठाकुरदेव, बूढ़ादेव, ग्रामदेवती, धरम देवता, डिहारिन माई, खूंट देव, शीतला माता, कंकालिन माता आदि हैं। सूरज नारायण, चन्दा, धरती माता, पनघट, बाघदेव, नागदेव की पूजा करते हैं। प्रकृति तथा जीव-जंतुओं की भी पूजा करते हैं। देवी-देवताओं में शराब चढ़ाते हैं और मुर्गा, बकरे की बलि देते हैं।

इनका मुख्य त्योहार हरेली, रथ दूज, पोला, पितर, नवाखानी, दशहरा, दिवाली, होली आदि है। वर्तमान में राम, कृष्ण, शिव, हनुमान, दुर्गा आदि हिंदू देवी-देवताओं की भी पूजा करते हैं। भूत-प्रेत, जादू-टोना पर विश्वास करते हैं। पुनर्जन्म मानते हैं। ( सौंता जनजाति छत्तीसगढ़ Saunta Janjati Chhattisgarh saunta tribe chhattisgarh )

सौता जनजाति के युवक-युवतियाँ करमा पूजा के अवसर पर करमा नृत्य,विवाह में बिहाव नाच, युवतियों दिवाली में पड़की नृत्य तथा युवक होली में रहस नाचते हैं। इनके लोकगीतों में बिहाव गीत, करमा गीत, सुआ गीत आदि है। समय ढोल, मांदर, मंजीरा आदि बजाते हैं।

2011 की जनगणना में इनकी साक्षरता 33.0 प्रतिशत दर्शित है। पुरुषों में साक्षरता 40.4 प्रतिशत तथा स्त्रियों में साक्षरता 25.5 प्रतिशत थी। ( सौंता जनजाति छत्तीसगढ़ Saunta Janjati Chhattisgarh saunta tribe chhattisgarh )

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Rajveer Singh
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