अबूझमाड़िया जनजाति छत्तीसगढ़ Abujhmadiya janjati chhattisgarh abujhmadiya tribe chhattisgarh

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अबूझमाड़िया जनजाति छत्तीसगढ़ - Abujhmadiya Janjati Chhattisgarh - Abujhmadiya Tribe Chhattisgarh
अबूझमाड़िया जनजाति छत्तीसगढ़ – Abujhmadiya Janjati Chhattisgarh – Abujhmadiya Tribe Chhattisgarh

नमस्ते विद्यार्थीओ आज हम पढ़ेंगे अबूझमाड़िया जनजाति छत्तीसगढ़ – Abujhmadiya Janjati Chhattisgarh – Abujhmadiya Tribe Chhattisgarh के बारे में जो की छत्तीसगढ़ के सभी सरकारी परीक्षाओ में अक्सर पूछ लिया जाता है , लेकिन यह खासकर के CGPSC PRE और CGPSC Mains में आएगा , तो आप इसे बिलकुल ध्यान से पढियेगा और हो सके तो इसका नोट्स भी बना लीजियेगा ।

अबूझमाड़िया जनजाति छत्तीसगढ़ – Abujhmadiya Janjati Chhattisgarh – Abujhmadiya Tribe Chhattisgarh

अबूझमाड़िया जनजाति का इतिहास 

अबूझमाड़िया जनजाति नारायणपुर, दंतेवाड़ा एवं बीजापुर जिले के क्षेत्र में निवासरत हैं ओरछा को अबूझमाड का प्रवेश द्वार कहा जा सकता है। इस जनजाति की कुल जनसंख्या सर्वेक्षण 2002 के अनुसार 19401 थी। वर्तमान में इनकी जनसंख्या बढ़कर 22 हजार से अधिक हो गई है।

अबूझमाड़िया जनजाति के उत्पत्ति के संबंध में कोई ऐतिहासिक अभिलेख नहीं हैं। किवदतियों के आधार पर माड़िया गोंड़ जाति के प्रेमी युगल सामाजिक डर से भागकर इस दुर्गम क्षेत्र में आये और विवाह कर वहीं बस गये। इन्हीं के शव अबूझमाड़ क्षेत्र में रहने के कारण अबूझमाड़िया कहलाये। सामान्य रूप से अबूझमाड़ क्षेत्र में निवास करने वाले माड़िया गोंड़ को अबूझमाड़िया कहा जाता है। ( अबूझमाड़िया जनजाति छत्तीसगढ़ – Abujhmadiya Janjati Chhattisgarh – Abujhmadiya Tribe Chhattisgarh )

अबूझमाड़िया जनजाति का कृषि 

अबूझमाड़िया जनजाति का गाँव मुख्यतः पहाड़ियों की तलहटी या घाटियों में बसा रहता है। पेंदा कृषि (स्थानांतरित कृषि) पर पूर्णतया निर्भर रहने वाले अबूझमाड़िया लोगों का निवास अस्थाई होता था। पेंदा कृषि हेतु कृषि स्थान को ‘कधई’ कहा जात है। जब ‘कघई’ के चारों ओर के वृक्ष व झाड़ियों का उपयोग हो जाता था तो वो पुनः नई ‘कघई’ का चयन कर ग्राम बसाते थे। वर्तमान में शासन द्वारा पैदा कृषि पर प्रतिबंध की वजह से स्थाई ग्राम बसने लगे हैं।

अबूझमाड़िया जनजाति का आर्थिक जीवन पहले आदिम खेती (पैदा कृषि), शिकार, जंगली उपज संग्रहण, कंदमूल एकत्रित करने पर निर्भर था। परंतु अब पेंदा कृषि का स्थान स्थाई कृषि ने ले लिया है। साथ ही विभिन्न तरह की मजदूरी का कार्य भी सीख गये हैं। घर के आस-पास की जमीन पर मक्का, कोसरा, मूंग व उड़द के अलावा मौसमी सब्जियाँ भी बोते हैं। ( अबूझमाड़िया जनजाति छत्तीसगढ़ – Abujhmadiya Janjati Chhattisgarh – Abujhmadiya Tribe Chhattisgarh )

कृषि मजदूरी बहुत कम करते हैं। कृषि मजदूरी के बदले में इन्हें अनाज मिलता है। जंगल से शहद, तेंदूपत्ता, कोसा, लाख, गोंद, धवई फूल, हर्रा, बहेरा इत्यादि एकत्र कर बाजार में बेचते हैं। छोटे पशु-पक्षियों का शिकार भी करते हैं। गाय, बैल, बकरी, सुअर व मुर्गी का पालन करते हैं।

इनके घर छोटे-छोटे झोंपड़ीनुमा लकड़ी व मिट्टी से बने होते हैं, जिनके ऊपर घासफूस की छप्पर होती है। घर दो-तीन कमरे का बना होता है। घर का निर्माण स्वयं करते हैं। घर में रोशनदान या खिड़कियाँ नहीं पाई जाती है। घर में बरामदा, “अगा (बैठक). “आंगड़ी” (रसोई), “लोन” (संग्रहण कक्ष) व बाड़ी होता है। ‘लोनु’  में ही कुल देवता का निवास स्थान होता है। ( अबूझमाड़िया जनजाति छत्तीसगढ़ – Abujhmadiya Janjati Chhattisgarh – Abujhmadiya Tribe Chhattisgarh )

घरेलू सामान में सोने के लिये “अल्पांजी”, बैठने के लिये “पोवई) अनाज कूटने की ‘देकी’, ‘मूसल’, अनाज पीसने का ‘जांता’, भोजन बनव खाने-पीने के लिये मिट्टी एल्यूमिनियम, लोहे व पीतल के बर्तन, सिल व कु कृषि उपकरणों में हल, कुदाली, गैंती, रापा (फावड़ा), हसिया इत्यादि शिकार के लिये तौर-कमान, फरसा, टोंगया, फांदा, मछली पकड़ने के लिए, मछली जा चोरिया, डगनी आदि का उपयोग करते हैं।

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अबूझमाड़िया जनजाति के परम्पराये 

स्त्रियाँ गोदना को स्थाई गहना मानती हैं। मस्तक, नाक के पास, हथेली के ऊपरी भाग, ठुट्टी आदि पर गोदना सामान्य रूप से गोदवाया जाता है। गिलट या नकली चाँदी के गहने पहनते हैं। पैर में तोड़ा, पैरपट्टी, कमर में करधन, कलाईयों में चूड़ी, सुडेल (ऍठी), गले में सुता, रुपया माला, चेन व मूंगामाला, कान में खिनवा, झुमका और बाला, नाक में फूली पहनती हैं। बालों को अनेक तरह के पिनों से सजाती हैं। ( अबूझमाड़िया जनजाति छत्तीसगढ़ – Abujhmadiya Janjati Chhattisgarh – Abujhmadiya Tribe Chhattisgarh )

वस्त्र विन्यास में पुरुष लंगोटी, लुंगी या पंछा पहनते हैं। सिर पर पगड़ी बाँधते हैं। स्त्रियाँ लुगरा को कमर से घुटने तक लपेटकर पहनती हैं। इनका मुख्य भोजन चावल, मड़िया, कोदो, कुटकी, मक्का आदि का पेज और भात, उड़द, मूँग, कुलथी की दाल, जंगली कंदमूल व भाजी, मौसमी सब्जियाँ, मांसाहार में विभिन्न प्रकार के पशु-पक्षी जैसे पड़की, मोर, कौआ, तोता, बकुला, खरगोश, लोमड़ी, साही, मुर्गा, बकरा का मांस खाते हैं। वर्षा ऋतु में मछली भी पकड़ते हैं। महुये की शराब व सल्फी का उपयोग जन्म से मृत्यु तक के सभी संस्कारों में अनिवार्य आवश्यकता के रूप में करते हैं।

अबूझमाड़िया जनजाति में पितृसत्तात्मक समाज 

अबूझमाडिया जनजाति पितृवंशीय, पितृनिवास स्थानीय व पितृसत्तात्मक जनजाति है। यह जनजाति अनेक वंश में विभक्त हैं। वंश अनेक गोत्रों में विभाजित है, जिन्हें ‘गोती’ कहा जाता है। इनके प्रमुख गोत्र अक्का, मंडावी, धुर्वा, उसेंडी, मरका, गुंठा, अटमी, लखमी, बड्डे, थोंडा इत्यादि हैं। ( अबूझमाड़िया जनजाति छत्तीसगढ़ – Abujhmadiya Janjati Chhattisgarh – Abujhmadiya Tribe Chhattisgarh )

प्रसव परिवार की बुजुर्ग महिलाएँ या रिश्तेदार कराती हैं। पहले प्रसव के लिये “कुरमा” झोंपड़ा (पृथक से प्रसव झोंपड़ी) बनाया जाता था। शिशु की नाल तीर छुरी  से काटी जाती है। प्रसूता को पांच दिन तक चावल-दाल की खिचड़ी बनाकर खिलाते हैं। हल्दी, सोंठ, पीपर, तुलसी के पत्ते, गुड़, अजवाईन आदि का काढ़ा बनाकर पिलाते हैं। छठें दिन छठी मनाते हैं। प्रसूता व शिशु को नहलाकर नया कपड़ा पहनाकर घर के देवता का प्रणाम कराते हैं। इस दिन शिशु का नामकरण भी होता है। पारिवारिक व सामाजिक मित्रों को महुये की शराब पिलाई जाती है।

युवकों का विवाह 18-19 वर्ष व युवतियों का विवाह 16-17 वर्ष में होता है। विवाह प्रस्ताव वर पक्ष की ओर से आता है। वधू के पिता से विवाह की सहमति मिलने पर वर का पिता रिश्तेदारी पक्की कर दोनों पक्षों के बुजुर्ग आपस में बैठकर सुक (वधू धन) तय करते हैं, जो अनाज, दाल, तेल, गुड, नगद रुपये के रूप में होता है। इस जनजाति में वधू को लेकर वधूपक्ष के लोग वर के गाँव में आते है। विवाह की रस्म जाति के बुजुगों द्वारा संपन्न वर के घर पर कराई जाती है। इस जनजाति में बिरहोर  (सहपलायन), ओडियत्ता (घुसपैठ) और चूड़ी पहनाना (विधवा/परित्यक्ता पुर्न: विवाह) की प्रथा भी प्रचलित है।

मृतक को दफनाते हैं। दाह-संस्कार पर कोई प्रतिबंध नहीं है। विशिष्ट और संपन्न व्यक्ति की याद में श्मशान में लगभग 8 फिट ऊंचा 4 फिट गोलाई का चौकोर विभिन्न पशु-पक्षी व देवी-देवता, भूत-प्रेत व संस्कारों से नक्कासी किये गये लकड़ी के खंभा (अनाल गढ़वा) गढ़ाते हैं। तीसरे दिन मृत्यु भोज दिया जाता है। ( अबूझमाड़िया जनजाति छत्तीसगढ़ – Abujhmadiya Janjati Chhattisgarh – Abujhmadiya Tribe Chhattisgarh )

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अबूझमाड़िया जनजाति के देवी देवता 

इनमें परंपरागत जाति पंचायत पाया जाता है। क्षेत्रीय आधार पर सर्वोच्च व्यक्ति मांझी (मुखिया) होता है, जिनके नीचे पटेल, पारा मुखिया व गायता होते हैं। इनका मुख्य कार्य अपने माढ़ (क्षेत्र) में शांति व्यवस्था, कानून आदि बनाये रखना, लड़ाई-झगड़ों विवादों का निपटारा करना व जाति संबंधी नियमों को बनाना व आवश्यकतानुसार संशोधन करना है। ( अबूझमाड़िया जनजाति छत्तीसगढ़ – Abujhmadiya Janjati Chhattisgarh – Abujhmadiya Tribe Chhattisgarh )

इनके प्रमुख देवी-देवता बुदादेव, ठाकुर देव (टालुभेट), बूढीमाई या बूढ़ी डोकरी, लिंगोपेन, घर के देवता (छोटा पेन, बड़ा पेन, मंझला पेन) व गोत्रनुसार कुल देवता हैं। स्थानीय देवी-देवता में सूर्य, चंद्र, नदी, पहाड़, पृथ्वी, नाग व हिंदू देवी-देवता की पूजा करते हैं। पूजा में मुर्गी, बकरा व सुअर की बलि दी जाती है।

प्रमुख त्योहार पोला, काकसार व पंडुम आदि हैं। जादू-टोना और भूत-प्रेत के संबंध में अत्यधिक विश्वास करते हैं। तंत्र-मंत्र का जानकार गायता सिरा कहलाता है ।( अबूझमाड़िया जनजाति छत्तीसगढ़ – Abujhmadiya Janjati Chhattisgarh – Abujhmadiya Tribe Chhattisgarh )

इस जनजाति के स्त्री-पुरुष नृत्य व गीत के अत्यंत शौकीन होते हैं। विभिन्न त्योहारों, उत्सवों, मड़ई और जीवन-चक्र के विभिन्न संस्कारों पर युवक-युवतियाँ ढोल, मांदर के साथ लोकनृत्य करते हैं। काकसार, गेड़ी नृत्य व रिलो प्रमुख नृत्य हैं। लोकगीत में ददरिया, रिलोगीत, पूजागीत, विवाह व सगाई के गीत तथा छठीं के गीत गाते हैं। ये ‘माडी’ बोली बोलते है, जो द्रविड़ भाषा परिवार के गोड़ी बोली का एक रूप है। वर्ष 2002 में कराये गये सर्वेक्षण में अबूझमाड़िया जनजाति में साक्षरता 19.25 प्रतिशत पाई गई थी।

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source : Internet

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Rajveer Singh
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