
नमस्ते विद्यार्थीओ आज हम पढ़ेंगे उरांव जनजाति छत्तीसगढ़ Urav janjati chhattisgarh urav tribe chhattisgarh के बारे में जो की छत्तीसगढ़ के सभी सरकारी परीक्षाओ में अक्सर पूछ लिया जाता है , लेकिन यह खासकर के CGPSC PRE और CGPSC Mains में आएगा , तो आप इसे बिलकुल ध्यान से पढियेगा और हो सके तो इसका नोट्स भी बना लीजियेगा ।
उरांव जनजाति छत्तीसगढ़ Urav janjati chhattisgarh urav tribe chhattisgarh
✅ उरांव जनजाति का परिचय
उरांव छत्तीसगढ़ की एक प्रमुख जनजाति है। इनकी जनसंख्या झारखण्ड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल में भी है। यह जनजाति “कुडुख” भी कहलाती है। छत्तीसगढ़ राज्य में इनकी जनसंख्या 2011 की जनगणना में 748789 दर्शाई गई है। इनमें पुरुष 373065 तथा स्त्रियाँ 375724 थी।
इनका प्रमुख निवास छत्तीसगढ़ राज्य की उत्तर-पूर्वी सीमा जशपुर, रायगढ़, – सरगुजा, कोरिया, सूरजपुर, बलरामपुर जिला है। समस्त उरांव क्षेत्र पर्वतों की मनोरम घाटियों तथा हरे-भरे साल के वनों से आच्छादित हैं। राज्य में जशपुर जिले में उरांव की जनसंख्या सबसे अधिक है। ( उराव जनजाति छत्तीसगढ़ Urav janjati chhattisgarh urav tribe chhattisgarh )
उरांव जनजाति की उत्पत्ति के विषय में ऐतिहासिक अभिलेख नहीं है। समाज वैज्ञानिकों के अनुसार उरांव देश के पश्चिमी और उत्तर भागों में हजारों वर्ष पहले रहा करते थे। कालांतर में उनके पूर्वज शाहबाद (भोजपुर) क्षेत्र में प्रवेश किये। आर्यों के दबाव के कारण उन्हें शाहबाद छोड़ना पड़ा। कुछ समय तक उरांव रोहताश के पठारी इलाकों में आश्रय लिए फिर छोटा नागपुर की ओर बढ़े।
रोहताश छोड़ते वक्त वे दलों में बंट गये। एक दल गंगा की तटवर्ती इलाके से गुजरता हुआ राजमहल के पहाड़ी इलाकों में पहुँचा। दूसरा दल कोयल नदी की तटवर्ती मैदानों से होता हुआ पलामू (बिहार) क्षेत्र में प्रवेश किया। पलामू के बाद वे उत्तर-पूर्वी रांची में प्रवेश किये। छोटा नागपुर से कुछ लोग छत्तीसगढ़ के जशपुर, बलरामपुर, सरगुजा के पहाड़ी क्षेत्रों में आकर बस गये। ( उराव जनजाति छत्तीसगढ़ Urav janjati chhattisgarh urav tribe chhattisgarh )
✅ उरांव जनजाति का रहन-सहन
उरांव जनजाति के लोग मुण्डा, नगेसिया, गोंड, कंबर, खैरवार, भूमिहर आदि जनजातियों के साथ ग्राम में निवास करते हैं। इनके घर मिट्टी के बने होते हैं, जिस पर लकड़ी और देशी खपरैल से छप्पर बनाते हैं। घर की दीवार की पुताई हिन्दू उरांव काली मिट्टी से तथा इसाई उरांव चूने से करते हैं। घर का फर्श मिट्टी का बना होता है, जिसे प्रतिदिन गोबर, मिट्टी से लिपते हैं। घर में दो-तीन कमरे होते हैं. चारों तरफ बरामदानुमा “परछी” होती है। मुख्य बड़े कमरे में अनाज रखने की कोठी, देवी-देवता का स्थान होता है। रसोई घर परछी में होता है।
इनके घर में मुख्यतः मिट्टी, एल्युमिनियम, कांसे व स्टील के कुछ बर्तन, चूल्हा, ढेकी, मूसल, चक्की, ओढ़ने-बिछाने, पहनने के कपड़े, वाद्य यंत्र में मांदल (मिट्टी का मृदंग) कृषि के उपकरण, मछली पकड़ने के जाल आदि होते हैं।( उराव जनजाति छत्तीसगढ़ Urav janjati chhattisgarh urav tribe chhattisgarh )
पुरुष व महिलाएँ करंज, नीम, हर्रा आदि की दातुन से दाँतों की सफाई कर प्रतिदिन स्नान करते हैं। पुरुष बाल छोटे रखते हैं। स्त्रियाँ लम्बे बालों का जूड़ा या वेणी बनाती हैं। बाल धोने के लिए काली मिट्टी, या साबुन का उपयोग करते हैं। वस्त्र विन्यास में पुरुष छोटी धोती व अंगरखा पहनते हैं। महिलाएँ लुगड़ा-पोलका पहनती हैं। नवयुवक पेंट, शर्ट, नवयुवतियाँ साड़ी, पेटीकोट, ब्लाउज पहनती हैं।
✅ उरांव जनजाति का कृषि और व्यवसाय
इनका मुख्य भोजन चावल, गोंदली, कोदो की भात व पेज है। इसके साथ उड़द, मूंग, कुलथी की दाल, मौसमी सब्जी खाते हैं। मांसाहार में मुर्गा, मछली, बकरा, खरगोश, सुअर, हिरण आदि का मांस खाते हैं। त्योहार व उत्सवों में चावल की शराब “हडिया” बनाकर पीते हैं। पुरुष बीड़ी भी पीते हैं। ( उराव जनजाति छत्तीसगढ़ Urav janjati chhattisgarh urav tribe chhattisgarh )
उरांव जनजाति का मुख्य आर्थिक स्त्रोत कृषि, मजदूरी, वनोपज संग्रह आदि है। कृषि में पहाड़ी ढलान पर कोदो, गोंदली, साठी धान, उड़द, मूंग, कुलथी, अरहर आदि तथा नीची सेरहा भूमि में उन्नत धान बोते हैं। असिंचित भूमि में उत्पादन कम होता है। जिनके पास जमीन कम है, वे अन्य कृषक के खेतों में मजदूरी ते हैं।
जंगल से तेन्दूपत्ता, माहुल पत्ता, महुआ, गुल्ली, साल बीज, लाख, चिरौंजी, कोसा, धवई फूल, शब्द आदि एकत्र कर बेचते हैं। शिक्षित उरांव युवक-युवतियाँ शासकीय नौकरी करते हैं। वर्षा ऋतु में स्वयं के उपयोग हेतु मछली भी पकड़ते हैं। ( उराव जनजाति छत्तीसगढ़ Urav janjati chhattisgarh urav tribe chhattisgarh )
✅ उरांव जनजाति परम्परा
उरांव जनजाति उपजातियों में बंटी है। इनके प्रमुख उपजातियाँ उरांव, धांगड़, धनका आदि हैं। धर्म के आधार पर हिंदू उरांव और ईसाई उरांव में विभक्त है। इसमें अनेक बहिर्विवाही गोत्र पाये जाते हैं। इनके प्रमुख गोत्र लकड़ा, तिग्गा, तिर्की, टोप्पो, मिंज, बेक, खल्को, कुजुर खाखा, इक्का आदि है। प्रत्येक गोत्र के पशु-पक्षी, जीव-जंतु, वृक्ष-लता आदि के नाम का ” वंश चिन्ह” (टोटम) पाये जाते हैं। ( उराव जनजाति छत्तीसगढ़ Urav janjati chhattisgarh urav tribe chhattisgarh )
इस जनजाति की गर्भवती महिलाएँ प्रसव के दिन तक अपनी आर्थिक तथा पारिवारिक कार्य करती हैं। प्रसव घर पर ही “सयानी” (बुजुर्ग) स्वियों के देख-रेख में कराया जाता है। बच्चे का “नाड़ा” (नाल) छुरी को आग में तपाकर काटते हैं, जो प्रसूता को उनके माता-पिता द्वारा दी गई होती है। “नादा” घर में ही गढ़ाते हैं। प्रसव के बाद प्रसूता को पीपर, सॉठ, अजवाइन, गुड़, घी, नारियल आदि से निर्मित लद्दू खिलाते हैं।
छठे दिन छठी का आयोजन किया जाता है। आयोजन में रिश्तेदारों का “दिया” बीड़ी आदि से स्वागत किया जाता है। प्रसुती तथा नवजात शिशु को नहलाकर नये वस्त्र पहनाते हैं। माता एवं नवजात शिशु सूर्य को प्रणाम कर मेहमानों से भी आशीर्वाद लेते हैं। ( उराव जनजाति छत्तीसगढ़ Urav janjati chhattisgarh urav tribe chhattisgarh )
✅ उरांव जनजाति में विवाह
विवाह उम्र लड़कों को 21 से 24 वर्ष तथा लड़कियों की 18 से 22 वर्ष उपयुक्त मानी जाती है। विवाह का प्रस्ताव लड़के वालों की ओर से लड़की वालों को दिया जाता है। वर पक्ष वधू के पिता को सुक भरना (वधू मूल्य) के रूप में शराब, बकरा, चावल, दाल, साड़ी आदि देते हैं। नगद राशि का रिवाज नहीं है।
विवाह की रस्म जाति के बुजुर्ग व्यक्तियों की देख-रेख में संपन्न होता है। ईसाई उरांव में शादी के पूर्व 3 से 7 दिन तक चर्च में शिक्षा दी जाती है। विवाह रस्म चर्च में संपन्न होती है। जनजाति रिवाज से भी की जाती है। इसके अतिरिक्त सहपलायन, दुकु (घुसपैठ, विनियुम, घर जमाई प्रथा, विधवा-त्वगता का पुनर्विवाह को भी सामाजिक मान्यता है। ( उराव जनजाति छत्तीसगढ़ Urav janjati chhattisgarh urav tribe chhattisgarh )
मृत्यु होने पर मृतक को दफनाते हैं। संपन्न हिंदू उरांव (संसारी उरांव) जलाते भी हैं। मृत्यु के तीन दिनों के बाद “तीही नाहवन” हेतु रिश्तेदारों को बुलाया जाता है। नदी-नाले में सभी रिश्तेदार स्नान करते हैं। घर की साफ-सफाई की जाती है। इसी दिन से मृतक के घर एवं परिवार को शुद्ध माना जाता है। तीन माह बाद “गमी” मनाया जाता है, जिसमें परिवार तथा गाँव के लोगों को भोज दिया जाता है।
ईसाई उरांव में मृत्यु के समय पादरी को बुलाया जाता है। वह ज्ञान तथा धर्म का उपदेश देता है। पापों के प्रायश्चित कराया जाता है तथा आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है। इसे अन्तमलन संस्कार कहते हैं। ( उराव जनजाति छत्तीसगढ़ Urav janjati chhattisgarh urav tribe chhattisgarh )
✅ उरांव जनजाति का पंचायत
उरांवों में परंपरागत जाति पंचायत होती है। ग्राम स्तरीय जाति पंचायत का प्रमुख “महतो “ कहलाता है। ये पंचायतें जातिगत समस्या, वैवाहिक विवाद, अनैतिक संबंध संपत्ति का बंटवारा आदि का निपटारा करती है। ग्राम के सरना पूजा, करमा पूजा आदि की भी व्यवस्था करती है। कई ग्राम के जाति पंचायत मिल परहा पंचायत “ बनाते हैं। परहा पंचायत का प्रमुख “परहा राजा” कहलाता है।
इसके अतिरिक्त दीवान, कोटवार, पनेरी, पनभरवा और मुकतवा आदि पदाधिकारी भी होते हैं। ग्राम स्तरीय जाति पंचायत में अनसुलझे मामले परहा पंचायत में निर्णय हेतु आते हैं, जिनका परहा पंचायत में निपटारा किया जाता है। ( उराव जनजाति छत्तीसगढ़ Urav janjati chhattisgarh urav tribe chhattisgarh )
✅ उरांव जनजाति के देवी-देवता
इनके प्रमुख | देव धर्मेश (सूर्य) है। ग्राम देवी-देवता में अंधेरी पाटा, चण्डी, गाँव देवता, पाटराजा आदि हैं। हिंदू देवी-देवता राम, हनुमान, कृष्ण, शिव आदि की पूजा करते हैं। अपने वंश चिन्ह नदी, पर्वत, नाग आदि को भी देवी-देवता मानते हैं। गाँव के सरना में ग्राम देवता का वास होता है।
इनका प्रमुख त्योहार करमा पूजा, सरहुल, दशहरा, दिवाली, नवाखाई, फागुन आदि हैं। इन त्योहारों में सुअर, बकरा, मुर्गा आदि की बलि देते हैं। नवरात्रि के समय जशपुर नगर की देवी को बकरा भेंट करते हैं। ( उराव जनजाति छत्तीसगढ़ Urav janjati chhattisgarh urav tribe chhattisgarh )
बुजुर्ग लोग भूत-प्रेत, जादू-टोना पर बहुत विश्वास करते हैं। मंत्र-तंत्र के जानकार व देवी-देवता का पुजारी ” पाहन” कहलाता है।
उरांव जनजाति के प्रमुख नृत्य करमा नृत्य, सरहुल नृत्य, विवाह नृत्य आदि हैं। लोकगीतों में करमा गीत, सरहुल गीत, फागुन गीत, सोहराई गीत, भजन आदि हैं। ( उराव जनजाति छत्तीसगढ़ Urav janjati chhattisgarh urav tribe chhattisgarh )
इस जनजाति की अपनी विशेष बोली है, जिसे “कुरुख बोली” कहा जाता है। इस जनजाति के लोग आपस में कुडुख बोली में बातें करते हैं। उरांव जनजाति में ईसाई मिशनरी ने शिक्षण का काफी प्रचार-प्रसार किया है। वर्ष 2011 की जनगणना में इस जनजाति की साक्षरता 68.9 प्रतिशत दर्शाई गई है पुरुष में साक्षरता 76.6% तथा स्त्रियों में साक्षरता 61.4% थी ।
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