बिरहोर जनजाति छत्तीसगढ़ Birhor janjati chhattisgarh birhor tribes chhattisgarh

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बिरहोर जनजाति छत्तीसगढ़ Birhor janjati chhattisgarh birhor tribes chhattisgarh
बिरहोर जनजाति छत्तीसगढ़ Birhor janjati chhattisgarh birhor tribes chhattisgarh

नमस्ते विद्यार्थीओ आज हम पढ़ेंगे  बिरहोर जनजाति छत्तीसगढ़ Birhor janjati chhattisgarh birhor tribes chhattisgarh  के बारे में जो की छत्तीसगढ़ के सभी सरकारी परीक्षाओ में अक्सर पूछ लिया जाता है , लेकिन यह खासकर के CGPSC PRE और CGPSC Mains में आएगा , तो आप इसे बिलकुल ध्यान से पढियेगा और हो सके तो इसका नोट्स भी बना लीजियेगा ।

बिरहोर जनजाति छत्तीसगढ़ Birhor janjati chhattisgarh birhor tribes chhattisgarh

बिरहोर जनजाति का इतिहास 

बिरहोर छत्तीसगढ़ की एक विशेष पिछड़ी जनजाति है। देश में इनकी अधिकांश जनसंख्या झारखंड राज्य में निवासरत है। वर्ष 2011 की जनगणना में छत्तीसगढ़ में इनकी जनसंख्या 3104 दर्शाई गई है। इनमें पुरुष 1526 एवं महिला 1578 थी। ( बिरहोर जनजाति छत्तीसगढ़ Birhor janjati chhattisgarh birhor tribes chhattisgarh  )

इस जनजाति के लोग छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़, लैलूंग तमनार विकासखंड में, जशपुर जिले के बगीचा कांसाबेल, दुलदुला, पत्थलगांव विकासखंडों में, कोरबा जिले के कोरबा, पोड़ी उपरोड़ा, पाली विकास खंड तथा बिलासपुर जिले के कोटा व मस्तूरी विकासखंड में निवासरत हैं।

बिरहोर जनजाति के उत्पत्ति के संबंध में ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैइन्हें कोलारियन समूह को जनजाति माना जाता है। इनमें प्रचलित किवदंती के अनुसार सूर्य के द्वारा सात भाई जमीन पर गिराये गये थे, जो खैरागढ़ (कैमूर पहाड़ी) से इस देश में आये। चार भाई पूर्व दिशा में चले गये और तीन भाई रायगढ़ जशपुर की पहाड़ी में रह गये।

एक दिन वे तीनो भाई देश के राजा से युद्ध करने निकले तथा उनमें से एक भाई के सिर का कपड़ा पेड़ में अटक गया इसे अशुभ लक्षण मानकर वह जंगल में चला गया तथा जंगल की कटीली झाड़ियों को काटने लगा। बचे दो भाई राजा से युद्ध करने चले गये और उसे युद्ध में हरा दिया। ( बिरहोर जनजाति छत्तीसगढ़ Birhor janjati chhattisgarh birhor tribes chhattisgarh  )

जब वे वापस आ रहे थे, तो उन्होंने अपने भाई को जंगल में “चोप” (झाड़ी) काटते देखा वे उसे बिरहोर (जंगल का _आदमी या चोप काटने वाला) कहकर पुकारने लगे। वह गर्व से कहा कि हाँ भाइयों मैं बिरहोर हूँ और वह व्यक्ति जंगल में ही रहने लगा। उनकी संताने भी बिरहने कहलाने लगी। मण्डारी भाषा में “बिर” अर्थात जंगल अथवा झाडी एवं “होर” का अर्थ आदमी है। बिरहोर का अर्थ जंगल का आदमी या झाडी काटने वाला आदमी हो सकता है ।

बिरहोर जनजाति रहन-सहन

बिरहोर जनजाति के लोग पर्वतीय क्षेत्रों के गाँव में अन्य जनजातियों से कुछ दूर जंगल के किनारे झोपड़ी बनाकर रहते हैं। इनका “कुड़िया” (झोपडी) लकड़ी और घास फूस की होती है। “कुड़िया” में एक ही कमरा होता है। किनारे में धान कूटने का मूसल, चटाई, बांस की टोकरी, टोकरा, सूपा, मिट्टी व एल्युमीनियम के कुछ बर्तन, तीर-कमान, कुल्हाड़ी, मछली पकड़ने के जाल आदि होते हैं।( बिरहोर जनजाति छत्तीसगढ़ Birhor janjati chhattisgarh birhor tribes chhattisgarh  )

इनके पास ओढने बिछाने का पर्याप्त साधन नहीं है। सामान्यतः यह जमीन पर पैरा बिछाकर सोते हैं। जाडे के मौसम में पूरा परिवार अलाव जलाकर उसके चारों ओर सोता है। कुछ बिरहोर के यहाँ शहनाई, मांदर, ढोलक, ढफली, लोहारी, नगाड़ा, ढिमरी, आदि वाधयंत्र पाये गये हैं। पुरुष सामान्यतः लंगोटी या छोटा पंछा पहनते हैं स्त्रियाँ लुगड़ा पहनती हैं। स्वयं पीतल गिलट आदि की हाथ में पट्टा या ऐंठी, गले में माला, कान में खिनबा, नाक में फूली पहनती हैं।

इनका मुख्य भोजन चावल कोदो की पेज, बेलिया, कुलथी, उड़द की दाल, जंगली कंदमूल व मौसमी साग-भाजी है। मांसाहार में मुगी, बकरा, मछली, चूहा, केकड़ा, कछुआ, खरगोश, हिरण, सुअर, बंदर, जंगली पक्षियों का मांस खा लेते हैं। महुआ का शराब बनाकर पीते हैं। ( बिरहोर जनजाति छत्तीसगढ़ Birhor janjati chhattisgarh birhor tribes chhattisgarh  )

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बिरहोर जनजाति का कृषि और व्यवसाय 

इनका मुख्य कार्य शिकार, जंगली कंदमूल, भाजी, जंगली उपज एकत्र करना है। मोहलाइन छाल को रस्सी व बाँस के टुकना, झकंहा बनाकर भी बेचते हैं। घर के आस-पास की भूमि में साठी धान, मक्का, कोदो, उड़द आदि भी वो लेते हैं। ( बिरहोर जनजाति छत्तीसगढ़ Birhor janjati chhattisgarh birhor tribes chhattisgarh  )

इनका खाद्य पदार्थ (धान चावल) खत्म हो जाता है तो ये जंगल से नकौआ कांडा. डिटे कांदा पिठास कांदा या लागे कांदा खोदकर लाते हैं। इसे भूनकर या उबालकर खाते हैं। ये सालेहा व पोटे नामक वृक्ष की लकड़ी से ढोलक, मांदर की खोल, बेहंगा आदि बनाकर बेचते हैं

वर्षा ऋतु में मछली भी पकड़ते हैं। पहले जंगली पशु हिरण, खरगोश, लोमड़ी, सियार, बंदर तथा पक्षियों का शिकार भी करते थे। शिकार तथा कंदमूल संग्रहण इनकी आदिम अर्थव्यवस्था का परिचायक था। ( बिरहोर जनजाति छत्तीसगढ़ Birhor janjati chhattisgarh birhor tribes chhattisgarh  )

घुमंतु जीवन व्यतीत करने वाले बिरहोर उथल कहलाते थे, जो शिकार व कंदमूल की खोज में पहाड़ियों में जंगलों में अस्थाई निवास बना कर घूमते थे जो स्थाई कुड़िया बनाकर गाँव के समीप निवास करते हैं जघोश बिरहोर कहलाते हैं। इस जनजाति में कई बहिर्विवाही गोत्र पाया जाता है। इनके प्रमुख गोत्र सोनियल, गोतिया, बंदर गोतिया, बघेल, बाडी, कछुआ, उतोर, सोनवानी व मुरिहार आदि है।

बिरहोर जनजाति रीती-रिवाज 

संतान की प्राप्ति शुभ मानते हैं। पुत्र हो या पुत्री ईश्वर की देन मानी जाती है। गर्भावस्था में कोई विशेष संस्कार नहीं होता। गर्भवती समस्त आर्थिक व पारिवारिक कार्य करती हैं। प्रसव के वक्त प्रसूता को अलग झोपड़ी (कुड़िया) में रखते है। कुसेरू दाई जो इन्हीं की जाति की होती है, प्रसव कराती है।

एक माह तक प्रसूता व नवजात शिशु उसी कुड़िया में रहते हैं। सातवें दिन छठी मनाते हैं, जिसमें प्रसूता व नवजात शिशु को नहलाकर प्रातः कालीन सूर्य का दर्शन व पूजन कराते हैं। रिश्तेदारों को शराब पिलाते हैं तथा भोजन कराते हैं। ( बिरहोर जनजाति छत्तीसगढ़ Birhor janjati chhattisgarh birhor tribes chhattisgarh  )

विवाह उम्र सामान्यतः लड़कों के लिए 16 से 18 वर्ष तथा लड़कियों के लिए 14 से 16 वर्ष माना जाता है। विवाह प्रस्ताव वर पक्ष की ओर से आता है। विवाह तय होने पर वर के पिता कन्या के पिता को दोखंडी चावल, पाँच कुड़ो दाल दो हड़िया शराब, लड़की के लिए एक लुगड़ा तथा उसकी माँ के लिए एक मायसारा देता है

विवाह की रस्म बिरहोर जाति का देहा (पुजारी) संपन्न कराता है। इसके अतिरिक्त दुकू, उरिया, गोलत (विनिमय) प्रथा को भी विवाह मान्य किया जाता है। विधवा तथा विवाहिता को दूसरे व्यक्ति के साथ चूड़ी पहनने (पुनर्विवाह) की अनुमति है। ( बिरहोर जनजाति छत्तीसगढ़ Birhor janjati chhattisgarh birhor tribes chhattisgarh  )

मृत्यु होने पर मृतक को दफनाते हैं। परिवार में पुरुष सदस्य दाढ़ी-मूंछ, सिर के बाल कटाते हैं, स्नान करते हैं। पहले पुरानी कड़िया को तोड़कर नई कुड़िया बना लेते थे। एक माह बाद भी रिश्तेदारों को मृत्युभोज देते हैं।

इस समाज में परंपरागत जाति पंचायत पाई जाती है। जाति पंचायत का प्रमुख “मालिक” कहलाता है। इस पंचायत में ढुकू विवाह, सहपलायन, विवाहिता का पहले पति को छोड़ पुनर्विवाह करने पर “सुक” वापस करना, अनैतिक संबंध आदि का परंपरागत तरीके से न्याय किया जाता है। ( बिरहोर जनजाति छत्तीसगढ़ Birhor janjati chhattisgarh birhor tribes chhattisgarh  )

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बिरहोर जनजाति के देवी-देवता 

बिरहोर जनजाति के प्रमुख देवता सूरज (सूर्य) है। इसके द्वितिरिक्त बुढीमाई, मरी माई, पूर्वज पहाड़, वृक्ष आदि की भी पूजा करते हैं। पूजा में शराब चढ़ाते हैं तथा मुर्गा, बकरा, सुअर आदि की बलि देते हैं। इनके प्रमुख त्योहार नवाखानी, दशहरा, सरहुल, करमा, सोहराई और फगुआ है।

भूत-प्रेत, दोना, जादू मंत्र आदि पर काफी विश्वास करते हैं। इनके मंत्र-तंत्र व जड़ी-बूटी का जानने वाला पाहन कहलाता है। स्थानीय अन्य जनजाति के लोग बिरहोर जाति के लोगों को टोना जादू करने में माहिर मानते हैं, इनसे डरते हैं। ( बिरहोर जनजाति छत्तीसगढ़ Birhor janjati chhattisgarh birhor tribes chhattisgarh  )

बिरहोर जनजाति के लोग करमा, फगुआ, बिहाव नाच आदि नाचते हैं। इनके लोक गीतों में करमा गीत, फगुआ गीत, विवाह गीत प्रमुख हैं। इनके प्रमुख वाद्य यंत्र मदर , डोली , टिमकी आदि है।

बिरहोर जनजाति में साक्षरता 2011 की जनगणना में 39.0 प्रतिशत थी। पुरुषों में साक्षरता 49.6 प्रतिशत तथा महिलाओं में साक्षरता 28.7 प्रतिशत थी। ( बिरहोर जनजाति छत्तीसगढ़ Birhor janjati chhattisgarh birhor tribes chhattisgarh  )

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source : Internet

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Rajveer Singh
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