नमस्ते विद्यार्थीओ आज हम पढ़ेंगे परधान जनजाति छत्तीसगढ़ Pardhan Janjati Chhattisgarh pardhan tribe chhattisgarh के बारे में जो की छत्तीसगढ़ के सभी सरकारी परीक्षाओ में अक्सर पूछ लिया जाता है , लेकिन यह खासकर के CGPSC PRE और CGPSC Mains में आएगा , तो आप इसे बिलकुल ध्यान से पढियेगा और हो सके तो इसका नोट्स भी बना लीजियेगा ।
परधान जनजाति छत्तीसगढ़ Pardhan Janjati Chhattisgarh Pardhan Tribe Chhattisgarh
✅ परधान जनजाति की उत्पत्ति
परधान छत्तीसगढ़ की एक अनुसूचित जनजाति है। राज्य में इस जनजाति की जनसंख्या जनगणना 2011 में 11111 दर्शित है। इनमें पुरुष 5479 एवं स्त्रियाँ 5632 थी। यह जनजाति छत्तीसगढ़ में बिलासपुर, कवर्धा जिले में मुख्यतः निवासरत है। इनकी कुछ जनसंख्या बस्तर संभाग में भी पाई जाती हैं। परधान जनजाति की सर्वाधि क जनसंख्या मध्य प्रदेश के डिंडौरी, मण्डला, सिवनी, छिंदवाड़ा, जबलपुर तथा बालाघाट जिले में है।
गोंड समुदाय में विभिन्न उपजातियों जैसे गोंड गोवारी, ओझा, दुलिया, अगरिया आदि अपने-अपने निर्धारित कार्य करते हैं। उसी प्रकार परधान जनजाति भी गोंड जनजाति के पुजारी तथा संगीतज्ञ का कार्य करती है। इनके उत्पत्ति के संबंध में कोई स्पष्ट लिखित इतिहास नहीं मिलता है। ( परधान जनजाति छत्तीसगढ़ Pardhan Janjati Chhattisgarh pardhan tribe chhattisgarh )
किवदंतियों के अनुसार गॉड, बैगा, गोंड गोवारी, अगरिया, दुलिया, ओझा, परधान आदि का सात भाई प्राचीन काल में थे। एक दिन सातों भाई मिलकर बूढ़ादेव (महादेव) के पूजा के लिये गये। सभी भाई पूजा कर वापस घर लौटे; किन्तु सबसे छोटा भाई एक लकड़ी का टुकड़ा (बाँस) का वाद्य यंत्र बनाया तथा उसे बजाकर बूढ़ादेव के गुणगान में गीत गाने लगा। बूढ़ादेव उसके वाद्य यंत्र के मधुर स्वर लहरी तथा लयबद्ध गुणगान गीत को सुनकर प्रकट हुए तथा उसे आशीर्वाद दिया कि तुम संगीत तथा पूजा कार्य में निपुण होगे। इसी भाई का वंशज कालांतर परधान जनजाति के नाम से पहचाने जाने लगे।
✅ परधान जनजाति रहन-सहन
परधान जाति का ग्राम अलग से न होकर जिले में रहने वाले अन्य जनजाति जैसे गोंड, भूमिया, बैगा आदि के साथ रहते हैं। इनके घरों की संख्या प्रत्येक गाँव में अन्य जनजातियों की तुलना में कम होती है। ( परधान जनजाति छत्तीसगढ़ Pardhan Janjati Chhattisgarh pardhan tribe chhattisgarh )
इनके घर की दीवारें मिट्टी से बनी होती हैं, छप्पर घासफूस या देशी कवेलू (खपरैल) की बनी होती है। घर की दीवार की पीली मिट्टी या सफेद मिट्टी से पुताई करते हैं। फर्श मिट्टी का बना होता है।
सामान्यतः घर एक या दो कमरे का बना होता है, जिसके सामने तथा पीछे की ओर परछी होती है। घर के सामने तथा पीछे की और दो दरवाजे होते हैं, जिसमें लकड़ी के किवाड़ लगे होते हैं। बीच के मुख्य कमरे में अनाज की कोठी, देवी-देवता का स्थान, कपड़े, वाद्य यंत्र तथा अन्य घरेलू सामान होता है। पीछे की परछी में चूल्हा होता है, जहाँ रसोई के अन्य बर्तन रखे होते हैं। जानवरों के लिए घर के बाजू से कोठा होता है। स्त्रियाँ प्रतिदिन सुबह उठकर घर में झाडू लगाती हैं। फर्श को गोबर से लीपती हैं।
पुरुष तथा स्त्री सुबह रतनजोत या हर्रा की दातुन से दाँतों की सफाई करते हैं तथा स्नान करते हैं। शरीर से मैल निकालने के लिए पत्थर के छोटे टुकड़ों से शरीर को रगड़ते हैं। ( परधान जनजाति छत्तीसगढ़ Pardhan Janjati Chhattisgarh pardhan tribe chhattisgarh )
बाल धोने के लिए काली मिट्टी का उपयोग करते हैं। महिलाएँ बालों में मूँगफली या गुल्ली का तेल लगाकर कंघी करने के बाद गूंथकर जूड़ा बनाती हैं। स्त्रियों व बच्चे आँखों में काजल लगाते हैं। महिलाएँ आभूषण की शौकीन होती हैं। पैरों में पैरी, तौदा, कमर में करधन, हाथ की कलाई में काँच की चूड़ियाँ, गिलट के कंगना, गुलेटा, गले में सरिया, हँसली, कानों में उमेंठा, नाक में नथ या लॉंग पहनती हैं।
शरीर पर गुदना गुदाती हैं। वस्त्र में पुरुष कुरता, धोती, बंडी साफा तथा स्त्रियाँ लुगड़ा, पोलका पहनती हैं। ( परधान जनजाति छत्तीसगढ़ Pardhan Janjati Chhattisgarh pardhan tribe chhattisgarh )
रसोई घर में मिट्टी का चूल्हा, तया, लोहे का चिमटा, कढ़ाई, अन्य बर्तनों में पैना, तगाड़ी, भगोना, ग्लास, लोटा, थाली, कटोरी आदि एल्युमिनियम या पीतल के होते हैं। पानी भरने के लिये मिट्टी का एक घड़ा होता है। घरेलू उपयोगी अन्य वस्तुओं में ढँकी, मूसल, कुनेता, जांता, बाँस की टोकरी, टोकरा, सूपा आदि होता है। किंगरी इनका मुख्य वाद्य है।
इसके अतिरिक्त ढोल, नगाड़ा, तंबूरा, खंजरी, हार्मोनियम आदि भी बजाते हैं। इनका मुख्य भोजन चावल तथा कोदो, कुटकी का भात, उड़द, अरहर, कुलथी आदि की दाल तथा मौसमी सब्जियाँ हैं। जंगली कंदमूल, भाजी, फल, फूल आदि भी खाते हैं। मांसाहार में अंडे, मछली, मुर्गी, खरगोश आदि का मांस खाते हैं। त्योहार तथा उत्सवों पर महुआ से निर्मित शराब पीते हैं।
✅ परधान जनजाति के व्यवसाय
पहले परधान जनजाति संस्कारतः जजमानी प्रथा पर आश्रित होती थी। गोंड जनजाति के पुजारी का कार्य करने के कारण इन्हें जजमानी प्रथा में अनाज, दाल आदि प्राप्त करके जीवन यापन करते थे। ( परधान जनजाति छत्तीसगढ़ Pardhan Janjati Chhattisgarh pardhan tribe chhattisgarh )
“परधान” शब्द का अर्थ बताते हैं कि पर दूसरे का, धान = अनाज अर्थात् दूसरे के द्वारा उत्पन्न अनाज पर निर्भर रहने वाला। इसके अतिरिक्त ये लोग संगीतज्ञ तथा लोक गीतकार भी होते हैं। पूजा तथा लोक गीत से इन्हें अनाज, दाल तथा नगद रकम आदि प्राप्त होता था।
वर्तमान में परधान जनजाति कृषि, कृषि मजदूरी, जंगली उपज संग्रह, पुशपालन, नौकरी आदि करते हैं। इनके कृषि का मुख्य फसल धान, कोदो, कुटकी, मक्का, ज्वार, उड़द, अरहर, जगनी आदि है। ( परधान जनजाति छत्तीसगढ़ Pardhan Janjati Chhattisgarh pardhan tribe chhattisgarh )
परधान जाति मुख्यतः निम्नलिखित उपजातियों में बैटी हुई है –
राज परधान सबसे ऊँचे माने जाते हैं। ये राजगोंड पुरुष तथा परधान स्त्री के संतान माने जाते हैं। ये बूढ़ा देव के पुजारी होते हैं। गांड़ा परधान नीचे माने जाते हैं, जो बाजा बजाने का कार्य करते हैं। इसके अन्य उपविभागों में देसाई परधान जो देश-देश घूमता है, माढ़ेर परधान जो बस्तर के माड़ क्षेत्र में निवास करते हैं।
खलौटिया परधान छत्तीसगढ़ में निवास करते हैं। बैगा, परधान छत्तीसगढ़ में पुजारी का काम करते हैं। मध्य प्रदेश के मण्डला, सिवनी जिले के कुछ भाग में इन्हें सरोती और पठारी भी कहा जाता है। ( परधान जनजाति छत्तीसगढ़ Pardhan Janjati Chhattisgarh pardhan tribe chhattisgarh )
उपरोक्त उपजातियाँ कई बहिर्वियाही गोत्रों में विभक्त होती हैं। इनके प्रमुख गोत्र मरकाम, सिरसाम, कुर्राम, सरेआम, परतेती, उइके, भलावी आदि हैं। प्रत्येक गोत्र के जीव-जन्तु, पशु-पक्षी आधारित टोटम होते हैं। उपजाति अंतः विवाह समूह होता है।
✅ परधान जनजाति के परम्परा
संतानोत्पत्ति को भगवान की देन मानते हैं। रजस्वला स्त्री को अपवित्र माना जाता है। खाना बनाना, पानी भरना, पूजा संबंधी का कार्य नहीं करती हैं। गर्भावस्था में कोई संस्कार नहीं पाया जाता है। इस जनजाति की गर्भवती महिलाएँ प्रसव के दिन तक अपनी आर्थिक तथा पारिवारिक कार्य करती हैं। ( परधान जनजाति छत्तीसगढ़ Pardhan Janjati Chhattisgarh pardhan tribe chhattisgarh )
प्रसव घर में ही स्थानीय “सुईन दाई” के उपस्थिति में कराया जाता है। बच्चे का नाल सुईन दाई काटती है तथा घर में ही गढ़ाते हैं। प्रसूता को चाय, उड़द की दाल “सुदक” आदि पिलाते हैं। प्रसव के छठवें दिन छठी संस्कार किया जाता है, जिसमें प्रसूता तथा बच्चे को नहलाकर देवी-देवता तथा सूर्य का प्रणाम कराया जाता है। इस दिन नाम भी रखते हैं।
विवाह उम्र लड़कों में 16 से 18 वर्ष तथा लड़कियों में 14 से 17 वर्ष पाई गई है। विवाह का प्रस्ताव वर पक्ष की ओर से होता है। विवाह में वर पक्ष की ओर से खर्चा की रकम, अनाज, दाल, गुड़ तथा तेल वधू तथा उसकी माँ के लिए ‘लुगड़ा” आदि वधू पक्ष को देते हैं। ( परधान जनजाति छत्तीसगढ़ Pardhan Janjati Chhattisgarh pardhan tribe chhattisgarh )
विवाह मुख्यतः चार चरणों में क्रमशः मंगनी, फलदान, विवाह, गौना में पूरा किया जाता है। बारात में लगभग 30-40 व्यक्ति पैदल या बैलगाड़ी में वधू के घर आते हैं, साथ में बाजा वाला होता है। फेरे लगाने के बाद विवाह की रस्म पूरी मानी जाती है। वधू धन विवाह के अतिरिक्त विनिमय विवाह, सेवा विवाह, विधवा या त्यक्ता को चूड़ी पहनाकर पुनर्विवाह पाया जाता है।
मृत्यु होने पर मृतक को दफनाते हैं। संपन्न तथा प्रतिष्ठित व्यक्ति को जा हैं। तीसरे दिन तीज नहावन करते हैं। दसवें दिन देवी-देवता तथा पूर्वजों की पूजा कर रिश्तेदारों को भोज कराते हैं। दूसरे वर्ष से प्रतिवर्ष पितृपक्ष में मृतक के नाम से मृत्यु तिथि को पानी से तर्पण करते हैं तथा कौवे को दाल, भात, “बरा”, भजिया आदि खिलाते हैं। ( परधान जनजाति छत्तीसगढ़ Pardhan Janjati Chhattisgarh pardhan tribe chhattisgarh )
परधान जनजाति में अपनी परंपरागत जाति पंचायत (सामाजिक पंचायत) पाई जाती है, जिसका मुख्य कार्य जाति के देवी-देवताओं की पूजा व्यवस्था करना, जाति में विवाह, फलदान, छुट्टा आदि विवादों का निपटारा करना, अनैतिक संबंध को रोकना, झगड़ा आदि का निपटारा करना है।
✅ परधान जनजाति के देवी-देवता
इस जनजाति का मुख्य देवता बूढ़ादेव हैं। स्थानीय देवी-देवताओं में मुठया, हरदुललाला, माता, भैंसासुर, घुरलापाट, खड़ेराई, भीमसेन, जोगनी आदि की पूजा करते हैं। राम, कृष्ण, हनुमान, गणेश, दुर्गा आदि हिंदू देवी-देवताओं की भी पूजा करते हैं। ( परधान जनजाति छत्तीसगढ़ Pardhan Janjati Chhattisgarh pardhan tribe chhattisgarh )
इनके मुख्य त्योहार रामनवमी, बीदरी, अखातीज, अखाड़ी, जीवती, पंचमी, आठे (जन्माष्टमी), पोला, पीतर, दशहरा, दिवाली, महाशिवरात्रि, होली आदि हैं। देवताओं की पूजा में खारेक, नारियल चढ़ाते हैं। मुर्गी, बकरा आदि की बलि भी देते हैं। दाल, भात, पूढ़ी, भजिया तथा बलि का मांस खाते हैं। दारू भी पीते हैं। भूत-प्रेत, जादू-टोना आदि में विश्वास करते हैं।
परधान जनजाति मुख्यतः संगीतज्ञ जनजाति है। ये किंगरी वाद्य बजाकर लोक कथाएँ तथा लोक गीत गाते हैं। इनकी लोक कथाओं में रामायण, महाभारत, आल्हा उदल की कथाएँ तथा स्थानीय राजा रानी आदि की भी कथाएँ होती हैं। ( परधान जनजाति छत्तीसगढ़ Pardhan Janjati Chhattisgarh pardhan tribe chhattisgarh )
2011 की जनगणना में इनकी साक्षरता 70.7 प्रतिशत दर्शाई गई है। पुरुषों में साक्षरता 81.3 प्रतिशत तथा स्त्रियों में साक्षरता 60.5 प्रतिशत थी।
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