मरिया मेरिया विद्रोह छत्तीसगढ़ Mariya Meriya Vidroh Chhattisgarh
- मेरिया या फिर कहे की मरिया विद्रोह 1842 से लेकर 1863 तक दंतेवाड़ा,बस्तर अंचल में हुआ था ।
- यहाँ के राजा थे भूपाल देव राजपूत जी थे जो अंग्रेजो सहमत थे ।
- इस विद्रोह का जमख़म से नेतृत्वा किया था हिरमा मांझी जी ने ।
- इन सभी लोगो और हिरमा मांझी के विरोध में था या कहे जो विपक्षी था जिससे इन सभी की लड़ाई था वह था अंग्रेज अधिकारी कैम्पबेल .
- अंग्रेजो ने इन सब कार्यो के जाँच के लिए एक व्यक्ति को नियुक्त किया था जिसक नाम था :- मैक फ़र्सन
- अंग्रेजो का उद्देश्य यहाँ था की बस्तर के दंतेवाड़ा में दंतेश्वरी मंदिर में आदिवासियों द्वारा नरबलि प्रथा चलती थी , और उसी मंदिर में माँ दंतेश्वरी के अलावा दो अन्य देवता भी थे।जिनका नाम है , 1.तरीपेननु 2.माटीदेव जिसमे छोटे बच्चे को बलि चढ़ा दिया जाता था । और मान्यता ये थी की इससे देवता प्रस्सन होंगे , खुश होंगे और हमारे गाओं में खुशहाली आएगी , फसल अच्छे से होगी । इस नरबली प्रथा को अंग्रेज रोकना चाहते थे ।
- लेकिन इन अंग्रेजो से भी पहले बस्तर अंचल ( दंतेवाड़ा , दंतेश्वरी मंदिर में ) में नरबली प्रथा को रोकने के लिए नागपुर के भोंसला राजा द्वारा 21 वर्षो तक सैन्य टुकड़िया भेजी गयी थी लेकिन वे भी इस नरबली प्रथा को रोकने में अशमर्थ थे ।
- जिस बच्चे की बलि दी जाती थी उन्हें ही मेरिया कहा जाता था , इसी वजह से इस विद्रोह का नाम भी मेरिया विद्रोह ही पर गया ।
- यहाँ नरबली प्रथा आदिवासियों के देवता तरीपेननु , माटीदेव की जब पूजा होती थी तो उसमे एक संस्कार था की अपने बच्चे को बलि चढ़ाना है इन तररिपेननु देव और माटी देव को खुश करने के लिए ।
- क्या ये सब चीजे सही में होती है इन सभी चीजों के जाँच करने के लिए अंग्रेज अधिकारियो ने मैक फ़र्सन को नियुक्त किया था की तुम इस गाओं में जाओ और पता लगाओ की ये सब चीजों वह को होती है । और अगर होती है तो उन्हें रोकने के लिए वह के लोगो को समझाओ की वे हमारा समर्थन करे ।
- इस विद्रोह में मंदिर के पुजारी श्याम सुन्दर ने भी अंग्रेजो का विरोध किया था क्योकि उन दिनों बस्तर में चर्च बनने लगे थे और वे इस बात को जानते थे की यहाँ भी ऐसा ही कुछ न हो जाये ।
- और अंत में इस विद्रोह को रोकने के लिए अंग्रेजो ने अपने सबसे खतरनाक अधिकारी कैम्पबेल को भेजा जिसने इस विद्रोह को दमन कर किया ।
- लेकिन इस विद्रोह को दमन करने का असली श्रेय दीवान वामनराव और रायपुर के तहसीलदार शेर सिंह को जाता है, क्योकि इनको ही कैम्पबेल ने नियुक्त किया था ।
- परिणाम यह हुआ की नरबली प्रथा को बंद कर दिया गया एवं अंग्रेजो ने इस बंद करने के लिए कानून भी बना दिया जो आज भी लागु है ।
- यह मेरिया / मरिया विद्रोह छत्तीसगढ़ का सबसे लम्बा चलने वाला विद्रोह था , जो की लगभग 21 सालो तक चला ।
मेरे विचार :- इस विद्रोह को लेकर के मेरे विचार यह है की , अंग्रेज तो वास्तव में भारत की संस्कृति को ख़त्म करके , यहाँ के लोगो का धर्मान्तरण कराकर सभी को ईसाई बनाना चाहते थे । जो की मैकाले , मैक्स मुलर की नीतियों में साफ साफ झलकता है ।
जब अंग्रेज अपने देश गए तो उन्होंने कहा की ये देश के लोग बहुत अजीब है और इतने विकसित है की हम इनपर गुलाब नहीं कर सकते है । तो फिर वह के बुद्धिजियो ने कहा की हमें उनके धर्म और संस्कृति को बर्बाद करना होगा । और तभी से ईसाई धर्मान्तरण का कार्य चलता था ।
लेकिन इस विद्रोह में इस नरबली प्रथा को रोकने की मंशा अंग्रेजो की बिलकुल ठीक थी इसलिए तो राजा भूपाल देव ने भी इनका साथ दिया , लेकिन यहाँ के भोले भले आदिवासी जानते थे की अंग्रेज लोग हमेशा ही हम आदिवासियों का धर्म बदलवाना चाहते है ।
जैसे की 1857 में मंगल पांडेय आदि लोगो के साथ हुआ था , उनके राइफल में गाय की चर्बी और मुसलमानो के लिए सुवर का मांस मिला हुआ था । ये सब जानकर आदिवासी लोग भयभीत थे । और वे कोई अच्छी बात बोले या बुरी बात वे उस पर बिलकुल ध्यान नहीं दे रहे थे । उन्हें बस ये लगता था की अंग्रेज हमारे धर्म संस्कृति पर हमला कर रहे है । इसलिए ये विद्रोह हुआ था ।
इन्हे जरूर पढ़े :-
👉 मुरिया विद्रोह में आदिवासियों ने कैसे अंग्रेजो को धूल चटाई ?
👉 लिंगागिरी विद्रोह के मंगल पांडेय से मिलिए !