भूमकाल विद्रोह छत्तीसगढ़ Bhumkal Vidroh Chhattisgarh
भूमकाल विद्रोह (1910)
शासक |
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नेतृत्वा |
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विपक्षी |
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कारण |
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प्रारम्भ |
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नारा |
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प्रतीक |
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दमनकर्ता |
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विद्रोह |
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मुखबीर |
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परिणाम |
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विशेष |
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1910 में हुआ भूमकाल विद्रोह बस्तर का सबसे महत्वपूर्ण व व्यापक विद्रोह था। इसने बस्तर के 84 में से 46 परगने को अपने चपेट में ले लिया इस विद्रोह के प्रमुख कारण थे –
जनजाति वनों पर अपने पारम्परिक अधिकारों व भूमि एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों के मुक्त उपयोग तथा अधिकार के लिए संघर्षरत थे। 1908 में जब यहाँ आरक्षित वन क्षेत्र घोषित किया गया और वनोपज के दोहन पर नियंत्रण लागू किया गया तो जनजातियों ने इसका विरोध किया।
अंग्रेजों ने एक ओर तो ठेकेदारों को लकड़ी काटने की अनुमति दी और दूसरी ओर जनजातियों द्वारा बनायी जाने वाली शराब के उत्पादन को अवैध घोषित किया।
विद्रोहियों ने नवीन शिक्षा पद्धति व स्कूलों को सास्कृतिक आक्रमण के रूप में देखा। अपनी संस्कृति की रक्षा करना ही उनका उद्देश्य था।
पुलिस के अत्याचार ने भूमकाल विद्रोह को संगठित करने में एक और भूमिका निभायी। उक्त सभी विद्रोहों को आग्ल-मराठा सैनिक दमन करने में सफल रहे व विद्रोहियों को अपने लक्ष्य की प्राप्ति में सफलता नहीं मिल सकी। पर राजनैतिक चेतना जगाने में ये सफल रहे।
सरकार को भी अपनी नीति निर्माण में इनकी मांगों को ध्यान में रखना पड़ा। 1857 के महान विद्रोह के उपरांत भारतीय सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन में हस्तक्षेप न करने की अंग्रेज नीति ऐसे ही विद्रोहों का परिणाम थी। कालांतर में इन विद्रोहों के आर्थिक कारको ने नवीन भारत की नीति निर्माण में भी मार्गदर्शन किया।
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