लिंगागिरी विद्रोह छत्तीसगढ़ | Lingagiri Vidroh Chhattisgarh
- लिंगागिरी विद्रोह या फिर कहे की लिंगागिरी संघर्ष 1856 को बीजापुर ,बस्तर में हुआ था ।
- इसके शासक भैरम देव राजपूत जी थे ।
- इस विद्रोह के नेतृत्वकर्ता भी धुरवा राव माड़िया जी ही थे । धुरवा राव माड़िया लिंगागिरी के तालुकेदार थे ।
- इन सभी लोगो और धुरवा राव माड़िया के विरोध में था या कहे जो विपक्षी था जिससे इन सभी की लड़ाई था वह थे अंग्रेज ।
- विद्रोह का मुख्य कारण था की अंग्रेज बस्तर की संस्कृति में हस्तक्षेप कर रहे थे और वे लिंगागिरी को अंग्रेजी साम्राज्य में शामिल करना चाहते थे ।
- यहाँ के लोग जानते थे की अगर एक बार बस्तर उनके कब्जे में आ गया तो अंग्रेज यहाँ के संस्कृति को तबाह कर देंगे और ईसाई धर्मान्तरण शुरू हो जाएग।
- अब अंतिम उपाय था युद्ध का तो फिर 3 मार्च 1856 को चितलवार नामक जगह पर अंग्रेजो और धुरवा राव माड़िया के बीच भीषण युद्ध हुआ । जिसमे धुरवा राव माड़िया को अंग्रेजो ने पकड़ लिया ।
- अंततः परिणाम यहाँ हुआ की धुरवा राव माड़िया को अंग्रेजो ने गिरफ्तार करके 5 मार्च 1856 को फांसी दे दिया।
- इस विद्रोह को दमन करने के लिए भोपालपट्टनम के जमींदारों ने अंग्रेजो का साथ दिया था ।
- क्यंकि वे जानते थे की एक बार अगर धुरवा राव माड़िया मर गया तो यह विद्रोह अपने आप समाप्त हो जायेगा। और हुआ भी यही उनके मरने के बाद विद्रोह अपने आप ही ख़त्म हो गया था था ।
- गेंद सिंह राजपूत के बाद धुरवा राव माड़िया को ही बस्तर का दूसरा शहीद कहा जाता है ।
- जब भारत में महान क्रांति 1857 की क्रांति मंगल पांडेय के नेतृत्वा में हो रहे थी तब छत्तीसगढ़ में लिंगागिरी विद्रोह धुरवा राव माड़िया के नेतृत्वा में हो रहा था ।
- यह लिंगागिरी विद्रोह को बस्तर का महान मुक्ति संग्राम कहलाता है ।।
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