भील जनजाति छत्तीसगढ़ Bhil Janjati Chhattisgarh bhil tribe chhattisgarh

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नमस्ते विद्यार्थीओ आज हम पढ़ेंगे भील जनजाति छत्तीसगढ़ Bhil Janjati Chhattisgarh bhil tribe chhattisgarh  के बारे में जो की छत्तीसगढ़ के सभी सरकारी परीक्षाओ में अक्सर पूछ लिया जाता है , लेकिन यह खासकर के CGPSC PRE और CGPSC Mains में आएगा , तो आप इसे बिलकुल ध्यान से पढियेगा और हो सके तो इसका नोट्स भी बना लीजियेगा ।

भील जनजाति छत्तीसगढ़ Bhil Janjati Chhattisgarh Bhil Tribe Chhattisgarh

भील जनजाति की  उत्पत्ति 

भील जनजाति मध्य प्रदेश सबसे बड़ी जनजाति है। गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र में भी पाये जाते हैं। मध्य प्रदेश में इनकी जनसंख्या 2011 की जनगणना में 5993921 दर्शित है। भील जनसंख्या के साथ उसकी साथ उपजातियां भीलाला, बारेला तथा पटेलिया की जनसंख्या भी शामिल है। ( भील जनजाति छत्तीसगढ़ Bhil Janjati Chhattisgarh bhil tribe chhattisgarh )

मध्य प्रदेश में मुख्य रूप से भील अलीराजपुर, धार, झाबुआ, खरगोन, रतलाम जिले में, भीलाला अलीराजपुर, धार, – झाबुआ, बारेला खरगोन तथा पटेलिया धार, अलीराजपुर झाबुआ में पाये जाते हैं।

छत्तीसगढ़ में इनकी जनसंख्या 2011 की जनगणना में 547 दर्शाई गई है। इनमें पुरुष 303 तथा स्त्रियों 244 थी। संभवतः मध्य प्रदेश राज्य पुनर्गठन 2000 में राज्य शासन के इस वर्ग के सरकारी कर्मचारी छत्तीसगढ़ में पदस्थ हुए होंगे। केन्द्र सरकार के इस जाति के कर्मचारी भी छत्तीसगढ़ स्थित कार्यालय में पदस्य होंगे। ( भील जनजाति छत्तीसगढ़ Bhil Janjati Chhattisgarh bhil tribe chhattisgarh )

भील जनजाति के संबंध में हमारे प्राचीन साहित्यों में भी उल्लेख मिलता है। रामायण में शबरी भीलनी का उल्लेख तथा महाभारत में एकलव्य भील का उल्लेख सर्वविदित है। भील शब्द की उत्पत्ति द्रविड़ भाषा के बिल्लू शब्द से बना है, जिसका अर्थ बाण अथवा तीर होता है। तीर-कमान में निपुण होने के कारण भी संभवतः यह जनजाति भील कहलाई।

भील जाति भारत की प्राचीन जाति है जो आर्य और द्रविड़ के पूर्व के माने जाते हैं। भागवत पुराण में इन्हें वेण राजा की संतान बताया गया है। रामायण काल में कोल और भील साथ-साथ विन्ध्याचल पर्वतमाला में रहते थे। संभवतः बाद में ये पश्चिम किनारे प्रवासित हुए हों। ( भील जनजाति छत्तीसगढ़ Bhil Janjati Chhattisgarh bhil tribe chhattisgarh )

भील जनजाति रहन-सहन 

भील जनजाति के गाँव कई “फड़िया” (टोलों) में बसे होते हैं। इनके घर अत्यन्त साधारण होते हैं। घर की दीवाल लकड़ी से बनी होती है, जिसमें बाहर से गोबर मिट्टी का लेप होता है। छत घास या देशी खपरैल की होती है। फर्श मिट्टी का बना होता है। घर में दो-तीन कमरे होते हैं। जानवरों के लिये अलग से कमरा होता है। अनाज रखने के लिये बाँस से बनी कोठी होती है।

घरेलू वस्तुओं में चारपाई, घट्टी (चक्की), मूसल, तीर-धनुष, धारिया, कुल्हाड़ी, ओढ़ने-बिछाने के कपड़े में गोदड़ी, कम्बल, भोजन बनाने के बर्तन, जो मिट्टी, एल्युमिनियम आदि के होते हैं। कृषि उपकरणों में खेती करने के औजार हल आदि होते हैं तीर-धनुष प्रत्येक घर में पाया जाता है, जिसे जंगल जाते समय हमेशा अपने साथ रखते हैं। ( भील जनजाति छत्तीसगढ़ Bhil Janjati Chhattisgarh bhil tribe chhattisgarh )

भील स्त्री, पुरुष सुबह उठकर बबूल, नीम आदि की टहनी से दातून करते हैं। एक दो दिन के अन्तर में स्नान करते हैं। स्त्रियाँ चिकनी मिट्टी से सिर धोती हैं तथा तेल लगाकर सिर में जूड़ा बाँधती हैं। महिलाएँ गहनों में पैर में कड़ला, नाक में कांटा, गले में इंसली, साकड़ी, माथे पर बोरियुं, कान में बेड़ला, भीड़ली, हाथ में गुजरिया, भरीया पहनती हैं जो चाँदी या गिलट के होते हैं। गले में काँच की मोती की माला तथा हाथ में प्लास्टिक की चूड़ियाँ पहनती है। हाथ, पैर, चेहरे, मस्तक, कपोल, ठुड़ी पर गुदना सुंदना गुदवाती हैं। पुरुष भी हाथ पर विभिन्न आकृतियाँ गुदवाते हैं।

वस्त्र विन्यास में स्त्रियाँ घाघरा, चोली (कांचली) और ओढ़नी ओढ़ती हैं। घाघरा को कछोटा मारकर पहनती हैं। पुरुष बंड़ी तथा छोटी धोती कमर पर लपेटकर पहनते हैं तथा सिर पर सफेद पगड़ी बाँध ते हैं तथा इनका मुख्य भोजन मक्का की रोटी और उड़द, तुवर की दाल तथा मौसमी सब्जी खाते हैं। मांसाहार में मुर्गा, बकरा, जंगली सुअर, खरगोश तथा मछली खाते हैं। पुरुष बीड़ी, तंबाकू व ताड़ी का भी सेवन करते हैं। ( भील जनजाति छत्तीसगढ़ Bhil Janjati Chhattisgarh bhil tribe chhattisgarh )

भील जनजाति व्यवसाय 

भील जनजाति का मुख्य आर्थिक जीवन कृषि तथा जंगली उपज संग्रह, मज़दूरी पर आश्रित है। कृषि में मक्का इनका मुख्य फसल है। कोदो, अरहर, उद कहीं-कहीं बोते हैं। उबड़-खाबड़ पथरीली तथा असिंचित भूमि में पैदावार पर्याप्त नहीं हो पाती है। जंगली उपज संग्रह में महुआ, गुल्ली, लाख, लकड़ी आदि का संग्रह कर बाजार में बेचते हैं।

जंगल में खरगोश, जंगली पक्षी का शिकार करते हैं। फसल कटने के बाद कई भील स्त्री-पुरुष इन्दौर, भोपाल, उज्जैन, बड़ौदा, अहमदाबाद आदि में मजदूरी करने जाते हैं। ( भील जनजाति छत्तीसगढ़ Bhil Janjati Chhattisgarh bhil tribe chhattisgarh )

भील जनजाति में कई उपजातियाँ पाई जाती है। इनकी प्रमुख उपजाति भील, भीलाला, बारेला, पटेलिया, तड़वी, मानकर, नायकड़ा आदि है। वर्तमान में अधिकांश उपजाति स्वतंत्र अन्तःविवाही जाति का स्वरूप ग्रहण कर चुकी है। इनमें भीलाला सबसे ऊँचे माने जाते हैं। मीलाला अन्य उपजातियों से खान-पान, शादी-ब्याह नहीं करते।

प्रत्येक उपजाति के विभिन्न यहिर्विवाही अटक (गोत्र) होते हैं। इनके प्रमुख अटक – कटारा, भाभोर, डामोर, निनामा, ननोत, पटेला, बरोड़, बामणा, भणांत, राठोड़, वमाणा, सोलंकी, भूरिया, मकवाणा, कसौटा, गमार, गरासिया, तावड़, दाणा आदि हैं। ( भील जनजाति छत्तीसगढ़ Bhil Janjati Chhattisgarh bhil tribe chhattisgarh )

भीलों में प्रसव घर पर ही बुजुर्ग महिलाओं व दायण की देख-रेख में कराया जाता है। प्रसूता को घी, मकई का राब पिलाया जाता है। छठ्ठे दिन छुट्टी मनाई जाती है। शिशु तथा प्रसूता को नहलाकर कुल देवी-देवताओं के सामने प्रणाम करवाया जाता है। बच्चे का नामकरण करके रिश्तेदारों को भोजन कराया जाता है।

भील जनजाति के परम्पराये 

इनमें विवाह की उम्र लड़कों में 16 से 20 तथा लड़कियों में 14 से 16 वर्ष बताई गयी। शादी की दो रस्में होती हैं, एक में माता-पिता स्वयं पसन्द करके वधू लाते हैं। दूसरे में लड़का लड़की एक-दूसरे को खुद पसन्द कर लेते हैं। इनमें “दापा” (वधू मूल्य) की प्रथा प्रचलित है, जो 5000 से 20000 तक भी होती है। विवाह की रस्म जाति के बुजुर्ग सम्पन्न करता है। इसे मोरबंदिया विवाह कहते हैं।

इसके अतिरिक्त हरण विवाह (मीही जंबु), परीक्षा विवाह (गोल गछेड़ो), हट विवाह (उदाड़ी), घर जमाई (खंदाणिया) तथा विनिमय (हाठपाठ) विवाह पाया जाता है। नातरा को भी प्रथा है, इसमें झगड़ा (“दापा”) पूर्व पति को लौटाना पड़ता है। ( भील जनजाति छत्तीसगढ़ Bhil Janjati Chhattisgarh bhil tribe chhattisgarh )

मृत्यु के बाद अग्नि संस्कार किया जाता है। बच्चों तथा भगत को दफनाया जाता है। मृत्यु के तुरन्त बाद भोज विधि नहीं होती है, किन्तु कुछ समय पश्चात् रिश्तेदारों को भोज दिया जाता है, जिसे “कायंटु” (करट) अथवा “परहनण” कहते हैं। अकाल मृत्यु हुए व्यक्तियों में स्त्रियों के लिये सती (पत्थर की स्त्री मूर्ति) एवं पुरुषों के लिये “गाथा” (पुरुष मूर्ति) मृतक स्मृति स्तम्भ बनाया जाता है।

भील जनजाति में सामाजिक न्याय व्यवस्था हेतु परम्परागत जाति पंचायत पाई जाती है, जो गाँव स्तर पर तथा वृहत् स्तर पर भी कार्य करती है, जिसका मुख्य कार्य छोटे-मोटे झगड़े हल करना, नातरा या हरण, सहपलायन विवाह में झगड़ा (“दापा”) निर्धारित करना। बटवारा सगोत्रीय विवाह रोकना तथा कुल देवी-देवताओं की पूजा तथा मन्दिर निर्माण करवाना होता है।

भील जनजाति के देवी=देवता और त्यौहार 

भील जनजाति के मुख्य देवी-देवता काका बलिया, शिकोवटी, इंदराज, सिमारियों देव, बाघदेव, कालका, मेलडी और जोगण है। इसके अतिरिक्त सभी हिन्दु देवी-देवताओं की भी पूजा करते हैं। ( भील जनजाति छत्तीसगढ़ Bhil Janjati Chhattisgarh bhil tribe chhattisgarh )

इनके मुख्य त्योहार होली, नवरात्र, दिवासो, दिवाली और रक्षाबंधन आदि हैं। इसके अतिरिक्त भगोरिया उत्सव इनमें काफी हर्षोउल्लास का उत्सव होता है। यह होलिका दहन के साथ दिन पूर्व से प्रारंभ हो जाता है, जिसमें बूढ़े, बच्चे, जवान सभी हाट-बाजारों में नाचते गाते हैं।

त्योहारों में देवी-देवता की पूजा करते हैं। बलि के रूप में मुर्गा, बकरा चढ़ाते हैं। भूत-प्रेत, जादू-टोना में विश्वास करते हैं। इनके मंत्र जादू के जानकार व देवी-देवता का पुजारी “बड़या” कहलाता है। ( भील जनजाति छत्तीसगढ़ Bhil Janjati Chhattisgarh bhil tribe chhattisgarh )

भील जनजाति में भगोरिया नृत्य, विवाह नृत्य, घेड़िया नृत्य आदि किये जाते हैं तथा उत्सवों में भगोरिया गीत, भेड़िया गीत आदि गाये जाते हैं। कुछ व्यक्ति पिठौरा चित्रांकन करते है .

2011 की जनगणना में छत्तीसगढ़ में निवासरत भील जनजाति की साक्षरता 77.6 प्रतिशत दर्शित है। पुरुषों में साक्षरता 81.1 प्रतिशत तथा स्त्रियों में 72.9 प्रतिशत थी। ( भील जनजाति छत्तीसगढ़ Bhil Janjati Chhattisgarh bhil tribe chhattisgarh )

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source : Internet

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Rajveer Singh
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