पत्थलगड़ी आंदोलन छत्तीसगढ़ | Pathalgari Andolan Chhattisgarh
जशपुर जिले के बगीचा ब्लॉक स्थित बच्छरांव में गांव सहित आसपास की 15 पंचायतों के आदिवासी ग्रामीण जुटे और ग्राम सभा को सर्वोपरि बताते हुए पत्थरगड़ी आंदोलन शुरू कर दिया।
ग्राम सभाएं खुद का शासन और कानून चलाएंगी। वे भारतीय और राज्य के कानून को नहीं मानेंगी। गांवों में बिना अनुमति किसी का भी प्रवेश वर्जित होगा। गांव में बैगाओं से पूजा कराकर दो पत्थर गाड़ दिए गए हैं।
पहले में लिखा है सबसे ऊंची है ग्राम सभाः। दूसरे पत्थर पर पुलिस और प्रशासन को बिना पूछे गांव में आने पर रोक लगाने सहित अपने अधिकारों की घोषणा की गई है। सुबह तीर कमान के साथ ग्रामीणों ने रैली निकाली और दोपहर में नारियल तोड़कर गांव में पत्थर गाड़ दिए।
इसके बाद हुई सभा में ग्राम सभा को सर्वोपरि बताए हुए अनुसूचित क्षेत्र में बिना अनुमति पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों के प्रवेश को अनुचित करार दिया गया।
छत्तीसगढ़ के जशपुर इलाके में यह अभियान झारखंड से आया है और तेजी से ओडिशा और मध्यप्रदेश में भी फैल रहा है, जशपुर के इलाके में अप्रैल के महीने में जब पत्थर गाड़ कर उनमें ग्राम सभा के अधिकार लिख दिए गए तो आदिवासियों ने पत्थर गाड़ कर घोषणा कर दी कि अब पांचवीं अनुसूची वाले इन इलाकों में ग्राम सभा ही सारे नियम कानून तय करेगी.
प्रबल प्रताप सिंह जूदेव कहते हैं-पत्थलगड़ी के नाम पर आदिवासी भाइयों को बरगलाने की कोशिश चल रही थी. संविधान की गलत तरीके से व्याख्या करते हुये समाज को तोड़ने वाले लोग ही इस आंदोलन के पीछे हैं, जिनका मक़सद आदिवासियों का ईसाई धर्मातरण करना है.
पत्थलगड़ी: परंपरा और मौजूदा स्वरूप
दरअसल पत्थलगड़ी के जरिए दावे किए जा रहे हैं कि आदिवासियों के स्वशासन नियंत्रण क्षेत्र में गैर रूढ़ि प्रथा के व्यक्तियों के मौलिक अधिकार लागू नहीं है.
लिहाजा इन इलाकों में उनका स्वंतत्र भ्रमण, रोजगार-कारोबार करना या बस जाना, पूर्णत: प्रतिबंध है।
ये सभी वे बेबुनियाद बाते है जिसे ईसाई लोग भोले भले आदिवासियों को भड़काने में प्रयोग करते है । और इसका असर यहाँ होता है की आदिवासी भाई पढ़े लिखे नहीं होते है इसलिए वे इन सब बातो को मन लेते है:-“पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में संसद या विधानमंडल का कोई कानून अनुच्छेद 15 (पारा 1-5) के तहत एसे लोगों जिनके गांव में आने से यहां की सुशासन शक्ति भंग होने की संभावना है, वोटर कार्ड और आधार कार्ड आदिवासी विरोधी दस्तावेज हैं तथा आदिवासी लोग भारत देश के मालिक हैं, आम ,आदमी या नागरिक नहीं । संविधान के अनुच्छेद 13 (3) क के तहत रूढ़ि और प्रथा ही विधि का बल यानी संविधान की शक्ति है.”
गौरतलब है कि साल 2016 में सरकार छोटानागपुर काश्तकारी कानून में संशोधन करने में लगी थी. पूरे राज्य में बड़े पैमाने पर विरोध हुआ था. कई गांवों में अबुआ धरती, अबुआ राज (अपनी धरती, अपना राज) अब चलेगा ग्राम सभा का राज’ जैसे नारे गूंजते हैं ।
हालांकि इन गांवों में किसी के आने-जाने पर सीधी रोक तो नहीं पर अनजान व्यक्ति को टोका जरूर जाता है, तीर-कमान से लैस युवक, हर गतिविधियों पर पैनी नजर रखते हैं।
इधर पत्थलगड़ी के साथ कई ग्रामप्रधान मुहर लगा पत्र सरकारी दफ्तरों में भेजकर यह सूचित कर रहे हैं कि जाति, आवासीय, जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र अब उनके द्वारा जारी किए जा रहे हैं. इनके अलावा ट्राइबल सब प्लान के फंड ग्रामसभा को देने तथा कथित जनविरोधी नीतियों को तत्काल खत्म करने पर जोर दिया जा रहा है.
चूंटी के कोचांग गांव का पत्थर, जिस पर अपना शासन होने का । कानून कायदा दर्ज है. उनका जोर है कि पांचवी अनुसूची वाले क्षेत्रों में स्थानीय भाषा, संस्कृति को जानने वाले अफसरों-कर्मचारियों को तैनात करना चाहिए,
पत्थरों पर जानकारी लिखे जाने का इतिहास है. 1996 में खूटी हैं के कर्रा में बीडी शर्मा और बंदी उरांव समेत स्थानीय नेताओं ने पत्थलगड़ी की थी और इसके माध्यम से पेसा कानून के बारे में लिखा गया था.
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