छत्तीसगढ़ के आदिवासी विद्रोह | Chhattisgarh Ke Adiwasi Vidroh

Share your love
3.5/5 - (11votes)

छत्तीसगढ़ के आदिवासी विद्रोह, Chhattisgarh Ke Adiwasi vidroh chhattisgarh ke janjatiya andolan छत्तीसगढ़ के जनजातीय आंदोलन 

छत्तीसगढ़ के प्रमुख आदिवासी विद्रोह Chhattisgarh Ke Adiwasi Vidroh Andolan

इसी समय जब पूरे भारत में जनजाति आन्दोलन आग की तरह फैली तब हमारा छत्तीसगढ़ भी उससे अछूता नहीं रहा। छत्तीसगढ़ राज्य में 18वीं शताब्दी 20वीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक अनेक जनजाति विद्रोह हुए। ज्यादातर जनजाति विद्रोह बस्तर क्षेत्र में उत्तरार्ध से लेकर हुए जहाँ के जनजाति अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए विशेष सतर्क थे।

इन विद्रोहो में एक सामान्य विशेषता यह थी कि:-

1. ये सारे विद्रोह आदिवासियों  को अपने निवास स्थान , जमीन , जंगल  में हासिल सभी  अधिकारों को अंग्रेज़ो द्वारा  छीने जाने के विरोध में हुआ था।

2.ये विद्रोह आदिवासी  अस्मिता और कल्चर  को बचने  के लिए हुआ था . 

3.जनजाति  विद्रोहिओ  ने नई अंग्रेजी  शासन और ब्रिटिश राज के द्वारा थोपे गए जबरजस्ती नियमों व कानूनों का विरोध किया।

4.जनजाति मुख्यतः बाह्य जगत व शासन के प्रवेश से अपनी जीवन शैली, संस्कृति एवं निर्वाह व्यवस्था में उत्पन्न हो रहे खलल को दूर करना चाहते थे।

5.उल्लेखनीय बात यह थी कि मूलतः जनजातियों के द्वारा आरंभिक विद्रोहों में छत्तीसगढ़ के गैरआदिवासी भी भागीदार बने

छत्तीसगढ़ के प्रमुख विद्रोह

1.हल्बा विद्रोह (1774-79)-

  1. इस विद्रोह का प्रारंभ 1774 में अजमेर सिंह द्वारा हुआ जो डोंगर में बस्तर के राजा से मुक्त एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना करना चाहते थे।
  2. उन्हें हल्बा जनजातियों व सैनिकों का समर्थन प्राप्त था इसका अत्यंत क्रूरता से दमन किया गया नर संहार बहुत व्यापक था, केवल एक हल्बा विद्रोही अपनी जान बचा सका।
  3. इस विद्रोह के फलस्वरूप बस्तर मराठों को उस क्षेत्र में प्रवेश का अवसर मिला जिसका स्थान बाद में ब्रिटिशों ने ले लिया।

2.भोपालपतंनम संघर्ष (1795)-

  1. भोपालपट्टनम विदोर्ह या फिर कहे की भोपालपट्टनम संघर्ष 1795 को बस्तर ,बीजापुर में हुआ था ।
  2. इसके शासक  दरिया देव राजपूत  जी थे ।
  3. इस विद्रोह के नेतृत्वकर्ता भी दरिया देव राजपूत जी ही थे ।
  4. इन सभी लोगो और दरिया देव के विरोध में था या कहे जो विपक्षी था जिससे इन सभी की लड़ाई था वह था अंग्रेज अधिकारी कैप्टेन ब्लंट
  5. इस विद्रोह का मुख्य कारण था की यहाँ के लोग कैप्टेन ब्लंट को रोकना चाहते थे क्योकि उन लगता था की की कैप्टेन ब्लंट एक ईसाई है और अंग्रेज भी है वह उनके हिन्दू धर्म को बर्बाद कर देगा या फिर कहे की वह धर्म परिवर्तन करवा देगा जैसे अन्य राज्यों में होता था ।
  6. ये सभी लोगो ने कैप्टेन ब्लंट को रोकने के लिए तीर , भाले चलाये ताकि वे उन ईसाई अंग्रेजो को रोक सके ।
  7. इतनी मेहनत करने के बाद हुआ ये की लोगो ने कसम खा लिया था की जान दे देंगे लेकिन अपना हिन्दू धर्म अपनी संस्कृति को नहीं छोड़ेंगे । और वे सफल भी हुए आखिर कर कैप्टेन ब्लंट को वापस जाना पड़

3.परालकोट विद्रोह (1825)-

  1. परालकोट विद्रोह मराठा और ब्रिटिश सेनाओं के प्रवेश के विरोध में हुआ था। इस विद्रोह का नेतृत्व गेंदसिंह ने किया था उसे अबूझमाड़ियों का पूर्ण समर्थन प्राप्त था।
  2. विद्रोहियों ने मराठा शासकों द्वारा लगाए गए कर को देने से इंकार कर दिया और बस्तर पर नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश की।

4.तारापुर विद्रोह (1842-54)-

  1. बाहरी लोगों के प्रवेश से स्थानीय संस्कृति को बचाने के लिए अपने पारंपरिक सामाजिक, आर्थिक राजनैतिक संस्थाओं को कायम रखने के लिए एवं आंग्ल-मराठा शासकों द्वारा लगाए गए करों का विरोध करने के लिए स्थानीय दीवानों द्वारा यह विद्रोह प्रारंभ किया गया।

5.माड़िया विद्रोह (1842-63)-

  1. इस विद्रोह का मुख्य कारण सरकारी नीतियों द्वारा जनजाति आस्थाओं को चोट पहुँचाना था। नरबलि प्रथा के समर्थन में माड़िया जनजाति का यह विद्रोह लगभग 20 वर्षों तक चला।

6.लिंगागिरी  विद्रोह (1856-57)-

  1. लिंगागिरी विद्रोह या फिर कहे की लिंगागिरी संघर्ष 1856 को बीजापुर ,बस्तर  में हुआ था ।
  2. इसके शासक भैरम देव राजपूत  जी थे ।
  3. इस विद्रोह के नेतृत्वकर्ता भी धुरवा राव माड़िया जी ही थे । धुरवा राव माड़िया लिंगागिरी के तालुकेदार  थे ।
  4. इन सभी लोगो और धुरवा राव माड़िया  के विरोध में था या कहे जो विपक्षी था जिससे इन सभी की लड़ाई था वह थे अंग्रेज ।
  5. विद्रोह का मुख्य कारण था की  अंग्रेज बस्तर की संस्कृति में हस्तक्षेप कर रहे थे और वे लिंगागिरी को अंग्रेजी साम्राज्य में शामिल करना चाहते थे ।
  6. यहाँ के लोग  जानते थे की अगर एक बार बस्तर उनके कब्जे में आ गया तो अंग्रेज यहाँ के संस्कृति को तबाह कर देंगे और ईसाई धर्मान्तरण शुरू हो जाएग।
  7. अब अंतिम उपाय था युद्ध का तो फिर 3 मार्च 1856 को चितलवार नामक जगह पर अंग्रेजो और धुरवा राव माड़िया के बीच भीषण युद्ध हुआ । जिसमे धुरवा राव माड़िया को अंग्रेजो ने पकड़ लिया ।
  8. अंततः परिणाम यहाँ हुआ की धुरवा राव माड़िया को अंग्रेजो ने गिरफ्तार करके 5 मार्च 1856 को फांसी दे दिया।
  9. इस विद्रोह को दमन करने के लिए भोपालपट्टनम के जमींदारों ने अंग्रेजो का साथ दिया था ।
  10.  क्यंकि वे जानते थे की एक बार अगर धुरवा राव माड़िया मर गया तो यह विद्रोह अपने आप समाप्त हो जायेगा। और हुआ भी यही उनके मरने के बाद विद्रोह अपने आप ही ख़त्म हो गया था था ।
  11. गेंद सिंह राजपूत के बाद धुरवा राव माड़िया को ही बस्तर का दूसरा शहीद कहा जाता है ।
  12. जब भारत में महान क्रांति 1857 की क्रांति मंगल पांडेय के नेतृत्वा में  हो रहे थी तब छत्तीसगढ़ में लिंगागिरी विद्रोह धुरवा राव माड़िया के नेतृत्वा में हो रहा था ।
  13. यह लिंगागिरी विद्रोह को बस्तर का महान मुक्ति संग्राम कहलाता है ।।

7.1857 का विद्रोह-

  1. 1857 के विद्रोह के दौरान दक्षिणी बस्तर में ध्रुवराव ने ब्रिटिश सेना का जमकर मुकाबला किया। ध्रुवराव माड़िया जनजाति के डोरला उपजाति का था, उसे अन्य जनजातियों का पूर्ण समर्थन हासिल था।

8.कोई विद्रोह (1859)

  1. यह जनजाति विद्रोह कोई जनजातियों द्वारा 1859 में साल वृक्षों के कटाई के विरूद्ध में किया गया था। उस समय बस्तर के शासक भैरमदेव थे।
  2. बस्तर के जमींदारों ने सामूहिक निर्णय लिया कि साल वृक्षों की कटाई नहीं होने दिया जाएगा। लेकिन ब्रिटिश शासन ने इस निर्णय के विरोध में कटाई करने वालो के साथ बंदूकधारी सिपाही भेज दिए जनजाति इससे आक्रोशित हो गए और उन्होंने कटाई करने वालों पर हमला कर दिया।
  3. इस विद्रोह में नारा दिया गया “एक साल वृक्ष के पिछे एक व्यक्ति का सिर । परिणामतः ब्रिटिश शासन में ठेकेदारी प्रथा समाप्त कर साल वृक्षों की कटाई बंद कर दी।

9.मुड़िया विद्रोह (1876)

  1. 1867 में गोपीनाथ कापरदास बस्तर राज्य के दीवान नियुक्त हुए और उन्होंने जनजातियों का बड़े पैमाने पर शोषण आरंभ किया ।
  2. उनका विरोध करने के लिए विभिन्न परगनों के जनजाति एकजुट हो गए और राजा के दीवान की बर्खास्तगी की अपील की। किन्तु यह मांग पूरी न होने के कारण उन्होंने 1876 में जगदलपुर का घेराव कर लिया।
  3. राजा को किसी तरह अंग्रेज सेना ने संकट से बचाया ओडिशा में तैनात ब्रिटिश सेना ने इस विद्रोह को दबाने में राजा की सहायता की।

10.भूमकाल विद्रोह (1910)-

  1. 1910 में हुआ भूमकाल विद्रोह बस्तर का सबसे महत्वपूर्ण व व्यापक विद्रोह था। इसने बस्तर के 84 में से 46 परगने को अपने चपेट में ले लिया इस विद्रोह के प्रमुख कारण थे –
  2. जनजाति वनों पर अपने पारम्परिक अधिकारों व भूमि एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों के मुक्त उपयोग तथा अधिकार के लिए संघर्षरत थे।  1908 में जब यहाँ आरक्षित वन क्षेत्र घोषित किया गया और वनोपज के दोहन पर नियंत्रण लागू किया गया तो जनजातियों ने इसका विरोध किया।
  3. अंग्रेजों ने एक ओर तो ठेकेदारों को लकड़ी काटने की अनुमति दी और दूसरी ओर जनजातियों द्वारा बनायी जाने वाली शराब के उत्पादन को अवैध घोषित किया।
  4. विद्रोहियों ने नवीन शिक्षा पद्धति व स्कूलों को सास्कृतिक आक्रमण के रूप में देखा। अपनी संस्कृति की रक्षा करना ही उनका उद्देश्य था।
  5. पुलिस के अत्याचार ने भूमकाल विद्रोह को संगठित करने में एक और भूमिका निभायी। उक्त सभी विद्रोहों को आग्ल-मराठा सैनिक दमन करने में सफल रहे व विद्रोहियों को अपने लक्ष्य की प्राप्ति में सफलता नहीं मिल सकी। पर राजनैतिक चेतना जगाने में ये सफल रहे।
  6. सरकार को भी अपनी नीति निर्माण में इनकी मांगों को ध्यान में रखना पड़ा। 1857 के महान विद्रोह के उपरांत भारतीय सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन में हस्तक्षेप न करने की अंग्रेज नीति ऐसे ही विद्रोहों का परिणाम थी। कालांतर में इन विद्रोहों के आर्थिक कारको ने नवीन भारत की नीति निर्माण में भी मार्गदर्शन किया।

इन्हे जरूर पढ़े :-

👉  मुरिया विद्रोह में आदिवासियों ने कैसे अंग्रेजो को धूल चटाई ?

👉  लिंगागिरी विद्रोह के मंगल पांडेय से मिलिए !

👉  मेरिया माड़िया विद्रोह में दंतेश्वरी मंदिर पर अंग्रेजो ने कैसे हमला किया ?

👉  तारापुर विद्रोह छत्तीसगढ़ 

👉 परलकोट विद्रोह छत्तीसगढ़

👉  भोपालपट्नम विद्रोह छत्तीसगढ़

👉  भूमकाल विद्रोह छत्तीसगढ़

👉  कोई विद्रोह छत्तीसगढ़

👉 हल्बा विद्रोह छत्तीसगढ़

Share your love
Rajveer Singh
Rajveer Singh

Hello my subscribers my name is Rajveer Singh and I am 30year old and yes I am a student, and I have completed the Bachlore in arts, as well as Masters in arts and yes I am a currently a Internet blogger and a techminded boy and preparing for PSC in chhattisgarh ,India. I am the man who want to spread the knowledge of whole chhattisgarh to all the Chhattisgarh people.

Articles: 1117

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *