Chhattisgarh Ka Loknritya Loknatya | छत्तीसगढ़ का लोकनृत्य और लोकनाट्य

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Chhattisgarh Ka Loknritya Loknatya | छत्तीसगढ़ का लोकनृत्य और लोकनाट्य 

छत्तीसगढ़ का लोकनाट्य 

छत्तीसगढ़ का लोक नाट्य छ.ग. मे सर्वप्रथम नुक्कड़ नाटक की परम्परा विमु कुमार ने शुरू किया।

हमारे लोक नाट्य की भाषा छत्तीसगढ़ी होती है।

लोक नाट्य के सभी पात्र पुरूष होते है।

यह लोक नाट्य मंचन से होता है।

नाचा

  • नाचा में गीत, संगीत, नृत्य का संगम होता है।

  • इसमें अलिखित कथा प्रसंगों की प्रस्तुति की जाती है।

  • नाचा के सभी पात्र पुरुष होते है लेकिन अब महिलाएँ भी जुड़ गई है।

  • छ.ग.  का सर्व प्रमुख लोक नाट्य है नाचा।

  • नाचा के भीष्म पितामाह दुलार सिंह मंदराजी को कहते है।

  • छ.ग. की प्रथम नाचा पार्टी > रवेली नाचा पार्टी , निर्देशक > मंदराजी

  • नाचा महाराष्ट्र के तमाशा से बना है मराठा काल से प्रारंभ हुआ है।
गम्मत
  • गम्मत मे हास्य-व्यंग्य का मंचन किया जाता है।

  • यह  दो प्रकार से होता है 1. खड़ी गम्मत, > खड़े होकर मंचन करते है। 2. रतन पुरिया ,गम्मत > बैठकर मंचन करते है।

  • इसका  का प्रचलन कम होता जा रहा है जिसे पुनर्जीवित करने के लिए भिलाई  की संस्था “सृजन” प्रयास कर रहा है।
रहस
  • रहस कल्चुरि काल से चला आ रहा है।

  • छ.ग. की समृद्ध सांस्कृतिक परम्परा का प्रतीक है।

  • रहस रासलीला का छत्तीसगढ़ी रूपांतरण है।

  • पौराणिक चरित्रों का मानव आकार प्रतिमाएँ बनाते है।

  • रहस उत्तर प्रदेश की रासलीला से प्रभावित है।

  • छ.ग. में बाबू रेवाराम द्वारा रहस की पाण्डु लिपियाँ प्रचलित है।

  • राधा कृष्ण के प्रेम कथा पर आधारित होता है।

  • रहस के रंगमंच को रहस बेड़ा कहते है।

  • रहस मंडली में 20 से 25 कलाकार होते है।

  • मंडली के प्रधान को व्यास का सम्मान प्राप्त होता है।

  • रहस के लिए बिलासपुर जिला प्रसिद्ध है।

  • रासदारी रहस का एक प्रमुख पात्र होता है।

  • रहस में तीन प्रमुख नर्तक होते है> जो भक्ति, ज्ञान, वैराग्य के प्रतीक होते है।

  • मुख्य मंच पर कदम वृक्ष के नीचे राधा-कृष्ण, गणेश व ऋद्धि-सिद्धी की मूर्ति स्थापित किया जाता है।

  • मंच के चारों कोनो में क्रमशः राजा परीक्षित, शुकदेव, ब्रम्हा व शिव की मूर्ति स्थापित किया जाता है।

  • छ.ग. में रहस दो रूप में प्रचलित है:  1. स्वर्णों का रहस , 2. सतनामियों का रहस

    रहस

    क्र.स्वर्णो का रहस सतनामियों का रहस
    1.रहस 9 दिन में सम्पन्न होता है।रहस 10 दिन में सम्पन्न होता है।
    2.रहस की भूमिका ब्राह्मण निभाते है।सतनामी जाति का कोई व्यक्ति निभाता है।
    3.नंदी पर राधा कृष्ण की मूर्ति स्थापित।गणेश द्वारा राधा कृष्ण की मूर्ति स्थापित।
    4.इसमें भक्ति प्रधान होता है।भक्ति के साथ मनोरंजन होते है ।
भतरा लोक नाट्य 
  • भतरा जनजाति द्वारा किया जाता है (ग्रीष्म ऋतु में )

  • इसे उडीया नाट्य भी कहते हैं।

  • यह पौराणिक गाथा पर आधारित होता है।

  • इसमें मंचन होता है (युद्ध प्रधान)

  • इसमें पुरूष लोग महिला जैसे श्रृंगार करके मंचन करते हैं (सारे पुरूष होते है)

  • इस नाट्य में   20 से 40 कलाकार होते है।
मावोपाटा लोकनाट्य
  • यह मुड़िया जनजाति का शिकार नाट्य हैं।

  • इसमें टिमकी, कोटाइका, रस्सी का प्रयोग किया जाता है।

  • अंत में शिकार का भोजन बनाया जाता है।
खम्ब स्वांग लोक नाट्य 
  • कोरकू जनजाति द्वारा क्वांर से कार्तिक माह तक मेघनाथ खम्ब के चारों ओर मंचन किया जाता है।

  • इसमें रावण पुत्र मेघनाथ की पूजा होती है।

  • कोरकू जनजाति मेघनाथ को अपना रक्षक मानते है।
दहिकांदो लोक नाट्य 
  • बस्तर अंचल में कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर किया जाता है।

  • यह करमा व रासलीला का मिश्रित रूप है।
कोकटी लोक नाट्य 
  • जात्रा नृत्य के दौरान कोकटी-घोड़ा लोक नाट्य प्रचलित है।

  • इसे कोकटी-घोडा एक दूसरे से युद्ध करते है।

  • इसमें घोड़ा को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
नकटा-नकटी लोक नाट्य 
  • छेरता गीत के दौरान नकटा नकटी लोक नाट्य प्रचलित हैं।

  • लड़का नकटा व लड़की नकटी की भूमिका निभाते हैं।
चीते मुखौटा लोक नाट्य 
  • यह अबुझमाड़िया जनजाति द्वारा किया जाता है।
साम्भर लोक नाट्य 
  • इसमें एक लड़का चील, एक लड़की मुर्गी बनता है।

  • शेष लड़के मुर्गी को घेरकर चील से रक्षा करते हैं।
पुत्तलिका लोक नाट्य 
  • यह तारा गीत के दौरान लड़कियाँ घास से बनी पुतली को टोकरी में रख कर नाट्य करते हैं।


छत्तीसगढ़ का लोकनृत्य

सुआ नृत्य 
  • यह छ.ग. का सबसे लोक प्रिय नृत्य है।

  • इसे गौरी नृत्य भी कहा जाता है।

  • इसमें महिला व पुरुष दोनों भाग लेते है।

  • कार्तिक माह व दीपावली में किया जाता है।

  • बॉस की टोकरी में धान भरकर उसमें मिट्टी के दो तोते को शिव व पार्वती के प्रतीक के
    रूप में रखते है।

  • गोलाकार झुंड के बीच में टोकरी को रख कर घूमधूम कर तालियों के थाप पर नृत्य किया जाता है।

  • दीपावली की रात्रि को शिव-पार्वती के विवाह का आयोजन कर इसका समापन किया जाता है।

  • बस्तर में एक माह तक चलता है।

  • इस नृत्य को मुकुटधर पाण्डे ने छ.ग. का गरबा नृत्य कहा है।

  • नोट : बीच में टोकरी रख कर चार लोग नृत्य करते है तो उसे सुआ नृत्य कहते है चाहे व किसी भी पर्व में हो।
पंथी नृत्य 
  • यह सतनामी जाति का नृत्य है।

  • पंच से संबंधित होने के कारण पंथी नृत्य कहा जाता है।

  • इसे किसी भी पर्व में किया जाता है।

  • यह गुरू घासीदास के जीवन चरित्र पर आधारित होता है।

  • महिला व पुरुष दोनों भाग लेते है।

  • इस नृत्य में जैतखाम की स्थापना कर उसके चारों ओर नृत्य किया जाता है।

  • गुरू घासीदास जी ने कहा था कि मेरा मूर्ति बनाकर पूजा मत करना इसलिए जैतखाम का पूजा किया जाता है।

  • नारी शक्ति के कारण मिनीमाता की पूजा की जाती है गुरू घासीदास जी से इसका कोई संबंध नहीं है।

  • इसका वाद्ययंत्र मांदर व झांझ होता है।

  • नृत्य का आरंभ विलम्ब युक्त होता है व द्रुत गति चरम पर होता है।
चंदैनी नृत्य 
  • यह लोरिक चंदा के प्रेम गाथा पर आधारित होता है।

  • इसमें पुरूष ही भाग लेते है।

  • इसका वाद्ययंत्र टिमकी व ढोलक होता है।

  • चंदैनी नृत्य- छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में लोककथाओं पर आधारित यह एक महत्वपूर्ण लोकनृत्य है।

  • रिक-चंदा के नाम से ख्यातिलब्ध चंदैनी मुख्य रूप से एक प्रेमगाथा है . 

  • जिसमें पुरुष पात्र विशेष पहनावे में अनुपम नृत्य के साथ चंदैनी कथा को अत्यंत ही सम्मोहक शैली में प्रस्तुत करते हैं ।

  • जो कि सम्पूर्ण रात्रि तक दर्शकों को सम्मोहित किये रहती है।

  • छत्तीसगढ़ में चंदैनी दो शैलियों में विख्यात है। एक तो  लोककथा के रूप में एवं द्वितीय गीत नृत्य रूप में।

  • चंदैनी नृत्य में मुख्य रूप से ढोलक की संगत एवं टिमकी प्रमुख वाद्य  यंत्र है।

  • छत्तीसगढ़ में चंदैनी नृत्य की ख्याति का आलम यह था कि एक समय दो-तीन लाख जनमानस एक साथ बैठकर इस नृत्य का आनंद उठाया करते थे।
राऊत / मातर नृत्य 
  • यह यादव जाति का शौर्य परक नृत्य है

  • कार्तिक प्रबोधनी एकादशी से प्रारंभ होकर एक पखवाडे तक चलता है।

  • इसमें गार्यो के गले में सोहई बाँधते हैI

  • इस दौरान गड़वा बाजा के धुन में नृत्य किया जाता है।

  • इसे गहिरा नाच, अहिर नाच व ड्रामा-डांस नाय भी कहते है।

  • इस नृत्य में दोहे गाये जाते हैं।

  • कंस के वध के बाद विजय प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।

  • बिलासपुर में एक माह तक चलता है।

  • इस नृत्य का आरंभ बिलासपुर जिले में 1978 से हुआ था। 2018 में 41 वाँ नृत्य महोत्सव बिलासपुर में बनाया जायेगा।

  • इसमें केवल पुरुष भाग लेते है।

  • इसे मातर नृत्य भी कहा जाता है।
ककसार नृत्य
  • करसाड़ नृत्य- यह अबूझमाडियों का एक विशेष पर्व है, जिसमें गोत्र-देव की पूजा की जाती है।

  • इस अवसर पर यह नृत्य बड़े उत्साह से किया जाता है।

  • करसाड नृत्य में नर्तक की रूप-सज्जा विशेष आकर्षक होती है।

  • इसमें नृत्य संगिनी को प्रभावित करने के लिए विशेष प्रकार का नृत्य किया जाता है।

  • इस नृत्य के दौरान एक ही प्रकार की तुरही बजती रहती है, जिसे अकुम कहते हैं।

  • काकसर नृत्य को जान्ना नृत्य भी कहते हैं।

  • इस नृत्य के दौरान नर्तक और नर्तकियों का झुण्ड कभी-कभी दूसरे गांवों में विवाह घर में पहुंच जाता है और नृत्य करता है।

  • इस काकसर नृत्य के दौरान अनेक जीवन साथी का चुनाव हो जाता है। क्योकि यह काकसर नृत्य मुख्यतः जीवन साथी प्राप्त करने के लिए ही किया जाता है ताकि इससे जनजाति लड़किया जनजाति लड़को को अपना नृत्य दिखाकर अपनी ओर आकर्षित करती है । 

  • यहाँ नृत्य मुड़िया जनजाति द्वारा ख़ुशी हरियाली के लिए किया जाता है । ताकि इससे भगवान खुश होकर हमारे  फसल को हरा भरा रखे और हर साल हमें और भी ज्यादा फसल उगे । 

  • इसमें वाद्ययंत्र तुरही ( एक प्रकार का फूंक कर बजाया जाने वाला यन्त्र ) उपयोग किया जाता है । 

  • यह नृत्य लिंगोपेन देव को प्रस्सन करने के लिए किया जाता है ।

  • काकसर नृत्य छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर जिले में अधिक मात्रा में किया जाता है । जिस नृत्य को देखकर मन खुश हो जाता है । 

  • ककसार नृत्य के साथ संगीत और घुँघरुओं की मधुर ध्वनि से एक रोमांचक वातावरण उत्पन्न होता है।

  • वैसे काकसर नृत्य छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के नारायण पुर के साथ कोरिया के मूर्तियों द्वारा भी धूम धाम से किया जाता है । 

  • काकसर एक धार्मिक नृत्य भी है मुरिया जनजाति के लोग इसमें अपने कमर में लोहे की या फिर कहे पीतल से बानी कमरबंध , हिरनाद्ध एवं घंटिया बांध कर रखते है । और जब वे नाचते है तो उस घंटी का ध्वनि अत्यंत ही सुन्दर बजता है । 

  • इस सुन्दर दृश्य में लड़के भी पीछे नहीं रहते है वे भी अपने सर पर पगड़ी , कलगी और कौड़ियों से श्रीनगर कर एकदम ही सुंदर दिखाई देते है जो बहुत ही आकर्षक लगते है जिन्हे देखकर लड़किया उनपर मनमुगध हो जाती है ।
करमा नृत्य
  • आदिवासी और लोक जीवन में जीवन की कर्मूलक गतिविधियां और सौन्दर्य बोध इतने परस्पर और घुलमिले हैं । कि कई बार जीवन की गतिविधि और कला में अंतर करना , कठिन हो जाता है।

  • वनवासियों के कठोर वन्य जीवन और ग्राम्यांचलों की कृषि संस्कृति श्रम पर आधारित है । इसमें कर्म की प्रधानता है। वह जीवन की धुरी है।

  • वस्तुतः करमा नृत्य-गीत, कर्म-देवता को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। करमा नृत्य गीत का क्षेत्र बहुत विस्तृत है सुदूर छत्तीसगढ़ के लोकजीवन का प्रमुख नृत्य है।

  • गीत, लय, ताल, पद, संचालन आदि में थोड़ा-थोड़ा अंतर है । कर्म की प्रधानता का जीवन में स्वीकार यही इस नृत्य जीवन की व्यापक गतिविधियों के बीच विकसित होता है।

  • शायद यही कारण है कि करमा गीतों में बहुत विविधता है। वे किसी एक T भाव या स्थिति के गीत नहीं है, उसमें दैनिक जीवन की गतिविधियों और स्थितियों के वर्णन के साथ प्रेम का गहरा और सूक्ष्म भाव भी हो सकता है।

  • करमा वस्तुतः एक नृत्य गीत है जो जीवन चक्र की ही कलात्मक अभिव्यक्ति है। इसमें पुरुष और महिलाआयें दोनों भाग लेते है ।

  • बैगा आदिवासियों के करमा को बैगानी करमा कहा जाता है। ताल और लय के अन्तर से यह चार प्रकार का है।

  • 1.करमा खरी, 2.रकमा खय, 3.करमा झुलनी, 4.करमा लहकी।

  • यह विजयादशमी से लगातार वर्षा के प्रारंभ तक चलता है। इसलिए ऋतु के साथ इसका संबंध है। किन्तु खेतिहर संस्कृति और कर्म की महिमा का गान होने के कारण इसे जीवन चक्र के अंतर्गत ही मानना चाहिए।
मांदरी नृत्य 
  • यह मुढ़िया जनजाति द्वारा किया जाता है।

  • यह गीत विहीन नृत्य है (वाय यंत्र-मांदर)
हुलकी पाटा नृत्य
  • यह सभी अवसर पर किया जाता है।
घोटुल पाटा नृत्य 
  • यह मृत्यु के अवसर पर किया जाता है।

  • यह गोंडी भाषा में होता है।
एबलतोर नृत्य
  • मड़ई में आगा देव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है।
गैंडी/डिटोंग नृत्य 
  • इसमें केवल पुरूष भाग लेते है।

  • गेडी, हरेली त्यौहार में बनता है और नारबोद में ठंडा किया जाता है।
डंडारी नृत्य 
  • बस्तर अंचल में होली के पर्व में किया जाता है।
पूस कोलांग/ पूस कलंगा नृत्य 
  • यह बस्तर अंचल का प्रसिद्ध नृत्य है।
गौर/बायसन नृत्य 
  • इसमें बायसन हार्न के सींग को सिर में बाँधकर नृत्य किया जाता है।

  • इस नृत्य को येरियर एल्विन ने विश्व का सबसे सुंदरतम नृत्य कहा है।

  • बस्तर दशहरा में रथ के सामने यही नृत्य होते हुए आगे बढ़ता है।
करमा नृत्य 
  • यह नये फसल आने पर कर्म देव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है।

  • यह 4 प्रकार से होता है, 1. करमा खरी  2. करमा खाप 3. करमा लड़की  4. करमा लनी
बिल्मा नृत्य 
  • दशहरा के अवसर पर किया जाता है।
सैला/डंड्रा नृत्य 
  • कार्तिक  पूर्णिमा से फाल्गुन  पूर्णिमा तक किया जाता है।

  • यह मुख्यतः सरगुजा जिले में होता है।

  • इस नृत्य के दौरान लड़कियाँ मन पसंद जीवन साथी चुनते हैं।
सरहुल नृत्य
  • यह चैत्र पूर्णिमा में जैसे ही साल वृक्ष में फूल आते हैं पूजा-अर्चना के साथ नृत्य होता है।
सोहर /बार नृत्य
  • यह किसी भी अवसर में किया जाता है।
थापड़ी नृत्य
  • यह बैशाख माह में लड़के पंचा व लड़कियाँ चितकोटा बजाते हुये नृत्य किया जाता है।

  • इसे ढांढल नृत्य भी कहते है।
दमनच नृत्य
  • यह भयोत्पादक नृत्य होता है।

  • इसे विवाह के अवसर पर किया जाता है।
परब नृत्य
  • इस नृत्य में पिरा मिड का निर्माण किया जाता है।

  • यह सैन्य नृत्य है ।

  • इसमें लड़के व लड़की दोनो रहते है।
कोल दहका नृत्य
  • यह किसी भी अवसर में किया जाता है।
दोरला / पैडुल नृत्य
  • यह विवाह के अवसर पर किया जाता है।
गांडा नृत्य
  • यह सरगुजा जिले में अधिक प्रचलित है।

  • गांडा नृत्य विवाह के अवसर में लोग किराये पर ले जाते है।
भड़म नृत्य 
  • यह सबसे लंबी समय तक चलने वाली नृत्य है।
डोमकच नृत्य 


कुछ महत्वपूर्ण बाते:-

क्रमांकगीत व् नृत्यजानकारी
1.ददरियाददरिया लोकगीतों को छत्तीसगढ़ी लोक गीत का राजा कहा जाता है
2.चेतपरब और धनकुल बस्तर क्षेत्र का लोकगीत
3.लेजा गीत बस्तर के आदिवासी बहुल क्षेत्र का लोकगीत
4.रेला गीतमुरिया जनजाति का लोकगीत
5.गौरा गीतमाँ दुर्गा की स्तुति में गया जाने वाला गीत है जो नवरात्री के समय गया जाता है
6.बार नृत्यगीत कवर जनजाति का नृत्य गीत
7.बिलमा बैगा जनजाति का मिलान नृत्य गीत है
8.रीना नृत्य गीतगोंड तथा बैगा स्त्रीया का दिवाली के समय का नृत्य गीत है
9.पंडवानी गीतछत्तीसगड़ी वीर रास का लोकनृत्य जिसे लोकबैले भी कहा जाता है।
10.गोंडो नृत्य गीत गोंड जनजातियों का बीज बोते समय का नृत्य गीत
11.गौर नृत्य गीत बाइसन हॉर्न मरिया जनजाति का लोक नृत्य है।
12.गेंदी नृत्य गोंड युवको का खेल नृत्य।
13.गोचो नृत्यगोंडो का नृत्य
14.मड़ईरावत जाती का नृत्य
15रास नृत्य रहस्य नृत्य होली के समय का मृत्यु गीत
16.सींग मरिया नृत्यबस्तर जनपद के बैनेले भूभाग में मरिया आदिवासियों का नृत्य है।
17रौला नृत्य सैला एक मंडलकार लोकनृत्य है। मयूर पंख की कलगी कौड़ियों की बावजूद और काम पत्ते युवको के दाल सेना का प्रारम्भ गुरु एवं प्रभु की वंदना से करते है।
18.छेरता मुरिया युवक यवतियों का सम्मिलिति नृत्य
19.जावरा गीत नवरात्री के समाया गाने जाना वला गीत
20.माता सेवा गीत चेचक को माता मन जाता है इसकी शांति के लिए माता सेवा गीत गया जाता है
21.बांस गीतराउत जाती का प्रमुख गीत
22.देवार गीत देवार जाती का घुंगरूयुक्त चिकारा के साथ गया जाने वाला गीत
23.भड़ौनी गीत विवाह के समय हंसी मजाक करने के लिए गया जाने वाला गीत
24.नागमत गीत नागदेव के गुरगण व् नागवंश से सुरक्षा की प्राथना में गया जाने वाला लोकगीत है जो नाग पंचमी के अवसर पर गया जाने वाला गीत
25.दहकी गीतहोली के अवसर पर असलिलपूर्ण परिहास में गया जाने वाला लोकगीत

परीक्षोपयोगी महत्वपूर्ण तथ्य : लोक कला

  • इस राज्य की गाथा सीताराम नायक का सीताराम एक बंजारा था.
  • सुरूज बाई खांडे इस राज्य के भरथरी की प्रमुख कलाकार थी।
  • छत्तीसगढ़ राज्य के परम्परागत गीतकार जनजाति परधान गोंड राजाओं की मिथक कथा, लिंगोपाटा आदि का गायन करते हैं।
  • छत्तीसगढ़ राज्य भरथरी में रानी पिंगला व राजा भरथरी के करूण कथा को गीत के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है।
  • पंडवानी महाभारत कथा पर आधारित एक लोकगायन है, भीम इसके नायक हैं। छत्तीसगढ़ राज्य का पंडवानी लोकगीत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध है, इसका मुख्य श्रेय तीजन बाई को जाता है, वे कापालिक शैली में गाती हैं।
  • तीजन बाई को 1987 में पद्म श्री, 2003 में पद्म भूषण तथा 2019 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
  • पण्डवानी गाथा गीत गाने वाली प्रमुख जनजातियाँ परजा एवं परधान हैं.
  • पूनाराम निषाद पंडवानी के वेदमती शैली के कलाकार रहे हैं।
  • छत्तीसगढ़ में गाया जाने वाला मंगरोहन गीत एक प्रकार का संस्कार गीत है।
  • छत्तीसगढ़ में वैवाहिक संस्कार गीतों का सही क्रम है- चूलमाटी, तेलचघी, परघैनी, भड़ैनी, भांवर, टिकावन, विदाई।
  • छत्तीसगढ़ के प्रणय गीत ददरिया को प्रेम गीत के रूप में जाना जाता है। इसमें श्रृंगार रस की प्रधानता होती है।
  • पठौनी गीत छत्तीसगढ़ में गौना के समय गाये जाने वाला लोक गीत है।
  • वेदमती तथा कापालिक छत्तीसगढ़ी लोक गायन पंडवानी की दो शैलियां हैं। वेदमती में शास्त्र सम्मत गायकी की जाती है सबल सिंह चौहान की दोहा चौपाई महाभारत इसका प्रमुख आधार है, जबकि कापालिक शैली में कथा कलाकार के स्मृति में विद्यमान होती है।
  • श्री कृष्ण की लीलाओं पर आधारित रहस को छत्तीसगढ़ राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक परम्परा का प्रतीक माना जाता है।
  • छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध नाट्य चंदैनी गोंदा में रवान यादव ने पाश्र्व संगीत दिया था।
  • दाऊ दुलार सिंह मंदरा जी को नाचा का भीष्म पितामह कहा जाता है, इन्होंने रवेली साज नामक संस्था का गठन किया था।
  • झीरलीटी, ककसार, गौर आदि बस्तर की नृत्य शैली हैं.
  • थापटी तथा ढांढल कोरकू जनजाति के द्वारा किया जाने वाला नृत्य है।
  • रायगढ़ घराना कत्थक नृत्य शैली के लिए जाना जाता है। राजा चक्रधर सिंह इसके प्रमुख कलाकार रहे हैं।
  • बस्तर क्षेत्र को दंडामी माड़िया जनजाति द्वारा जात्रा पर्व के दौरान गौर नामक शिकार नृत्य किया जाता है। जिसमें गौर के शिकार को बताया जाता है।
  • सतनाम पंथ के प्रमुख नृत्य पंथी में जैतखंभ की स्थापना कर चारों तरफ पिरामिड बनाते हुए नृत्य किया जाता है। मांदर तथा झांझ इसके प्रमुख वाद्ययंत्र है।
  • इस राज्य के जनजातियों द्वारा करम की प्रधानता पर आधारित करमा नृत्य किया जाता है, जो कृषि परम्परा से संबंधित है।
  • अबूझमाड़िया जनजाति द्वारा अपने आदि देव को प्रसन्न करने के लिए वर्ष में एक बार ककसार पूजा का आयोजन एवं इस अवसर पर ककसार नृत्य किया जाता है।
  • कोलिन जाति की महिलाएं धान से भरी टोकरी के ऊपर सुआ या तोते की मूर्ति रख चारों ओर परिक्रमा करते हुऐ सुआ नृत्य करती हैं।
  • खुद को भगवान कृष्ण का वंशज मानने वाला यदुवंशी कुल राऊत नाचा लोक नृत्य करते हैं।
  • मुड़िया घोटुल में सदस्यों के द्वारा मांदरी नृत्य किया जाता है।
  • गौर मारिया नृत्य विवाह उत्सव पर किया जाता है।
  • पंथी नृत्य छत्तीसगढ़ में सतनामी समुदाय के लोगों द्वारा किया जाने वाला नृत्य है।
  • जीवन में कर्म की प्रधानता को बताने वाला करमा नृत्य की इष्ट करम देवी है।
  • ममता चंद्राकर छत्तीसगढ़ की प्रसिद्ध लोक गायिका है 2016 में इन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।
  • चक्रधर सिंह रायगढ़ के राजा थे जिन्होंने कत्थक पर अनेक ग्रंथ लिखे। ये एक दक्ष तबला वादक थे तथा इन्हें 1939 में संगीत सम्राट की उपाधि दी गई।
  • छत्तीसगढ़ में कोलिन जाति की महिलाओं द्वारा फसल पकने के उपरांत दीवाली के करीब सुआ नृत्य करने की परंपरा है।
  • पंथी नृत्य सतनाम पंथ से संबंधित है, इसमें जैत खंभ की स्थापना कर चारों तरफ पिरामिड बनाते हुए नृत्य किया जाता है देवदास बंजारे इसके प्रमुख कलाकार थे।
  • धनकुल एक वाद्ययंत्र है जिसका निर्माण हांड़ी, सूपा, धनुष से किया जाता है। इसमें बांस की खपच्ची का प्रयोग भी किया जाता है।
  • छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में निवास करने वाले माड़िया मुरिया जनजातियों द्वारा माओपाटा नृत्य किया जाता है, जो मूलतः एक शिकार नृत्य है।

इन्हे जरूर पढ़े :

👉  राउत नाचा छत्तीसगढ़ 

👉 ककसार नृत्य छत्तीसगढ़ 

👉  चंदैनी नृत्य छत्तीसगढ़ 

👉 करमा नृत्य छत्तीसगढ़

👉  सुआ नृत्य छत्तीसगढ़ 

👉  पंथी नृत्य छत्तीसगढ़

 

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Rajveer Singh
Rajveer Singh

Hello my subscribers my name is Rajveer Singh and I am 30year old and yes I am a student, and I have completed the Bachlore in arts, as well as Masters in arts and yes I am a currently a Internet blogger and a techminded boy and preparing for PSC in chhattisgarh ,India. I am the man who want to spread the knowledge of whole chhattisgarh to all the Chhattisgarh people.

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