करमा नृत्य छत्तीसगढ़ Karma Nritya Chhattisgarh Karma Dance Chhattisgarh
आदिवासी और लोक जीवन में जीवन की कर्मूलक गतिविधियां और सौन्दर्य बोध इतने परस्पर और घुलमिले हैं । कि कई बार जीवन की गतिविधि और कला में अंतर करना , कठिन हो जाता है।
वनवासियों के कठोर वन्य जीवन और ग्राम्यांचलों की कृषि संस्कृति श्रम पर आधारित है । इसमें कर्म की प्रधानता है। वह जीवन की धुरी है।
वस्तुतः करमा नृत्य-गीत, कर्म-देवता को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। करमा नृत्य गीत का क्षेत्र बहुत विस्तृत है सुदूर छत्तीसगढ़ के लोकजीवन का प्रमुख नृत्य है।
गीत, लय, ताल, पद, संचालन आदि में थोड़ा-थोड़ा अंतर है । कर्म की प्रधानता का जीवन में स्वीकार यही इस नृत्य जीवन की व्यापक गतिविधियों के बीच विकसित होता है।
शायद यही कारण है कि करमा गीतों में बहुत विविधता है। वे किसी एक T भाव या स्थिति के गीत नहीं है, उसमें दैनिक जीवन की गतिविधियों और स्थितियों के वर्णन के साथ प्रेम का गहरा और सूक्ष्म भाव भी हो सकता है।
करमा वस्तुतः एक नृत्य गीत है जो जीवन चक्र की ही कलात्मक अभिव्यक्ति है। इसमें पुरुष और महिलाआयें दोनों भाग लेते है ।
बैगा आदिवासियों के करमा को बैगानी करमा कहा जाता है। ताल और लय के अन्तर से यह चार प्रकार का है।
1.करमा खरी, 2.रकमा खय, 3.करमा झुलनी, 4.करमा लहकी।
यह विजयादशमी से लगातार वर्षा के प्रारंभ तक चलता है। इसलिए ऋतु के साथ इसका संबंध है। किन्तु खेतिहर संस्कृति और कर्म की महिमा का गान होने के कारण इसे जीवन चक्र के अंतर्गत ही मानना चाहिए।