महाराजा प्रवीरचंद भंजदेव Maharaja Pravinchand Bhanjdev Chhattisgarh
महाराजा प्रवीरचंद भंजदेव सम्मान
बस्तर की आत्म बलिदानी विभूतियों में राजकुल को महाराजा प्रवीरचंद भंजदेव का नाम ज्योर्तिपुज के समान दैदीप्यमान है इनका जन्म 25 जून 1929 को दार्जिलिंग में हुआ था।
इनकी माता का नाम प्रफुल्लकुमारी देवी तथा पिता का नाम प्रफुल्ल चंद्र भंजदेव था। आदिवासी हितों की रक्षा करने, उन्हें संगठित करने के साथ-साथ उनकी संस्कृति और अधिकार की रक्षा के लिए महाराजा प्रवीरचंद भंजदेव अंतिम सांस तक तत्पर इनके आकर्षक व्यक्तित्व में सरलता, उदारता तथा आत्मगौरव झलकता था।
महाराजा प्रवीरचंद भंजदेव के कार्य और चितन में बस्तर के सीधे और सरल आदिवासियों का उत्थान सर्वोपरि रहा। महाराजा प्रवीरचद मजदेव सत्ता के प्रति कभी आकर्षित नहीं हुए तथापि आदिवासी माझी-मुखिया तथा महिलाओं को सदैव लोकतात्रिक व्यवस्था में भाग लेने के लिए प्रेरित करते रहे।
महाराजा प्रवीरबद भजदेव साहित्य, इतिहास तथा दर्शन शास्त्र के मभीर अध्येता तथा हिन्दी अंग्रेजी और संस्कृत भाषा के जानकार थे। इन्होंने हिन्दी तथा अंग्रेजी में पुस्तके भी लिखीं। अश्वारोहण टेनिस आदि खेल आपको प्रिय थे तथा विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं के लिए उदारता पूर्वक सहयोग करते थे।
बस्तर के इस यशस्वी सपूत ने सामाजिक अन्याय एवं जीवन मूल्यों के दमन से संघर्ष करते हुए योद्धा की भांति 25 मार्च 1960 को प्राण न्योछावर किया। महाराजा प्रवीरचद भजदेव जीवन भर शस्त्र और शास्त्र के उपासक आदिवासियों के अधिकार तथा सम्मान के लिए संघर्षरत, अविचलित व्यक्तित्व के धनी थे और मरणोपरात भी बस्तर में सम्मानित है।
छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में तीरदाजी के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए महाराजा प्रवीरचट्र भजदेव सम्मान स्थापित किया है। यह सम्मान वर्ष 2004 में स्थापित किया गया।
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