दानवीर भामाशाह Danveer Bhamashah Chhattisgarh
दानवीर भामाशाह
दानवीर भामाशाह का जन्म राजस्थान के मेवाड़ में 29 अप्रैल 1547 को हुआ। वे बाल्यकाल से मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप के मित्र सहयोगी और विश्वासपात्र सलाहकार थे। इनका मातृ भूमि के प्रति अगाध प्रेम था और दानवीरता के लिए इनका नाम इतिहास में अमर है।
दानवीर भामाशाह का निष्ठापूर्ण सहयोग महाराणा प्रताप के जीवन में महत्वपूर्ण और निर्णायक साबित हुआ। मातृ-भूमि की रक्षा के लिए महाराणा प्रताप का सर्वस्व होम हो जाने के बाद इन्होंने लक्ष्य को सर्वोपरि मानते हुए अपनी सम्पूर्ण धन-संपदा अर्पित कर दी।
इन्होंने यह सहयोग तब दिया जब महाराणा प्रताप अपना अस्वित्य बनाए रखने के प्रयास में निराश होकर परिवार सहित पहाठियों में छिपते भटक रहे थे दानवीर भामाशाह ने मेवाड की अस्मिता की रक्षा के लिए दिल्ली गद्दी का प्रलोभन भी स्वीकार नहीं किया। महाराणा प्रताप को दी गई इनकी हरसभव सहायता ने मेवाड के आत्म सम्मान एवं संघर्ष को नयी दिशा दी।
आप बेमिसाल दानवीर थे। आत्म-सम्मान और त्याग की त्यागी पुरुष यही भावना इन्हें स्वदेशी धर्म और सस्कृति की क्षा करने वाले देश-भक्त के रूप में शिखर पर स्थापित कर देती है।
राज्य हेतु अपना सर्वस्व अर्पित करने वाले दानदाता को दानवीर भामाशाह उसका स्मरण-वंदन किया जाता है। इनके लिए पक्तिया कही गई है-
वह धन्य देश की मार्टी है, जिसमें भामा सा लाल पला ।
उस दानवीर की यशगाथा को मेट सका क्या काल मला।।
लोकहित और आत्मसम्मान के लिए अपना सर्वस्व दान कर देने वाली उदारता के गौरव-पुरुष की इस प्रेरणा को चिरस्थायी रखने के लिए छत्तीसगढ़ शासन ने इनकी स्मृति में दानशीलता. सौहार्द एवं अनुकरणीय सहायता के क्षेत्र में दानवीर भामाशाह सम्मान स्थापित किया है। यह सम्मान वर्ष 2006 में स्थापित किया गया। इस सम्मान के अतर्गत प्रशस्ति पत्र एव 2 लाख रुपये की सम्मान राशि दी जाती है ।
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