छत्तीसगढ़ के लोक खेल | Chhattisgarh Ke Lok Khel Paramparik Khel

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छत्तीसगढ़ के लोक खेल Chhattisgarh Ke Lok Khel Paramparik Khel

छत्तीसगढ़ में मानव जीवन के साथ ही लोक खेलों की परम्परा विकसित हुई है। झाड़ बेंदरा को आदिम युग का खेल मान सकते हैं। प्रमुख पारम्परिक लोक खेल-फल्ली, मटकी फोर, बांटी, ईभ्भा, भैंरा, बिल्लस, फोदा, गिदिगादा, खीलामार, गोटा, उलानबांटी, नौगाटिया, परी परवरा, कुकरा-कुकरी ।

सामूहिक:- दुलारा प्रचलन बहुत ही कम

एकल:-गोटा, भौंरा,उलानबांटी, चरखी, पानालरी।

दुच्छ:- भित्री, कुचि, संडउवा, तरोईफूल, फोदा, टेकन, चुरी लुकउल,

गीतिक खेल:-भौंरा, धायगोड़, अटकन-मटकन, फुगड़ी, बिरो, पोसम पा, इल्लर-डिल्लर आदि।

खेलों के आरंभ की घोषणा, खिलाड़ियों की मानसिकता, उनकी संख्या और सामग्री की उपलब्धता पर निर्भर होती है। पूर्व तैयारी का सदा अभाव, स्थल विशेष महत्व नहीं -घर के आँगन, बरामदे, कमरा, चौपाल, चबूतरा आदि से संबंधित खेल -भोटकुल, फुगड़ी, नौ गोटिया, बन्ना, चौसर, पच्चीसा, चुड़ी बिनउल आदि। मैदान या गलियों में -संखली, गिल्ली डंडा, रेस-टीप, संडउवा, गिदिगादा, खिलामार आदि।

सरलता से उपलब्ध सामग्री पर ही केन्द्रित-जैसे कुचि, गोटा, बिल्लस, चूड़ी, पिट्ठल, गिदिगादा, खिलामार, भिर्री, भौंरा, गिल्ली-डंडा, फल्ली, चुहउल, संडउवा आदि।

फत्ता

टॉस अंग्रेज़ी का शब्द है। छत्तीसगढ़ में फत्ता शब्द का प्रचलन है। इसे पुकाना या पुकई भी कहा जाता है। लोक खेलों में फत्ता के दो रूप मिलते हैं। पहला एकमई फत्ता -फत्ता के बिना खेल पूर्ण नहीं होते गिल्ली-डंडा, बांटी, भौंरा व संडउवा। साफर फत्ता टॉस की प्रक्रिया। किसी भी लोक खेल में, किस खिलाड़ी द्वारा खेल का प्रारंभ हो, इसका निर्णय करने के लिए साफर फत्ता महत्वपूर्ण है। संखली फत्ता, एक हत्थी फत्ता व अंगरी फत्ता के तीन रूप प्रचलन में मिलते हैं।

पुरस्कार

(दाम) दाम किसी प्रकार की उपलब्धि, राशि या सामग्री नहीं होती बल्कि वह आनंद की अनुभूति प्रदान करने का माध्यम होता है। दो रूप पहला संगेच और दूसरा सांझर दाम। संगेच दाम -जिनमें खेल के साथ आनंद की अनुभूति उनके खिलाड़ियों को हो जाती है ऐसे लोक खेलों के दाम को संगेच दाम कहा जाता है। दो रूप झेलार व उरकधारा दाम जैसे-भौंरा, फुगड़ी, सोना-चांदी, गिल्ली डंडा, अल्लग-कूद, फल्ली। सांझर दाम – खेल जिसमें आनंद नहीं होता किन्तु खेल समाप्ति पर सफल खिलाड़ियों के लिए पुरस्कार स्वरूप जो दाम की व्यवस्था होती है उसे ही सांझर दाम कहा जाता है, दो रूप मिलते हैं- 1) तुवे व 2) ठुठी।

गड़ी व दूध-भात

खेलों में गड़ी व दूध-भात शब्द का भी प्रचलन मिलता है। गड़ी मतलब खिलाड़ी या साथी होता है। दूध-भात से तात्पर्य है अयोग्य या अनुभवहीन खिलाड़ी, उसके द्वारा की गयी गलती पर ध्यान नहीं दिया जाता। यदि वह खेल उचित खेलता है तो उसका सम्मान किया जाता है। ये खिलाड़ी सिर्फ दाम लेता है, दूध-भात के माध्यम से छोटे या अयोग्य बच्चे बड़ों के साथ खेलकर अनुभव प्राप्त करते हुए पारंगत हो जाते हैं।

1.गिल्ली डंडा 

इसके लिए मैदान की आवश्यकता पड़ती है। मैदान के अभाव में चौक या चौड़ी गली में भी खेला जाता है। घर में उपलब्ध लकड़ी से तीन-चार इंच का टुकड़ा काटकर नुकीला किया जाता हैं यह गिल्ली हुई और लकड़ी का ही तीन-चार फुट का डंडा तैयार कर इस खेल को खेलते है। गिल्ली का खेल एकल और दलीय दोनों आधार पर होता है। गिल्ली खेलने के लिए दलीय आधार पर गड़ी बांटे जाते है। इसमें दो लड़के दो दल के अलग-अलग मुखिया होते है। शेष बच्चे जोड़ी में गड़ी बनकर दो दलों में विभक्त हो जाते है। गिल्ली से खेले जाने वाले खेलो1.छर्रा गिल्ली 2. दलीय गिल्ली 3. दउड़ गिल्ली 4. चिपा गिल्ली 5. बनउल गिल्ली 6. झोंकउल गिल्ली

Chhattisgarh ke Khel Gilli Danda
Chhattisgarh ke Khel Gilli Danda

2.बांटी

बांटी दो तरह की होती है। कॉच की बांटी जिसे कंचा कहा जाता है। चीनी मिट्टी की बांटी जिसे चिकनाकड़ी कहा जाता है बांटी बाजार या दुकान में सहज रूप से सस्ती मिल जाती है। जो बांटी खरीदना नहीं चाहते वे बीही (जाम) के सूखे फल, जिसे पोंकी कहा जाता है, से खेलते है। बांटी मनोरंजन के साथ-साथ जीत हार का खेल है। इसमें जीत होने पर बांटी मिलती है। बांटी खेलने के भी कई प्रकार है। 1. कच्ची-पक्की 2. गिनौला 3. बेंदा बाटी, 4. कोत-कोत 5. जितौला बांटी

Chhattisgarh ka Khel Bati
Chhattisgarh ka Khel Bati

3.भौरा:-

बच्चे भौरा गांव के बढ़ई के पास बनवा खरीद लाते हैं। खरीदा गया भौरा सुंदर और सजीला होता है। इसे बेलाती (विलायती) भाँरा भी कहते है। यह लकड़ी से बना जिसमें लोहे की कील (धुरी) लगी होती है, जिसे बच्चे आरी कहते है। इसे रस्सवी (नेती) की सहायता से चलाया जाता है। भौरा को भी खेने के अपने ढंग है।

1. सदा, 2. छा भौंरा पंचगेदिया भौरा को लट्टू कहा जाता है । बाजार में प्लास्टिक का भी भाँरा मिलाता है। भाँरा घुमने पर भ्रमर की तरह भुन्न-भुन्न की आवाज करता है।। सावन म लोर-लोर, भादो मे झोर-झोर रायझूम झूम बांस बान, हंसा रे करेकला पान सपिली म बेलपान, लठ्ठर जा रे भौरा भुन्नर जा रे भौंरा…..

4.गोटा

गोटा में लड़कियां पत्थर के छोटे-छोटे गोल टुकड़ो को लेकर सखी सहेलियों के साथ मिलकर फुरसत के समय खेलती है। संतुलन और तेज दृष्टि की आवश्यकता होती है। गोटा की संख्या 5 से 7 होती है। इसे खेलने के चरण है। 1. मरौला 2.पंच गोटिया, 3. सत गोटिय सतगोटिया में और भी चरण शामिल है। जिनमें एकली, दकिली, तिकली, चकली, पंचली छपकुलदार घोटउल, छेरी ओइलउल आदि है।

5.चुड़ी

लोक सदैव में सृजनशील रहा हैं वह अपने आस-पास की बेकार वस्तुओं को उपयोगी बनाकर उपयोग कर लेता है। बच्चियां घर में बेकार टुटी-फुटी चुड़ियों से खेल – खेलती हैं। इसे दो तरह से खेला जाता है।

चूड़ी बिनउल- इसमें चूड़ियों के टुकड़ों को हाथ से उछालकर हथेली के ऊपरी भाग में रखते है। फिर उपरी भाग रखते है। फिर उंगली के सहारे जमीन पर गिरी चूड़ियों को बिनते है। यह ध्यान रखा जाता है। कि हथेली से उपरी भाग की चूड़ी न गिरे।

चुड़ी लुकउल- चूड़ी लुकउल में एक चूड़ी को धूल में छिपा कर धूल को लम्बा रखा जाता है। फिर उसे जितने खिलाड़ी है। उतने भाग काट दिया जाता हैं। खिलाड़ी अपनी पसंद से धूल के भाग को लेता है। यह क्रम बार-बार दुहरबिल्लस

6.बिल्लस

लड़कियों का प्रिय खेल है। इसमें लड़कियां खपरैल के टुकड़े या चपटे पत्थर को रखकर खेलती है। इसके लिए जमीन या फर्श पर तीन -तीन खंड समानांतर ढ़ंग से खींचे जाते है। यह एकल और दलीय दोनों ही ढ़ंग से खेला जाता है। आमलेट, चाकलेट बोलकर घर पर पकाया जाता है।

7.लाठी सुरौला

लाठी सुरौला बड़ा मनोरंजक खेल है। इसे बच्चे अक्सर दईहान में सुबह के समय जब गाय हंकालने के लिए निकते है। तब खेलते है। पहले सभी लोग अपनी-अपनी लाही को एक निश्चित जगह हसे सुराते है। जिसकी लाठी सबसे कम दूरी तक जाती है। वह दाम देता हैं इसमें कुछ नियम बनाये जाते हैक् जैसे ईंट, पत्थर या खपरैल पर लाठी रखना मान्य होगा।

8.गोटी खेल

नौ गोटिया:- नौ गोटिया के लिए जमीन पर एक आकृति बनाई जाती है। इसमें दो खिलाड़ी जिनके पास नौ नौ गोटियां होती है। परस्पर खाली घर देखकर चाल-चलकर एक दूसरे को गोली को मारते है। इस खेल के लिए बौध्दिक चतुरता आवश्यक है।

तिरि पासा:- तिरिपास भी बौध्दिक चातुर्य का खेल है। इसमें चार खिलाड़ी होते है। जिनके पास अलग अलग प्रकार की चार-चार गोटी या चूड़ी होती है। इसमें कौड़ीया इमली बीज को फोड़कर पासा बनाया जाता है इसमें काना, दुआ, तिरि, पांच अट्ठा व पच्चीस का दॉव आता है। पासा ढालन पर जिनता दांव आयेगा खिलाड़ी अपनी गोटियों का क्रमशः उतने घर आगे बढ़ायेगा। जिसकी सभी गोटियां मध्य घर में पहुंच जायेंगी वह पुक जायेगा।

9.डंडा पचरंगा

इसे बरगद के पेड़ पर खेला जाता है। क्योंकि बरगद की डालियां दूर-दूर तक फैली होती है। और उतरने चढ़ने के लिए सुगम होती है। फत्ता फोड़ने के बाद जिस बच्चे पर दाम आता है, उसके लिए डंडा फेंककर उसे लाने कहा जाता है। तब तक अन्य बच्चे पेड़ पर चढ़ जाते है। दाम देने वाला बच्च डंडा लाने के बाद बरगद पर चढ़े बच्चों को छुने का प्रयास करता है। इधर कोई बच्चा नीचे उतर कर सबको डंडा छुआ देता हैं यह क्रम तब तक चलता है जब तक दाम देने वाला किसी को छू न ले।

 

गीतिक खेल

छत्तीसगढ़ी पारम्परिक लोक खेलों में बहुत सारे खेल ऐसे ही है, जिन्हें गीत गाकर खेला जाता है। ये खेल इस प्रकार है।

1.अटकन मटकन दही चटाकन

यह खेल ऐसा खेल है। जिसे बच्चे बूढ़े सभी खेलते हैं। अक्सर इसे रोते हुए बच्चे का मन बहलाने के लिए खेला जाता हैं इसमें सभी बच्चे अपनी-अपनी हथेलियों को फैलाकर उल्टा रखते हैं। तब एक बच्चा सबके हाथों पर अपनी अंगुली रखते हुए गीत गाता है।

अटकन-मटकन दही चटाकन लऊहा लाटा बन में कांटा तुहुर तुहुर पानी गिरे

Chhattisgarh ka Khel Atkan Chatkan Dahi chatakan
Chhattisgarh ka Khel Atkan Chatkan Dahi chatakan

2.डांडी पोहा

इस खेल में एक दल रहता है। मैदान में एक खोल खोचा जाता है। दल में से कोई एक लड़का लड़को घेरे के बाहर खड़ा रह जाता है। और बाको सब घो के अन्दर रह जाते हैं। घेरे के बाहर खड़ा लड़का बहुत ही गीत के लय में कहता है।

कुकरूस कूँ-काकर कुकर- राजा दसरथ के

का हे चारा -कनकी कोड़हा

का खेल -डांडी पौहा ,कोन चोर ,गन्नु ।

3.खुड़वा

सामान्यतः कबड्डी का ही खेल है। कबड्डी को छत्तीसगढ़ी में खुड़वा कहा जाता है। फर्क इतना है | कि कबड्डी में कड़े नियम होते हैं, जिनका पालन करना जरूरी होता है। खुडुवा के नियम सामान्य होते हैं। खुडुवा खेलने के लिए गीतों का सहारा लिया जाता है।

खुमरी के आल-पाल, खाले बेटा बीरो पान में चलावंव गोंटी, तोर दाई पोवय रोटी, मैं मारंव मुटका, तोर ददा करे कुटका आमा लगे अमली, बगईचा लागे झोर। उतरत बेंदरा, खोधरा ला टोर राहेर के तीन पान, देखे जाही दिन मान तुआ के तूत के, झपट भूर के खुडूवा के डू डू डू..

4.घानी मुनी घोर दे

एक बार में इसे जितने बच्चे चाहें खेल सकते है। इसमें किसी तरह की सामग्री की जरूरत नहीं होती है। वर्षा के दिनों में बादलों का आवाहन किया जाता है। कि हे बादल दानी अच्छी बारिश करना, ताकि हमारे खेत खार प्यासे न रहें। हमारे गांव और देश को सुख-समुध्दि देनां बच्चे गोल गोल घूमकर गीत गाते है।

5.गोल गोल रानी

अतका अतका पानी, गोल गोल रानी – मुठुवा अतका पानी , गोल गोल रानी -गाड़ी अंतका पानी, घुटना जितना पानी, गोल गोल रानी- कनिहा अतका पानी, गोल गोल रानी – छाती अतका पानी, गोल गोल रानी – टोंटा अतका पानी, गोल गोल रानी गोल रानी म ठठाहूं। – मूड़ अतका पानी, गोल – तारा लगे हे, सचर लगेहे, येती लेजा हूं – बाहरी

6.अजला-बजला

अजला-बजला गीतपूर्ण खेल हैं, जिसमें दो बच्चें अपनी-अपनी हथेलियों को परस्पर विपरीत हथेलियों जैसे दांए से बांए और बांए से दाए टकरा कर गीत गाते है।

अजला, बजला, बावन बजला

तीन के तेरा, चार के करेला

7.चुटिया-मुटिया

यह छुवा-छुवव्वल खेल है बालकों का एकत्रित समूह चित्त-पट्ट या जनावला के माध्यम से दाम देनेवाले के एक हाथ को पैर में रस्सी से बाँध देते हैं । हाथ बाँधने से बालक का शरीर झुक जाता है और पीठ कूबड़ के समान उभर जाती है। इस स्थिति में जब वह छूने के लिए दौड़ता है हाथ में लकड़ी के छोटे-छोटे टुकड़ों का बँधा हुआ एक मुठिया को दाम लेने वाले बच्चों की ओर फेंककर उनमें से किसी एक को छूने का प्रयास करता है। कभी जब वह थककर बैठ जाता है, तब दाम लेने वाले बच्चे उसकी चोटी को स्पर्श करते हुए हास-परिहास करते हुए गीत गाते है

कहां जाथस डोकरी ,महुवां बीने बर

महूं लेगबे का, तोर दाई ददा ला पूँछ के आ

आगेन डोकरी , चल मोला खदैया चढ़ा

हः हः हःडोकरी के मूड मा, कौवां चिरक दिस

8.चोर पुलिस

इसमें छोटे-छोटे बच्चे कभी कोई राजा दरोगा, कोतवाल एवं चोर आदि पात्रों का स्वांग करते हुए चोर पुलिस का खेल खेलते है। इस खेल के लिए कोई एक विषय चुन अभिव्यक्ति गीत के माध्यम से करते है।

9.फुगड़ी

यह मुख्यतः लड़कियों का खेल है। इसे जितनी चाहे संख्या में खिलाड़ी खेल सकते हैं । फुगडी शुरू होने से पहले सभी लड़कियों समूह स्वर में गीत गाती है। तब कुत्रा फू… कुत्रा फू… गोबर दे बछरू गोबर दे ,चारो खूंट ल लीपन दे चारो डेरानी ल बईठन दे,अपन खाथे गूदा गूदाहमला देथे बीजा। के साथ खेल शुरू होता है। लड़कियां एक गति के साथ पैर को उकडूं बैठकर आगे पीछे करती है। जो सबसे ज्यादा समय तक फुगड़ी खेलती है। वही विजयी होती है।

काखर बारी ए राजा के ,काबर आए हवस खीरा टोरे बर ,अभी तो नानकुन हे मयं तो टोरहूँ , दरोगा ला बता हूँ

Chhattisgarh ka Khel Fugdi
Chhattisgarh ka Khel Fugdi

10.पच्चीसा

हागे डार घोसनीन-घोसर घोसर, पानी नइये पसिया पसर पसर, हाड़ा के दातुन कर, गुहू के भोजन कर चीता हाड़ा बिनाथाबे,चित्ताहाड़ा बिनाथाबे।

11.कोबी

चल भईया आवन दे -तबला बजावन दे कनवा हे धोबी कतर दे कोबी

12.पोसम पा भई पोसम पा

इस खेल में दो बच्चे भाई गड़ी बन हाथों को जोड़कर दरवाजा सदृश्य आकार बनाते हैं। एक बच्चा राजा बनता है। शेष बच्चे उसके पीछे चलते है। बच्चे गाते है- ‘पोसम पा भई पोसम पा’ बच्चों जब दरवाजा से निकलते रहते हैं वब माईगड़ी कहते है- सवा रूपए की घड़ी चोराय अब तो जेल में जाना पड़ेगा।

इस प्रकार कोई न कोई बच्चा पकड़ा जाता है। दोनों माई गड़ी उससे पूछते है ‘आमा खाबे के अमली’ फंसा हुआ बच्चा एक नाम आमा या अमली बोलता है इस तरह जिसका नाम बोलता है इसकी ओर हो जाता है। इस तरह यह खेल विभिन्न चरणों में आगे बढ़ता है।

13.अती-पत्ती

किसी पेड़ की पत्ती का उपयोग करते है। दाम देने वाले बच्चे से कहा जाता है कि:-

अत्ती -पत्ती माद गदती तुम लाओ आमा के पत्ती

इस तरह दाम देने वाला लड़का बरगद के नीचे धूल या पत्थर में आमा की पत्ती लाकर रखता है फिर यह पेड़ पर चढ़े बच्चों को छूने के लिए दौड़ता है। यदि किसी बच्चे को छू लिया तो वह दाम देगा और उससे उपरोक्त गीत गाकर मंगाई जाएगी। खेल आगे बढ़ता जाता है।

14.नदी पहाड़

चांदनी रात में यह खेल खेलते समय घर के किनारे बने हुए चबूतरो को पहाड़ तथा नीचे जमीन को नदी मानकर खेला जाता है। नदी में आने वाले बच्चे गीत गाते है:- तोर नदी में डुबक डैया, छू ले रे मोर छोटू भईया। जो खिलाड़ी दाम देता है। वह नदी में आने वाले खिलाड़ियो को छूने की कोशिश करता है। जिस बच्चे को वह छू लेता है, उसके स्थान पर वह दाम देता है। इस प्रकार यह खेल आगे बढ़ता है। इसी | प्रकार का खेल अंधियारी-अंजोरी और परी : पखना का भी खेल है।

15.अंधरी -चपटी

इसमें कई बच्चे एक साथ खेल सकते है। दाम देने वाले बच्चे की आंखों में कपड़ा बांध दिया जाता है। तब अन्य बच्चों को वह छूने का प्रयास करता है। अन्य बच्चे पट्टी बंधे बच्चे को सिर पर हल्की चोट देते है। इस बीच पट्टी बंधा बच्चा किसी को छू लेता है तब वह बच्चा दाम देने लगता है। इस तरह खेल आगे चलता रहता है।

16.लंगड़ी

लंगड़ी खेल के लिए सभी बच्चे अपने अपने घुटनों को मोड़कर अपनी हथेलियों को घुटनों पर रख लेते हैं । रा तत्पश्चात बीच में एक बच्चा उठकर आता है और कहता हैं-चुन चुन मुंदरी ,गधा ले ओ सभी बच्चे एक अन्य बच्चे को सामने खड़ा कर कहते है-एखर मूड़ी गांथ दे ऐसा कहने के साथ चुन चुन मुंदरी कहने वाले की आँख बंद करते ही चुपचाप एक बच्चा उठकर के सिर को छूकर चला जाता है।

कौन है जो तुम्हारे सिर को छूकर गया है। जो बच्चा नाम नहीं बता पाता, उसे छु-छुवव्वल लंगड़ी घोड़ी बनकर एक पैर से कूदते हुए किसी एक बच्चे को छूना पड़ता है इस समय दाम लेने वाले सभी बच्चे लंगड़ी छूने वाले को सम्बोधित कर गाते है-मोर चिरइ के गोड़ टूटगे ,कहाँ लेगों सरोये बर बने रिहिस तब कोनो नई सकीस हरोये बर लंगड़ी छूने वाला बच्चा जब किसी दाम लेने वाले बच्चे को छू लेता है, तब उसे दाम देना पड़ताहै।

17.चिंगरी बुर-बुच्ची

यह भी गोल घेरे में बैठकर बच्चे अपनी- अपनी अँगुलियों को जमीन पर रखकर निम्नानुसार शब्द लय-ताल में बोलते है: दसतो पिंजो काल कबूतर ढोल उपरोक्त अंतिम शब्द ढोल जिसकी अँगुली मे आकर समाप्त होता है, क्रमानुसार वह अपना हाथ उठाता है। अंत में जो बच्चा बच जाता है उसे अपने दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार की मे मुद्रा बारी-बारी से सबके सामने जाना पड़ता है। इस अवस्था में प्रत्येक बच्चा बोलता है:

चिंगरी बुर-बच्ची मानबती के दाई 

मानबती के दाई मुर्रा खाबे के लाई

उपरोक्त खेलों के अतिरिक्त और खेल है जैसे कोन्टउल, , हुर्रा बाघ, सराक गड़भल, पिट्ठल,भटकऊल, चुन-चुन मलिया,चिकि-चिकि बाम्बे, इल्लर-डिल्लर झूलना झूल, संखली घाम-छांव रेस टीप, मटकी फोर, रस्सा खीमच, सक्की छलांग, फिलफिली, सगा पहुना, राजा मंत्री आदि प्रमुख है।

18.डंडा कुलकुल खेल 

Chhattisgarh ka Khel Danda Kulakul Khel
Chhattisgarh ka Khel Danda Kulakul Khel

19.बीता कूदआउल- घोडा कूदआउल –

Chhattisgarh ka Khel Bita Kudaul Ghoda Kudaul
Chhattisgarh ka Khel Bita Kudaul Ghoda Kudaul

परीक्षोपयोगी महत्वपूर्ण तथ्य : लोक कला

  • इस राज्य की गाथा सीताराम नायक का सीताराम एक बंजारा था.
  • सुरूज बाई खांडे इस राज्य के भरथरी की प्रमुख कलाकार थी।
  • छत्तीसगढ़ राज्य के परम्परागत गीतकार जनजाति परधान गोंड राजाओं की मिथक कथा, लिंगोपाटा आदि का गायन करते हैं।
  • छत्तीसगढ़ राज्य भरथरी में रानी पिंगला व राजा भरथरी के करूण कथा को गीत के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है।
  • पंडवानी महाभारत कथा पर आधारित एक लोकगायन है, भीम इसके नायक हैं। छत्तीसगढ़ राज्य का पंडवानी लोकगीत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध है, इसका मुख्य श्रेय तीजन बाई को जाता है, वे कापालिक शैली में गाती हैं।
  • तीजन बाई को 1987 में पद्म श्री, 2003 में पद्म भूषण तथा 2019 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
  • पण्डवानी गाथा गीत गाने वाली प्रमुख जनजातियाँ परजा एवं परधान हैं.
  • पूनाराम निषाद पंडवानी के वेदमती शैली के कलाकार रहे हैं।
  • छत्तीसगढ़ में गाया जाने वाला मंगरोहन गीत एक प्रकार का संस्कार गीत है।
  • छत्तीसगढ़ में वैवाहिक संस्कार गीतों का सही क्रम है- चूलमाटी, तेलचघी, परघैनी, भड़ैनी, भांवर, टिकावन, विदाई।
  • छत्तीसगढ़ के प्रणय गीत ददरिया को प्रेम गीत के रूप में जाना जाता है। इसमें श्रृंगार रस की प्रधानता होती है।
  • पठौनी गीत छत्तीसगढ़ में गौना के समय गाये जाने वाला लोक गीत है।
  • वेदमती तथा कापालिक छत्तीसगढ़ी लोक गायन पंडवानी की दो शैलियां हैं। वेदमती में शास्त्र सम्मत गायकी की जाती है सबल सिंह चौहान की दोहा चौपाई महाभारत इसका प्रमुख आधार है, जबकि कापालिक शैली में कथा कलाकार के स्मृति में विद्यमान होती है।
  • श्री कृष्ण की लीलाओं पर आधारित रहस को छत्तीसगढ़ राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक परम्परा का प्रतीक माना जाता है।
  • छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध नाट्य चंदैनी गोंदा में रवान यादव ने पाश्र्व संगीत दिया था।
  • दाऊ दुलार सिंह मंदरा जी को नाचा का भीष्म पितामह कहा जाता है, इन्होंने रवेली साज नामक संस्था का गठन किया था।
  • झीरलीटी, ककसार, गौर आदि बस्तर की नृत्य शैली हैं.
  • थापटी तथा ढांढल कोरकू जनजाति के द्वारा किया जाने वाला नृत्य है।
  • रायगढ़ घराना कत्थक नृत्य शैली के लिए जाना जाता है। राजा चक्रधर सिंह इसके प्रमुख कलाकार रहे हैं।
  • बस्तर क्षेत्र को दंडामी माड़िया जनजाति द्वारा जात्रा पर्व के दौरान गौर नामक शिकार नृत्य किया जाता है। जिसमें गौर के शिकार को बताया जाता है।
  • सतनाम पंथ के प्रमुख नृत्य पंथी में जैतखंभ की स्थापना कर चारों तरफ पिरामिड बनाते हुए नृत्य किया जाता है। मांदर तथा झांझ इसके प्रमुख वाद्ययंत्र है।
  • इस राज्य के जनजातियों द्वारा करम की प्रधानता पर आधारित करमा नृत्य किया जाता है, जो कृषि परम्परा से संबंधित है।
  • अबूझमाड़िया जनजाति द्वारा अपने आदि देव को प्रसन्न करने के लिए वर्ष में एक बार ककसार पूजा का आयोजन एवं इस अवसर पर ककसार नृत्य किया जाता है।
  • कोलिन जाति की महिलाएं धान से भरी टोकरी के ऊपर सुआ या तोते की मूर्ति रख चारों ओर परिक्रमा करते हुऐ सुआ नृत्य करती हैं।
  • खुद को भगवान कृष्ण का वंशज मानने वाला यदुवंशी कुल राऊत नाचा लोक नृत्य करते हैं।
  • मुड़िया घोटुल में सदस्यों के द्वारा मांदरी नृत्य किया जाता है।
  • गौर मारिया नृत्य विवाह उत्सव पर किया जाता है।
  • पंथी नृत्य छत्तीसगढ़ में सतनामी समुदाय के लोगों द्वारा किया जाने वाला नृत्य है।
  • जीवन में कर्म की प्रधानता को बताने वाला करमा नृत्य की इष्ट करम देवी है।
  • ममता चंद्राकर छत्तीसगढ़ की प्रसिद्ध लोक गायिका है 2016 में इन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।
  • चक्रधर सिंह रायगढ़ के राजा थे जिन्होंने कत्थक पर अनेक ग्रंथ लिखे। ये एक दक्ष तबला वादक थे तथा इन्हें 1939 में संगीत सम्राट की उपाधि दी गई।
  • छत्तीसगढ़ में कोलिन जाति की महिलाओं द्वारा फसल पकने के उपरांत दीवाली के करीब सुआ नृत्य करने की परंपरा है।
  • पंथी नृत्य सतनाम पंथ से संबंधित है, इसमें जैत खंभ की स्थापना कर चारों तरफ पिरामिड बनाते हुए नृत्य किया जाता है देवदास बंजारे इसके प्रमुख कलाकार थे।
  • धनकुल एक वाद्ययंत्र है जिसका निर्माण हांड़ी, सूपा, धनुष से किया जाता है। इसमें बांस की खपच्ची का प्रयोग भी किया जाता है।
  • छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में निवास करने वाले माड़िया मुरिया जनजातियों द्वारा माओपाटा नृत्य किया जाता है, जो मूलतः एक शिकार नृत्य है।
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Rajveer Singh
Rajveer Singh

Hello my subscribers my name is Rajveer Singh and I am 30year old and yes I am a student, and I have completed the Bachlore in arts, as well as Masters in arts and yes I am a currently a Internet blogger and a techminded boy and preparing for PSC in chhattisgarh ,India. I am the man who want to spread the knowledge of whole chhattisgarh to all the Chhattisgarh people.

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