कलचुरी वंश छत्तीसगढ़ | Kalchuri Vansh Chhattisgarh
कल्चुरी वंश ( रतनपुर शाखा )
(1000 ई. से 1741 ई. तक)
- क्ल्चुरी वंश ने भारत में 550 से 1741 तक कहीं न कहीं शासन किया था।
- इतने लंबे समय तक शासन करने वाला भारत का पहला वंश है।
- पृथ्वीराज रासो में इसका वर्णन है।
- छ.ग. का कल्चुरी वंश त्रिपुरी (जबलपुर) के कल्चुरियों का ही अंश था।
- कल्चुरियों का मूल पुरूष कृष्णराज थे।
- त्रिपुरी के कल्चुरियों का संस्थापक वामराज देव थे।
- स्थायी रूप से शासन स्थापित किया कोकल्य देव ने
- कोकल्य देव के 18 बेटों में से एक शंकरगण मुग्यतुंग ने बाण वंश को हराया था।
- लेकिन सोमवंश ने पुनः अधिकार जमा लिया।
- तब लहुरी शाखा के त्रिपुरी नरेश कलिंगराज ने अंतिम रूप से जीता था।
कलिंगराज (1000-1020) :-
- इसने अपनी राजधानी तुम्माण (कोरबा) को बनाया था।
- इसे कल्चुरियों का वास्तविक संस्थापक कहते हैं।
- अलबरूनी द्वारा वर्णित शासक हैं।
- इसने चैतुरगढ़ के महिषासुर मर्दिनी मंदिर का निर्माण करवाया था।
- चैतुरगढ़ (कोरबा) को अभेद किला कहते है।
- चैतुरगढ़ को छ.ग. का काश्मीर कहते है।
कमलराज (1020-1045) :-
- कमलराज व कलिंगराज ने तुम्माण से शासन किया था।
राजा रत्नदेव (1045-1065 ) :-
- 1050 में रतनपुर शहर बसाया और राजधानी बनाया।
- इसने रतनपुर में महामाया मंदिर का निर्माण करवाया था।
- इसने लाफागढ़ (कोरबा) में महिषासुर मर्दिनी की मूर्ति रखवाया था।
- तब से लाफागढ़ को छ.ग. का चित्तौड़गढ़ कहते है।
- रतनपुर “राज्य” का नामकरण अबुल फजल ने किया था।
- इस समय रतनपुर के वैभव को देखकर कुबेरपुर की उपमा दी गई।
- रतनपुर को तलाबों की नगरी कहते है।
- रतनपुर, हीरापुर, खल्लारी, तीनों शहर को मृतिकागढ़ कहते है।
- रत्नदेव का विवाह नोनल्ला से हुई थी।
पृथ्वीदेव प्रथम (1065-1095) :-
- इसने सकल कौसलाधिपति उपाधि धारण किया था।
- आमोदा ताम्रपत्र के अनुसार 21 हजार गाँवों का स्वामी था।
- रतनपुर के विशाल तालाब का निर्माण करवाया था।
जाजल्लदेव प्रथम (1095-1120) :-
- जाजल्लदेव प्रथम ने कल्चुरियों को त्रिपुरी से अलग किया।
- अपने नाम की स्वर्ण मुद्राएँ चलवायीं।
- सिक्कों में श्रीमद जाजल्ल व गजसार दूल अंकित करवाया।
- गजसार दूल की उपाधि धारण किया (गजसारदूल हाथियों का शिकारी)
- इसने जांजगीर शहर बसाया व विष्णु मंदिर बनवाया।
- पाली के शिव मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।
- इसने छिंदकनाग वंशी राजा सोमेश्वर देव को पराजित किया था।
रत्नदेव द्वितीय (1120-1135) :-
- गंग वंशीय राजा अनंत वर्मन चोडगंग को युद्ध में पराजित किया था।
पृथ्वीदेव द्वितीय (1135-1165) :-
- कल्चुरियों में सर्वाधिक अभिलेख इसी का हैं।
- चांदी के सबसे छोटे सिक्के जारी किये थे।
- इसके सामंत जगतपाल द्वारा राजीव लोचन मंदिर का जीर्णोद्धार किया था।
जाजल्लदेव द्वितीय (1165-1168) :-
- इसके सामंत, उल्हण ने शिवरीनारायण में चंद्रचूड मंदिर का निर्माण करवाया था।
जगदेव (1168-1178) :-
रत्नदेव तृतीय (1178-1198) :-
- इसका मंत्री उड़ीसा का ब्राम्हण गंगाधर राव था।
- गंगाधर राव ने खरौद के लखनेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।
- गंगाधर राव ने रतनपुर के एक वीरा देवी का मंदिर बनवाया था।
प्रतापमल्ल (1198-1222) :-
- इसने ताँबे के सिक्के चलाये थे।
- जिसमें सिंह व कटार आकृति अंकित करायी।
- इसके दो शक्तिशाली सामंत थे 1. जसराज 2. यशोराज
अंधकार युग
(1222 ई. से 1480 ई. तक)
इस बीच की कोई लिखित जानकारी उपलब्ध नहीं है, इसलिए इसे कल्चुरियों का अंधकार युग कहते हैं।
बाहरेन्द्र साय (1480-1525) :-
- राजधानी रतनपुर से छुरी कोसगई ले गया।
- इसने कोसगई माता का मंदिर बनवाया था।
- चैतुरगढ़ व लाफागढ़ का निर्माण किया था।
कल्याण साय (1544-1581) :-
- अकबर के समकालीन था।
- अकबर के दरबार में 8 वर्षो तक रहा।
- राजस्व की जमाबंदी प्रणाली शुरू की थी।
- टोडरमल ने कल्याण साय से जमाबंदी प्रणाली सीखा।
- इसी जमाबंदी प्रणाली के आधार पर ब्रिटिश अधिकारी चिस्म (1868 में छत्तीसगढ़ को 36 गढ़ो में बाँटा।
- अकबर का प्रिय राजा था कल्याण साय।
- जहाँगीर की आत्मकथा में कल्याण साय का उल्लेख है
तखत सिंह :-
- औरंगजेब का समकालीन था।
- तखतपुर शहर बसाया।
राजसिंह (1746 ई.) :-
- दरबारी कवि गोपाल मिश्र, रचना > खूब तमाशा ।
- इस रचना में औरंगजेब के शासन की आलोचना की गई है ।
- रतनपुर में बादल महल का निर्माण करवाया था।
सरदार सिंह (1712-1732) :-
- राजसिंह का चाचा था।
रघुनाथ सिंह (1732-1741) :-
- अंतिम कल्चुरी शासक।
- 1741 में भोंसला सेनापति भास्कर पंत ने छ.ग. में आक्रमण कर (महाराष्ट्र) कल्चुरी वंश को समाप्त कर दिया।
रघुनाथ सिंह (1741-1745) :-
- मराठो के अधीन शासक
मोहन सिंह (1745-1758) :-
- मराठों के अधीन अंतिम कल्चुरी शासक
कल्चुरी वंश ( रायपुर शाखा या लहुरी शाखा )
संस्थापक > केशव देव प्रथम राजा > रामचन्द्रदेव प्रथम राजधानी > खल्लवाटिका (खल्लारी) द्वितीय राजधानी > रायपुर |
प्रसिद्ध राजाकेशव देव ⇓ लक्ष्मीदेव (1300-1340) ⇓ सिंघण देव (1340-1380) ⇓ रामचन्द्र देव (1380-1400) ⇓ ब्रम्हदेव (1400-1420) ⇓ केशव देव-II (1420-1438) ⇓ भुनेश्वर देव (1438-1468) ⇓ मानसिंह देव (1468-1478) ⇓ संतोष सिंह देव (1478-1498) ⇓ सूरत सिंह देव (1498-1518) ⇓ सैनसिंह देव (1518-1528) ⇓ चामुण्डा देव (1528-1563) ⇓ वंशीसिंह देव (1563-1582) ⇓ धनसिंह देव (1582-1604) ⇓ जैतसिंह देव (1604-1615) ⇓ फत्तेसिंह देव (1615-1636) ⇓ याद सिंह देव (1636-1650) ⇓ सोमदत्त देव (1650-1663) ⇓ बलदेव देव (1663-1682) ⇓ उमेद देव (1682-1705) ⇓ बनवीर देव (1705-1741) ⇓ अमरसिंह देव (1741-1753) अंतिम शासक |
सिंघन देव :-
- इसने 18 गढ़ो को जीता था।
रामचन्द्र देव :-
- इसने रायपुर शहर बसाया था।
- इसे लहुरी शाखा का प्रथम शासक मानते है।
ब्रम्हदेव :-
- इन्होंने 1409 में रायपुर को राजधानी बनाया था।
- वल्लाभाचार्य के स्मृति में रायपुर में दूधाधारी मठ का निर्माण करवाया था।
- इसके सामंत देवपाल नामक मोची ने 1415 में खल्लारी देवी माँ की मंदिर का निर्माण करवाया था।
- कल्चुरियों ने नारायणपुर में सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था।
मुख्य बिंदुकुल देवी > गजलक्ष्मी उपासक > शिव जी के पंचकुल > समुह या समिति का नाम । >जिसमें पाँच या दस सदस्य होते थे। ताम्रपत्र > ॐ नमः शिवाय से प्रारंभ होता था। |
कल्चुरियों की प्रशासनिक व्यवस्थाकल्चुरी प्रशासन का अधिक विस्तार था। प्रशासन के विभागों का दायित्व अमात्य मण्डल के हाथों में होता था। ग्राम > शासन की न्यूनतम इकाई। माण्डलिक > मण्डल का अधिकारी। महामण्डलेश्वर, > 1 लाख गांवों का स्वामी। गौटिया > गाँव का राजस्व प्रमुख । दाऊ > बाहरो का राजस्व प्रमुख । (दाऊ को तालुकाधिपति भी कहते है ) दीवान >गढ़ का राजस्व प्रमुख एक गढ़ में 84 गाँव होते थे। 1 गढ़ = 7 बारहो = 84 गाँव। 1 बारहो = 12 गाँव । |
मंत्री मण्डलमंत्रियों के समुह को अमात्य मण्डल कहा जाता है। अमात्य मण्डल में 8 मंत्री होते थे। युवराज > होने वाला राजा । महामंत्री > सर्व प्रमुख अधिकारी। महामात्य > राजा का सलाहकार । महासंधि विग्रहक > विदेश मंत्री । महापुरोहित > राजगुरू । जमाबंधी मंत्री > राजस्व मंत्री। महा प्रतिहार > राजा का अंग रक्षक। महा प्रमातृ > राजस्व प्रबंधक। |
अधिकारीदाण्डिक >न्याय अधिकारी। धर्म लेखी > धर्म संबंधी कार्य (दशमूली भी कहते हैं) महा पीलू पति > हस्ति सेना अधिकारी। महाष्व साधनिक > अश्व सेना अधिकारी चोर द्वारणिक/दुष्ट साधनिक > पुलिस। गनिका गनिक > यातायात अधिकारी। ग्राम कुट / भोटिक > ग्राम प्रमुख । शोल्किक > कर वसुली करने वाला। वात्सल्य > बनिया का काम करने वाला। महत्तर > पंचकुल का सदस्य (समिति) महाकोट्टपाल > किले (दुर्ग) का रक्षक। पुर प्रधान > नगर प्रमुख । भट्ट > शांति व्यवस्था अधिकारी। |
करयुगा > सब्जी मंडी का कर है (परमिट) कलाली > शराब दुकान से लिया जाता है। आय का साधन > नमक कर, खानकर, नदी घाट कर। हाथी-घोड़े की बिक्री > रतनपुर पशु बाजार से प्राप्त कर घोड़े की बिक्री का > 2 पौर (चांदी का छोटा सिक्का) हाथी की बिक्री का > 4 पौर। |
मुद्रा4 कौड़ी = 1 गण्डा 5 गुण्डा = 1 कोरी (20 रू. को एक कोरी कहते है) 16 कोरी = 1 दोगानी 11 दोगानी = 1 रूपया अर्थात :- 20 कौड़ी = 1 कोरी 80 गण्डा = 1 दोगानी 320 कौड़ी = 1 दोगानी 3520 कौड़ी = 1 रूपया पौर = चांदी का सिक्का (सिक्का में लक्ष्मी की आकृति होती थी) 2 युगा = 1 पौर |
मापन5 सेरी = 1 पसेरी 8 पसेरी = 1 मन अर्थात 40 सेरी = 1 मन इस समाया पैली , काठा , पऊवा भी चलता था |
सामाजिक व शिक्षा व्यवस्था:-
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Ok
aap bataya kya galat hai usme usko update kr diya jayega
बिलासपुर वैभव और रायपुर रश्मि के नाम से दो गज़ेटियर ब्रिटिश काल में प्रकाशित हुये थे वो आप अपने ब्लॉग में प्रकाशित कर दे तो भारी कृपा होगी।
ji sidhant ji jarura
ji jarur