राजिम प्रयाग छत्तीसगढ़ | Rajim Prayag Chhattisgarh
1.राजिम कुम्भ को प्रति वर्ष होने वाले कुम्भ के नाम से भी जाना जाता है, किंतु अब वर्ष 2019 से छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की शासन आते ही, सरकार ने पुनः राजिम पुन्नी मेला महोत्सव मनाने का निर्णय लिया है।
2.कुछ वर्ष पहले यह एक मेले का स्वरुप था यहाँ प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक पंद्रह दिनों का मेला लगता है राजिम तीन नदियों का संगम है इसलिए इसे त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है,
3.यह मुख्य रूप से तीन नदिया बहती है, जिनके नाम क्रमश महानदी, पैरी नदी तथा सोढुर नदी है, राजिम तीन नदियों का संगम स्थल है, संगम स्थल पर कुलेश्वर महादेव जी विराजमान है,
4.वर्ष 2001 से राजिम मेले को राजीव लोचन महोत्सव के रूप में मनाया जाता था, 2005 से इसे कुम्भ के रूप में मनाया जाता रहा था, और अब 2019 से राजिम पुन्नी मेला महोत्सव मनाया जाने लगा ।
5.यह आयोजन छत्तीसगढ़ शासन संस्कृति विभाग, एवम स्थानीय आयोजन समिति के सहयोग से होता है,मेला की शुरुआत कल्पवाश से होती है पखवाड़े भर पहले से श्रद्धालु पंचकोशी यात्रा प्रारंभ कर देते है
6.पंचकोशी यात्रा में श्रद्धालु पटेश्वर, फिंगेश्वर, ब्रम्हनेश्वर, कोपेश्वर तथा चम्पेश्वर नाथ के पैदल भ्रमण कर दर्शन करते है तथा धुनी रमाते है, 101 कि॰मी॰ की यात्रा का समापन होता है और माघ पूर्णिमा से कुम्भ का आगाज होता है।
7.राजिम कुम्भ में विभिन्न जगहों से हजारो साधू संतो का आगमन होता है, प्रतिवर्ष हजारो के संख्या में नागा साधू, संत आदि आते है, तथा शाही स्नान तथा संत समागम में भाग लेते है,
8.प्रतिवर्ष होने वाले इस महाकुम्भ में विभिन्न राज्यों से लाखो की संख्या में लोग आते है,और भगवान श्री राजीव लोचन, तथा श्री कुलेश्वर नाथ महादेव जी के दर्शन करते है, और अपना जीवन धन्य मानते है,
9.लोगो में मान्यता है की भनवान जगन्नाथपुरी जी की यात्रा तब तक पूरी नही मानी जाती जब तक भगवान श्री राजीव लोचन तथा श्री कुलेश्वर नाथ के दर्शन नहीं कर लिए जाते,
10. राजिम कुम्भ का अंचल में अपना एक विशेष महत्व है।
सोंदूर-पैरी-महानदी संगम के पूर्व में बसा राजिम अत्यन्त प्राचीन समय से छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख सांस्कृतिक केन्द्र रहा है दक्षिण कोसल के नाम से प्रख्यात क्षेत्र प्राचीन सभ्यता, संस्कृति एवं कला की अमूल्य निधि संजोये इतिहासकारों, पुरातत्वविदों और कलानुरागियों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। रायपुर से दक्षिण पूर्व की दिशा में 45 कि.मी. की दूरी पर, देवभोग जाने वाली सड़क पर यह स्थित है। ( Rajim Chhattisgarh : Prayag of Chhattisgarh Rajim )
श्राद्ध, दर्पण, पर्वस्नान, दान आदि धार्मिक कृत्यों के लिए इसकी सार्वजनिक महत्ता आंचलिक लोगों की परम्परागत आस्था, श्रद्धा एवं विश्वास की स्वाभाविक परिणति के रूप में सद्यः प्रवाहमान है। क्षेत्रीय लोग इस संगम को प्रयाग-संगम के समान ही पवित्र मानते हैं।
इनका विश्वास है कि यहां स्नान करने मात्र से मनुष्य के समस्त कल्मष नष्ट हो जाते हैं। तथा मृत्युपरांत वह विष्णुलोक प्राप्त करता है। यहां का सबसे बड़ा पर्व महाशिवरात्रि है। पर्वायोजन माघ मास की पूर्णिमा से प्रारम्भ होकर फाल्गुन मास की महाशिवरात्रि (कृष्णपक्ष-त्रयोदशी) तक चलता है |
इस अवसर पर छत्तीसगढ़ के कोने-कोने से सहस्त्रों यात्री संगम-स्नान करने तथा भगवान राजीवलोचन एवं कुलेश्वर महादेव के दर्शन करने आते हैं| क्षेत्रीय लोगों की मान्यता है कि जगननाथपुरी की यात्रा उस समय तक संपूर्ण नही होती, जब तक राजिम की यात्रा नहीं कर लेता।
राजिम से लगे हुए पितईबंद नामक ग्राम से प्राप्त मुद्रानिधि द्वारा पहली बार विक्रमादित्य नामक सर्वथा अज्ञात नरेश की ऐतिहासिकता प्रकाश मे आई है। साथ ही महेन्द्रादित्य के साथ उसके पारिवारिक संबंध का होना भी प्रमाणित हो सका है। ( Rajim Chhattisgarh : Prayag of Chhattisgarh Rajim )
महाशिव तीवरदेव का राजिम से प्राप्त ताम्रपत्र से पांडुकुल के राजाओं की प्रारंभिक जानकारी मिलती है। बिलासतुंग के नलवंश की इतिवृत्ति के ज्ञान का एकमात्र साधन राजीवलोचन मंदिर से प्राप्त शिलालेख हैं।
रतनपुर के कलचुरि नरेश जाजल्यदेव प्रथम एवं रत्नदेव द्वितीय की कतिपय ऐसी विजयों का उल्लेख, उनके सामनन््त जगतपालदेव के राजीवलोचन मंदिर से ही प्राप्त शिलालेख में हुआ है। यहां के मंदिर एवं देव-प्रतिमाएं लोगों की धार्मिक आस्था पर प्रकाश डालती है।
साथ ही ये भारतीय स्थापत्यकला एवं मूर्तिकला के इतिहास में छत्तीसगढ़ अंचल के ऐश्वर्यशाली योगदान को लिपिबद्ध करते समय अपने लिए विशिष्ट स्थान की अपेक्षा रखने वाले उदाहरण हैं |
सामान्य सर्वेक्षण में यहां से बहुत बड़ी मात्रा में मृण्मय अवशेष प्राप्त होते हैं। इनके आधार पर यहां के सांस्कृतिक अनुक्रम का अनुमानित कालक्रम निर्धारित कर पाना संभव हो सका है। इस मृण्मय अवशेषों के अध्ययन-परीक्षण द्वारा ही अब राजिम मे पल्लवित संस्कृति का प्रारंभ ताम्राश्म (चाल्कोलिथिक) युग में होना सम्भावित सत्य के रूप में घोषित किया गया है।( Rajim Chhattisgarh : Prayag of Chhattisgarh Rajim )
राजिम के देवालय- ऐतिहासिक तथा पुरातात्विक दोनों ही दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। इन्हें हम इनकी स्थिति के आधार पर अधोलिखित चार वर्गो में विभकत कर सकते हैं:–
(क) पश्चिमी समूह: कुलेश्वर (वीं सदी), पंचेश्वर (9वीं सदी), तथा भूतेश्वर महादेव (14वीं सदी) के मंदिर |
(ख) मध्य समूह: राजीवलोचन (7वीं सदी), वामन, वाराह, नृसिंह बद्रीनाथ, जगन्नाथ, राजेश्वर एवं राजिम तेलिन मंदिर।
(ग) पूर्वी समूह: रामचन्द्र (8वीं सदी) का मंदिर ।
(घ) उत्तरी समूह: सोमेश्वर महादेव का मंदिर |
नलवंशी नरेश बिलासतुंग के राजीव लोचन मंदिर अभिलेख के आधार पर अधिकांश विद्धानों ने राजीव लोचन मंदिर को 7वीं शताब्दी में निर्मित माना है। इस मंदिर के विशाल प्रकोष्ठ के चारों अंतिम कोनों पर बने वामन, वाराह, नृसिंह तथा बद्रीनाथ में मंदिर स्वतंत्र वास्तुरूप के उदाहरण नहीं माने जा सकते |
ये मुख्य मंदिर के अनुषंगी देवालय है। राजिम के देवालय सामान्यतः 7वीं-8वीं शताब्दी से लेकर 14वीं शताब्दी के बीच के बने हुए हैं।( Rajim Chhattisgarh : Prayag of Chhattisgarh Rajim )
राजीव लोचन मंदिर-( Rajiv lochan mandir)
एक विशाल आयताकार प्रकोष्ठ के मध्य में बनाया गया है। भू-विन्यास योजना में राजीवलोचन का मंदिर-महामण्डप, अन्तराल, गर्भगृह और प्रदक्षिणा-पथ, इन चार विशिष्ट अंगों में विभक्त है|
महामण्डप-( Rajim mahamandap )
नागर प्रकार के प्राचीन मंदिरों में महामण्डप समान्यत: वर्गाकार बनाये जाते थे, परंतु राजिम के प्रायः सभी मंदिरों की ही भांति इस मंदिर का यह महामण्डप भी आयताकार है। महामण्डप के प्रवेश द्वार की अंतःभित्ति कल्पलता अभिकल्प द्वारा अलंकृत है |
लतावल्लरियों के बीच-बीच में विहार-रत यक्षों की विभिन्न भाव-भंगिमाओं तथा मुद्राओं में मूर्तियां उकेरी गई हैं। कहीं-कहीं मांगल्य विहंगो का भी रूपांकन है। जहां से कल्पलता अभिकल्प के बांध को प्रारंभ किया गया है, उसके नीचे हरि हंस (दिव्यसुपर्ण) का मोती चुगते हुए अत्यंत ही अलंकरणात्मक ढंग से रूपायण है।
बायीं पाश्वभित्ति के प्रथम स्तम्भ पर प्रभा मण्डल युक्त पुरूष की खड़ी प्रतिमा है, जिसके एक हाथ में धनुष है तथा दूसरा हाथ कटि पर है| इस मूर्ति के कमर पर कटार बंधा हुआ है। तथा यह सिर में कुकुट, भुजाओं में भुजबंध हाथ में कड़े, कानों में कुन्डल, गले में हार, स्कंध पर लटकता यज्ञोपवीत धारण किया हुआ है। ( Rajim Chhattisgarh : Prayag of Chhattisgarh Rajim )
तीसरे भित्ति स्तम्भ पर पत्र-पुष्प से आच्छादित (अशोक) वृक्ष के नीचे त्रिभंग मुद्रा के निर्देशक रूप में स्थित नारी प्रतिमा का दूसरा हाथ पार्श्व में खड़े पुरूष के स्कंध को लपेटे हुए दिखाया गया है।
पुरूष मूर्ति में प्रतिमा लक्षणों का अभाव है, परंतु वह नारी मूर्ति की तुलना में अपेक्षाकृत लघुकाय है। इस पुरूष को हाथ में सर्प पकड़े हुए प्रदर्शित किया गया है। लोग अज्ञानतावश इसे सीता की प्रतिमा मानते हैं, परंतु वस्तुत: यह श्रृंगारिक भावनाओं से संबंधित मूर्ति है।
सर्पयुक्त पुरूष काम का प्रतीक है। अत: यह रतिसुखाभिलाषिणी अभिसारिका नायिका की मूर्ति जान पड़ती है। सुग्गे की उपस्थिति से इस विचार की पुष्टि होती है। चौथे भित्ति-स्तंम्भ पर मकरवाहिनी गंगा की मूर्ति त्रिभंग मुद्रा में रूपायित है। पांचवे, भित्ति-स्तम्भ पर विष्णु के नूसिंह अवतार की मूर्ति से अंकित है। छठे भित्ति-स्तम्भ पर पुरूष परिचारक की प्रतिमा बनाई गई है।( Rajim Chhattisgarh : Prayag of Chhattisgarh Rajim )
दाहिने बाजू के प्रथम भित्ति-स्तम्भों पर बाएं बाजू के भित्ति-स्तम्भ की मूर्ति के समकक्षीय राजपुरूष की प्रतिमा है। दाहिने पार्श्व के दूसरे भित्ति-स्तम्भ पर अष्टभुजी दुर्गा की प्रतिमा है।
तीसरे भित्ति-स्तम्भ पर आम्र-वृक्ष की छाया में खड़ी नारी का त्रिभंग मुद्रा मे आलेखन है। इस नारी मूर्ति के पार्श्व में अपेक्षाकृत लघुकाय पुरूष विग्रह रूपायित है।
चौथे भित्ति स्तंभ पर कूर्मवाहिनी यमुना की मूर्ति है। पांचवे पर भगवान विष्णु के बारह रूप की मूर्ति का चित्रण है। छठवें भित्ति-स्तंभ पर पुरूष परिचारक की मूर्ति है।( Rajim Chhattisgarh : Prayag of Chhattisgarh Rajim )
अन्तरालः-( Rajim Chhattisgarh Antaral )
अन्तराल गर्भगृह और महामण्डप के मध्य में बनाया जाने वाला वास्तुरूप था। इस प्रवेश द्वार के प्रथम पाख (शाखा) पर कल्पलता अभिकल्प का चित्रण है। द्वितीय शाखा पर विविध भाव भंगिमाओ, मुद्राओं तथा चेष्टाओं में मिथुन की आकर्षक मूर्तियां हैं।
तृतीय शाखा अर्धमानुषी रूप में नाग-नागिनों के युगनद्ध बांध से भरा हुआ है, जो सिरदल पर्यन्त भाग को व्याप्त किया हुआ है। ललाटबिम्ब पर गरूड़ासीन विष्णु की चतुर्भजी प्रतिमा है।
ये अपने हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किये हुए हैं। गरूड़ की मूर्ति के अंकन में अप्रतिम शक्ति और शौर्य के भावों की मंजुल अभिव्यक्ति है। बाहर की ओर फैले हुए इनके दोनों हाथों को क्रमशः एक-एक नाग को पकड़े हुए अंकित किया गया है।( Rajim Chhattisgarh : Prayag of Chhattisgarh Rajim )
गर्भगृह-( Rajim garbhgriha )
इस गर्भगृह में मूल देवता की मूर्ति प्रतिष्ठित है। यह प्रतिमा काले पत्थर की बनी विष्णु की चतुर्भुजी मूर्ति है, जिसके हाथों में क्रमशः शंख गदा, चक्र और पद्म है। भगवान राजीवलोचन के नाम से इसी मूर्ति की पूजा अर्चना होती है।
राजेश्वर मंदिर-( Rajim rajeshwar mandir )
राजीवलोचन मंदिर के पश्चिम में प्रकोष्ठ से बाहर तथा द्वार प्रकोष्ठ से लगभग अठारह फूट हटकर पूर्वाभिमुख अवस्था में यह मंदिर स्थित है। यह मंदिर यहां से प्राप्त अन्य उदाहरणों की भांति दो फुट आठ इंच ऊंची जगती पर बना हुआ है।
भूविन्यास योजना अर्थात गर्भसूत्रीय व्यवस्था में इसके तीन प्रमुख स्थापत्य अंग है- 4. महामण्डप, 2. अन्तराल, 3. गर्भगृह |( Rajim Chhattisgarh : Prayag of Chhattisgarh Rajim )
दानेश्वर मंदिर:-( Rajim daneshwar mandir )
राजेश्वर मंदिर से दक्षिण में उससे लगभग सटकर दानेश्वर मंदिर बना हुआ है। पूर्वोत्तर उदाहरणों की ही भांति यह भी एक जगती पर बनाया गया है। जगती की वर्तमान ऊंचाई दो फूट व आठ इंच है। यह मंदिर राजेश्वर मंदिर की तरह पूर्वभिमूख है।
भूविन्यास अथवा गर्भसूत्रीय व्यवस्था में इस मंदिर के चार अंग है-
1. नंदी मंण्डप, 2. महामण्डप, 3. अंतराल, एवं 4. गर्भगृह
नंदी मण्डप की योजना दानेश्वर मंदिर की अपनी विशेषता है। राजिम से प्राप्त किसी भी शैव मंदिर में हमें नंदी-मण्डप नहीं मिलता।
कूलेश्वर महादेव मंदिर( Rajim kuleshwar mandir )
कुलेश्वर महादेव का मंदिर महानदी, सोंढूर और पैरी नदी के संगम पर बना हुआ है| इस मंदिर का भी निर्माण एक जगती पर किया गया है। सामान्यतः अन्य मंदिरों में जहां जगती का वास्तुसंस्थापन आयताकार रूप में किया गया है,
वहां इस जगती को अष्टभुजाकार रूप में प्रस्थापित किया गया है। इसका स्पष्ट प्रयोजन नदी की बाढ़ से होने वाले कटाव की प्रक्रिया से निर्मित को सुरक्षित बनाये रखना है। यह जगती 17 फुट ऊंची है।
तथा इसके निर्माण में अपेक्षाकृत तराशे गए छोटे आकार के प्रस्तर-खण्डों का उपयोग किया गया है| नदी से मंदिर पहुंचने के लिए 22 सीढ़ियां थी किंतु अभी हाल में नीचे दबी 9 सीढ़ियां के बाहर आने से अब कुल 3। सीढ़ियां हो गई है।
रामचन्द्र मंदिर- राजीवलोचन तथा पंचेश्वर महादेव के मंदिरों की ही भांति यह मंदिर भी मूलतः ईंटों का बना हुआ है। इतना ही नहीं, इससे संबंद्ध देवकुलिकाएं भी ईंटों से बनाई गई है। प्राप्त प्रमाणों के आधार पर इस मंदिर को रतनपुर के कलचुरि नरेशों के सामन्त जगतपालदेव द्वारा जीर्णोद्धार करवाया गया था।( Rajim Chhattisgarh : Prayag of Chhattisgarh Rajim )
यहां के प्राय: सभी मंदिरों की भांति देवालय भी एक आयताकार जगती पर अधिष्ठित है। भू-विन्यास अथवा गर्भसूत्रीय व्यवस्था में राजीवलोचन मंदिर के ही समान इसके चार अंग हैं-
1. महाण्डप, 2. अंतराल, 3. गर्भगृह, 4. प्रदक्षिणापथ |
महामण्डप अन्य उदाहरणों से समरूपता रखते हुए सपाट छत वाला है तथा उत्तर और दक्षिण की ओर से पार््व॑भित्तियों द्वारा बंद है, जबकि पूर्व की ओर से पूरा खुले हुए होने के कारण तथा गर्भगृह के प्रवेश द्वार भी पूर्व की ओर मुख होने के कारण यह पूर्वाभिमूख वास्तु है।
महामण्डप की सपाट छत को आलंब देने के लिए इसमें मध्यवर्ती स्तंभों की दो कतारें तथा एक-एक पंक्ति है। महामण्डप के स्तंभों पर रजिम ही नहीं अपितु समस्त छत्तीसगढ़ क्षेत्र की प्राचीन मूर्तिकला के कुछ श्रेष्ठतम उदाहरण सुरक्षित है।
प्रत्येक पंक्ति में स्तंभों की संख्या चार-चार है। दोनों मध्यवर्ती कतारों के पहले स्तंभ प्रायः एक ही शैली के हैं तथा इनके बाहूय रूपमण्डल में भी यथेष्ट समरूपता है। ये दोनों स्तंभ चौकोर बैठकी पर स्थापित किये गये हैं।
स्तंभ का निचला दो तिहाई भाग समचतुरस्त्र है। इसके ऊपर क्रमशः अष्टास्त्र, वृत्त आदि आते हैं। वृत्त क॑ ऊपर अर्ध्वाकार अलंकरणहीन बैठकी है, जिस पर पूर्णघट अभिप्राय गढ़ा गया है | इस पूर्णघट के ऊपर चत्वर परगहा है |
इस परगहे के ऊपर बंधनी (कपोतपाली) है। दाहिने ओर की पंक्ति के दूसरे स्तंभ पर शालभंजिका की अत्यंत ही मनोहारी मूर्ति है। इसी तरह बांयी ओर के दूसरे स्तंभ पर आलिंगनबद्दमिथुन मूर्ति है।
दाहिने तरफ के तीसरे स्तंभ पर शालभंजिकाओं की दो मूर्तियां उभार में रूपायित है। इनमें से एक को वीणा बजाते हुए दिखाया गया है। बांयी ओर के तीसरे स्तम्भ पर भी शालभंजिकाओं की दो प्रतिमाएं उभार मे बनाई गई है |
दोनों ही तरफ के तीसरे स्तम्भों पर शालभंजिका की मूर्तियों के अतिरिक्त अन्य दृश्य भी उत्कीर्ण है। उदाहरण के लिए बांयी ओर वाले स्तम्भ के दूसरे पार्श्व पर बंदर परिवार का बड़ा मनोरंजक दृश्य है।
इसी तरह दाहिने बाजू वाले स्तम्भ पर भी मां और शिशु तथा संगीत समाज का बड़ा ही भावात्मक अंकन है। मूर्तियों से युक्त स्तम्भ यथेष्ट प्राचीन है। सम्भवत: इन्हें किसी अन्य स्मारक से लाकर यहां बैठाया गया है। दोनों कतारों के चौथे स्तम्भ अन्य उदाहरणों से भिन्न प्रकार के हैं। परंतु इन पर भी विविध विषयों का मूर्तरूप चित्रण है।( Rajim Chhattisgarh : Prayag of Chhattisgarh Rajim )
भित्तिस्तंभों का सम्मुख भाग राजीवलोचन मंदिर के महामण्डप के भित्तिस्तम्भों की भांति ही विविध विषयों की पूर्णमानुषाकार मूर्तियों से मण्डित है। दायीं ओर की पार्श्वभित्ति पर के पहलेभित्ति-स्तम्भ पर मकर वाहिनी गंगा की प्रतिमा है।
दूसरे पर एक राजपुरूष की मूर्ति है। तीसरे पर अष्टभुजी गणेश की मूर्ति है। चौथे पर अष्टभुजी नृवाराह की प्रतिमा है। इसी तरह बायीं ओर की पार्श्व भित्ति पर के पहले भित्ति स्तंभ पर पुनः मकर वाहिनी गंगा की मूर्ति मिलती है।
चौथे पर अष्टभुजी नृवाराह की प्रतिमा है। इसी तरह बायीं ओर की पार्श्व भित्ति पर के पहले भित्ति स्तंभ पर पुनः मकर वाहिनी गंगा की मूर्ति मिलती है। दूसरे पर किसी राजपुरूष की खड़ी हुई मूर्ति है। तीसरे पर पुनः मकर वाहिनी गंगा की मूर्ति है। तथा चोथे भित्ति स्तंभ पर अष्टभुजी नृवाराह की मूर्ति है।
महामण्डप के पश्चिमी छोर पर गर्भगृह के प्रवेश द्वार के दोनों ओर के प्रदक्षिणापथ को महामण्डप से जोड़ने के लिये बनाये गये प्रवेश द्वार को सादा छोड़ दिया गया है, परंतु रामचन्द्र मंदिर के प्रदक्षिणापथ से संबंधित प्रवेश द्वार, शाखाओं से युक्त है तथा इनके अधोभाग पर गंगा-यमुना नदी देवियों की मूर्तियां है। राजिम के किसी भी मंदिर के प्रवेश द्वार पर नदी-देवियों की मूर्तियां नहीं है।( Rajim Chhattisgarh : Prayag of Chhattisgarh Rajim )
पंचेश्वर महादेव मंदिर-( Rajim pancheshwar mahadev mandir )
यह रामचन्द्र मंदिर की भांति ईंटों का बना हुआ है। यह मंदिर नदी के तट पर बनाया गया है। तथा पश्चिमाभिमुख है | वर्तमान में इस मंदिर का केवल विमान ही शेष है और वह भी अत्यधिक जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है।
राजिम तेलिन मंदिर-( Rajim telin mandir )
इस मंदिर का वास्तुशिल्प पंचेश्वर तथा भूतेश्वर मंदिर के वास्तुशिल्प से समरूपता रखता है। यह मंदिर राजेश्वर तथा दानेश्वर मंदिर के पीछे स्थित है। वर्तमान में इस मंदिर का विमान प्राचीन निर्मित्त का प्रतिनिधि है।
भूतेश्वर महादेव मंदिर-( Rajim Bhuteshwar Mahadev Mandir )
यह मंदिर नदी के तट पर पंचेश्वर महादेव मंदिर के बाजू में अवस्थित है। यह भी ऊंची जगती पर स्थापित किया गया वास्तु रूप है। यह मंदिर भू-विन्यास में यहां के अन्य पूर्ण मंदिरों की तरह महामण्डप, अंतराल और गर्भगृह से युक्त है।
उत्सेध अथवा ब्रम्हसूत्रीय व्यवस्था में इस मंदिर का विमान अधिष्ठान, जंघाशिखर और मस्तक से युक्त है। विमान नागर प्रकार का है। तथा कलचुरी कालीन मंदिर वास्तु की परंपरा में बनाया गया है।
जगन्नाथ मंदिर- राजीवलोचन मंदिर के प्रकार के उत्तरी-पश्चिमी कोने पर बने नृसिंह मंदिर के उत्तरी बाजू में परिसर से बाहर यह मंदिर भी एक जगती पर बनाया गया है। इस पूर्वभिमुख देवालय के अंग हैं- महामण्डप, अंतराल, गर्भगृह और प्रदक्षिणापथ | भू-विन्यास योजना में ये चार प्रमुख अंग है। ( Rajim Chhattisgarh : Prayag of Chhattisgarh Rajim )
सोमेश्वर महादेव मंदिर- यह मंदिर राजिम की वर्तमान बस्ती के ऊपर में थोड़ी दूरी पर नदी के तट से थोड़ा हटकर स्थित है। स्थापत्य की दृष्टि से यह अपेक्षाकृत अल्प महत्वपूर्ण है तथा वर्तमान रूप में बहुत बाद की कृति प्रतीत होती है।
परंतु वर्तमान मंदिर के महामण्डप से लगा हुआ एक प्राचीन मंदिर का अवशेष है। इसके अतिरिक्त इस मंदिर के महामण्डप के स्तम्भ प्राचीन है तथा अपनी शिल्पशैली में राजीवलोचन मंदिर के महामण्डप के स्तम्भों से समरूपता रखता है।
आवास व्यवस्था:-( Rajim Housing system )
यहां पर छ.ग. पर्यटन मंडल का 6 कमरे का पुन्नी रिसॉर्ट एवं पी.डब्लूडी. का विश्रामगृह संचालित है। अधिक आरामदायक सुविधा के लिए रायपुर में विभिन्न प्रकार के होटल्स उपलब्ध हैं।
कैसे पहुंचे-( How to reach Rajim )
वायु मार्ग: रायपुर (45 कि.मी.) निकटतम हवाई अड्डा है तथा मुंबई, दिल्ली, नागपुर, हैदराबाद, बेंगलूरू, कोलकाता, विशाखापट्टनम एवं चेन्नई से जुड़ा है।
रेल मार्ग: रायपुर निकटतम रेलवे स्टेशन है, तथा यहा हावड़ा-मुंबई मुख्य रेलमार्ग पर स्थित है।
सड़क मार्ग: राजिम नियमित बस तथा टैक्सी सेवा से रायपुर तथा महासमुंद से जुड़ा हुआ है।( Rajim Chhattisgarh : Prayag of Chhattisgarh Rajim )