रायपुर- बिलासपुर राजमार्ग पर बिलासपुर से 30 तथा रायपुर से 85 कि.मी. की दूरी पर, भोजपुरी ग्राम से 5 कि.मी. एवं रायपुर-बिलासपुर रेलवे मार्ग के दगौरी स्टेशन से मात्र 4 कि.मी. दूर, अमेरी-कापा ग्राम के समीप मनियारी नदी के तट पर स्थित ताला में दो शैव मंदिर स्थित हैं, जो देवरानी-जेठानी मंदिर के नाम से विख्यात हैं। ( Tala Bilaspur Chhattisgarh : Talagaon Bilaspur Chhattisgarh )
भारतीय पुरातत्व के प्रथम महानिदेशक एलेक्जेन्डर कनिंघम के सहयोगी जे.डी. बेलबर को तालागांव की सूचना 1873-74 में तत्कालीन कमिश्नर फिशर ने दी। एक विदेशी पुरातत्वेत्ता महिला जोलियम विलियम्स ने इसे गुप्त काल का मंदिर बताया है। पुरातत्वेता इसके काल का निर्धारण लगभग छठवीं-सातवीं शताब्दी के आसपास करते हैं। ( Tala Bilaspur Chhattisgarh : Talagaon Bilaspur Chhattisgarh )
ताला के समीपस्थ सरगांव का धूमनाथ मंदिर (प्रतिमा विहीन) देव किरारी में शैव स्मारक स्थल मिले है। यहां से ऐतिहासिक नगर मल्हार की दूरी लगभग 18 कि.मी. है। ताला में उत्खनन के बाद जो स्थापत्य व मूर्तिकला का रूप सामने आया है, उससे ज्ञात होता हैं कि लगभग 6वीं से दसवीं शताब्दी तक यह अत्यंत समृद्ध स्थल रहा होगा।
मूर्तियों की शैली और प्राप्त अवशेषों से पता चलता है कि लंबे काल तक यह स्थल विभिन्न संप्रदाय की धर्मस्थली रही होगी जो शैव उपासक थे और यह स्थान शैव तांत्रिकों की अनुष्ठान स्थली रही होगी |
श्रद्धालु यहां महामृत्युजंय जाप करने सहित शिव से संबंधित विधानों को संपन्न करने निरन्तर आते हैं। यहां निषाद समाज द्वारा निर्मित राम जानकी मंदिर एवं स्वामी पूर्णानंद महाराज की कूटिया तथा गौशाला स्थित है। ( Tala Bilaspur Chhattisgarh : Talagaon Bilaspur Chhattisgarh )
देवरानी मंदिर, जेठानी मंदिर से 15 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। जेठानी मंदिर ध्वस्त स्थिति में है। ये दोनों ही शिवमंदिर है। मंदिर के तल विन्यास में आरंभिक चन्द्रशिला और सीढ़ियों के बाद अर्द्धमण्डप, अन्तराल और गर्भगृह तीन प्रमुख भाग हैं।
जेठानी मंदिर की सीढ़ियों पर स्थित भग्न स्तंभो के अधिष्ठान पर शिव के यक्षगणऔर भारवाहक गणों की सुन्दर आकृतियां दर्शनीय है। इसके पृष्ठ भाग अर्थात उत्तरी पार्श्व में दोनों किनारों में विशालकाय हाथी बैठे मुद्रा में है। ( Tala Bilaspur Chhattisgarh : Talagaon Bilaspur Chhattisgarh )
दक्षिण की ओर मुख्य प्रवेश द्वार के अलावा पूर्व और पश्चिम दिशा में भी द्वार हैं। मुख्य प्रवेश द्वार में पत्थरों के कलात्मक स्तंभ हैं जिन पर अंकन कमनीयता के लिए हुए है।
उत्खनन से प्राप्त मूर्तियों में चतुर्भज कर्तिकेय का मयुरासन प्रतिमा हैं जो शौर्य और उत्साह से प्रकाशित है | द्विमुखी गणेश की प्रतिमा अपने दांत को एक हाथ में लिए हुए चन्द्रमा की ओर प्रक्षेपण के लिए उद्यम मुद्रा में है।
अर्धनारीश्वर, उमा-महेश, नागपुरूष, यक्ष मूर्तियों में अनेक पौराणिक कथानक झलकते हैं। शाल भंजिका की भग्न मूर्ति में शरीर सौष्ठव और कलात्मक सौन्दर्य का संतुलित प्रयोग है। एक विशाल चतुर्भुज प्रतिमा जिसकी भुजाएं तथा आयुध खंडित है, अधिष्ठान भाग भी नहीं है, इसकी भाव भंगिमा से किसी विशाल यक्ष मूर्ति का बोध होता है। ( Tala Bilaspur Chhattisgarh : Talagaon Bilaspur Chhattisgarh )
देवरानी-जेठानी मंदिर विशिष्ठ तल विन्यास, विलक्षण प्रतिमा निरूपण तथा मौलिक अलंकरण की दृष्ठि से भारतीय कला में विशेष रूप से चर्चित है। वर्ष 1987-88 में देवरानी मंदिर के परिसर में उत्खनन के दौरान एक विलक्षण प्रतिमा प्राप्त हुई थी।
यह प्रतिमा भारतीय कला मे अपने ढंग की एकमात्र ज्ञात प्रतिमा है। शैव सम्प्रदाय से संबंधित इस प्रतिमा का शिल्प अद्भुत है। शिव के रूद्र अथवा अघोर रूप से सामंजस्य होने के कारण सुविधा की दृष्टि से इसका नामकरण रूद्र शिव किया गया है।( Tala Bilaspur Chhattisgarh : Talagaon Bilaspur Chhattisgarh )
इसे स्मारक – स्थल पर सुरक्षित रूप से प्रदर्शित किया गया है। ताला से प्राप्त प्रतिमाओं में यही एक मात्र लगभग परिपूर्ण प्रतिमा है।
यहा भारी भरकम प्रतिमा 2.54 मीटर ऊंची तथा 1 मीटर चौड़ी है। विभिन्न जीव-जन्तुओं की मुखाकृति से इसके अंग-प्रत्यंग निर्मित होने के कारण प्रतिमा में रौद्र भाव संचारित है। प्रतिमा समपाद स्थानक मुद्रा में प्रदर्शित है।
इस महाकाय प्रतिमा के रूपाकन में कूकलास (गिरगिट), मछली, केकड़ा, मयूर, कच्छप, सिंह आदि जीव-जन्तु तथा मानव मुखों की मौलिक प्रकल्पना युक्त रूपाकृति अत्यंत ओजस्वी है।
इसके शिरोभाग पर मंडलाकार चक्रों मे लिपटे हुए दो नाग क्षैत्तिजीय क्रम में पगड़ी के सदृश्य दृष्टव्य है। नीचे की ओर मुख किये हुये कृकलास के पृष्ठ भाग से नासिका, अग्रपाद से नासिकार रंच्र, सिर से नासाग्र तथा पिछले पैरों से भौहें निर्मित है। ( Tala Bilaspur Chhattisgarh : Talagaon Bilaspur Chhattisgarh )
बड़े आकार के मेंढक के विस्फारित मुख से नेत्र पटल तथा कुक्कुट के अंडे से नेत्र गोलक बने है। छोटे आकार के प्रोष्ठी मत्स्य से मूंछे तथा निचला ओष्ठ निर्मित हैं | बैठे हुए मयूर से कान रूपायित है।
कंधा मकर मुख से निर्मित है। भुजायें हाथी के शुंड के सदृश्य हैं तथा हाथों की अंगुलियां सर्प मुखों से निर्मित है। वक्ष के दोनों स्तन तथा उदर भाग पर मानव मुख दृष्टव्य है।
कच्छप के पृष्ठ से कटिभाग, मुख से शिश्न और उसके जुड़े हुये दोनों अगले पैरों से अंडकोष निर्मित है। अंडकोष पर घंटी के सदृस्य जोंक लटके हुये। दोनों जंघाओं पर हाथ जोड़े विद्याघर तथा कटि पार्श्व में दोनों ओर एक – एक गंधर्व की मुखाकृति है। ( Tala Bilaspur Chhattisgarh : Talagaon Bilaspur Chhattisgarh )
दोनों घुटनों पर सिंह मुख अंकित है। स्थूल पैर हाथी के अगले पैर के सदृश्य है। प्रमुख प्रतिमा के दोनों कंधों के ऊपर दो महानाग पार्श्व रक्षक के सदृश्य फन फैलाये हुये स्थित है। पैरों के समीप उभय पार्श्व में गर्दन उठाकर फन काढ़े नाग अनुचर दृष्टव्य है।
प्रतिमा के दांये हाथ में स्थूल दण्ड का खंडित भाग बच रहा है। उनके आभूषणों में हार, वक्ष-बंध, कंकण तथा कटिबंध भाग के कुंडलित भाग से रूपायित है। वर्णित प्रतिमा के बांये हाथ में स्थित आयुध, दांये पैर के समीप स्थित नाग तथा अधिष्ठान भाग नग्न है। ( Tala Bilaspur Chhattisgarh : Talagaon Bilaspur Chhattisgarh )
सामान्य रूप से इस प्रतिमा में शैव मत, तंत्र तथा योग के गुहय सिद्धांतों का प्रभाव और समन्वय दिखलाई पड़ता है।
आवास व्यवस्था: बिलासपुर नगर में आधुनिक सुविधाओं से युक्त अनेक होटल ठहरने के लिये उपलब्ध है।
रायपुर (85 कि.मी) निकटतम हवाई अड्डा है जो मुंबई, दिल्ली, चेन्नई, हैदराबाद, बेंगलूरू एवं विशाखापट्टनम से जुड़ा हुआ है।
रेल मार्ग: हावड़ा – मुबंई मुख्य रेल मार्ग पर बिलासपुर (30 कि.मी) समीपस्थ रेलवे जंक्शन है।
सड़क मार्ग: बिलासपुर शहर से निजी वाहन द्वारा सड़क मार्ग से यात्रा की जा सकती है।