चम्पारण छत्तीसगढ़ | Champaran Chhattisgarh | Mahaprabhuji Vallabhacharya

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Champaran Chhattisgarh : Mahaprabhuji baithak ballabhcharya Chhattisgarh ( चम्पारण छत्तीसगढ़ )

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चम्पारण्य, छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 50 कि.मी. दक्षिण पूर्व एवं राजिम से 5 किमी. उत्तर पूर्व में महानदी के पवित्र त्रिवेणी संगम के तट और ऋषि मुनियों की पावन तपोभूमि की छत्रछाया में स्थित है।

पौराणिक कथानुसार 800 वर्ष पूर्व घनघोर जंगल में गांव का ग्वाला गायों को लेकर जंगल की ओर घास चराने के लिए जाता था। एक दिन वह रोज की तरह गांव की सभी गाय को जंगल की तरफ ले गया, लेकिन जब शाम को वापस गायों को गौशाला ला रहा था, तभी अचानक गायों के झुंड में से राधा नामक बांझेली गाय रम्भाती हुई घनघोर जंगल की ओर भाग निकली।

उस वन में पेड़-पौधों की सघनता इतनी अधिक थी कि यदि वहां कोई घुस जाये, तो कुछ भी दिखाई नहीं देता था। राघा बांझेली गाय रोज सुबह-शाम इसी तरह उस घनघोर जंगल में भाग जाया करती थी। ऐसा करते हुए पूरा एक सप्ताह बीत गया। ग्वाला चरवाहा सोच में पड़ गया कि आखिर यह गाय रोज जंगल की ओर क्यों भाग जाती है।

उसके मन में एक कौतुहल पैदा हो गया कि आखिर बात क्या है? एक दिन जब राधा बांझेली गाय झुंड से निकल जंगल की ओर भाग रही थी, तो ग्वाला चरवाहा भी उसके पीछे हो लिया। आगे-आगे बांझेली राधा गाय और पीछे-पीछे ग्वाला चरवाहा | जंगल घनघोर व सघन होने के कारण अंधकारमय था।

वृक्षों की लता फैले होने के कारण कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा था। धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए अचानक ग्वाला चरवाहा ने देखा कि एक शमी वृक्ष के नीचे खड़ी राधा बांझेली गाय के थन से दूध की सतत धार एक अद्भुत लिंग के ऊपर गिर रही थी।

ग्वाला चरवाहे ने गांव जाकर अपनी आंखों देखी बात सभी को बतायी, लेकिन उस ग्वाला चरवाहा की बात पर किसी ने विश्वास नहीं किया। सभी ने उसकी बात को हंसी में उड़ा दिया, यह बात पूरे गांव में फैल गई। उत्सुकतावश ग्रामीण जन चरवाहे के बताये स्थान पर गये और वहां उन्होंने जो नजारा देखा, वह चमत्कारी ही था।

वहां बांझेली राघा गाय भगवान शिव के लिंग विग्रह, त्रिमूर्ति जिस पर एक महादेव, माता पार्वती एवं गणेश जी प्रतिबिंबित थे, उस पर अपने थनों से अजस्त्र दूध प्रवाहित आराधना की गई। गांव में बैठक कर भगवान महादेव के देवस्थल को अनावृत्त किया गया। बहुत बाद में [मा मंदिर के स्थान पर पक्का मंदिर बनाया गया।

जो प्राचीन तीर्थ स्थल श्री चम्पेश्वर महादेव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। इस स्थल की प्राचीन परंपरा अच्छुण चली आ रही है। यहां मधुमक्खियों के समूह देखे जा सकते हैं। इस मंदिर में जो अंतरात्मा से आराधना करता है उस व्यक्ति की मनोकामना अवश्य पूरी होती है। इस मंदिर का संबंध पंचकोशी यात्रा से है – जिसमें

1. फनेश्वर

2.चम्पेश्वर

3. बम्हनेश्वर

4. कोपेश्वर

 5. पटेश्वर शामिल है।..

मंदिर में महादेव जी का भोग लगाने के बाद वल्लभाचार्य: जी का भोग लगता है। एक मान्यतानुसार मंदिर परिसर के पास स्थित वन में पेड़ों की कटाई नहीं की जाती है। कहा.| पेड़ का प्राकृतिक विषदा आ मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है और अब यहां भव्य, विशाल मंदिर बन गया है। पूरा परिसर 6 एकड़ में फैला हुआ है। मंदिर परिसर वृक्षों से घिरा हुआ है।

यहां छाई और शमी का वन है। यहां का वातावरण बहुत शांत रहता है। पूजा के समय यह पूरा परिसर संगीतमय वातावरण से गुंजायमान हो जाता है। इस प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर में हर वर्ष महाशिवरात्रि के दिन मेला भरता है। मेले में 30 से 50 हजार श्रद्धालु आते हैं। भगवान शिवजी का अभिषेक घी, शक्कर, दूध और दही से करते हैं।

सावन के माह में प्रतिदिन यहां बोल बम श्रद्धालु शिव का जलाभिषेक करते हैं। शिव भक्त इस महादेव मंदिर में महानदी का जल चढ़ाते हैं एवं पूजा-अर्चना करते हैं। यह चम्पेश्वर महादेव का मंदिर सुबह 8 बजे से । बजे तक और 3 बजे से शाम 7 बजे तक दर्शन के लिए खुला रहता है। इस मंदिर की देखरेख ग्राम का ट्रस्ट करता है।

श्री महाप्रभु वल्लभाचार्य जी +5वीं शताब्दी के महान दार्शनिक श्री महाप्रभु वल्लभाचार्य की जन्म स्थली चम्पारण्य है। दक्षिण भारत में कृष्णा नदी के तट पर स्तभाद्री के निकट स्थित अग्रहार में अगस्त्य मुनि के वंशज कुंभकर हुए। कालांतर में वे काकखण्ड में आकर बस गये तथा परिवार सहित तीर्थ यात्रा पर निकले तथा प्रयाग होते हुए काशी पहुंचे।

काशी पर मलेच्छों के आक्रमण के कारण वे वापस अपने मूल स्थान की ओर चल पड़े। मार्ग में राजिम नगरी के निकट चम्पाझर ग्राम में श्री चम्पेश्वर महादेव के दर्शनार्थ यहां पधारे। यहीं उनकी पत्नी वल्लमागारू ने संवत्‌ 4535 की वैशाख कृष्ण पक्ष एकादशी रविवार (ई.479) की रात्रि एक बालक को जन्म दिया।

नवजात बालक के जीवन की आशा कम होने की संभावना परिलक्षित हुई, जिससे बालक को शमी पेड़ की कोटर में छोड़कर आगे निकल पड़े | दूसरे दिन ही वापस आकर बालक की तलाश की, तो देखा कि स्वयं अग्निदेव बालक की रक्षा कर रहे हैं। इस बालक को चार नाम दिये गये- 4. देवनाम-कृष्ण प्रसाद 2. मास नाम-जनार्दन, 3. नक्षत्र नाम- श्राविष्ठ, 4. प्रसिद्द

नाम – वल्लभ यही बाल आगे चलकर श्री महाप्रभु बल्लभाचार्य हुये।

बाल्यकाल में कुशाग्र बुद्धि होने के कारण वे बाल सरस्वती भी कहलाये। गुरू विष्णुचित से उन्होंने यजुर्वेद, तिरूमल दीक्षित से ऋग्वेद, पिता से अथर्व वेद व उपनिषदों की शिक्षा पायी धार्मिक दृष्टि से भारत में उस समय अनेक

मतों का प्रचलन था। श्री महाप्रभु वल्लभाचार्य ने भागवत पुराण के आधार पर शुद्ध द्वैत मतानुसार पुष्टि मार्ग का किया। श्री बल्लभाचार्य, श्री रामानंद जी, कबीर, गुरूनानक देव, श्री रामदास, संत तुकाराम, मीरा, श्री चैतन्य महाप्रभु के समकालीन रहे।

श्री कृष्ण के अन्य भक्त श्री महाप्रभु वल्लभाचार्य ने सम्पूर्ण भारत की तीन बार पैदल यात्रा की तथा परिक्रमा के दौरान भागवत्त सप्ताह का पठन किया। भागवत पठन के स्थानों पर महाप्रभु जी की बैठकें हैं। पूरे भारतवर्ष में इस तरह के 84 बैठके है।

चम्पारण्य में उनकी दो बैठकें है। पहली बैठक शमी वृक्ष के नीचे उनकी जन्मस्थली पर तथा दूसरी घठी पूजन के स्थान पर स्थित है। यह भी उल्लेखनीय है कि यहां श्री कृष्ण के बाल्यरूप की पूजा-अर्चना की जाती है। वल्लभाचार्य के भक्त यहां पर स्थित महानदी को यमुना का रूप मानते हैं।

श्री महाप्रभु वल्लभाचार्य जी ने पुष्टि मार्ग की स्थापना की थी और इसी कारण यह स्थान वैष्णव सम्प्रदाय के पुष्टि मार्गीय अनुयायियों का प्रमुख तीर्थ स्थल माना जाता है।

हर वर्ष बैशाख कृष्ण पक्ष एकादशी को वल्लभाचार्य जी का जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिसमें देश-विदेश लेते हैं।

छततीसगढ़ की राजधानी रायपुर से चम्पारण्य मात्र 45 कि.मी. दूर स्थित है। रायपुर से यहां पहुंचने के लिए बस, टैक्सी, सदैव उपलब्ध रहती है। यहां रूकने के लिए उच्च हैं, जहां हजारों श्रद्धालु ह

आवास व्यवस्था:-

चंपारण्य मे मंदिर ट्रस्ट का वि राजधानी रायपुर उपलब्ध है श्राम गृह एवं निकटतम शहर

कैसे पहुंचें:-

वायु मार्ग: रायपुर (५5 कि.मी) निकटतम हवाई अड्डा है जो मुंबई, दिल्ली, नागपुर, हैदराबाद, बेंगलूरू, कोलकाता,

विशाखापट्टनम एवं चैन्नई से जुड़ा है।

रेलमार्गः हावड़ा-मुंबई मुख्य रेलमार्ग पर रायपुर (६5 कि.मी.) रेलवे जंक्शन है।

सड़क मार्ग: रायपुर शहर से निजी वाहन अथवा नियमित परिवहन बसों द्वारा चंपारण्य तक सड़क मार्ग से यात्रा की जा सकती है।

इन्हे भी एक-एक बार पढ़ ले ताकि पुरानी चीजे आपको Revise हो जाये :-

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👉बस्तर छत्तीसगढ़

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Rajveer Singh
Rajveer Singh

Hello my subscribers my name is Rajveer Singh and I am 30year old and yes I am a student, and I have completed the Bachlore in arts, as well as Masters in arts and yes I am a currently a Internet blogger and a techminded boy and preparing for PSC in chhattisgarh ,India. I am the man who want to spread the knowledge of whole chhattisgarh to all the Chhattisgarh people.

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