परजा जनजाति छत्तीसगढ़ Parja Janjati Chhattisgarh parja tribe chhattisgarh

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नमस्ते विद्यार्थीओ आज हम पढ़ेंगे परजा जनजाति छत्तीसगढ़ Parja Janjati Chhattisgarh parja tribe chhattisgarh के बारे में जो की छत्तीसगढ़ के सभी सरकारी परीक्षाओ में अक्सर पूछ लिया जाता है , लेकिन यह खासकर के CGPSC PRE और CGPSC Mains में आएगा , तो आप इसे बिलकुल ध्यान से पढियेगा और हो सके तो इसका नोट्स भी बना लीजियेगा । 

परजा जनजाति छत्तीसगढ़ Parja Janjati Chhattisgarh Parja Tribe Chhattisgarh

परजा जनजाति की उत्पत्ति 

परजा जनजाति उड़ीसा एवं आंध्र प्रदेश में मुख्यतः पाई जाती है। छत्तीसगढ़ में भी इनकी कम जनसंख्या निवासरत है। 2011 की जनगणना में छत्तीसगढ़ में परजा जनजाति की जनसंख्या 1212 दशाई गई है। इनमें पुरुष 595 तथा स्त्रियाँ 617 है। राज्य में परजा जनजाति बस्तर जिले में पाई जाती है। बस्तर में इन्हें धुरवा भी कहा जाता है।

परजा जनजाति की उत्पत्ति के संबंध में ऐतिहासिक अभिलेख नहीं है, किन्तु रसेल ने इसे गोंड जनजाति का एक उप समूह माना है। माना जाता है कि जनजाति के पूर्वज बस्तर में उड़ीसा राज्य से आये थे। परजा जनजाति अपनी उत्पत्ति सूर्य से मानते हैं। ( परजा जनजाति छत्तीसगढ़ Parja Janjati Chhattisgarh parja tribe chhattisgarh )

उड़िया मतानुसार परजा की उत्पत्ति पो+ रजा पोरजा से मानी जाती है, जिसका तात्पर्य पो अर्थात् पुत्र, रजा अर्थात् राजा है। अर्थात् परजा जनजाति आदिवासी ग्रामों के सामाजिक मुखिया लोगों से निर्मित समूह है।

परजा जनजाति का रहन-सहन 

परजा जनजाति बस्तर में अन्य जनजाति जैसे माड़िया, भतरा, हलबा आदि – जनजाति तथा शुण्डी, महरा, धाकड़, अहीर आदि अन्य जातियों के साथ ग्राम में निवास करते हैं। इनका घर सामान्यतः एक या दो कमरे का मिट्टी से बना होता है, जिसमें लकड़ी, घासफूस या देशी खपरैल का छप्पर होता है। घर की दीवार को सफेद या पीली मिट्टी से पुताई करते हैं। घर का फर्श मिट्टी से बना होता है, जिसे गोबर से लीपते हैं।

घरेलू वस्तुओं में अनाज रखने की कोठी, अनाज पीसने का जांता, अनाज कूटने का मूसल, कुछ मिट्टी व एल्युमिनियम के बर्तन, कुल्हाड़ी, खेती के उपकरण; ओढ़ने बिछाने के कपड़े, बाँस की चटाई, टोकरी आदि होता है। ( परजा जनजाति छत्तीसगढ़ Parja Janjati Chhattisgarh parja tribe chhattisgarh )

पुरुष कमर में एक छोटा-सा कपड़ा लपेटकर पहनते हैं। बाजार जाते समय शरीर के ऊपरी भाग में बंडी पहनते हैं। स्त्रियाँ मोटे सूत का लुगड़ा घुटने से ऊपर से कमर में लपेटते हुए पहनती हैं। अब नवयुवतियाँ “पोलका ” पहनने लगी हैं। स्त्रियों बालों में जूड़ा बनाती हैं। हाथ, पैर, चेहरा पर गुदना गुदाती हैं। महिलाएँ हाथ, पैर, गले, नाक, कान में गिलट या नकली चाँदी के आभूषण पहनती हैं।

इनका मुख्य भोजन कोदो, मड़िया, चावल का पेज, मौसमी साग-भाजी, उड़द, अरहर, कुलथी की दाल खाते हैं। मांसाहार में विभिन्न प्रकार के पक्षी, मुर्गी, बकरा, सुअर, खरगोश, हिरण, गोह, गिलहारी, चूहा, मछली आदि खाते हैं। पुरुष व स्त्री सल्फी, लांदा, महुआ की शराब पीते हैं। पुरुष बीड़ी पीते हैं। ( परजा जनजाति छत्तीसगढ़ Parja Janjati Chhattisgarh parja tribe chhattisgarh )

परजा जनजाति का व्यवसाय 

परजा जनजाति मुख्यतः पहाड़ी की ढलान पर मढ़िया, कोदो, उड़द, अरहर, कुलथी तथा समतल भाग में धान की खेती करते हैं। परंपरागत कृषि पद्धति, असिंचित व पथरीली भूमि होने के कारण उपज बहुत कम होती है, जो वर्ष भर के लिए पर्याप्त नहीं होती। जंगल से कंदमूल, भाजी एकत्र कर खाते हैं। महुआ, लाख, तेंदूपत्ता, कोसा, गोंद आदि भी एकत्र कर बेचते हैं।

कुछ लोग अन्य कृषक के खेतों में मजदूरी करने जाते हैं। पहले हिरण, चितल, सांभर का शिकार करते थे, शासकीय प्रतिबंध के कारण शिकार नहीं करते हैं। वर्षा ऋतु व उसके बाद स्थानीय नदी, नाले से अपने उपयोग के लिये मछली पकड़ते हैं। परजा जनजाति के लोग बाँस की चटाई व टोकरी भी बनाते हैं। ( परजा जनजाति छत्तीसगढ़ Parja Janjati Chhattisgarh parja tribe chhattisgarh )

परजा जनजाति की उपजातियाँ

परजा जनजाति कई उपजातियों में विभक्त होते हैं। इनके प्रमुख उपजाति परांगी परजा, बरेंगी (जोड़िया) परजा, कोंड परजा, गदबा परजा, दिठाई परजा, पेंगु परजा तथा मुर परजा आदि हैं। बस्तर में पुर परजा पाये जाते हैं। उपजातियाँ विभिन्न गोत्रों में विभक्त है। ( परजा जनजाति छत्तीसगढ़ Parja Janjati Chhattisgarh parja tribe chhattisgarh )

बस्तर में इनके प्रमुख गोत्र बाघ, कश्यिप (कछुआ), बोकरा (बकरा, नेताम (कुत्ता), गोडी (गोड), पड़की (पक्षी), नाग (सर्प) आदि हैं। प्रत्येक गोत्र के जीव-जंतु पर आधारित टोटम पाये जाते हैं। गोत्र बहिर्विवाही समूह है। इस जनजाति में परिवार पितृवंशीय, पितृसत्तात्मक तथा पितु निवास स्थानीय होता है।

परजा जनजाति के परम्पराये 

इस जनजाति की गर्भवती महिलाएँ प्रसव के दिन तक अपनी आर्थिक तथा पारिवारिक कार्य करती हैं। परजा जनजाति में गर्भावस्था में कोई संस्कार नहीं पाया जाता। प्रसव गाँव के बुजुर्ग महिलाओं द्वारा घर पर ही कराया जाता है। प्रसूता को सोंठ, गुड़, जंगली जड़ी-बूटी का काढ़ा पिलाते हैं। उठी संस्कार किया जाता है। इस दिन बच्चे व प्रसूता को स्नान कराते हैं। रिश्तेदारों को शराब पिलाते हैं। ( परजा जनजाति छत्तीसगढ़ Parja Janjati Chhattisgarh parja tribe chhattisgarh )

विवाह का प्रस्तावं वर पक्ष की ओर से होता है। लड़कों का विवाह उम्र 16 से 19 वर्ष तथा लड़कियों की 13 से 17 वर्ष मानी जाती है। विवाह में लड़का-लड़की की सहमति आवश्यक मानी जाती है। अधिकांशतः लड़का व लड़की अपना जीवनसाथी स्वयं चुनते हैं। “सूक” (वधू धन) के रूप में वर पक्ष वधू के पिता को चावल, गुड़, दाल व नगद रुपिया देता है। वधू पक्ष के लोग वधू को लेकर वर के घर आते हैं। यहाँ दो मंडप बनाकर वर के घर हल्दी लगाने व फेरा का कार्य जाति के बुजुर्ग व्यक्ति द्वारा संपन्न कराया जाता है।

विनिमय विवाह, सेवा विवाह, विधवा पुनर्विवाह को समाज में मान्यता प्राप्त है। घुसपैठ तथा सहपलायन के प्रकरणों पर सामाजिक पंचायत जुर्माना लेकर दम्पति को सामाजिक मान्यता प्रदान करती है। ( परजा जनजाति छत्तीसगढ़ Parja Janjati Chhattisgarh parja tribe chhattisgarh )

मृत्यु होने पर मृतक को दफनाते हैं। उसके कपड़े, बर्तन, कुछ अनाज दफनाने के स्थान पर छोड़कर आते हैं। तीसरे दिन पुरषा, सं , सिर के बाल का मुण्डन कराते हैं। घर की साफ-सफाई करते हैं। 10वें दिन धार्मिक पूजा कर मृत्यु भोज देते हैं।

परजा जनजाति में परंपरागत जाति पंचायत (सामाजिक पंचायत) पाई जाती है। जाति पंचायत के प्रमुख का पद अनुवांशिक होता है। जाति पंचायत में विवाह, तलाक, जातिगत व जाति के बाहर अनैतिक संबंध, उत्तराधिकार आदि विवादों का निपटारा परंपरागत ढंग से किया जाता है। ( परजा जनजाति छत्तीसगढ़ Parja Janjati Chhattisgarh parja tribe chhattisgarh )

परजा जनजाति के देवी-देवता 

परजा जनजाति की प्रमुख देवी दंतेश्वरी माता है। भीमसेन देव, ठाकुरदेव, बूढ़ा देव, बूढीमाई आदि की भी पूजा करते हैं। इनके प्रमुख त्योहार पोला, नवाखानी, हरा, दिवाली, होली आदि हैं।

त्योहारों के अवसर पर देवी-देवता में शराब चढ़ाते हैं। प्रतिवर्ष देवी-देवता को मुर्गी की बलि देते हैं। भूत-प्रेत, जादू-टोना में काफी विश्वास करते हैं। धार्मिक पुजारी तथा जादू-टोना दूर करने वाला व्यक्ति “सिरहा” कहलाता है। ( परजा जनजाति छत्तीसगढ़ Parja Janjati Chhattisgarh parja tribe chhattisgarh )

परजा जाति के प्रमुख लोक नृत्य परजी नृत्य, काकसार, विवाह नृत्य आदि हैं। इनके लोक गीत रीलो, करमा, ददरिया, विवाह गीत आदि हैं। प्रत्येक त्योहार, उत्सव संस्कार पर इस जनजाति के युवक-युवतियाँ नृत्य करते हैं।

इस जनजाति के लोग “परजी” बोली बोलते हैं। 2011 की जनगणना में परजा जनजाति में साक्षरता 55.2 प्रतिशत दर्शित है। पुरुषों में साक्षरता 64.4 प्रतिशत तथा स्त्रियों में साक्षरता 46.5 प्रतिशत थी। ( परजा जनजाति छत्तीसगढ़ Parja Janjati Chhattisgarh parja tribe chhattisgarh )

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source : Internet

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Rajveer Singh
Rajveer Singh

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