बस्तर की प्रमुख जमींदारियाँ | Bastar ki pramukh jamindariya

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बस्तर की प्रमुख जमींदारियाँ | Bastar ki pramukh jamindariya
बस्तर की प्रमुख जमींदारियाँ | Bastar ki pramukh jamindariya

नमस्ते विद्यार्थीओ आज हम पढ़ेंगे बस्तर की प्रमुख जमींदारियाँ | Bastar ki pramukh jamindariya के बारे में जो की छत्तीसगढ़ के सभी सरकारी परीक्षाओ में अक्सर पूछ लिया जाता है , लेकिन यह खासकर के CGPSC PRE और CGPSC Mains और Interview पूछा जाता है, तो आप इसे बिलकुल ध्यान से पढियेगा और हो सके तो इसका नोट्स भी बना लीजियेगा ।

 बस्तर की प्रमुख जमींदारियाँ | Bastar ki pramukh jamindariya

स्वाधीन भारत में भारत के इतिहास का पुनर्लेख प्रारंभ हुआ है मगर बस्तर की यह विडम्बना रही है कि आज की तिथि में भी बस्तर के सम्बन्ध में विस्तृत पर्याप्त जानकारी सुलभ नहीं है बस्तर के जमींदारियों के बारे में तो और भी शून्यता की स्थिति है।

जमींदारियों का इतिहास की शुरुआत 

सन् 1333 ई. के आस पास इस अंचल में काकतीय वंश के राजाओं का शासन प्रारंभ हुआ और इसी के साथ बस्तर में जमींदारियों का इतिहास प्रारम्भ होता है। भोपालपट्टनम, सुकमा. व पामेड कोतापल्ली, फोतकेल, दन्तेवाड़ा, परलकोट के साथ-साथ अनेक मुकासा जागीरदार थे। ( बस्तर की प्रमुख जमींदारियाँ | Bastar ki pramukh jamindariya )

परतापुर गढ़ बेंगला, अन्तागढ़, बड़े राजपुर, अन्य थे और ये जमींदारियाँ बस्तर के काकतीय शासकों से सम्बन्धित रही हैं, इनका इतिहास काकतीय शासक के इतिहास के साथ-साथ चलता है यह कहना अधिक उपयुक्त होगा कि दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। आवागमन के साधनों का अभाव दुर्गम भौगोलिक प्रदेश व तत्कालीन दशा इन जमींदारियों के जन्म कारण रहे हैं। जमींदारों का व्यक्तित्व जमोदारियों के विकास का आधार रहा है।

अन्नमदेव के राज्य में 12 जमींदार 48 गढ़िया, 12 मुकासी, 32 परगनियां और कुल 84 परगने थे।
जमोदारियों के क्रम में पहला स्थान भोपालपट्टनम जमींदारी आता है। काकतीय वंश के संस्थापक राजा अन्नमदेव बस्तर अंचल में इसी क्षेत्र से प्रविष्ट हुए भूपाल (राजा) के कदम इस अंचल में पड़े अत इसका नाम भूपालपट्टनम पड़ा। ( बस्तर की प्रमुख जमींदारियाँ | Bastar ki pramukh jamindariya )

भोपालपट्टनम जमीदारी

भोपालपट्टनम जमीदारी पुरानी जमींदारी है। यहां के जमींदार वीरता के लिए प्रसिद्ध थे इनका आगमन अन्नमदेव के साथ वारंगल से होता है।

अन्नमदेव को भोपालपट्टनम जनशून्य मिला। राजा अन्नमदेव ने अपने विश्वस्त नाहर सिंह पामभोई को इस क्षेत्र का जागीरदार बनाया कुछ सैनिक पदाधिकारी उनके पास छोड़ा भूपाल अर्थात् राजा के चरण उस अंचल में पड़े इसलिए गांव का नाम भूपालपट्टनम पड़ा। भोपालपट्टनम पहली जमींदारी बनी। ( बस्तर की प्रमुख जमींदारियाँ | Bastar ki pramukh jamindariya )

भोपालपट्टनम के जमींदारों के सम्बन्ध में कहा गया है कि वारंगल से पालकी ढोनेवाले के सरदार नाहर सिंह सामंत था। भोपालपट्टनम का इलाका जीतने पर पालकी ढोने वालों को पामभोई नाहर सिंह को बस्तर का प्रथम जमींदार बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

भोपालपट्टनम के जमींदारों के पूर्वजनों ने महाराज बस्तर को काफी सेवाएं की इनकी बहादुरी और वफादारी के फलस्वरूप इन्हें उचित व्यक्ति जान इस क्षेत्र के जमींदार बना दिए। ‘ दक्षिण बस्तर में स्थित इस जमींदारी का क्षेत्रफल लगभग 720 वर्गमील का था। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह बस्तर की इतनी बड़ी जमींदारी थी कि 1941 की जनगणना के अनुसार यहां 21,665 लोग रहते थे जमींदारी की आय 1,18,825 रुपये थी। 1947 में भोपालपट्टनम जमींदारी की वार्षिक आय 97,163 रुपये और 96,042 थी। ( बस्तर की प्रमुख जमींदारियाँ | Bastar ki pramukh jamindariya )

जमींदार श्री कृष्ण पामभोई के कारण जमींदारी मैनेजमेंट के तहत थी। 147 एकड़ बंजर भूमि को कृषि योग्य भूमि से परिवर्तित किया गया था और 4300 रु. किसानों में तकाची ऋण के रूप में वितरित किया गया था। 466 खण्डी धान बोज के लिए किसानों में वितरित किया गया था।

1857-58 में महाविद्रोह काल में बस्तर को सीमा से लगे एरपल्ली और पोटे अहेरी जमींदारी अशांत क्षेत्र के रहे। ( बस्तर की प्रमुख जमींदारियाँ | Bastar ki pramukh jamindariya )
भोपालपट्टनम जमींदारी 1918 में जमींदार के ‘इनसेन’ होने के कारण कोर्ट ऑफ वार्ड के व्यवस्थापना में था। 62 वर्षीय जमींदार जगदलपुर में रहते थे। जमींदारी के अन्तर्गत 7 परगने 214 गाँव आते थे।

कुटरू जमींदारी

कुटरू जमींदारी बस्तर के दक्षिण में स्थित था रियासत के जमींदारियों में क्षेत्रफल की दृष्टि से यह सबसे बड़ा था। ( बस्तर की प्रमुख जमींदारियाँ | Bastar ki pramukh jamindariya )
इसका क्षेत्रफल लगभग 1360 वर्गमील था और 1941 की जनगणना के अनुसार यहाँ 19,765 लोग रहते थे। जमींदार की कुल आय 1941 में 31,520 रुपये थी। 1947 में जमींदारी की वार्षिक आय 34,822 रुपये और व्यय 18,911 रुपये थी जमींदार केसरी शाह थे। जो रियासत के पर्यवेक्षण में कार्य कर रहे थे। टाकोली के रूप में 2,890 रुपये बस्तर राजा को दिए गए।

वारंगल के काकतीयों के पलायन के दौर में एक सामत सन्यासी शाह भी परिवार, सेना व खजाना के साथ इन्द्रावती पार कर गया था। कुछ क्षेत्र पर उसने अधिकार भी कर लिया। सन्ड्रा नामक नया गाँव उसने बसाया। कान्डला, परतीगढ़, के नाग राजा को उसने परास्त किया। फरसेगढ़, पासेवाड़ा, तोयनार, गुदभागाँव के आस-पास का स्वामी सन्यासी सिंह बन गया। अन्नमदेव भी इन्द्रावती पार कर साम्राज्य स्थापित कर रहे हैं। यह जानकारी शाह को मिली अन्नमदेव को भी अपने गुप्तचरों से सन्यासी शाह के बारे में जानकारी मिल चुकी थी दोनों की मुलाकात हुई। ( बस्तर की प्रमुख जमींदारियाँ | Bastar ki pramukh jamindariya )

सन्यासी शाह ने अपने जीते प्रदेश अन्नमदेव को सौंपे अन्नमदेव ने सन्यासी शाह को बस्तर अंचल का दूसरा जागीरदार बनाया। कुटरू उनकी जमींदारी का मुख्यालय बना। कुटरू के सम्बन्ध में एवं दन्तकथा कही गई है कि सन्यासी शाह वर्तमान कुटरू के एक वृक्ष के नीचे विश्राम कर रहे थे। एक पक्षी की आवाज निरन्तर सुनाई दे रहा था कुकुटकुटर, कुकुट-कुटर सन्यासी शाह इस आवाज से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी राजधानी का नाम कुटरू रख लिया। आगे चलकर यह जमींदारी चार भागों में विभक्त हुई। फरसेगढ़, तोयनार, गुदमा और पासेवाड़ा।

कुटरू के जमींदार के सन्यासी शाह सरीशाह देवगढ़ (छिन्दवाड़ा) के गोंड घराने के थे। 1947 में कूटक जमींदारी में केवल 2 स्कूल थे। एक कुटक में दूसरा तोचनार में भोपालपट्टनम के 2 राजगड विद्यार्थीयों को प्रत्येक 8 रुपये मासिक की छात्रवृत्ति भोपालपट्टनम मिडिल स्कूल में अध्ययन जारी रखने के लिए दी जाती थी। जगदलपुर स्थित मिक्सन हाईस्कूल में अध्ययन रत जमींदार के एक छात्र को 15 रुपये प्रतिमाह छात्रवृत्ति दी जाती थी। ( बस्तर की प्रमुख जमींदारियाँ | Bastar ki pramukh jamindariya )

सुकमा जमींदारी

सुकमा जमींदारी का क्षेत्रफल 650 वर्गमील का था। 1941 की जनगणना के अनुसार वहां की जनसंख्या 47,872 की थी। जमींदारी की आय 25,799 रुपये थी यह जमींदारी 1910 के बस्तर विद्रोह काल में चर्चित रही। सुकमा जमींदारी से वस्तर राजाओं के वैवाहिक संबंध भी रहे हैं। बस्तर रियासत की सुकमा जमींदारी के अन्तर्गत 4 परगने सम्मिलित थे। उनमें से छिन्दगढ़, हमीरगढ़, कोरमिनका और केरलापाल।

सुकमा जमींदारी की कुल आय 72,586 रुपये और व्यय 74,281 रुपये था। जमीदार मदन मोहन देव वयस्क होने पर 23 मार्च 1945 को जमींदार का दायित्व वहन करने लगे। टाकोली के रूप में 7,800 रुपये बस्तर राजा को पटाये। ( बस्तर की प्रमुख जमींदारियाँ | Bastar ki pramukh jamindariya )

पामेड़ जमींदारी

रियासत को चौथी जमींदारी पामेड थी इनका क्षेत्रफल 230 मील था। पामेड़ जमींदारी को जनसंख्या 1941 के अनुसार 970 थी। यहां के लोगों के बारे में पं. केदारनाथ ठाकुर का मत है कि जमींदारी का सम्बन्ध इतिहास से नहीं है लेकिन यहां के लोग अपने को बस्तर का मशालची कहते हैं और वारंगल से आए बताते हैं। यहाँ के जमींदारों के प्रमाण उपलब्ध नहीं है सिवाय गाय बैल और भैंस के। पामेड़ जमींदारी की 1947 में कुल आय 6,365 रुपए और व्यय 2,858 रु हुई। पामेड जमींदारी 1930 से कोर्ट आफ वार्ड के व्यवस्थापन में चला आ रहा था। जमींदार भेजी रामराव राज गोंड थे 56 वर्ष की अवस्था थी अपने परिवार के साथ कोतापल्ली गाँव में रहते थे।

दन्तेवाड़ा जमींदारी

दन्तेवाड़ा जमींदारी की गणना बड़ी जमींदारियों में होती थी इस जमींदारियों में जब महाराज बस्तर दन्तेश्वरी माई के दर्शनार्थ आते थे तब इन्हें गाँव बढ़ाया गया जो आके चढ़ौती जागीर जमींदारी में परिणित हो गया। दन्तेवाड़ा के जमींदारीन स्वयं मां दन्तेश्वरी ही थी। जमींदारी की सारी प्रशासनिक एवं पूजा व्यवस्था के लिए राजा अपने परिवार के सदस्य रखे यही पुजारी आगे चलकर जिहा कहलाए। यह जिहा परिवार वर्तमान समय में भी पूजा व्यवस्था सम्हाले हुए हैं। मां दन्तेश्वरी को रानी मेघावती द्वारा 5 गाँव सम्वत् 1465 ई के पूर्व चढ़ाई थी। ( बस्तर की प्रमुख जमींदारियाँ | Bastar ki pramukh jamindariya )

परलकोट जमींदारी

रियासत की सबसे छोटी जमींदारी परलकोट थी यहां के जमींदार रावत जाति (यादव) के थे वारंगल से पशुधन के व्यवस्था प्रमुख थे इस कारण उक्त क्षेत्र का जमींदार उन्हें माना गया। इस वंश का अंतिम जमींदार दास रमल्लैया था। इस प्रकार परलकोट जमींदार सूर्यवंशी क्षत्री थे। परलकोट जमींदार काकतीय वंश का ही था। कहीं-कहीं किलेपाल गंगालूर, गढ़िया (ताहड़ी गुडा) कई स्थानों पर कोयतुर (गोड) जमींदार बनाए गए।

इस प्रकार प्राचीन समय में बस्तर में 48 परगने 9 तालुक और 13 जमींदारियाँ थीं। कोटवाड़ में 5 परगने के सिवाय जयपुर से दो परगने अर्थात् सालसी और बागदरी, और ले लिए गोदावरी नदी के उत्तर में 13 जमींदारियों में से तीन जमींदारियां हैदराबाद में शामिल किए गए इनके नाम घेरला, बंग तथा राकापल्ली थे। पहले पेरला बंगर राकापल्ली, आलवांका दिसा के कोटपाड़ पड़गढ़ उमरकोट, रायगढ़ सान्निमीगढ़ सन् 1800 तक बस्तर में सम्मिलित थे।

अन्य जमींदारियों में चिन्तनार भेजी कापली कोठागुडम, सुकमा, कोतापल्ली इन क्षेत्रों नागों का आधीपत्य था और सन् 1800 तक स्वतंत्र राज्य था। 1800 के पश्चात् बस्तर में बस्तर महाराज द्वारा सम्मिलित किया गया। ( बस्तर की प्रमुख जमींदारियाँ | Bastar ki pramukh jamindariya )

इस भेजी जमींदारी में जगराज जमींदार के पद पर आसीन हुए और क्रमश: नमराज निमाराज, रामराज, जमींदार बने इन जमींदारों के उत्तराधिकारी के अभाव से जमींदारी बस्तर सरकार के हाथ में आ गई।

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Source : Internet

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Rajveer Singh
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