छत्तीसगढ़ी मुहावरे लोकोक्तिया | Chhattisgarhi Muhaware | Chhattisgarhi Lokoktiyan
छत्तीसगढ़ के शरीर सम्बन्धी लोकोक्तियाँ
1.मूड़ कटड्डाये काहू के, लईका सीखे नाउ के।
उस्तरे से किसी के सिर में चोट लगती है पर नाउ का लड़का बाल बनाना सीखता है। अर्थात् किसी के अहित से किसी का हित जुड़ा होता है।
2.चुंदी के मुड़े ले मुरदा हरू नई होय।
बाल काट देने से मुर्दे का वजन हल्का नहीं हो जाता अर्थात् थोड़ा कार्य करने मात्र से किसी का गुरूत्तर कार्य कम नहीं हो जाता।
3.अंधरा मं कनवा राजा।
अंधों में एक काना है उसे लोगों ने राजा मान लिया अर्थात् नितांत अयोग्य व्यक्तियों के भीड़ में एक कम अयोग्य व्यक्ति की पूछपरख होना या मूर्खो के बीच अल्पज्ञानी को श्रेष्ठ समझना।
4.दाँते टूटीस, मुँहे बनीस।
दाँत टुटा, मुँह बना अर्थात् नुकसान के साथ लाभ भी होना छोटे मुँह से बड़ी बात अर्थात् सामर्थ्य से अधिक बढ़ बढ़कर बात करना।
5.अपन हाँत जगन्नाथ।
अपना हाथ जगन्नाथ अर्थात इच्छित वस्तु मनचाही मात्रा में पाना क्योंकि उस पर अपना आधिपत्य है।
6.हाथ के अलाली, मुँह में मेछा जाये।
हाथ उठाने के आलस्म में मूंछ मुँह में जाती है, अकर्मण्य, आलसी व्यक्ति पर व्यंग्य।
7.खोखा कनवा बड़ा उपााई।
लंगड़े तथा काने व्यक्ति उपद्रवी स्वभाव के होते है। खोरी गोड़ में चुरवा के साथ। लंगड़ी पैर में चुरवा (पैर में पहनने का आभूषण) की चाह करना अर्थात् असमर्थ होने पर भी बड़ी-बड़ी उपलब्धि पाने की इच्छा रखना।
8.नकटा बूचा सबले उँचा।
नकटा (नाक कटा) और बूचा (कान कटा) मरना अर्थात् संयोगवश किसी काम का बन जाना।
छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य संबंधी लोकोक्तियाँ
इसके अंतर्गत अच्छे तथा बुरे स्वास्थ्य संबंधी लोकोक्तियाँ आती है
1.रोग बढ़े भोग ले- रोग भोगविलास से बढ़ता है।
2.दमा दम के सघरे जाथे।-दमा (अस्थमा) मृत्यु होने पर ही साथ छोड़ता है।
3.चैत सुते भोगी, कुँवार सुते रोगी।
चैत माह में भोगी व्यक्ति और क्वाँर माह में रोगी व्यक्ति सोता है।
4.जेवन बिगड़े त दिन बिगड़े।
भोजन बिगड़ने पर दिन बिगड़ जाता है अर्थात् मन की प्रसन्नता के लिए अच्छा भोजन जरूरी है।
5.कुँवार करेला कातिक दही, मरही नहीं त परही सही।
क्वार में करेला और कार्तिक में दही खाने से आदमी मरता भले नहीं पर अस्वस्थ जरूर हो जाता है।
6.बिहनियाँ उठि के रोज नहाये, ओला देख बैद पछताये।
जो नित्य प्रात: उठकर स्नान करता है वह कभी अस्वस्थ्य नहीं होता, बीमार नहीं पड़ता उसे स्वस्थ देख वैद्य पछताता है।
7.खाके मुते सुते बाउ, काहे बैद बसावे गाउ।
भोजन करके मूत्र करना और फिर बाँयी करवट सो जाने पर व्यक्ति ऐसा निरोग रहता है कि गाँव में वैद्य आवश्यकता नहीं होती।
छत्तीसगढ़ के विश्वास अंधविश्वास संबंधी लोकोक्तियाँ
1.गुरू गोसइया एकेच आये।
भगवान घर देर वे अंधेर नइ ए।
गुरू और भगवान एक ही होते है। भगवान के घर देर है पर अंधेर नहीं है अर्थात् देर से ही सही कार्य अवश्य संधता है।
2.रोये मं राम नड़ मिलय।
रोने से राम नहीं मिलता अर्थात् हिम्मत हारने से काम नहीं होता।
3.भज मन सीता रामा, कौड़ी लगे न दामा।
ईश्वर का नाम जपने में पैसे नहीं लगते ।
पेट ले परमेसर।
पेट भरने पर ही परमात्मा का ध्यान संभव है।
4.राखही राम त लेगही कोन, लेगही राम त राखही कोन।
ईश्वर जिसे रखेगा उसे कौन ले जा सकता है और ईश्वर ले जाना चाहता है उसे कौन रख सकता है। अर्थात् जीवन और मृत्यु ईश्वर के हाथ में है।
5.माने त देवता, नई त पथरा।
मानों तो देवता, नहीं तो पथरा। भक्ति के लिए श्रध्दा और विश्वास का होना जरूरी है।
6.जादा के जोगी मठ उजार।
अधिक जोगियों के होने से मठ उजड़ जाता है अर्थात् अधिक लोगों के होने से काम बिगड़ जाता है।
7.काम ले करम, दान ले धरम।
कार्य करने से भाग्य बनता है और दान देने से धर्मलाभ होता है। करतूत, मरते समय दिखाई देती है अर्थात् कर्मानुसार व्यक्ति को मृत्यु मिलती है।
8.टूटहा करम के फूटहा दोना।
अभागे व्यक्ति का दोना भी फटा होता है।
9.कहाँ जाबे भागे, करम जाही आगे।
कहीं भी भागकर जाओ, कर्म आगे जाता है अर्थात् कर्म अनुसार ही फल मिलता है ।
छत्तीसगढ़ के मनोवृत्ति संबंधी लोकोक्तियाँ
इसके अंतर्गत मानव स्वभाव को व्यक्त करने वाली लोकोक्तियाँ को रखा जा सकता है
1.छोट कुन कहिनी सरी रात उसनिंदा।
छोटी सी कहानी सुनाने के लिए सारी रात जागना पड़ा अर्थात् साधारण से काम के लिए बहुत अधिक परेशान होना।
2.पाँच कौड़ी के तिवरी, घर धरौं कि भीतरी
पाँच कौड़ी में खरीदी तितरी को कहाँ सहेजूं अर्थात छोटी-सी वस्तु के लिए बहुत अधिक चिंतित होना।
3.दूरिहा के ढोल सुहावन।
दूर से सुनने पर ढोल की आवाज मधुर लगती है अर्थात् अप्राप्तय वस्तु प्रियकर लगती है।
4.लाद दे लदा दे, छै कोस अमरा दे।
सामान को सिर पर रख भी दो और छै कोस की दूरी पर तय करवा दो अर्थात् सभी काम करवा देना ।
5.कहाँ गये कहूँ नहीं, का लाने कुछु नहीं।
बिना काम के समय और सामग्री दोनों का नुकसान करना।
6.छेरिया छटारा मारेथ।
बकरी लात मारती है अर्थात् प्रतिकूल परिस्थिति में कमजोर व्यक्ति भी दुत्कारता है।
7.सब दिन चंगा तिहार के दिन गंगा।
साधारण दिनों में ठाठ-बाठ और त्यौहार के दिन सूखा सूखा।
8.बैठन दे त पीसन दे।
पहले बैठने की अनुमति माँगनर फिर पीसने लग जाना अर्थात् धीरे-धीरे पूरा मतलब निकाल लेना। खीरा और भुट्टा चुराने वाला व्यक्ति बाद में सेंध मारकर चोरी करता है।
9.जेखर खाय तेखर गाय।
जिसका खाये उसी का गुण गाये, मनुष्य स्वाथी होता है।
10.जउन पतरी में खाये, तउन में छेद करय।
जिस पत्तल में खाया, उसी में छेद किया अर्थात् विश्वासघात करने वालों पर व्यंग्य।
11.नंगरा ले खुदा डेराये।
दुष्ट व्यक्ति से ईश्वर भी डरता है।
छत्तीसगढ़ के शिक्षा संबंधी लोकोक्तियाँ
1.कबड्डी के खेल, लीम के तेल।
कबड़ी का खेल नीम के तेल जैसा लाभप्रद है और रोग निवारक होता है।
2.पाँच सात जुटि करे काज, हारे जीते नहीं लाज।
पाँच-साल लोग मिलकरयदि काम करें और हार जायें तो लज्जा नहीं आती अतः कोई भी काम सबको मिलकर करना चाहिए।
3.छाय धूपबारा, त घर बईठ तेरा।
दोड़ धूपकर यदि बाहर आना मिलता है और घर पर रहकर काम करने से तेरह आना मिलता है तो घर पर बैठकर काम करना ही बेहतर है।
4.दूध के जरे मही ल फूंक फूंक के पीथे।
दूध से जला व्यक्ति मठा ( छाछ) को फूँक-फूँककर पीता है। अर्थात् चोट-खाया व्यक्ति सम्हलकर काम करता है।
छत्तीसगढ़ के हास्य व्यंग्य संबंधी लोकोक्तियाँ
लोकोक्तियाँ मानवी ज्ञान की चुटीली उक्तियाँ भी कही जाती है। इनमें जहाँ मर्मस्पर्शी स्थान को बेधने की क्षमता होती है वहीं मर्मस्पर्शी स्थल को गुदगुदाने की शक्ति भी ।
1.नाव निर्मलदास अउ देहं भर दादे दाद।
नाम निर्मलदास है और शरीर भर दाग ही दाग हैं, नाम और गुण के विपरित होने पर व्यंग्य। खसू बर तेल नहीं, घोड़सवार बर दिया।
2.खस्सू बर तेल नहीं , घुड़सवार बर दिया
खस्सू (छोटी खाज) में लगाने के लिए तेल नहीं और घुड़साल में दिया जलाने की सोचना अर्थात् सामर्थ्य से बढ़कर कल्पना करना।
3.कभू काल खडन करेला, हागिन त बीजे बीजा।
पहली बार कोई कार्य करना और असफल हो जाना।
4.जतका के झाँझ नहीं, ततका के मंजीरा।
जितने का झाँझ नहीं उससे अधिक का मंजीरा है। अर्थात् मूलवस्तु से अधिक गौण वस्तु खर्च माँगती है।
5.हर्रस देव के भर्रस पूजा।
जैसा ईश्वर होता है वैसे ही उसकी पूजा होती हैं।
6.हाथी घोड़ा बहगे, गधा पूछे कतका पानी।
शेखी बघारने वालों पर व्यंग्य।
7.ओखी ल खोखी।
बहाना करने वाला खाँसी का बहाना करता है जो अनुचित है।
8.बूढ़ बिहाव परोसी सुख।
बूढ़े व्यक्ति यदि विवाह करते हैं तो पड़ोसी को आनंद मिलता है। व्यंग्योक्ति ।
9.नाव लछमी बाई, छेना बीन बर जाये।
नाम और गुण में तालमेल ने होना।
10.तन बर नई ए लता, जाए बर कलकत्ता।
तन में कपड़ा नहीं और कलकत्ता जाने की इच्छा करना अर्थात् सामर्थ्य से बढ़कर कार्य करने की इच्छा पर व्यंग्य।
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