नमस्ते विद्यार्थीओ आज हम पढ़ेंगे बस्तर भूषण पंडित केदारनाथ ठाकुर | Bastar bhushan pandit kedarnath thakur के बारे में जो की छत्तीसगढ़ के सभी सरकारी परीक्षाओ में अक्सर पूछ लिया जाता है , लेकिन यह खासकर के CGPSC PRE और CGPSC Mains और Interview पूछा जाता है, तो आप इसे बिलकुल ध्यान से पढियेगा और हो सके तो इसका नोट्स भी बना लीजियेगा ।
बस्तर भूषण पंडित केदारनाथ ठाकुर | Bastar bhushan pandit kedarnath thakur
बस्तर सेन्ट्रल प्राव्हिन्स का सबसे बड़ा सामंतीय राज्य था। क्षेत्र विस्तार के दृष्टिकोण से कुल 13062 वर्ग मील में फैले बस्तर के उत्तर में रायपुर मंडल, पूर्व में उड़ीसा का पश्चिमी प्रांत पश्चिम में महाराष्ट्र का पूर्वान्त तथा दक्षिण में गोदावरी नदी का क्षेत्र आता है। इस तरह वस्तर के उत्तर में कांकेर जमींदारी पूर्व में विन्द्रानवागढ़ और जयपुर जमींदारी पश्चिम में इन्द्रावती नदी और अहेरी जमींदारी (बांदा जिला) तथा दक्षिण में भद्राचलम तालुक (गोदावरी जिला, मद्रास प्रेसीडेंसी) का क्षेत्र आता है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि बस्तर नाम “बस्तरी” (बस्तरी) के नाम पर पड़ा। बाँसों के झुरमुट वाले इस स्थान पर राज्य के संस्थापक अन्नमदेव ने अपने जीवनम कार पड़ा (बासा के वाले इस राज्य के ने अपने प्रायः ये समस्त युगीन संस्कृति का आज भी पालन करती हैं।
बस्तर की पुरातात्विक तथा ऐतिहासक जानकारिया
बस्तर की पुरातात्विक तथा ऐतिहासक गर्वेषणा की कमी के कारण प्राप्त अभिलेख, ध्वस्त मंदिर एवं खंडहर आदि के आधार पर इस अंचल का एक ऐतिहासिक चित्र बनता है जो चौथी पांचवीं शताब्दी ईस्वी से प्रायः सिलसिलेवार प्राप्त है। चक्रकूट बस्तर की प्राचीनतम ऐतिहासिक संज्ञा है वाकाटक वंश का भी अधिकार बस्तर तथा कोरापुट में रहा होगा। चालुक्य तथा काकतीय वंश के इतिहास में भी चक्रकूट अथवा बस्तर में इनके प्रदेश की चर्चा है। ( बस्तर भूषण पंडित केदारनाथ ठाकुर | Bastar bhushan pandit kedarnath thakur )
10वीं 11वीं से लेकर 14वीं शताब्दी के बीच चक्रकूट में छिंदक नागों का शासन प्रारंभ हुआ। प्रतीत होता है कि लगभग एक सहस्र वर्ष के इस ऐतिहासिक युग में भी बस्तर की आदिम प्रजातियां अपनी मूल संस्कृति तथा अपने न्याय विधान, सामाजिक जीवन आदि के अर्थों में राज्य प्रशासन के द्वारा प्रभावित नहीं की गई।
14वीं शताब्दी के प्रारंभ में अन्नमदेव ने बस्तर में प्रवेश किया और अपना राज्य स्थापित किया। छिन्दक नाग और अन्नम देव की अवधि से ही बस्तर का राजकीय इतिहास उपलब्ध होता है। अन्नमदेव तथा उनकी परंपरा अंग्रेजी शासन के प्रारंभ तक अपने प्रशासन द्वारा आदिम प्रजातियों का पारंपरिक गठन छिन्न भिन्न नहीं किया। ( बस्तर भूषण पंडित केदारनाथ ठाकुर | Bastar bhushan pandit kedarnath thakur )
महाकौशल में मैथिलों के आगमन
महाकौशल में मैथिलों के आगमन एवं उनके मार्गों के विषय में विवाद होते हुए भी मैथिलों के महाकौशल में आने के दो मार्गों के मत को स्वीकार किया जा सकता है। प्रथम मार्ग दरभंगा, जबलपुर तथा मंडला तथा दूसरा मार्ग छोटा नागपुर के रायगढ़, सारंगढ़, शिवरीनारायण, आदि क्षेत्रों से होता हुआ माना जा सकता है। जबलपुर से उनका मार्ग दो भागों विमुक्त हुआ। एक लांजी, बालाघाट एवं गोंदिया की ओर से तथा दूसरा मंडला से कवर्धा, खेरागढ़ और राजनांदगांव की ओर से मंडला से ही एक मार्ग छत्तीसगढ़ की ओर जाने के लिये अपनाया गया था, वह था अमरकंटक, पेन्ड्रा रोड, कोटा, रतनपुर, बिलासपुर एवं रायपुर।
रायपुर से अभनपुर, राजिम, धमतरी, कांकेर, कोंडागांव एवं जगदलपुर की ओर भी मार्ग था। महाकौशल में मैथिल पंडित अधिकांशतः राजगुरू, राजपुरोहित, एवं राजज्योतिषो रहे और अपनी विद्वता के आधार पर अनेक ग्राम हासिल करते रहे जिन पर आज भी उनके वंशजों का अधिकार है। ( बस्तर भूषण पंडित केदारनाथ ठाकुर | Bastar bhushan pandit kedarnath thakur )
पं. केदारनाथ ठाकुर ( बस्तर भूषण )
बस्तर के राजगुरू पं रंगनाथ ठाकुर के पांचवें पुत्र श्री नाथ ठाकुर थे। उनके पुत्र गंभीरनाथ ठाकुर (के ही ज्येष्ठ पुत्र थे पं. केदारनाथ ठाकुर।
इनका जन्म रायपुर में 1870 में हुआ था। अपने युवा काल में ही पं. केदारनाथ ठाकुर ने “बस्तर भूषण” की रचना की। जिसकी समालोचना 1908 में सरस्वती पत्रिका एवं 1908 में ही इसकी समीक्षा वॅकेटेश्वर” समाचार पत्र (बंबई) में प्रकाशित हुई 3 बस्तर भूषण के बारे में पं. केदारनाथ ठाकुर के स्वयं के उद्वार थे “मैंने सन् 1508 में बस्तर भूषण नामक एक पुस्तक लिखी। मैं सोचता हूँ यह पुस्तक उस समय भारत में अपने ढंग की प्रथम उपलब्धि थी। मुझे एहसास होता है कि उन दिनों मेरी पुस्तक बस्तर भूषण से प्रेरणा प्राप्त कर “दमोह- दीपक” जैसी कृतियां अवतरित हुई। ( बस्तर भूषण पंडित केदारनाथ ठाकुर | Bastar bhushan pandit kedarnath thakur )
मुझे बस्तर वासियों से यह शिकायत रही है कि मेरी पुस्तक बस्तर भूषण के प्रति कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई जबकि विदेशियों ने बड़े चाव से मेरी पुस्तक पढ़ी और उसे काफी सराहा है।” उपरोक्त उद्वार उन्होंने सन् 1936 में व्यक्त किया जब एक दान पत्र द्वारा उन्होंने अपना निजी पुस्तकालय रुद्रप्रताप देव पुस्तकालय जगदलपुर को नई पीढ़ी के नाम भेंट कर दिया था। पुस्तकालय के अध्यक्ष तत्कालीन प्रशासक बस्तर स्टेट मि.ई. एस. हॉइड को संबोधित कर उन्होंने अपने उदार व्यक्त किये थे।
प. केदारनाथ ठाकुर की प्रमुख कृतियां
प. केदारनाथ ठाकुर की प्रमुख कृतियां बस्तर भूषण, सत्य नारायण और बसंत विनोद हैं। इन कृतियों का संग्रह उन्होंने केदार विनोद नामक पुस्तक में किया। वस्तर भूषण कृति को उन्होंने श्रीमान ई.ए. रूकसाहेब के द्वारा श्रीमान रायबहादुर पंडा बैजनाथ साहेब (सुपरिन्टेंडेन्ट) को समर्पित किया। यह समर्पण तिथि थी 26.10.1908 ( बस्तर भूषण पंडित केदारनाथ ठाकुर | Bastar bhushan pandit kedarnath thakur )
आत्मश्लाघा से स्वयं को दूर रखने वाले पं. केदारनाथ ठाकुर ने स्पष्ट शब्दों में स्वीकार किया कि “यह मेरा प्रथम उद्योग है कि में अपनी मूर्खता का परिचय लोगों में कराने के लिये हुआ। अपने पाहित्य को कम आंकते हुए उन्होंने पाठकों को अपनी कृति के आशय की ओर आकृष्ट किया है। ताकि पाठक उनके मूल उद्देश्य का सही रूप से मूल्यांकन कर सकें।
उन्होंने कृति की अच्छाई और बुराई को पाठकों को सौंपते हुए एवं अपने को अल्प मानते हुए भविष्य में उनसे प्रेरणा प्राप्त करने की बात कही है जो कि उन जैसे साहित्यकार के बहन का सूचक है। फारेस्ट मैनुअल का अनुवाद उन्होंने प्रशासन के आदेशानुसार, हिन्दी में किया। इस कार्य में उन्हें बाबू घनेश दत्त राय से भी सहयोग मिला। उनकी लेखनी में उर्दू का भी प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है। ( बस्तर भूषण पंडित केदारनाथ ठाकुर | Bastar bhushan pandit kedarnath thakur )
बस्तर भूषण कृति
देश में गजेटियर लिखने की परंपरा प्रायः मध्यप्रांत से ही शुरू मानी जाती है। (1868-1870- चार्ल्स प्रांट सी.पी. गजेटियर) वस्तुतः हिन्दी गजेटियर लेखन के शुरूआत के दृष्टिकोण से केदारनाथ ठाकुर की कृति “बस्तर भूषण” का विशिष्ट स्थान है। इसमें इतिहास के अतिरिक्त गजेटियर के सभी गुण तत्व मौजूद हैं। जहां तक बना है पुस्तक में राज्य के सभी हाल लिखने का प्रयत्न किया गया जिनके द्वारा क्षेत्र विशेष की भौगोलिक ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक संरचना का भास होता है।
जैसे-सीमा, नदी, पहाड़, जंगल फलफूल, जड़ी-बूटी, पशु पक्षी, जानवर, खनिज खदान, उपज, वनोपज, तालाब, कुंआ, बोली, रीति रिवाज, रहन सहन, संस्कृति, धर्म, खानपान, तंत्र मंत्र, जादू टोना, पर्व मेले, तीज त्यौहार, शिल्प, कला स्थापत्य, उत्खनन पुरातत्व, मनुष्य गणना आदि। ( बस्तर भूषण पंडित केदारनाथ ठाकुर | Bastar bhushan pandit kedarnath thakur )
महत्वापूर्ण घटनाये
अंग्रेजी काल में हिन्दी लेखन एक दुष्कर कार्य था लेकिन इसके बावजूद पं. केदारनाथ ने इतिहास और साहित्य दोनों क्षेत्रों में शासकीय सेवा के दौरान ही बड़ी कुशलता पूर्वक अपनी लेखनी चलाई। प. केदारनाथ ठाकुर बस्तर के राजनैतिक इतिहास को प्रकाशित कराने वाले थे लेकिन वह कार्य पूर्ण नहीं हो सका और न ही वह पांडुलिपि संप्रति उपलब्ध है।
लाल कलिंदर सिंह के द्वारा बस्तर के इतिहास लिखने की बात कही जाती है किन्तु न वह पांडुलिपि देखने में आई और न ही वह किताब छपी ऐसी स्थिति में बस्तर के इतिहास में वस्तर भूषण को ही हम हिन्दी की प्रथम ऐतिहासिक कृति मान सकते हैं। ( बस्तर भूषण पंडित केदारनाथ ठाकुर | Bastar bhushan pandit kedarnath thakur )
पं. केदारनाथ ठाकुर का एक मकान मैथिल पारा पुरानी बस्ती, रायपुर में भी था। उन्होंने अपने माता पिता की स्मृति में राम सागर तालाब खुदवाया था जिसके नाम पर वह क्षेत्र राम सागर पारा के नाम से जाना गया। इस तरह बस्तर भूषण के रचयिता पं. केदारनाथ ठाकुर का छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक विकास में भी योगदान था।
20वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में बस्तर जैसे अरण्याचल में शासकीय सेवारत किसी व्यक्ति के द्वारा इतिहास और साहित्य के प्रति ज्ञान निःसंदेह एक श्लाघनीय प्रयास था। पं. केदारनाथ के पूर्व हिन्दी में प्रकाशित अन्य महत्वपूर्ण कृतियों की जानकारी बस्तर अंचल में नहीं मिलती। ( बस्तर भूषण पंडित केदारनाथ ठाकुर | Bastar bhushan pandit kedarnath thakur )
बस्तर गौरवान्वित है इस बात के लिये कि देश का प्रथम हिन्दी गजेटियरल से लिखा गया। पं. ठाकुर की अनेक कृतियां अप्रकाशित रह गई। दुर्भाग्य से वे दुर्लभ बिखरें पृष्ठ भी अब नहीं मिल पाते अन्यथा निश्चित रूप से जीवन के अंतिम वर्षों की उनकी विचार शैली से समाज लाभान्वित होता।
प. केदारनाथ ठाकुर के अंतिम क्षण
जीवन के अंतिम क्षणों तक उनका लेखन कार्य जारी रहा जिसकी जानकारी एवं प्रमाण स्वरूप उनकी सन् 1938 की एक निजी डायरी है जो “पंडित शंकर ट्रेन स्मृति संग्रहालय पंथागार फुलवारी पारा, रतनपुर में सुरक्षित है। ( बस्तर भूषण पंडित केदारनाथ ठाकुर | Bastar bhushan pandit kedarnath thakur )
पं. केदारनाथ ठाकुर ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष चोखावाड़ा गांव (उड़ीसा सीमा से लगा) में बिताये पं. केदारनाथ ठाकुर का देहावसान मंगलवार दिनांक 23 जनवरी 1940 को हुआ। आत्म विश्वास एवं दृढ़ निश्चय के धनी पं. केदारनाथ ठाकुर बस्तर के प्रथम साहित्यकार थे जिन्होंने समान रूप से साहित्य और इतिहास पर अपनी अमिट छाप छोड़ी।
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