2023 छत्तीसगढ़ के दाऊ रामचंद्र देशमुख | Chhattisgarh ke Dau Ramchandra Deshmukh

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छत्तीसगढ़ के दाऊ रामचंद्र देशमुख | Chhattisgarh ke Dau Ramchandra Deshmukh
छत्तीसगढ़ के दाऊ रामचंद्र देशमुख | Chhattisgarh ke Dau Ramchandra Deshmukh

छत्तीसगढ़ के दाऊ रामचंद्र देशमुख | Chhattisgarh ke Dau Ramchandra Deshmukh

छत्तीसगढ़ अंचल में सांस्कृतिक पुनर्जागरण के अग्रदूत तथा कला जगत के धूमकेतु की उपमा से विभूषित दाऊ रामचन्द्र देशमुख ने अपनी लोककला, लोकगीत के माध्यम से शोषण और अभावों से जूझती छत्तीसगढ़ी समाज को जागृत करने के लिए सार्थक पहल की। छत्तीसगढ़ अंचल के अभाव ग्रस्त जीवन एवं पीड़ा ने उन्हें इतना मर्माहत किया कि यही उनकी सभी प्रस्तुतियों का मूल स्वर बन गया।

रामचन्द्र देशमुख का जन्म 25 अक्टूबर सन् 1916 ई. को दुर्ग जिले के पिनकापार नामक गांव में हुआ। उनके पिता श्री गोंविंद प्रसाद एक सम्पन्न किसान थे। बालक रामचन्द्र को बचपन से ही नाचा और नाटक देखने का शौक था। वे स्वयं पारंपरिक नाटकों तथा रामलीला में भाग लेने लगे। प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय विद्यालयों में पूरी करने के बाद उन्होंने नांगपुर विश्वविद्यालय से कृषि विषय में स्नातक की उपाधि अर्जित की। नागपुर विश्वविद्यालय से ही उन्होंने वकालत की परीक्षा भी उत्तीर्ण की। ( छत्तीसगढ़ के दाऊ रामचंद्र देशमुख | Chhattisgarh ke Dau Ramchandra Deshmukh )

देश में उन दिनों स्वाधीनता आंदोलन अपनी चरम सीमा पर थी। महात्मा गांधी जी के संपर्क में आने के बाद कुछ समय के लिए वे वर्धा आश्रम चले गए। यहाँ उन्होंने मानव सेवा, सादगी और सत्याचरण का संकल्प लिया। इसी बीच प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी डॉ. खूबचंद बघेल जी की सुपुत्री राधाबाई का विवाह दाऊ रामचन्द्र देशमुख से सम्पन्न हुआ।

विवाहोपरांत रामचन्द्र देशमुख दुर्ग जिले के बघेरा ग्राम में उन्नत कृषि अनुसंधान के साथ-साथ स्थानीय जड़ी बूटियों से गठिया वात और लकवा जैसी बीमारी का इलाज करते हुए जीवन बिताने लगे। इसी समय उन्होंने छत्तीसगढ़ की ग्रामीण संस्कृति का निकटता से अध्ययन किया। ( छत्तीसगढ़ के दाऊ रामचंद्र देशमुख | Chhattisgarh ke Dau Ramchandra Deshmukh )

सन् 1950 ई. में दाऊ रामचन्द्र देशमुख. ने अपने साथियों के सहयोग से ‘छत्तीसगढ़ देहाती कला विकास मंडल’ की स्थापना की जिसका मुख्य उद्देश्य ‘नसीहत का नसीहत और तमाशे का तमाशा’ था। उन्होंने तत्कालीन नाचा शैली का परिष्कार कर उसे सामाजिक दायित्व बोध से जोड़ने का प्रयास किया।

उन्होंने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सारे छत्तीसगढ़ से लोक कलाकारों को चुन-चुन कर एक मंच पर एकत्र किया। इनमें मदन निषाद, लालूराम, ठाकुर राम, बाबूदास और भुलवा दास, माला बाई, फिदा बाई प्रमुख थे। इस संस्था ने सन् 1951 ई. में ‘नरक अउ सरग’ किया। इसी बीच अधिकांश कलाकार प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर के साथ दिल्ली चले गए। जहाँ अंतर्राष्ट्रीय मंच पर छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति को पहचान मिली। ( छत्तीसगढ़ के दाऊ रामचंद्र देशमुख | Chhattisgarh ke Dau Ramchandra Deshmukh )

सन् 1954 से 1969 ई. तक रामचन्द्र देशमुख ने अपना सारा समय जनसेवा और समाज सुधार के कार्यों में लगाया। मंच के माध्यम से जन-चेतना विकसित करने की योजना उनके मन मस्तिष्क को झकझोरती रही। छत्तीसगढ़ अंचल के सम्मान बोधक व संस्कृति के प्रतीक ‘चंदैनी गोंदा’ के लिए दाऊ जी को कुछ और नेतृत्व कुशलता के बल पर दिन-रात अथक परिश्रम कर सभी कलाकारों को एक मंच पर लाने में सफल हुए खुमान साव, भैयालाल हेडऊ लक्ष्मण मस्तरिहा प्रेम पर फल हुए भैयालाल हेड़ऊ लक्ष्मण मस्तूरिहा प्रेम साइमन जैसे अनेक कलाकार उनके मंच से कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इसमें ‘चंदैनी गोंदा’ का प्रथम प्रदर्शन किया गया। इस कार्यक्रम के माध्यम से दाऊजी ने अपने पिछले पचास वर्षों की कला साधना, अंचल की सांस्कृतिक और सामाजिक धरोहर का सफल प्रदर्शन किया।

‘चंदैनी गोंदा’ का मंचन छत्तीसगढ़ अंचल के अलावा उत्तरप्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, दिल्ली व मध्यप्रदेश में सफलतापूर्वक किया गया। अखिल भारतीय लोककला महोत्सव यूनेस्को द्वारा आयोजित भोपाल सम्मेलन में इस कार्यक्रम की सराहना की गई। ( छत्तीसगढ़ के दाऊ रामचंद्र देशमुख | Chhattisgarh ke Dau Ramchandra Deshmukh )

इस सफलता से प्रेरित होकर दाऊ रामचन्द्र देशमुख ने सन् 1984 ई. में पं. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी के द्वारा रचित ‘कारी’ नाटक का मंचन किया जिसमें नारी उत्पीड़न व सामाजिक कुरीतियों पर जबरदस्त चोट की गई। उनकी अगली प्रस्तुती ‘देवार डेरा’ ‘थी, जो तत्कालीन • समाज में उपेक्षित देवार समाज की समस्याओं पर आधारित थी। ( छत्तीसगढ़ के दाऊ रामचंद्र देशमुख | Chhattisgarh ke Dau Ramchandra Deshmukh )

13 जनवरी सन् 1998 में रात्रि में हृदयगति रूक जाने से दाऊ रामचन्द्र देशमुख का देहावसान हो गया। दाऊ रामचन्द्र देशमुख का सादा जीवन, मानवीय व्यवहार और छत्तीसगढ़ की संस्कृति के प्रति संवेदनशीलता लोग सदैव याद रखेंगे।

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Hello my subscribers my name is Rajveer Singh and I am 30year old and yes I am a student, and I have completed the Bachlore in arts, as well as Masters in arts and yes I am a currently a Internet blogger and a techminded boy and preparing for PSC in chhattisgarh ,India. I am the man who want to spread the knowledge of whole chhattisgarh to all the Chhattisgarh people.

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