छत्तीसगढ़ के बलदेव प्रसाद मिश्र | Chhattisgarh Ke Baldew Prasad Mishra
बलदेव प्रसाद मिश्र का जन्म 12 सितम्बर सन् 1898 ई. को राजनांदगाँव (छत्तीसगढ़) के एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनके पिता श्री नारायण प्रसाद मिश्र मालगुजार थे, साथ ही तत्कालीन राजनांदगाँव स्टेट में लोककर्म विभाग के ठेकेदार भी। उनकी माता श्रीमती जानकी | देवी धर्मपरायण गृहिणी थीं।
बलदेव प्रसाद मिश्र अपनी माँ से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने सन् 1914 ई. में स्थानीय स्टेट हाईस्कूल से मैट्रिक परीक्षा पास की। उच्च शिक्षा की प्राप्ति के लिए वे नागपुर चले गए। वहाँ उन्होंने एम. ए. तथा एल. एल. बी. की परीक्षा पास की।
सन् 1920 ई. में बलदेव प्रसाद राजनांदगाँव लौटे। असहयोग आंदोलन के समय उन्होंने प्यारेलाल सिंह के साथ मिलकर राजनांदगाँव में स्वदेशी राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना की और विद्यार्थियों से सरकारी स्कूलों का त्यागकर इस विद्यालय में प्रवेश लेने हेतु आह्वान किया। मिश्र जी इस विद्यालय के अवैतनिक प्रधानपाठक थे। ( छत्तीसगढ़ के बलदेव प्रसाद मिश्र | Chhattisgarh Ke Baldew Prasad Mishra )
विद्यालय संचालन हेतु आवश्यक धन की व्यवस्था के लिए वे भागवत कथा का पाठ करते। उन दिनों लोग राष्ट्रीय विद्यालय को चंदा देने से कतराते थे। सरकार तथा स्टेट के भारी दबाव के कारण विद्यालय ज्यादा दिन तक नहीं चल सका। सन् 1922 ई. में डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र रायपुर चले गए।
वहाँ उन्होंने पं. रविशंकर शुक्ल के सहायक के रूप में वकालत प्रारंभ की। इसमें उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली। सन् 1923 ई. में रायगढ़ नरेश चक्रधर सिंह के बुलावे पर वे वहाँ चले गए। वे लगातार सत्रह वर्षों तक क्रमश नायब दीवान तथा दीवान जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्य करते रहे। अपनी प्रशासनिक व्यवस्था में मिश्रजी ईमानदारी, निष्पक्षता, चारित्रिक दृढ़ता और अपूर्व कार्यक्षमता के लिए प्रसिद्ध रहे।
उन्होंने जन कल्याण के लिए रायगढ़ में स्थाई महत्व के कई कार्य संपन्न कराए। इनमें अनाथालय, औद्योगिक प्रशिक्षण संस्था, संस्कृत पाठशाला, वाणिज्य महाविद्यालय तथा नेत्र चिकित्सालय प्रमुख हैं। उन्होंने राजा चक्रधर सिंह के नाम पर एक गौशाला का निर्माण कराया।( छत्तीसगढ़ के बलदेव प्रसाद मिश्र | Chhattisgarh Ke Baldew Prasad Mishra )
डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र की प्रेरणा से रायगढ़ में गणेषोत्सव नए तथा आकर्षक ढंग से मनाया जाने लगा। इसमें देशभर के संगीतकार, कलाकार एवं साहित्यकार भाग लेने लगे। रायगढ़ में कवि सम्मेलन की शुरुआत उन्होंने ही की। वे टाउन हाल में कवि सम्मेलन का आयोजन कराते जिसमें पं. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, भगवती चरण वर्मा, पं. लोचन प्रसाद पाण्डेय, पं. मुकुटधर पाण्डेय जैसे दिग्गज कवि शामिल होते ।
तत्कालीन रायगढ़ रियासत में बिताए सत्रह वर्ष डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र के जीवन प्रसाद मिश्र का सर्वश्रेष्ठ समय रहा। यहीं पर उन्होंने ‘तुलसी दर्शन’ जैसे महाकाव्य और षोधप्रबंध का लेखन कार्य किया, जिस पर उन्हें सन् 1939 ई. में नागपुर विश्वविद्यालय ने डी.लिट्. की उपाधि प्रदान की थी। यहीं पर उन्होंने मृणालिनी परिणय, समाज सेवक, मैथिली परिणय, कोषल किषोर, मानस मंथन, जीवन संगीत, जीवविज्ञान और साहित्य लहरी जैसे उत्कृष्ट ग्रंथों की रचना की।
सन् 1940 ई. में डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र बीमार पड़ गए। दीवान का पद छोड़ दिया एम. बी. आर्ट्स कॉलेज, बिलासपुर दुर्गा महाविद्यालय, रायपुर एवं कल्याण महाविद्यालय, भिलाई में अध्यापन कार्य किया। वे नागपुर विश्वविद्यालय में दस वर्षों तक हिंदी के अवैतनिक विभागाध्यक्ष तथा 5 मार्च सन् 1970 से 4 मार्च सन् 1971 ई. तक इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के उप कुलपति रहे। प्रयाग, लखनऊ, आगरा,
दिल्ली, पंजाब, पटना, कलकत्ता, सागर, जबलपुर, नागपुर, वाराणसी, हैदराबाद तथा पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर से सम्बद्ध रहे तथा इन विश्व विद्यालयों के पी-एच.डी. व डी. लिट्. के शोध परीक्षक रहे। वे 100 से अधिक शोध ग्रंथों के निरीक्षक रहे। वे मानस प्रसंग के एक यषस्वी प्रवचनकार थे।( छत्तीसगढ़ के बलदेव प्रसाद मिश्र | Chhattisgarh Ke Baldew Prasad Mishra )
उन्हें राष्ट्रपति भवन में भी प्रवचन के लिए भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसादजी ने आमंत्रित किया था। डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र ‘मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ के तीन बार (सागर, नागपुर तथा रायपुर) अध्यक्ष बने। वे अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के तुलसी जयंती समारोह के अध्यक्ष, गुजरात प्रदेषीय एवं मुंबई प्रदेशीय राष्ट्रभाषा सम्मेलन एवं पदवी दान महोत्सव के अध्यक्ष बने ।
सन् 1946 में डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र की अमरकृति महाकाव्य ‘साकेत संत’ प्रकाशित हुई। उन्होंने अस्सी से अधिक ग्रंथों की रचना की। वे ब्रजभाषा और खड़ी बोली दोनों में लिखते थे। गद्य और पद्य दोनों ही विधाओं पर उनका समान अधिकार था प्रशासन, समाज सेवा और शिक्षा आपके कर्मक्षेत्र रहे तथा साहित्य जीवन साधना रही है।( छत्तीसगढ़ के बलदेव प्रसाद मिश्र | Chhattisgarh Ke Baldew Prasad Mishra )
5 सितम्बर सन् 1975 को उनका देहांत हो गया। रायपुर, खरसिया तथा राजनांदगाँव की नगर पालिकाओं के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष एवं खुज्जी के विधायक के रुप में जन कल्याण के अनेक कार्य करवाए। उनकी समाज सेवा में अभिरुचि देखकर पं. रविशंकर शुक्ल ने उन्हें मध्यप्रदेश भारत सेवक समाज’ का संस्थापक बनाकर उसे संगठित करने का दायित्व सौंपा। बाद में पं. जवाहरलाल नेहरु ने उन्हें ‘भारत सेवकं समाज’ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में ले लिया तब उनका कार्यक्षेत्र राष्ट्रीय स्तर का हो गया।