काकतीय वंश छत्तीसगढ़ | Kakatiya Vansh Chhattisgarh | Kakatiya Dynasty Chhattisgarh
काकतीय वंश छत्तीसगढ़
(1324 से 1966 तक)
संस्थापक > अन्नदेव
राजधानी > मंधोता
अन्नमदेव (1324-1369) :-
- 1324 में काकतीय वंश की स्थापना मंधोता में किया।
- चक्रकोट से राजधानी मंधोता ले गया।
- इन्होंने तराला ग्राम व शंकिनी-डंकिनी नदी के संगम पर माँ दंतेश्वरी मंदिर का निर्माण करवाया।
- इसे बस्तर में चालकी वंश कहते है।
- इसने विवाह चंदेल राजकुमारी सोनकुवंर से किया ।
हमीर देव (1369-1410 ) :-
- उड़ीसा के इतिहास में इसका वर्णन मिलता है।
भैरमदेव (1410-1468) :-
- इसकी पत्नी मेघावती आखेट विद्या में निपुण थी।
- मेघावती के नाम पर आज भी मेघी साड़ी बस्तर में प्रचलित है।
पुरुषोत्तम देव (1468-1534) :-
- मंधोता से राजधानी बस्तर ले गया ।
- इन्होंने प्रसिद्ध जगन्नाथपुरी उड़ीसा का यात्रा किया था।
- उड़ीसा के शासक ने इन्हें 16 पहिये वाला रथ प्रदान कर रथपति की उपाधि दिया था।
- बस्तर आकर गोंचा पर्व या रथयात्रा प्रारंभ किया था।
- इनका विवाह कंचन कुंवर (बघेलिन) से हुआ था।
जयसिंह देव (1534-1558) :-
नरसिंह देव (1558-1602) :-
- इसकी पत्नी लक्ष्मी कुंवर ने अनेक तालाब व बगीचे बनवाए थे।
प्रताप राज देव (1602-1625) :-
- इसे गोलकुण्डा के राजा कुलुकुतुब शाह को पराजित किया था।
जगदीशराज देव (1625-1639) :-
- इसके शासन काल में गोलकुण्डा के राजा अब्दुल्ला कुतुब शाह ने आक्रमण किया था।
वीरनारायण देव (1639-1654) :-
वीर सिंह देव (1654-1680) :-
- अपने शासन काल में राजपुर का दुर्ग (किला) बनवाया।
दिक्पाल देव (1680-1709) :-
राजपाल देव (1709-1721) :-
- इसे रक्षपाल देव भी कहते है।
- इन्होंने प्रौढ़ प्रताप चक्रवर्ती की उपाधि धारण किया था।
- यह मणिकेश्वरी देवी (दंतेश्वरी देवी) का उपासक था।
चन्देल मामा (1721-1731) :-
- यह चंदेल वंश व चंदेलिन रानी का भाई था।
- दलपत देव ने रक्षा बंधन के अवसर पर इसकी हत्या कर दी।
दलपत देव (1731-1774) :-
- इन्होंने 1770 में बस्तर से राजधानी जगदलपुर ले गया ।
- इसी समय रतनपुर के कल्चुरियों का अंत भोंसले ने किया था।
- भोंसला सेनापति नीलूपंत ने बस्तर में प्रथम बार आक्रमण किया लेकिन असफल रहा।
- इसी समय बस्तर में बंजारों द्वारा वस्तु विनिमय व्यापार प्रारंभ हुआ था।
- इसी व्यापार के कारण बाहरी लोग बस्तर में प्रवेश करने लगे परिणाम स्वरूप जनजाति विद्रोह प्रारंभ हुआ।
अजमेर सिंह (1774-1777) :-
- इसे क्रांति का मसीहा कहते है।
- 1774 में अजमेर सिंह व दरिया देव के बीच हल्बा विद्रोह हुआ था।
- भोंसले ने जगदलपुर पर आक्रमण कर अजमेर सिंह को छोटे डोगर भागने पर विवश कर दिया।
दरिया देव (1777-1800) :-
- अजमेर सिंह के विरूद्ध षड्यंत्र कर मराठों की सहायता की ।
- दरिया देव ने कोटपाड़ संधि 6 अप्रैल 1778 में मराठों से किया तथा प्रतिवर्ष 59000 टकोली देना स्वीकार किया।
- अप्रत्यक्ष रूप से बस्तर का संचालन रतनपुर से होने लगा।
- दरिया देव प्रथम काकतीय शासक था जिसने मराठों की अधीनता स्वीकार किया था।
- इसी समय बस्तर छ.ग. का अंग बना।
- इसी समय 1795 में भोपालपट्टनम् संघर्ष हुआ था।
- 1795 में कैप्टन ब्लंट पहले अंग्रेज यात्री थे जिन्होंने बस्तर के सीमावर्ती क्षेत्रों की यात्रा की। बस्तर पर प्रवेश नहीं कर पाये। परन्तु कांकेर की यात्रा की।
महिपाल देव (1800-1842) :-
- इन्होंने मराठों का वार्षिक टकोली देना बंद कर दिया।
- इसके शासन काल में 1825 में गेंदसिंह के नेतृत्व में परलकोट विद्रोह हुआ था।
भूपाल देव (1842-1853) :-
- अपने सौतेले भाई दलगंजन सिंह को तारापुर परगने का जमीदार बनाया था।
- इसी समय मेरिया (1842) व तारापुर (1842) विद्रोह हुआ था।
भैरम देव (1853-1891) :-
- अंग्रेजों के अधीन प्रथम काकतीय शासक था।
- 1856 में छ.ग. संभाग का प्रथम डिप्टी कमिश्नर चार्ल्स इलियट बस्तर आया था।
- इसी समय लिंगागिरी (1856) मुड़िया (1876) विद्रोह हुआ था।
रानी चोरिस का विद्रोह (1878-86):-
- इनका वास्तविक नाम जुगराज कुंवर थी।
- इसने अपने पति भैरमदेव के विरुद्ध विद्रोह की थी।
- इसलिए इसे छ.ग. का प्रथम विद्रोहिणी कहते है।
रूद्र प्रताप देव (1891-1921) :-
- इनका राज्यभिषेक 1908 में हुआ था।
- इनका शिक्षा राजकुमार कॉलेज रायपुर में हुआ था।
- इन्होंने जगदलपुर को चौराहों का शहर बनवाया।
- पुस्तकालय की स्थापना व बस्तर में शिक्षा अर्जित किया। घेतोपोनी प्रथा प्रचलित थी जो स्त्री विक्रय से सम्बंधित
थी। - यूरोपीय युद्ध में अंग्रेजों की सहायता करने के कारण इसे सेंट ऑफ जेरू सलेम की उपाधि से नवाजा गया था।
- इसी समय 1910 में गुण्डाथुर ने भूमकाल विद्रोह किया था।
- इनका एक ही पुत्री प्रफुल्ल कुमारी देवी थी।
प्रफुल्ल कुमारी देवी (1921-1936) :-
- छ.ग. की प्रथम व एकमात्र महिला शासिका थी।
- इनका विवाह उड़ीसा के राजकुमार प्रफुल्ल चंद भंजदेव से हुआ था।
- इनका राज्याभिषेक 12 वर्ष के उम्र में हो गया था।
- इनकी मृत्यु 1936 में अपेंडी साइटिस नामक बीमारी से लंदन में हुआ था। (रहस्यमय)
- इनका पुत्र प्रवीरचंद भंजदेव था।
प्रवीरचंद भंजदेव (1936-1966) :-
- यह अंतिम काकतीय शासक था।
- 1 जनवरी 1948 में बस्तर रियासत का भारत संघ में विलय हो गया।
- कम उम्र के प्रसिद्ध विधायक व बस्तर क्षेत्र के 12 में से 11 विधानसभा क्षेत्र में इनके नेतृत्व में स्वतंत्र उम्मीदवारों ने जीत हासिल किया था। 1966 में गोलीकांड में इनकी मृत्यु हुई थी।
- भारतीय राजनीति का भेंट चढ़ गया।
भंजदेव परिवार
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प्रवीरचंद भंजदेव
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विजयचंद भंजदेव
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भरतचंद भंजदेव
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कमलचंद भंजदेव (वर्तमान)