छत्तीसगढ़ के सम्मान पुरस्कार Chhattisgarh ke Samman Puraskar
यह सभी पुरस्कार 1 नवमेबर को राज्य सरकार द्वारा दिए जाते है .
इसमें 2 लाख राशि व प्रशस्ति पत्र दिया जाता है ।
पुरस्कार | किस क्षेत्र में ? |
शहीद वीर नारायण सिंह राजपूत पुरस्कार |
|
गुरु घासीदास पुरस्कार | यह आदिवासी सेवा के लिए दिया जाता है । |
मिनीमाता पुरस्कार | यहाँ दलित उथान के लिए दिया जाता है । |
डॉ खूबचंद पुरस्कार | यह महिला उथान के लिए दिया जाता है । |
राजा चक्रधर पुरस्कार | यह कला और संस्कृति के क्षेत्र में दिया जाता है । चक्रधर फेलोशिप :- शास्त्रीय नृत्य के लिए दिया जाता है । |
दाऊ दुलार सिंह मंदराजी पुरस्कार | यह लोकनाट्य के क्षेत्र में दिया जाता है । |
यइत्याटन लाल पुरस्कार | यह अहिंसा और गौ रक्षा के क्षेत्र में दिया जाता है । |
चंदूलाल चंद्राकर पुरस्कार |
|
मधुकर खेर पुरस्कार | यह अंग्रेजी पत्रकारिता के क्षेत्र में दिया जाता है । |
महाराजा अग्रसेन पुरस्कार | यह सामाजिक समरसता के क्षेत्र में दिया जाता है । |
सैयद राईस अहमद पुरस्कार | यह छत्तीसगढ़ अप्रवासी को दिया जाता है । |
दानवीर भामाशाह पुरस्कार | यह दानशीलता के क्षेत्र में दिया जाता है । |
पंडित सुन्दर लाल शर्मा पुरस्कार | यह आंचलिक साहित्य के क्षेत्र में दिया जाता है । |
मुक्तिबोध पुरस्कार | यह साहित्य के क्षेत्र में दिया जाता है । |
राज्य सरकार पुरस्कार | यह हल्बी भाषा में उत्कृष्ट कार्य के लिए दिया जाता है । |
बिलास बाई केवटिन पुरस्कार | यह मछली पालन के क्षेत्र में दिया जाता है । |
धन्वंतरि पुरस्कार | यह आयुर्वेदिक चिकित्स्क के क्षेत्र में दिया जाता है । |
रामानुज प्रताप सिंह पुरस्कार | यह श्रमिक कल्याण के लिए दिया जाता है । |
गहिरा गुरु पुरस्कार | यह पर्यावरण के क्षेत्र में दिया जाता है ।
यह पुरस्कार पहले राजीव गाँधी पुरस्कार था। । |
देवेंद्र सिंह पुरस्कार | पर्यावरण के क्षेत्र में दिया जाता है । |
लोचन प्रसाद पांडेय पुरस्कार | यहाँ इतिहास व पुरातत्व लेखन हेतु दिया जाता है । |
जे . योगानन्दन पुरस्कार | यहाँ शिक्षा के क्षेत्र में दिया जाता है |
सत्येन मैत्रेय पुरस्कार | यह शिक्षा अभियान के लिए दिया जाता है । |
स्वामी आत्मानंद पुरस्कार | यह नैतिक व चरित्र निर्माण के लिए दिया जाता है । |
कबीर बुनकर पुरस्कार | यह हथकरघा के क्षेत्र में दिए जाता है । |
वीरता पुरस्कार | यह पुलिस प्रशासन के क्षेत्र में दिया जाता है । |
राजपाल पुरस्कार | यह पिछड़े वर्ग के लोगो को उत्पीड़न से बचने हेतु दिया जाता है । |
मुख्यमंत्री पुरस्कार | ST लोगो को अत्याचार से बचने हेतु दिया जाता है । |
रानी सुबरन कुंवर पुरस्कार | यह बच्चो व महिलाओ को अत्याचार से बचाने हेतु दिया जाता है |
ज्योतिबा फुले पुरस्कार | यह नारी शिक्षा के लिए दिया जाता है । |
लखन लाल मिश्रा पुरस्कार | अपराध अनुशंधान के क्षेत्र में |
छत्तीसगढ़ के कुछ पुरस्कारों की विस्तृत जानकारी
1.ठाकुर प्यारेलाल सिंह सम्मान
छत्तीसगढ़ में श्रमिक आंदोलन के सूत्रधार तथा सहकारिता आदोलन के प्रणेता ठाकुर प्यारेलाल सिंह का जन्म 21 दिसम्बर 1891 को राजनांदगांव जिले के दैहान ग्राम में हुआ।
पिता का नाम दीनदयाल सिंह तथा माता का नाम नर्मदा देवी था। इनकी प्रारमिक शिक्षा राजनांदगाव में और आगे की शिक्षा रायपुर में हुई। इन्होंने नागपुर तथा जबलपुर में उच्च शिक्षा प्राप्त कर 1916 में वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण की।
1909 में सरस्वती पुस्तकालय की स्थापना की। इन्होंने 1920 में राजनांदगांव में मिल मालिको के शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई, जिसमें मजदूरों की जीत हुई।
ठाकुर प्यारेलाल सिंह 1925 से रायपुर में निवास करने लगे। इन्होंने छत्तीसगढ़ में शराब की दुकानों के खिलाफ जनजागरण किया। नमक कानून तोड़ना, दलित उत्थान जैसे अनेक अभियानों का संचालन करते हुए ठाकुर प्यारेलाल सिंह को अनेक बार जेल भी जाना पड़ा।
राजनैतिक झंझावातों के बीच 1837 में इन्हें रायपुर नगरपालिका का अध्यक्ष चुना गया। 1945 में छत्तीसगढ़ के बुनकरों को संगठित करने के लिए इनके नेतृत्व में छत्तीसगढ़ बुनकर सहकारी संघ की स्थापना हुई। Chhattisgarh ke Samman Puraskar
प्रवासी छत्तीसगढियों को शोषण एवं अत्याचार से मुक्त कराने की दिशा में भी वे सक्रिय रहे। 1952 में रायपुर में विधानसभा के लिए चुने गए तथा विरोधी दल के नेता बने।
विनोबा भावे के भूदान एवं सर्वोदय आदोलन को इन्होंने छत्तीसगढ़ में विस्तारित किया। 20 अक्टूबर 1954 को भूटान यात्रा के दौरान अस्वस्थ हो जाने से इनका निधन हो गया।
छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में सहकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए ठाकुर प्यारेलाल सिंह सम्मान स्थापित किया है। यह सम्मान वर्ष 2001 से स्थापित किया गया। Chhattisgarh ke Samman Puraskar
2.महाराजा प्रवीरचंद भंजदेव सम्मान
बस्तर की आत्म बलिदानी विभूतियों में राजकुल को महाराजा प्रवीरचंद भंजदेव का नाम ज्योर्तिपुज के समान दैदीप्यमान है इनका जन्म 25 जून 1929 को दार्जिलिंग में हुआ था।
इनकी माता का नाम प्रफुल्लकुमारी देवी तथा पिता का नाम प्रफुल्ल चंद्र भंजदेव था। आदिवासी हितों की रक्षा करने, उन्हें संगठित करने के साथ-साथ उनकी संस्कृति और अधिकार की रक्षा के लिए महाराजा प्रवीरचंद भंजदेव अंतिम सांस तक तत्पर इनके आकर्षक व्यक्तित्व में सरलता, उदारता तथा आत्मगौरव झलकता था।
महाराजा प्रवीरचंद भंजदेव के कार्य और चितन में बस्तर के सीधे और सरल आदिवासियों का उत्थान सर्वोपरि रहा। महाराजा प्रवीरचद मजदेव सत्ता के प्रति कभी आकर्षित नहीं हुए तथापि आदिवासी माझी-मुखिया तथा महिलाओं को सदैव लोकतात्रिक व्यवस्था में भाग लेने के लिए प्रेरित करते रहे।
महाराजा प्रवीरबद भजदेव साहित्य, इतिहास तथा दर्शन शास्त्र के मभीर अध्येता तथा हिन्दी अंग्रेजी और संस्कृत भाषा के जानकार थे। इन्होंने हिन्दी तथा अंग्रेजी में पुस्तके भी लिखीं। अश्वारोहण टेनिस आदि खेल आपको प्रिय थे तथा विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं के लिए उदारता पूर्वक सहयोग करते थे। Chhattisgarh ke Samman Puraskar
बस्तर के इस यशस्वी सपूत ने सामाजिक अन्याय एवं जीवन मूल्यों के दमन से संघर्ष करते हुए योद्धा की भांति 25 मार्च 1960 को प्राण न्योछावर किया। महाराजा प्रवीरचद भजदेव जीवन भर शस्त्र और शास्त्र के उपासक आदिवासियों के अधिकार तथा सम्मान के लिए संघर्षरत, अविचलित व्यक्तित्व के धनी थे और मरणोपरात भी बस्तर में सम्मानित है।
छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में तीरदाजी के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए महाराजा प्रवीरचट्र भजदेव सम्मान स्थापित किया है। यह सम्मान वर्ष 2004 में स्थापित किया गया।
3.पं.रविशंकर शुक्ल सम्मान
पडित रविशकर शुक्ल का जन्म 2 अगस्त 1577 को सागर में हुआ था। इनकी शिक्षा सागर तथा रायपुर में हुई। स्नातक और कानून की शिक्षा प्राप्त, पडित रविशकन शुक्ल की गणना चोटी के वकीलों में होती थी।
1902 में पत्र रविशकर शुक्ल खैरागढ़ रियासत में प्रधाना ध्यापक के पद पर नियुक्त हुए कानून की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद राजनांदगाव में वकालत आरंभ किया। 1921 में इन्होंने कांग्रेस की औपचारिक सदस्यता ग्रहण की।
हिन्दी भाषा के प्रचार के लिए भी पंडित शुक्ल सदैव सक्रिय रहे। 1922 में नागपुर में संपन्न मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता की थी। छत्तीसगढ़ में राजनैतिक तथा सामाजिक चेतना जागृत करने के लिए इन्होंने 1935 में महाकोशल साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन आरभ किया।
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के नेतृत्व का भार छत्तीसगढ़ ने आपने समाला था। स्वतंत्रता के पूर्व आप 1945 में राज्य विधानसभा में मध्यप्रात के मुख्यमंत्री और पश्चात अविभाजित मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री बने। पंडित शुक्ल को आधुनिक मध्यप्रदेश का निर्माता कहा जाता है।
भिलाई इस्पात संयंत्र की स्थापना का श्रेय इन्हें दिया जाता है। रायपुर में संस्कृत, आयुर्वेद विज्ञान और इंजीनियरिंग शिक्षा के लिए महाविद्यालयों की स्थापना इनकी प्रेरणा से हुई।
31 दिसम्बर 1956 को कर्मठ राजनेता महान शिक्षाविद् तथा दूरदर्शी इस राजनेता का देहावसान हुआ। छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में सामाजिक आर्थिक तथा शैक्षिक क्षेत्र में अभिनव प्रयत्नों के लिए पं. रविशंकर शुक्ल सम्मान स्थापित किया है। यह सम्मान वर्ष 2001 से स्थापित किया गया।
4.दानवीर भामाशाह सम्मान
दानवीर भामाशाह का जन्म राजस्थान के मेवाड़ में 29 अप्रैल 1547 को हुआ। वे बाल्यकाल से मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप के मित्र सहयोगी और विश्वासपात्र सलाहकार थे। इनका मातृ भूमि के प्रति अगाध प्रेम था और दानवीरता के लिए इनका नाम इतिहास में अमर है।
दानवीर भामाशाह का निष्ठापूर्ण सहयोग महाराणा प्रताप के जीवन में महत्वपूर्ण और निर्णायक साबित हुआ। मातृ-भूमि की रक्षा के लिए महाराणा प्रताप का सर्वस्व होम हो जाने के बाद इन्होंने लक्ष्य को सर्वोपरि मानते हुए अपनी सम्पूर्ण धन-संपदा अर्पित कर दी।
इन्होंने यह सहयोग तब दिया जब महाराणा प्रताप अपना अस्वित्य बनाए रखने के प्रयास में निराश होकर परिवार सहित पहाठियों में छिपते भटक रहे थे दानवीर भामाशाह ने मेवाड की अस्मिता की रक्षा के लिए दिल्ली गद्दी का प्रलोभन भी स्वीकार नहीं किया। महाराणा प्रताप को दी गई इनकी हरसभव सहायता ने मेवाड के आत्म सम्मान एवं संघर्ष को नयी दिशा दी।
आप बेमिसाल दानवीर थे। आत्म-सम्मान और त्याग की त्यागी पुरुष यही भावना इन्हें स्वदेशी धर्म और सस्कृति की क्षा करने वाले देश-भक्त के रूप में शिखर पर स्थापित कर देती है।
राज्य हेतु अपना सर्वस्व अर्पित करने वाले दानदाता को दानवीर भामाशाह उसका स्मरण-वंदन किया जाता है। इनके लिए पक्तिया कही गई है-
वह धन्य देश की मार्टी है, जिसमें भामा सा लाल पला ।
उस दानवीर की यशगाथा को मेट सका क्या काल मला।।
लोकहित और आत्मसम्मान के लिए अपना सर्वस्व दान कर देने वाली उदारता के गौरव-पुरुष की इस प्रेरणा को चिरस्थायी रखने के लिए छत्तीसगढ़ शासन ने इनकी स्मृति में दानशीलता. सौहार्द एवं अनुकरणीय सहायता के क्षेत्र में दानवीर भामाशाह सम्मान स्थापित किया है। यह सम्मान वर्ष 2006 में स्थापित किया गया। इस सम्मान के अतर्गत प्रशस्ति पत्र एव 2 लाख रुपये की सम्मान राशि दी जाती है ।
5.भगवान धनवंतरि सम्मान
पंचम वेद के रूप में विख्यात आयुर्वेद के आदिदेव भगवान धन्वन्तरि का क्षीरसागर मंथन से उत्पन्न चौदह रत्नों में एक माना जाता है. जिनका अवतरण इस अनमोल जीवन आरोग्य स्वास्थ्य ज्ञान और चिकित्सा से भरे हुए अमृत-कलश को लेकर हुआ था।
देवासुर संग्राम में घायल देवों का उपचार भगवान धन्वंतरि के द्वारा किया गया। भगवान धन्वन्तरि विश्व के आरोग्य एवं कल्याण के लिए विश्व में बार-बार अवतरित हुए। इस तरह भगवान धन्वन्तरि के मार्दुभाव के साथ ही सनातन सार्थक एवं शाश्वत आयुर्वेद मी अवतरित हुआ जिसने अपने उत्पत्ति काल से आज तक जन-जन के स्वास्थ्य एवं सस्कृति का रक्षण किया है।
वर्तमान काल में आयुर्वेद के उपदेश उतने ही पुण्यशाली एवं शाश्वत हैं जितने की प्रकृति के अपने नियम। भगवान धन्वन्तरि ने आयुर्वेद को आठ अंगों में विभाजित किया, जिससे आयुर्वेद की विषयवस्तु सरल सुलम एवं जनोपयोगी हुई।
इनकी प्रसिद्धि इतनी व्यापक हुई कि इन्हीं के नाम से संप्रदाय सचालित होने लगा भगवान धन्वन्तरि की जयंती एवं विशेष पूजा अर्चना, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी अर्थात धनतेरस के दिन मनाते हुए प्रत्येक मनुष्य के लिए प्रथम सुख निरोगी काया एवं श्री-समृद्धि की कामना की जाती है।
राज्य शासन द्वारा आयुर्वेद चिकित्सा, शिक्षा तथा शोध एवं अनुसंधान के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए व्यक्तियों और संस्थाओं को सम्मानित करने के उद्देश्य से देवतुल्य भगवान धन्वन्तरि की स्मृति में धन्वन्तरि सम्मान की स्थापना की गई है। इस सम्मान के अतर्गत प्रशस्ति पत्र एव 2 लाख रु की सम्मान राशि दी जाती है।
6.डॉ. भंवरसिंह पोर्ते सम्मान
छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय को नैसर्गिक प्रतिभा की खान कहा जाता है। इस समुदाय में शौर्य और खेलकूद के अलावा शिक्षा के क्षेत्र में भी अनेक विभूतियों मे विलक्षण प्रतिभा का परिचय दिया है।
इनमें एक नाम डॉ. भवरसिह पोर्त का भी है। डॉ.पोते का जन्म 01 सितम्बर 1949 को एक गरीब आदिवासी परिवार में ग्राम बदरोडी, मरवाही जिला-बिलासपुर जिले में मरवाही विकासखण्ड में हुआ।
इनकी प्रारंभिक शिक्षा ग्राम सिवनी में हुई। इन्होंने हाईस्कूल एवं उच्चतर माध्यमिक स्तर की पढ़ाई बिलासपुर जिले के पेण्ड्रा में पूरी की। डॉ. पोर्ते ने विद्यार्थी जीवन से ही आदिवासी शोषण के विरुद्ध आदोलन में सक्रिय भागीदारी निभाई। Chhattisgarh ke Samman Puraskar
इन्होंने अपने साथ-साथ समुदाय के अन्य युवाओं को भी अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया। डॉ. पोर्ते ने सन् 1972 में पहली बार मध्यप्रदेश विधानसभा का चुनाव लड़ा और उसमें वे विजयी हुए।
उन्हीं दिनों आदिवासियों की सेवा का उद्देश्य लेकर अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद के माध्यम से देश के विभिन्न भागों में आदिवासियों की जागरूकता के लिए अनेक प्रयास हो रहे थे।
इस परिषद के संस्थापक अध्यक्ष स्व कार्तिक उराव की प्रेरणा से डॉ. पोर्ते ने मध्यप्रदेश में आदिवासी- विकास- परिषद की स्थापना की। इन्होंने मध्यप्रदेश के अनेक सुदूरवर्ती इलाकों में आदिवासियों को जागरूक बनाने के लिए अদियान बलाया।
डॉ. पोते ने मध्यप्रदेश के दूरस्थ आदिवासी अचलों का लगातार प्रनण किया और वहां के आदिवासी समुदाय को उनके अधिकारों एवं स्दानिमान के प्रति हर ढंग से सचेत किया। वी मध्यप्रदेश शासन में मंत्री भी रहे।
आदिवासियों के विकास व उत्थान के लिए उनके योगदान को चिर-स्थायी बनाये रखने के लिए छत्तीसगढ़ शासन ने डॉ नरसिंह पार्ट सन्मान स्थापित किया है। इस सम्मान के अंतर्गत प्रशस्ति पत्र एवं 2 लाख रुपये. की सम्मान राशि दी जाती है। Chhattisgarh ke Samman Puraskar
छत्तीसगढ़ के प्रथम पुरस्कार प्राप्तकर्ता
क्र | स्थापना वर्ष | पुरस्कार | प्रथम प्राप्तकर्ता |
1. | 2001 | पंडित रविशंकर शुक्ल | विनोद कुमार शुक्ल |
2. | 2001 | पंडित सुन्दर लाल शर्मा | |
3. | 2001 | शहीद वीर नारायण सिंह | आदिवासी शिक्षण समिति पडीमल |
4. | 2001 | यति यातन लाल | हरी प्रसाद जोशी , रमेश यहिक |
5. | 2001 | गुरु घासीदास | रामरतन जगदे व राजमहंत |
6. | 2001 | मिनी माता | बिन्नी बाई सोनकर |
7. | 2001 | खूबचंद baghel | shree कांत गोवर्धन |
8. | 2001 | ठाकुर प्यारेलाल सिंह | बृजभूषण देवांगन व् प्रितपाल |
9. | 2001 | चक्रधर पुरस्कार | किशोरी अमोनकर |
10. | 2001 | दुलार सिंह मंदराजी | झाडूराम देवांगन |
11. | 2001 | गुण्डाधुर पुरस्कार | आशीष अरोरा |
12. | 2001 | चंदूलाल चंद्राकर | आरती धार |
13. | 2004 | महाराजा अग्रसेन | कुष्ठ निवारण संस्था छापा |
14. | 2004 | हाजी हसन अली | सैमुवल जलधारी , राईस अहमद |
15. | 2004 | प्रवीरचंद भजदेव | अरविन्द सोनी . टेकलाल |
16. | 2005 | सैयद राईस अहमद | चनद्रकान्त पटेल |
17. | 2006 | दान वीर भामाशाह | सेवा भारती बिलासपुर |
Sourecs:- All the Research are done by me and verified by these sites Patrika.com , Bhaskar.com , Naidunia.com