फणिनाग वंश ( कवर्धा )
(9 वीं से 14 वीं शताब्दी तक )
संस्थापक > अहिराज सिंह
राजधानी > पचराही
क्षेत्र > कवर्धा
प्रसिद्ध राजा:-
गोपाल देव :-
- इन्होंने 1089 ई. (11 वीं सदी) में भोरमदेव मंदिर बनवाया था।
- यह खजुराहों के मंदिर से प्रेरित है, इसलिए इसे छ.ग. का खजुराहों कहते है।
- यह नागर शैली (चंदेल शैली) में निर्मित है। इसकी ऊंचाई 16m. (53 फीट) है।
- यह चौरा ग्राम में स्थित है तथा शिव मंदिर है। भोरमदेव एक आदिवासी देवता है।
- गोपालदेव इस वंश के 6 वें क्रम के शासक थे।
रामचन्द्र देव :-
- इन्होंने 1349 (14 वीं सदी) में मड़वा महल व छेरकी महल का निर्माण करवाया था।
- यहाँ एक शिव मंदिर है तथा विवाह का प्रतीक है।
- मड़वा महल को दुल्हादेव भी कहते है।
- यहाँ कल्चुरी राजकुमारी अम्बिका देवी ने विवाह किया था।
- कवर्धा महल की डिजाइन धर्मराज सिंह ने किया था।
- महल के प्रथम गेट को हाथी का गेट कहते है।
मोनिंग देव :-
- 1414 में कल्चुरी शासक ब्रम्हदेव मोनिंग देव को पराजित किया था।
- इसके बाद फणिनाग वंश, कल्चुरी साम्राज्य में विलय हो गया।