नमस्ते विद्यार्थीओ आज हम पढ़ेंगे बस्तर का ऐतिहासिक प्रशासनिक व्यवस्था | Bastar ka Atihasik Prashasanik vyavastha के बारे में जो की छत्तीसगढ़ के सभी सरकारी परीक्षाओ में अक्सर पूछ लिया जाता है , लेकिन यह खासकर के CGPSC PRE और CGPSC Mains और Interview पूछा जाता है, तो आप इसे बिलकुल ध्यान से पढियेगा और हो सके तो इसका नोट्स भी बना लीजियेगा ।
बस्तर का ऐतिहासिक प्रशासनिक व्यवस्था | Bastar ka Atihasik Prashasanik vyavastha
इन्द्रावती सरिता के कलकल प्रवाह से सिंचित एवं सघन वनों की सुषमा एवं वनोपज की बहुलता के अजस ने अनुदानों ने बस्तर के इस भौगोलिक अंचल को शांति समृद्धि एवं निश्चिन्तता सादगी एवं सरलता के सदगुणों से ओतप्रोत किया है। त्याग, सेवा समर्पण, राजभक्ति एवं अन्याय के प्रति आक्रोश परिश्रम तथा वनजीवन से गहरा लगाव यहां के निवासियों के जीवन को अमूल्य निधि है वास्तव में किसी भी क्षेत्र का इतिहास वहां के निवासियों के राजनैतिक, सामाजिक धार्मिक आर्थिक एवं सांस्कृतिक जीवन की झांकी है तो बस्तर के इतिहास में भी ऐसी ही झांकी प्राप्त होती है।
बस्तर में राजतंत्रात्मक शासन प्रणाली
बस्तर के इतिहास में राजतंत्रात्मक शासन प्रणाली अपने गुण दोषों के साथ दृष्टिगोचर होती है। राजाओं तथा राजदरबार के विभिन्न कर्मचारियों के चरित्र एवं कार्यप्रणालियों में युग के इतिहास पर अपनी अमिट छाप छोड़ती है। ( बस्तर का ऐतिहासिक प्रशासनिक व्यवस्था | Bastar ka Atihasik Prashasanik vyavastha )
यद्यपि राजतंत्रात्मक प्रणाली में सत्ता का एकाधिकार राजा में निहित था फिर भी राजा प्रजा से पुत्र वत स्नेह करता था और प्रजा अपने राजा और राज्य की रक्षा हेतु अपना तन मन धन सर्वस्व अर्पित करने को सदैव तैयार रहती थी। बस्तर में मध्यकाल में काकतीय वंश की आधार शिला रखने का श्रेय वारंगल के काकतीय नरेश अन्नमदेव को है, जिसने बस्तर विजय के पश्चात यहां अपनी शान व्यवस्था स्थापित की और अपनी आराध्य देवी दंतेश्वरी माई को दंतेवाड़ा में स्थापित कर राजनीतिक एवं सांस्कृतिक विकास की आधार शिला बस्तर में रखी।
इसी वंश को मध्यकाल से लेकर 1947 तक बस्तर पर स्वाधीन शासक, मराठों में नागपुर के भोंसलों के पराधीनता एवं अंग्रेजों के अधीन सामंती राजा के रूप में दीर्घ समय तक राज सत्ता के उपभोग का अवसर मिला। ( बस्तर का ऐतिहासिक प्रशासनिक व्यवस्था | Bastar ka Atihasik Prashasanik vyavastha )
नागवंशी शासन काल में बस्तर
नागवंशी शासन काल में बस्तर का नाम चक्रकुट था। अति प्राचीन काल में इसे दंड कारण्य भी कहते थे। प्रयाग के स्तंभ लेख में इस क्षेत्र को महाकांतर कहा गया। आदिवासी सभ्यता और संस्कृति को इस क्षेत्र में पल्लवित पुष्पीत होने का अवसर मिला है। यहां के इतिहास की यह एक विडंबना ही है कि प्रकृति से अनुदान प्राप्त होने के पश्चात भी यहां का आम नागरिक जीवन की मूल आवश्यकताओं की पूर्ति करने में भी सफल नहीं।
1854 में डलहौजी के समय जब बस्तर मराठों के भौसलों के अधीन एक पराधीन शासक के शासित था, गोद लेने की प्रथा का निषेध कर जब नागपुर राज्य को अंग्रेजों के संरक्षण में ले लिया गया तब से बस्तर अंग्रेजों के सी.पी. पांत का एक आधीन सामंती राज्य बन गया।( बस्तर का ऐतिहासिक प्रशासनिक व्यवस्था | Bastar ka Atihasik Prashasanik vyavastha )
1857-58 के महान असंतोष के पश्चात प्रांतों में जमींदारों के नाम से स्थापित सत्ता को परिभाषित करने का उपक्रम किया गया अधिकारों व दायित्वों को रेखांकित करना था। सम्पूर्ण प्रकरण पर विचार करने के लिए सर रिचर्ड टेम्पल को अधिकृत किया गया उन्होंने अपने 31 अक्टूबर 1863 के प्रतिवेदन 48616 दिनांक 31-10-1863 में टेम्पल ने मध्य प्रांत और बरार की 115 जमींदारियों के प्रकरण पर गंभीरता पूर्वक अध्ययन मनन करने के पश्चात अपने रिपोर्ट शासन को प्रस्तुत कर दी। जिस पर आगे विचार विमर्श हुआ। और भारत सरकार को छत्तीसगढ़ की चौदह रियासतों को सामंती राज्य का दर्जा देने की अनुशंसा प्रतिवेदन क्रमांक 194-97 1 मार्च 1865 में की गई।
प्रदेश सरकार को संस्तुतियों को मानते हुए भारत सरकार ने अपनी स्वीकृति विदेश विभाग के प्रतिवेदन क्रमांक 289 दिनांक 3 अप्रैल 1865 को दी। भारत सरकार के उपरोक्त आदेश के अन्तर्गत छत्तीसगढ़ को चौदह रियासतें निम्न थी- 1. बस्तर 2. कालाहांडी, 3 कांकेर, 4. खैरागढ़, 5 छुईखदान, 6. कवर्धा, 7. नांदगांव, 8 बामरा, 9 पटना, 10. रायगढ़, 11 बरगढ़, 12. सारंगढ़, 13. सोनपुर में शक्ति 14. मकड़ाई को सामंती राज्य घोषित किया गया। ( बस्तर का ऐतिहासिक प्रशासनिक व्यवस्था | Bastar ka Atihasik Prashasanik vyavastha )
इन चौदह रियासतों से इकरारनामा भरवाया गया और उसके द्वारा उन्हें एक कमिश्नर या विशेष रूप से नियुक्त अधिकारी के राजनैतिक नियंत्रण में रखा गया। जिसमें एक धारा थी कि मैं और मेरी प्रजा किसी कमिश्नर या विशेष रूप से नियुक्त अधिकारी के नियंत्रण में रहेंगे और उसके द्वारा निर्धारित बनाये कानूनों का पालन करते रहेंगे। उपरोक्त धारा के कारण ही बस्तर के सामंती राजा ने इकरार नामे पर हस्ताक्षर करने के पूर्व कुछ स्पष्टीकरण चाहा और सबसे अंत में 19 दिसंबर 1870 को इकरारनामे पर हस्ताक्षर किया।
इकरारनामे का संशोधित रूप इस प्रकार था – मध्य प्रांत के मुख्य आयुक्त के प्रशासन के तहत मैं क राज प्रमुख हूं। ब्रिटिश शासन के द्वारा अब मुझे एक सामती राजा के रूप में सत्ता मिल चुकी है। मेरी यह मान्यता मुख्य आयुक्त या ऐसे किसी भी अधिकारी जिसे मुख्य आयुक्त निर्देशित करें के राजनैतिक नियंत्रण के अधीन है। ( बस्तर का ऐतिहासिक प्रशासनिक व्यवस्था | Bastar ka Atihasik Prashasanik vyavastha )
जब एक बार बस्तर और अन्य देशी रियासतों ने अंग्रेजी नियंत्रण में रहना स्वीकार कर लिया फिर तो प्रभुता विभिन्न आदेशों के तहत कुछ अनिवार्य व्यवस्थाओं में जकड़ती गई वैसी ही एक व्यवस्था थी कि प्रतिवर्ष रियासतों के प्रशासक वार्षिक प्रतिवेदन मुख्य आयुक्त मध्य प्रांत एवं बरारको को भेजे रियासतों से प्राप्त वार्षिक प्रतिवेदन के आधार पर मुख्य आयुक्त एक प्रतिवेदन भारत सरकार को भेजने के लिए बाध्य थे उल्लेखनीय है ये वार्षिक प्रतिवेदन इतिहास के महत्वपूर्ण प्रारंभिक स्रोत है। प्रशासक द्वारा हस्ताक्षरित बस्तर राज्य के वार्षिक प्रतिवेदन में कुल 8 अध्याय होते थे।
सामान्य और राजनैतिक प्रमुख घटनाये
प्रथम अध्याय में सामान्य और राजनैतिक प्रमुख घटनाओं का उल्लेख रहता था। जिसमें राजा और राजकुमारों को जन्म दिनों बीमारी, इलाज, विवाह, मृत्यु तथा उत्तराधिकारों के विवरण लिपिबद्ध रहते थे।
द्वितीय अध्याय में मेटेलमेंट भू-लगान लेखा कृषि फार्म फसलों, मांग, और करों को उगाही प्रभावी ऋणों भूसुधारों हेतु दिये गये खर्चों का विवरण पाया जाता है। ( बस्तर का ऐतिहासिक प्रशासनिक व्यवस्था | Bastar ka Atihasik Prashasanik vyavastha )
तृतीय अध्याय में पंचायतों तक शासकीय आदेशों को प्रचारित एवं प्रसारित करने हेतु व्यवस्था, पुलिस, फौजदारी न्याय, दीवानी न्याय, अपील न्याय, दण्ड व्यवस्था, जल की व्यवस्था मुख्य रूप से नगर पालिकाओं द्वारा जल व विद्युत प्रदाय व्यवस्था का विवरण प्राप्त होता है तथा जानकारी प्राप्त होती है।
चतुर्थ अध्याय में मौसम, फसलों, कम, या अधिक वर्षा का विवरण दैनिक मजदूरी मजदूरों की दशा तथा मृत्यों का विवरण मिलता है।
वनों से प्राप्त आय व्यय का विवरण आय व्यय उद्योग व्यापार या निर्मित विवरण प्राप्त होता राज्यद्वारा सार्वजनिक विवरण सरकारी भवनों, सड़कों, पुलों, यातायात साधनों के विकास जल प्रदाय में सुधारों, तथा विद्युत प्रदाय के विकास से किये गये प्रयासों का विवरण प्राप्त होता है। एक्साइज विभाग द्वारा तम्बाखू, गांजा, भांग आदि द्वारा प्राप्त आय व्यवस्था तथा राजनैतिक जनमत की सामान्य प्रशासन का विवरण प्राप्त होता है। ( बस्तर का ऐतिहासिक प्रशासनिक व्यवस्था | Bastar ka Atihasik Prashasanik vyavastha )
पांचवें अध्याय में भू-लगान एवं वित्तीय व्यवस्था का विस्तार से विवरण रहता है।
छठवें अध्याय में जल स्वास्थ्य सुरक्षा हेतु अस्पतालों की व्यवस्था उनकी संख्या उनमें मरीजों की भरती करने की संख्या एवं बाहर से उपचार लाभ लेने वाले मरीजों की संख्या, उप सहायक सर्जनों द्वारा लिये गये व स्वीकृत किये गये अवकाश का विवरण व अन्य कार्य प्रणाली का उल्लेख प्राप्त होता है, टीकाकरण योजनाएं एवं पशु चिकित्सा की सुविधाओं का विवरण है तथा राज्य की सफाई की व्यवस्था की विस्तार से चर्चा है।
सातवें अध्याय में राज्य को राजनैतिक शिक्षा नीति राज्य में कुल प्रायमरी हिन्दी उर्दू व अंग्रेजी मिसन स्कूलों की संख्या एवं उनमें भर्ती होने वाले विद्यार्थियों की संख्या हाईस्कूल परीक्षा में बैठने वाले उत्तीर्ण होने वाले छात्रों की संख्या शिक्षक प्रशिक्षण शिविरों में कितने शिक्षक प्रशिक्षित किये गये तथा स्काउटिंग व्यवस्था का विवरण है। छात्रवृत्तियों का उल्लेख छात्रावासों में अधीक्षक के रूप में स्कूलों का प्रधान अध्यापक ही कार्य करता था। ( बस्तर का ऐतिहासिक प्रशासनिक व्यवस्था | Bastar ka Atihasik Prashasanik vyavastha )
आठवें अध्याय को विविध नामकरण दिया गया है। 1935 के प्रतिवेदन में सिलवर जुबली फण्ड स्थापित करने उसकी कुल राशि की व्यवस्था एवं व्यय हेतु एक कमेटी के गठन के उल्लेख हैं जिसमें अध्यक्ष एवं कोषालय अध्यक्ष संयुक्त सचिव एवं सचिव के नामों के उल्लेख हैं। इस प्रकार स्पष्ट होता है। कि बस्तर के इन प्रशासनिक प्रतिवेदनों से शोधार्थी लाभ उठा सकते हैं।
महत्वपूर्ण रिपोर्ट
1886-87 की रिपोर्ट हरदाय प्रेस से मुद्रित हुई थी। इस प्रतिवेदन से यह जानकारी प्राप्त होती है कि बस्तर के राजा को नरबलि के मामले में निष्पक्ष जांच हो सके इसलिए रायपुर में जांच अवधि तक रखा गया था। इसी वर्ष बस्तर में स्कूली शिक्षा का प्रारंभ होता है। हिन्दी, उड़िया, और उर्दू के एक एक स्कूल जगदलपुर में खोले गये स्कूलों की संख्या बढ़ती गई। 1898 के वार्षिक प्रतिवेदन से ज्ञात होता है कि स्कूलों की संख्या बढ़कर बस्तर में 58 हो गई थी। 19001 के वार्षिक प्रतिवेदन से वह सूचना प्राप्त होती है कि बस्तर के राजा रूद्रप्रताप का विवाह बामडा राजा की पुत्री से हुआ। ( बस्तर का ऐतिहासिक प्रशासनिक व्यवस्था | Bastar ka Atihasik Prashasanik vyavastha )
1908 को वार्षिक रिपोर्ट यह दर्शाती है कि राजा रूद्रप्रताप देव को बालिग होने पर कुछ नियंत्रण के अधीन सामंतीय राजा के अधिकार सौंपे गये। इन रिपोर्टों में सर्वाधिक की महत्वपूर्ण 1910 को रिपोर्ट है जिसमें बस्तर में विद्रोह के कारण और उसका रियासतों पर पड़े दुप्रभावों का उल्लेख मिलता है, यह रिपोर्ट हुए आदिवासी दर्शाती है।
बस्तर के 60 स्कूलों में से 45 स्कूल विद्रोहियों द्वारा जला दिये गये थे। और रियासतों में स्कूलों की संख्या घटकर 15 रह गयी थी। 1911 की रिपोर्ट यह दर्शाती है कि 10 मार्च 1911 की रात को रियासत में जनगणना का कार्य पूर्ण हुआ और बस्तर की जनसंख्या उस समय 3 लाख 6 हजार 5 सौ से बढ़कर 4 लाख 33 हजार दो सौ 63 हो गई थी। ( बस्तर का ऐतिहासिक प्रशासनिक व्यवस्था | Bastar ka Atihasik Prashasanik vyavastha )
1916 की रिपोर्ट दर्शाती मुख्य आयुक्त सी.पी.एण्ड बरार ने बस्तर का दौरा किया था, है 1921 की रिपोर्ट राजा रूद्रप्रताप देव की हृदय गति रुक जाने 16 नवम्बर 1921 मृत्यु हो जाने की सूचना देती है। यह भी दर्शाती है कि उत्तराधिकारी का प्रश्न विचाराधीन था और रियासत सीधे प्रबंध में थी 1922 में रिपोर्ट यह दर्शाती है कि भारत सरकार रानी कुमारी देवी को बस्तर रियासत की रानी स्वीकार कर लिया और 23 नवम्बर 1922 को जगदलपुर में एक विशेष दरबार में एक अंग्रेजी राजनैतिक दूत ने रानी की उत्तराधिकारी की घोषणा को, 1927 की रिपोर्ट से यह ज्ञात होता है कि रानी प्रफुल कुमारी की शादी प्रफुल चन्द्र भंज देव के साथ हुई रिपोर्ट यह भी दर्शाती है कि सी.पी. के राज्यपाल के बस्तर का दौरा किया 1935 की रिपोर्ट में बस्तर की महारानी की बीमारी राजकुमारी के जन्मदिन एवं महारानी के इलाज के लिए लन्दन जाकर अक्टूबर 1935 में एक आप्रेशन कराने का उल्लेख मिलता है। जिसके पश्चात 28 फरवरी 1936 को महारानी की मृत्यु हो जाती है।
सी.पी. एण्ड बरार की स्वाधीन भारत की प्रांतीय सरकार ने अपने पत्र क्रमांक 1879-702 नागपुर दिनांक 21 मई 48 के द्वारा एक स्मृति पत्र भेजा कि 31 दिसंबर 1947 को समाप्त होने वाले वर्ष का वार्षिक प्रशासनिक प्रतिवेदन न भेजा जावे अगला प्रतिवेदन 1 जनवरी 1948 से लेकर 31 मार्च 1949 तक के भेजे जावें। ( बस्तर का ऐतिहासिक प्रशासनिक व्यवस्था | Bastar ka Atihasik Prashasanik vyavastha )
इस प्रकार बस्तर के वार्षिक प्रतिवेदनों से इतिहास के एक शोधार्थी को अपने शोध कार्य में अमूल्य सहायता प्राप्त होती है। इनमें बस्तर के राजा के नाम उनके राजकुमारों के जन्म दिन उनके राज्य के लगान व्यवस्था सार्वजनिक निर्माण के कार्य दशहरा उत्सव धार्मिक उत्सव और राजनैतिक उत्सवों की जानकारी प्राप्त होती है। यदि प्रजा का राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन ही इतिहास है तो इतिहास की एक सच्ची झांकी हमें इन वार्षिक प्रतिवेदनों से प्राप्त होती है। आवश्यकता यही है कि हमें एकांगी विवरणों पर ही पूर्णतया निर्भर नहीं रहना चाहिए दूसरे साहित्य स्रोतों के आधार पर सत्य की खोज में इनसे सहायता ली जा सकती है।
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