रायपुर का इतिहास
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रायपुर नगर की स्थापना 14वीं शत्ती ईस्वी में रतनपुर के कलचुरियों के राज्य विभाजन के परिणाम स्वरूप हुई | उनकी (कलचुरियों की) एक शाखा रायपुर में स्थापित हुई, जिन्हें हैड्यवंशी कलचुरी कहा जाता था।
इस राजवंश के राजा रामचंन्द्र के द्वारा रायपुर में राजधानी स्थापित करने की जानकारी मिलती है। रामचंन्द्र के पुत्र ब्रम्हदेव राय के नाम पर इसका नामकरण राय से रायपुर होने की जन मान्यता है। जनश्रुति के अनुसार चारों युग में इस नगर का अस्तित्व रहा।
सतयुग में कनकपुर, त्रेतायुग में हाटकपुर, द्वापर युग में कंचनपुर और कलयुग में इसका नाम रायपुर पड़ा। यद्यपि इस किंवदंती का कोई साक्ष्य या प्रमाण उपलब्ध नहीं है ।( Raipur History Chhattisgarh : Raipur ka Itihas History of Raipur Chhattisgarh )
ऐतिहासिकता
( History of Raipur chhattisgarh )
रायपुर एक ऐतिहासिक नगरी है। रतनपुर के कलचुरियों की एक शाखा ने अपनी राजधानी खल्वटिका (खल्लारी, जिला महासमुंद) तथा रायपुर में 14वीं शत्ती ईस्वी से स्थापित की थी। खल्लारी में राजा लक्ष्मीदेव एवं उनके पुत्र सिंहण की राजधानी कुछ समय तक रही। सिंहण का पुत्र रामचंद्र हुआ जिसने रायपुर में राजधानी स्थापित की |
रायपुर को मराठों के राज्य स्थापित होने तक राजधानी होने का गौरव प्राप्त होता रहा। हैहयवंशी कलचुरियों के अंतिम शासक राजा अमर सिंहदेव को पदच्युत कर मराठों ने रायपुर में अपना आधिपत्य स्थापित किया। मराठा शासक रघुजी के पुत्र बिम्बाजी 758 ईस्वी में नागपुर से छत्तीसगढ़ का राज्य सम्हालने रतनपुर आए और रतनपुर पुनः सत्ता का केन्द्र बन गया।
सन् 1817 में मराठा-अंग्रेज तृतीय युद्ध में मराठा पराजित हो गए और 1818 में छत्तीसगढ़ में प्रथम नियुक्ति कर्नल एग्न्यु ने रतनपुर से रायपुर को राजधानी बनाने का निर्णय लिया। इस प्रकार रायपुर को सर्वप्रथम 4848 में छत्तीसगढ़ की राजधानी ब्रिटिश शासन में बनाया गया।
नदी तटों की संस्कृति का उद्भव स्थल कहा जाता है। रायपुर की प्राचीन बसाहट खारून नदी के आसपास हुआ। इस तथ्य की पुष्टि खारून नदी के तट के समीप बसा प्राचीन ग्राम रैपुरा से होता है। संभवतः इसी क्षेत्र में कलचुरियों की प्रारंभिक राजधानी रही होगी।
रायपुर की पुरानी बसाहट को पुरानी बस्ती कहा जाता है। पुरानी बस्ती क्षेत्र में आज भी प्राचीन नगर विन्यास के अवशेष दिखाई देते हैं|
ब्रिटिश एजेंट कर्नल एग्न्यु ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि, हैहयवंशी शासकों ने एक किला का निर्माण करवाया था, जिसकी सुरक्षा के लिए चारों ओर तालाब एवं सुरंगों का निर्माण करवाया था| ब्रम्हपुरी के पास किला का भग्नावशेष आज भी विद्यमान है |
सुरक्षा के लिए बनाये गये गहरी खाई, सुरंग एवं तालाबों में बूढ़ा तालाब, महाराजबंद, कंकाली तालाब, खोखो तालाब, बंधवा तालाब मलसाय तालाब, भैया तालाब पहलदवा तालाब आदि इसी क्षेत्र में हैं | कंकाली तालाब की सफाई के दौरान सुरंग का दरवाजा निकला था, जो किले से संबंधित कहा जाता है |
किले से महामाया मंदिर एवं शीतला मंदिर से सीधे कंकाली तालाब तथा कंकाली तालाब से जी.ई. रोड तात्यापारा स्थित शिव मंदिर के बावड़ी से संबंध होने की किवंदती प्रचलित है। बूढ़ा तालाब के मध्य में जहां वर्तमान में नीलभ उद्यान बनाया गया है, वहां हैहयवंशी राजाओं की कचहरी लगा करती थी |
ऐसी जन मान्यता है। इसी प्रकार पुरानी बस्ती में जो चारों ओर तालाब से घिरा होने के कारण सुरक्षित स्थान था, वहां राज कर्मचारी निवास किया करते थे | रायपुर में हैहयवंशी कलचुरियों की सूची के अनुसार 1420 के केशवदेव से लेकर 1744 अमरसिंह तक के बाजीराव रघुजी तृतीय 1830 तक की मराठा शासकों की जानकारी भी मिलती है |
यद्यपि मराठा शासनकाल में 1848 में अंग्रेजो ने सत्ता पर नियंत्रण पा लिया था और पोलिटिकल एजेंट के रूप में कर्नल एग्न्यू की नियुक्ति हुई थी। इस प्रकार अंग्रेजो का शासन स्वतंत्रता पूर्व तक निर्बाध चलता रहा स्वतंत्रता के बाद 1 नंवबर 2000 को छत्तीसगढ़ एक नये राज्य के रूप में मान्यता मिली और पुनः रायपुर को छत्तीसगढ़ की राजधानी बनने का गौरव प्राप्त हुआ।( Raipur History Chhattisgarh : Raipur ka Itihas History of Raipur Chhattisgarh )
टाउन हाल:( Raipur Townhall )
इसका नाम विक्टोरिया जुबली टाउन हाल था, जिसे टाउन हाल के नाम से जाना जाता है। शास्त्री चौक और कलेक्टरेट भवन से लगा हुआ एक सुंदर सभा कक्ष स्थित है। टाउन हाल में लगी सूची के अनुसार विभिन्न राजाओं एवं संगठनों के संहयोग से निर्मित इस भवन का निर्माण 1887 ई. में प्रारंभ हुआ तथा 1889 में कार्य पूर्ण हुआ |
इसका उद्घाटन 1890 में हुआ | स्वतंत्रता आंदोलन की अनेक गतिविधियां इसी भवन से संपादित हुई जिसका साक्षी बनकर आज भी यह भवन विद्यमान है। हाल में नगर-निगम द्वारा पुनः साज-सज्जा के साथ इसके पुराने गौरव को स्थापित किया गया है|( Raipur History Chhattisgarh : Raipur ka Itihas History of Raipur Chhattisgarh )
मंहत घासीदास स्मारक
( Mahant Ghasidas Memorial )
1.संग्रहालय:-
महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय जी.ई. रोड में कलेक्टरेट के सामने, भव्य परिसर में स्थित है, जहां वर्तमान में संस्कृति विभाग का मुख्यालय भी है। इस संग्रहालय भवन को राजनांदगांव की रानी ज्योति देवी के दान से निर्माण किया गया।
इसका उद्घाटन तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने 21 मार्च, 1953 में किया था। इस संग्रहालय में छत्तीसगढ़ तथा प्रदेश के अन्य जिलों से प्राप्त पुरा-संपदा प्रदर्शित एवं संरक्षित है। यहां उत्खनन से प्राप्त सामग्रियां, मूर्तियां अभिलेख तथा सिक्कों का विशाल संग्रह है।
2.पुराना संग्रहालय:-
राजनांदगांव के राजा महंत घासीदास ने सन् 1975 ई. में इस संग्रहालय भवन का निर्माण कराया था | नगर घड़ी तिराहे के समीप पत्थरों से निर्मित एक अष्टकोणीय भवन स्थित है। पूर्व में यहां संग्रहालय स्थित था।
नये संग्रहालय के निर्माण के पश्चात् यह अनेक वर्षो तक खाली था | वर्तमान में यह महाकोशल कला परिषद की कला वीथिका है। अष्टकोणीय प्राचीन संग्रहालय भवन ब्रिटिश युगीन स्थापत्य कला का परिचायक है |( Raipur History Chhattisgarh : Raipur ka Itihas History of Raipur Chhattisgarh )
मोतीबाग:( Raipur Motibagh)
कंपनी बाग के नाम से अंग्रेजों द्वारा रायपुर में उद्यान बनाया गया, जिसे वर्तमान में स्वर्गीय मोतीलाल नेहरू के नाम पर मोतीबाग कहा जाता है। इसके सामने के हिस्से में रवीन्द्र भवन स्थित है, जहां स्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं।
तथा उक्त परिसर में ही प्रेस क्लब स्थापित है। यह उद्यान रायपुर नगर के पुरानें एवं अच्छे उद्यानों में एक है। यहां फव्वारे तथा झूले आदि की व्यवस्था नगर-निगम द्वारा की गई है | यह एक अच्छा दर्शनीय स्थल है।
पुरानी बस्ती:( Purani basti raipur)
पुरानी बस्ती अपने नाम के अनुरूप एक प्राचीन बस्ती है | कलचुरियों द्वारा रायपुर नगर का विस्तार वर्तमान पुरानी बरती क्षेत्र में किया गया। स्थानीय परंपराओं के अनुसार त्रिभुवन साही नामक कलचुरि राजा ने इस हिस्से को आबाद किया।
इन्होने बूढ़ा तालाब एवं किले का निर्माण कराया | गजेटियरों में उपलब्ध जानकारी के अनुसार यहां किले का निर्माण 1460 ई.में हो गया था | किले की सुरक्षा के लिए बूढ़ा तालाब और महाराजबंद तालाब का निर्माण कराया गया था |
बरियार सिंह नामक राजा ने भी हवेली बनवाई तथा बूढ़ा तालाब में राजघाट बनाया | आज पुराने किले के परिसर में किले वाले बाबा का मजार स्थित है। यहां से प्राप्त शिलालेख के अनुसार 14वीं शताब्दी में इस किले का निर्माण हैहयवंशियों द्वारा करावाया गया था ।
रायपुर के पुरानी बस्ती में अनेक ऐसे स्थल हैं, जो जन-रूचि के हो सकते हैं | इनमें से कुछ विवरण निम्नानुसार है:-
विवेकानंद सरोवर:( Vivekanand Sarovar Raipur)
यह रायपुर का एक प्राचीन तालाब है | नगर का प्राचीन तालाब होने के कारण इसे बूढ़ा तालाब कहा जाता है| आदिवासियों के ईष्टदेव बूढ़ा देव के नाम पर इस तालाब का नाम पर इस तालाब का नाम बूढ़ा तालाब होने के तथ्य भी जनश्रुतियों में मिलते हैं।
वर्तमान में इसका नाम परिवर्तन कर विवेकानंद सरोवर (नीलभ उद्यान) कर दिया गया है। इस तालाब के मध्य में स्थित एक द्वीप में आकर्षक उद्यान बनाया गया है, जहां स्वामी विवेकांनद का एक विशाल मूर्ति दर्शनीय है एवं तालाब के मध्य में फव्वारा तथा पर्यटकों के लिए नौकायान की भी व्यवस्था है | रात्रि में पर्यटक इसका आनंद लेते हैं तथा रंगीन फव्वारों के कारण इसके सौंदर्य विशेष रूप से आकर्षित करता है |
दूधाधारी मंदिर:( Dudhadhari Mandir Raipur)
दूधाधारी मंदिर 17वीं शताब्दी का रायपुर नगर का सबसे प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर में मराठा कालीन पेंटिंग आज भी विद्यमान है तथा वैष्णव संप्रदाय से संबंधित होने के कारण इस मंदिर में रामायण कालीन दृश्यों का शिल्पांकन किया गया है, जो अत्यंत आकर्षक है । छत्तीसगढ़ में इस प्रकार के रामायण कालीन दृश्यों के शिल्पाकंन खत यह अनूठा मंदिर है
बूढ़ा तालाब से थोड़ी दूर पर दूधाधारी मंदिर स्थित है। यह रायपुर का प्राचीन और प्रतिष्ठित मंदिर है । कहा जाता है. कि राजस्थान के झींथरा नामक स्थल के गरीब दास नाम एक संत ने यहां डेरा जमाया था उनकी परंपरा में बलभद्रदास नामक संत हुए, जो अनाज ग्रहण नही करते थे, सिर्फ दूध आहार लेते थे, जिनके नाम पर मंदिर का नाम दूधाधारी हो गया। दूधाधारी महाराज के संबंध में अनेक किंदवंतियां प्रचलित है।
मंदिर का निर्माण कलचुरि राजा जैत सिंह (राजस्व काल लगभग 1603-1614 ई) के समय हुआ था। बिम्बाजी (राजस्व काल 1758-1787) के काल मंदिर को गढ़ी सदृश्य विस्तार दिया गया। यहां प्रमुख मंदिर रामचंद्रजी का है, जो प्राचीन और उत्तरकालीन का सुंदर प्रयोग किया गया है।
बाहय भित्तियों (बाहरी दीवारों) में अत्यंत कलात्मक प्रतिमाओं का अंकन है | मुख्य मंदिर के अलावा मारूति का मंदिर उल््लेखित है | दूधाधारी मंदिर 17वीं शताब्दी का प्राचीन मंदिर होने के कारण दर्शनीय है।( Raipur History Chhattisgarh : Raipur ka Itihas History of Raipur Chhattisgarh )
महामाया मंदिर:( Mahamaya Mandir Raipur)
महामाया मंदिर रायपुर का एक प्रमुख शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध है। यह मंदिर कलचुरियों के द्वारा स्थापित की गई थी। किंदवंतियों के अनुसार राजा मोरध्वज ने महिषासुर मर्दिनी की अष्टभूजी प्रतिमा को यहां स्थापित किया था|
ऐसा प्रतीत होता है कि रतनपुर के कलचुरियों की एक शाखा जब रायपुर में स्थापित हो गई, तो उन्होने अपनी कुलदेवी महामाया की स्थापना रायपुर में की | महामाया मंदिर में मुख्य मंदिर की श्रृखंला में समलेश्वरी देवी, काल मैरव, बटुक भैरव और हनुमान जी के मंदिर हैं| मंदिर में कुछ प्राचीन प्रतिमाएं दर्शनीय हैं।
जैतूसाव मंदिर:( Jaitusav Mandir Raipur)
पुरानी बस्ती क्षेत्र में स्व. जैतूसाव की स्मृति में उनकी धर्मपत्नि द्वारा एक मंदिर का निर्माण करवाया गया था। यह मंदिर दूधाधारी मंदिर के सदृश्य है। इस मंदिर के मंहत स्व, लक्ष्मीनारायण दास ने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया,
जिनके कारण यह मंदिर स्वतंत्रता सेनानियों का महत्वपूर्ण केन्द्र बन गया था। अनेक राष्ट्रीय नेताओं ने इस मंदिर में प्रवास किया था। पुरानी बस्ती क्षेत्र में अनेक नये-पुराने मंदिर स्थित हैं | इसमें बूढ़ेश्वर महादेव, शीतला मंदिर, विरंचि (ब्रहमा) मंदिर, जगन्नाथ मंदिर आदि उल्लेखनीय हैं।( Raipur History Chhattisgarh : Raipur ka Itihas History of Raipur Chhattisgarh )
कंकाली तालाब मंदिर:-( Kankali Talab mandir raipur)
कंकाली तालाब मंदिर नगर की पुरानी बस्ती और ब्राम्हण पारा से लगे हुए कंकाली पारा में स्थित है | किवदंतियों के अनुसार दशनामी सन्यासी संप्रदाय के गोस्वामी नागा साधुओं ने यहां डेरा जमाया था। उन्हें स्वपन में देवी के दर्शन हुए और उन्होने यहां कुण्ड सहित मंदिर का निर्माण करवाया |
परंपरानुसार कुण्ड के मध्य में शिवजी का छोटा सा मंदिर भी बनवाया गया | तालाब में तीन और पत्थरों के सुंदर घाट बने हुए हैं। कंकाली देवी का मंदिर विशाल वट वृक्ष की छाया में रिथत है। मंदिर के आसपास गोस्वामियों की समाधियां भी बनी हुई हैं।
हाटकेश्वर महादेव मंदिर, रायपुरा:( Hatakeshwar Mahadev Mandir Raipura)
रायपुर नगर की प्रारंभिक बसाहट खारून नदी के तट पर स्थित महाद॑व घाट क्षेत्र में हुई थी । रायपुर के कलचुरि राजाओं ने सर्वप्रथम इस क्षेत्र में अपनी राजधानी बनाई |
राजा ब्रह्म देव के विक्रम संवत 1458 अर्थात 1402 ई.के शिलालेखों से ज्ञात होता है कि हाजीराज ने यहां हटकेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण कराया था। वर्तमान में खारून नदी के तट के आस-पास अनेक छोटे-बड़े मंदिर बन गए हैं, किन्तु सर्वाधिक महत्वपूर्ण हटकेश्वर महादेव का मंदिर है | ( Raipur History Chhattisgarh : Raipur ka Itihas History of Raipur Chhattisgarh )
यह मंदिर बाहर से आधुनिक प्रतित होता है, किन्तु संपूर्ण संरचना को अंदर से देखने से इसके उत्तर-मध्यकालीन होने का अनुमान किया जा सकता है। यहां कार्तिक-पूर्णिमा के समय एक बड़ा मेला लगता है। महादेंद घाट में ही विवेकानंद आश्रम के संस्थापक स्वामी आत्मानंद (1929-1981) की समाधि भी स्थित है।
राजकुमार कॉलेज:( Rajkumar college Raipur)
इसकी स्थापना 1882 में जबलपुर में राजकुमार स्कूल के रूप में हुई थी। 1892 में इसे रायपुर स्थानांतरित करने का निर्णय लिया गया और 1894 से यह रायपुर में राजकुमार कॉलेज के रूप में चल रहा है। इस संस्था में 1939 तक सिर्फ राजकुमारों को शिक्षा दी जाती थी। इसके पश्चात इसे एक पब्लिक स्कूल का रूप दे दिया।( Raipur History Chhattisgarh : Raipur ka Itihas History of Raipur Chhattisgarh )
विवेकानंद आश्रम:( Vivekanand Ashram Raipur)
रायपुर के गौरवशाली इतिहास में विवेकानंद आश्रम का भी महत्वपूर्ण स्थान है। जुलाई 1957 में स्वामी आत्मानंद के प्रयत्नों से राम कृष्ण सेवा समिति का गठन किया गया। इसका उदेश्य सांस्कृतिक ,शैक्षणिक तथा आध्यात्मिक गतिविधियों का विकास करना ।
वर्तमान में विवेकानंद आश्रम में रामकृष्ण परमहंस का एक भव्य और सुंदर मंदिर स्थित है। आश्रम में ही अस्पताल एवं ग्रंथालय का संचालन किया जाता है | वर्तमान में यह आश्रम रामकृष्ण मिशन बेलूर से संबंधित है।
केसव-ए-हिंद दरवाजा:( Keshav-e-Hind Darwaja Raipur)
जय स्तंभ चौक के निकट, नवनिर्मित रवि भवन का मालवीय रोड स्थित मुख्य द्वार में एक भव्य तथा प्राचीन द्वार दिखाई पड़ता है। महारानी विक्टोरिया द्वारा केसर-ए-हिंद उपाधि लेने की स्मृति में रायपुर वासियों के दान से यह दरवाजा 1877 ई. में बनाया गया था। यह दरवाजा आज भी अपनी ऐतिहासिक बुलंदी को दर्शाता हुआ विद्यमान है | पर्यटकों के लिए यह एक आकर्षण का केन्द्र है।
नगर घड़ी:( Nagar Ghadi Raipur)
नगर में शास्त्री चौंक और दाऊ कल्याण सिंह अस्पताल के निकट स्थित नगर घड़ी शहर में निर्मित नवीनतम मीनार है। इसका ऐतिहासिक महत्व नहीं है | फिर भी यह एक आकर्षण का केन्द्र है।( Raipur History Chhattisgarh : Raipur ka Itihas History of Raipur Chhattisgarh )
सौर ऊर्जा पार्क:( Saur Urja Park Raipur)
देश के अनेक स्थानों पर विभिन्न प्रकार के उद्यान देखने को मिलते है, किन्तु छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर में क्रेड़ा द्वारा विकसित राज्य स्तरीय ऊर्जा उद्यान अपने आप में अनूठा है। यह अद्यान रायपुर शहर से एयरपोर्ट रोड पर लगभग 7 कि.मी. की दूरी पर स्थित है |
इस सुंदर उद्यान में चारों ओर हरियाली तथा फूलों की बहार, आकर्षक फव्वारें तथा अनेकों कृत्रिम जल-प्रपात के बीच अपारपरिक ऊर्जा के विभिन्न स्त्रोतों के उपयोग तथा ऊर्जा के विषय को आकर्षक ढंग से दर्शाया गया है, जिसमें समस्त ऊर्जा के जनक सूर्य की प्रतिमा, सौर ऊर्जा से पूर्णतः विद्युती कृत और सौर कूटीर, सोर ऊर्जा चलित काल आदि अनेक दर्शनीय परिदृश्य हैं|
राजीव स्मृति वन:( Rajiv Smriti van Raipur)
छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर में वन विभाग द्वारा विकसित राजीव स्मृति वन अपने आप में अनूठा उद्यान है। इस सुंदर उद्यान में चारों ओर हरियाली तथा फूलों की बहार, आकर्षक फब्वारों तथा अनोखे कृत्रिम जल प्रपात के बीच पारंपरिक ऊर्जा के विभिन्न स्त्रोतों के उपयोग तथा ऊर्जा के विषय वस्तु को आकर्षक ढंग से दर्शाया गया है।
पुरखौती मुक्तागंन:( Purkhauti Muktangan Raipur)
महामहिम राष्ट्रपति भारत सरकार डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वारा 7 नवंबर 2006 को उद्घाटित पुरखौती मुक्तागंन छत्तीसगढ़ की कला-संस्कृति की एक झलक, एक ही स्थान में, कला तीर्थ के रूप में प्रदर्शित किया गया है।
राजधानी रायपुर से राष्ट्रीय राजमार्ग क्र. 43 में रायपुर – अभनपुर मार्ग में ग्राम उपरवारा के पास 200 एकड़ में इसे बनाया गया है। पुरखौती मुकतागंन में प्रथम चरण में वनवासियों के आखेट दृश्य एवं लोक-नृत्य, लोक संगीत का मूर्ति शिल्प, पारंपरिक कला को जीवंत करने का अनूठा प्रयास है।
यहां छत्तीसगढ़ राज्य की सांस्कृतिक विकासधारा और अब तक की स्थिति के कौतुहलमय मनोरंजन जीवन शैली को शैक्षणिक और अनुसंधान तत्वों के साथ मूल रूप से जीव॑त प्रस्तुतिकरण करना पुरखौती मुक्तागंन की स्थापना का मूल उदेश्य है।( Raipur History Chhattisgarh : Raipur ka Itihas History of Raipur Chhattisgarh )
नंदन वन:( Nandan Van Raipur)
वर्ष 1977 में ग्राम हथबंध में एक छोटी सी रोपणी वन विभाग द्वारा स्थापित की गई थी | इसके पश्चात क्षेत्र का विकास कर 25 एकड़ भूमि में फलदार, फूलदार, छायादार पौधे का वृक्षारोपण तथा लान, पगोड़े का निर्माण किया गया| समय के साथ इस क्षेत्र के बच्चों के खेलने के लिए उपकरण लगाए गए तथा नौका विहार, जल फिसल पट्टी आदि की व्यवस्था की गई।
छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के पश्चात् राजधानी के अनुरूप “नंदन वन” को विकसित करने की योजना बनी जिसके तहत् 13 एकड़ अतिरिक्त भूमि का अधिग्रहण कर “नंदन वन” में वन्य प्राणीयों के लिये बाड़ा (म्दबसवेनतम) एवं पार्क आदि का विकास किया गया, एवं कार्य निरंतर प्रगति की ओर है |
आवास व्यवस्था:( Housing system in Raipur)
होटल जोहार छत्तीसगढ़ (छ.ग. पर्यटन मंडल द्वारा संचालित), व्ही. डब्लू, केनीऑन, होटल द गेट वे ताज, होटल हयात, बेबीलोन, सेलीब्रेशन, मयूरा, आदित्य, पिकाडिली, इशिका आदि होटल्स उपलब्ध हैं।( Raipur History Chhattisgarh : Raipur ka Itihas History of Raipur Chhattisgarh )
कैसे पहुंचे-( How to reach Raipur)
वायु मार्ग: रायपुर निकटतम हवाई अड्डा है जो मुंबई, दिल्ली, नागपुर, हैदराबाद, बेंगलूरू, कोलकाता, विशाखापट्टनम एवं चेन्नई से जुड़ा है।
रेल मार्ग: हावड़ा-मुंबई मुख्य रेलमार्ग पर रायपुर रेलवे जंक्शन है , -मुंबई मुख्य रेलमार्ग पर रायपुर रेलवे जंक्शन है।
सड़क मार्ग: रायपुर से प्रमुख पर्यटन स्थलों पर यात्री वाहन,निजी वाहन से जाया जा सकता है।
इन्हे भी एक-एक बार पढ़ ले ताकि पुरानी चीजे आपको Revise हो जाये :-
👉छत्तीसगढ़ संभाग एवं जिलो का गठन