नगपुरा जैन मंदिर दुर्ग – छत्तीसगढ़ Nagpura jain mandir Durg Shri Uwassaggaharam Parshwa Tirth, Nagpura jain temple Chhattisgarh
दुर्ग से 4 कि.मी. दूरी पर स्थित यह स्थल आध्यत्मिक भावभूमि का परिचय देता है | शिवनाथ नदी के पश्चिम तट पर स्थित नगपुरा में कलचुरि कालीन जैन स्थापत्य कला का इतिहास सजीव होता है |
राष्ट्रीय राजमार्ग 6 से लगी हुई दुर्ग-जालबांधा सड़क पर स्थित श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ का प्रवेश द्वार प्राचीन धर्म और संस्कृति का एक जीवंत उदाहरण है | आज यह स्थल एक तीर्थ के रूप में उभर रहा है।
प्रतिदिन श्रद्धालुओं की बढ़ती हुई संख्या इसका प्रमाण है। ऐसी मान्यता है कि मंदिर में स्थापित श्री पार्श्व प्रभु की प्रतिमा श्री महावीर प्रभु की विद्यमानता मे ही उनके 37वीं वर्ष में बनी है |
मुख्य मंदिर की सीढ़ियों से पहले संवत् 919 में कलचुरी शासकों द्वारा स्थापित श्री पार्श्व प्रभु की चरण पादुका स्थापित है।( Nagpura jain mandir Durg: Shri Uwassaggaharam Parshwa Tirth, Nagpura jain temple Chhattisgarh)
श्री पार्श्वनाथ मुख्य मंदिर के पांच प्रवेश द्वार है-
1. श्री शंखेश्वर पार्श्व
2. श्री कलकुंड पार्श्व
3. श्री तीर्थपति पार्श्व
4. श्री पंचासरा पार्श्व
5. श्री जरीवाला पार्श्व
इस मंदिर के तीन शिखर हैं, जिनकी ऊंचाई 67 फुट है। मंदिर के मूलगर्भ में पाश्वनाथ की 15 प्रतिमाएं हैं एवं नृत्य मंडप और रंग मंडप में 14 आकर्षण मूर्तियां हैं। श्री पार्श्वनाथ की सप्तफण नागराज वाली प्रतिमा इस मंदिर की मुख्य आकर्षण है |
मुख्य मंदिर की प्रथम मंजिल के शिखर भाग में कायोत्सर्ग मुद्रा में श्री पार्श्नाथ और पद्मावती देवी सहित 9 मूर्तियां है| ऊपर ही दांयी ओर श्री सीमंधर स्वामी तथा बांयी ओर श्री ऋषभदेव प्रभु के छोटे मंदिर हैं।
मंदिर के दांई ओर बढ़ने पर अत्यंत कलात्मक दो जिनालयों का दर्शन किया जा सकता है। सहत्रफण नमिउण पार्श्व जिनालय एवं मेरूतंग जिनालय | इसी तरह बाई ओर श्री कल्याण पार्श्व जिनालय तथा श्री शिव पार्श्व जिनालय है।( Nagpura jain mandir Durg: Shri Uwassaggaharam Parshwa Tirth, Nagpura jain temple Chhattisgarh)
सीढ़ियों के पास मुख्य मंदिर में एक ओर मणिभद्र वीर, नकोड़ा भेरू और पुनियाबाबा की मूर्तियों वाला मणिभद्रवीर मंदिर है। मदिर की दूसरी ओर पद्मावती देवी, सरस्वती देवी, चकेश्वरी देवी, लक्ष्मी देवी और अंबिका देवी की प्रतिमाओं वाला पद्मावती मंदिर है|
मान्यता-जनश्रुति-किंवदंती:( Nagpura jain mandir Mythology)
कहा जाता है कि कलचुरी वंश के शंकरगण के प्रपौत्र गजसिंह को पद्मावती देवी ने 47 इंच ऊंची श्यामवर्णीय श्री पार्श्वनाथ की प्रतिमा सौंपी थी। संवत् 919 में इस प्रतिमा को गजसिंह ने प्रतिष्ठित किया एवं प्रतिज्ञा की कि वह अपने राज्य में पार्श्वनाथ की ऐसी ही 108 प्रतिमाएं स्थापित करेगा |
इसका उल्लेख ताम्रपत्र में करते हुए यह भी लिखा है कि यदि वह अपने जीवनकाल में ऐसा न कर सका, तो उसके वंशज इस कार्य को पूरा करेंगे।बाद में गजसिंह के प्रपौत्र जगतपाल सिंह ने नगपुरा में ऐसी ही प्रतिमा की स्थापना की | सप्तफणों वाली श्री पार्श्वनाथ की ड्स प्रतिमा से दिलचस्प गाथा जुड़ी हुई है।( Nagpura jain mandir Durg: Shri Uwassaggaharam Parshwa Tirth, Nagpura jain temple Chhattisgarh)
17 अक्टूबर 1981 में मंडक नदी के उत्तरी भाग के जंगली हिस्से में उगना निवासी भुवनसिंह की भूमि पर एक कुएं की खुदाई के दौरान मजदूरों को 50-60 फीट की गहराई में भारी पत्थर प्राप्त हुआ। किसी तरह इस पत्थर को बाहर लाया गया |
पत्थर के बाहर आते ही लोग दंग रह गए, क्योंकि वह भारी पत्थर एक अलौकिक देव प्रतिमा थी। साथ ही उससे कई जीवित सर्प लिपटे हुए थे। इस देव प्रतिमा को उगना में स्थापित कर दिया गया और विधि-विधान से पूजा प्रारंभ की गई |( Nagpura jain mandir Durg: Shri Uwassaggaharam Parshwa Tirth, Nagpura jain temple Chhattisgarh)
आसपास के गांवों के अलावा शहर में भी इसकी चर्चा होने लगी। एक सज्जन श्री हीराचंद भंसाली जी प्रतिमा के विषय में सुनकर यहां पहुंचे । प्रतिमा देखकर वे दंग रह गए, क्योकि यह देव प्रतिमा जैनियों के अराध्य 23वें तीर्थकर श्री पार्श्वप्रभु की थी।
श्री भंसाली श्री पार्श्वप्रभु की प्रतिमा को शहर में स्थापित करना चाहते थे। लेकिन ग्रामीणों के द्वारा असहमति प्रकट करने पर उगना में ही एक देवालय निर्माण कर इसे स्थापित करने का निर्णय लिया गया।
देवालय का निर्माण आरंभ हुआ। स्थापना की पूर्व रात्रि में भूस्वामी भुवनसिंह, श्री भंसाली, रामपुरिया जी सहित 7 अन्य ग्रामवासियों का एक साथ, एक ही समय पर स्वप्न आया कि पार्श्वप्रभु की प्रतिमा की स्थापना यहां न कर रावलमल जी मणि, जो नगपुरा में एक तीर्थ निर्माण करवा रहे हैं, को सौंप दी जाए।( Nagpura jain mandir Durg: Shri Uwassaggaharam Parshwa Tirth, Nagpura jain temple Chhattisgarh)
स्वप्न पर गहनता से विचार करने के पश्चात् आदेशानुसार नगपुरा एवं रावलमल जी की खोज शुरू की गई | अथक श्रम के बाद अंततः श्री मणि का पता चला। उन्हें सारा वृतांत बताया गया। अंतिम निर्णय पर पहुंचने के पूर्व सभी प्रमुख व्याक्तियों ने पाली-मारवाड़ के प.पू. आचार्य जी से दीर्घ मंत्रणा करने के पश्चात् उनकी सलाह के अनुसार श्री पार्श्वप्रभु की प्रतिमा को नगपुरा लाने का निर्णय लिया गया।( Nagpura jain mandir Durg: Shri Uwassaggaharam Parshwa Tirth, Nagpura jain temple Chhattisgarh)
मुहूर्त निकाल कर इस शुभ कार्य को किया गया। उगना मंदिर के लिए पार्श्व प्रभु की नई प्रतिमा भेंट की गई | 1985 में श्री पार्श्वप्रभु की अलौकिक एवं असाधारण प्रतिमा नगपुरा लाई गई । 10 वर्षो के अथक परिश्रम के बाद 15 एकड़ में मंदिर संपन्न हुआ |
श्री उकसग्गहरं पार्श्नाथ की प्रतिमा के अलावा मुख्य मंदिर के आसपास के कुछ अन्य आकर्षण हैं:–
मेरू पर्वत:( Nagpura jain mandir Meru Mountain)
मंदिर के पीछे एक पर्वत का निर्माण किया जिसे मेरू पर्वत कहा जाता है। यहां श्री पार्श्वनाथ के जन्माभिषेक महोत्सव पर जलभिषेक किया जाता है। इस पर्वत के अंदर गोलाई में 24 तीर्थकरों की मूर्तियां स्थापित की गई है।( Nagpura jain mandir Durg: Shri Uwassaggaharam Parshwa Tirth, Nagpura jain temple Chhattisgarh)
चारिज मंदिर:( Charij mandir in Nagpura jain mandir)
मेरूपर्वत की दाईं तरफ योगीराज शांति गुरूदेव का विशाल चारिज मंदिर है। इस मंदिर में महापुरूषों के जीवन चरित्र एवं चित्र है।
तीर्थंकर उद्यान:( Tirthnkar Garden of Nagpura jain mandir)
दादाबाड़ी के पीछे अनोखे एवं विशाल तीर्थ उद्यान का निर्माण किया गया है। यहां के 24 तीर्थकरों की मूर्तियां उसी मुद्रा में स्थापित हैं, जिस मुद्रा में उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। साथ ही वह वृक्ष भी लगाए गए हैं जिनके नीचे उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।( Nagpura jain mandir Durg: Shri Uwassaggaharam Parshwa Tirth, Nagpura jain temple Chhattisgarh)
तीर्थदर्शन उद्यान:( Tirthdarshan Garden of Nagpura jain mandir)
मुख्य मंदिर के दाहिनी ओर प्रमुख 24 जैन तीर्थ स्थलों का निमीएचर माडल वाला एक तीर्थदर्शन उद्यान है। इस उद्यान के चार सुंदर प्रवेश द्वार हैं। श्री पार्श्वनाथ मंदिर में पौषबदी दशमी को पार्श्वप्रभु के जन्म का तीन दिवसीय कल्याणोत्सव मनाया जाता है। अक्षय तृतीया पर वार्षिकपारणा उत्सव तथा माघसुदी षष्ठी पर सालगिरह महोत्सव मनाया जाता है।
आरोग्यघाम-( Nagpura jain mandir Arogyadham )
नगपुरा एक ऐसे बहुआयामी परिसर के रूप में विकसित हुआ है, जहां प्राकृतिक चिकित्सा का अपना ही महत्व है। प्रवेश द्वार से ही विशाल सभा भवन है, जो आरोग्यधाम का स्वागत कक्ष है। यहां प्रवेश करते ही सर्वप्रथम प्रथम तीर्थंकर परमात्मा श्री शत्रुंजय तीर्थपति ऋषभदेव प्रभु के दर्शन होते हैं। ( Nagpura jain mandir Durg: Shri Uwassaggaharam Parshwa Tirth, Nagpura jain temple Chhattisgarh)
भवन में एक ओर परामर्श चिकित्सकों के अलग-अलग कक्ष हैं, जहां साधकों को समुचित परामर्श दिया जाता है। इसी भवन में एक सूचना फलक पर साधकों के लिए दैनिक साधना निर्देश अंकित है।
इस आरोग्यधाम की विशेषता है कि विविध प्राकृतिक उपहारों से रोगोपचार किया जाता है। आरोग्यधाम की नियमित दिनचर्या में रोगानुसार उपचार क्रियाएं होती है, जैसे वायु उपचार, जल उपचार (छने हुए जल से) जिसमें शामिल है |
शारीरिक विकारों से मुक्ति के लिए गजीकरण एनिमा, कटिस्नान, रीढ़ स्नान, सोनाबाथ, भाव स्नान एवं वैज्ञानिक और प्राकृतिक तैलीय मालिश आदि, ऊर्जा उपचार (सर्य स्नान), मिट्टी उपचार, यांत्रिकीय व्यायाम, हास्य उपचार आदि। आरोग्यधाम में आहार द्वारा रोग उपचार को मुख्य स्थान दिया गया है।
आवास व्यवस्था-( Nagpura jain mandir Housing system)
दुर्ग शहर (14 कि.मी.) पर विश्राम गृह, धर्मशाला एवं उच्च कोटि के निजी होटल्स आवास के लिए उपलब्ध हैं।
कैसे पहुंचे-( How to reach Nagpura jain mandir)
वायु मार्ग:- रायपुर (54 कि.मी.) निकटमत हवाई अड्डा है जो मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, हैदराबाद, बेंगलूरू, विशाखापट्नम, चेन्नई एवं नागपुर से वायु मार्ग से जुड़ा हुआ है।
रेल मार्ग: हावड़ा-मुंबई मुख्य रेलमार्ग पर दुर्ग (14 कि.मी.) समीपस्थ रेलवे जंक्शन है।
सड़क मार्ग: दुर्ग से 14 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। निजी वाहन द्वारा सड़क मार्ग से यात्रा की जा सकती है एवं बस स्टैण्ड से टैक्सियां भी उपलब्ध है|( Nagpura jain mandir Durg: Shri Uwassaggaharam Parshwa Tirth, Nagpura jain temple Chhattisgarh)
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