भोरमदेव मंदिर कवर्धा-छत्तीसगढ़ का धार्मिक इतिहास
छत्तीसगढ़ के कला तीर्थ के रूप में विख्यात भोरमदेव मंदिर रायपुर-जबलपुर मार्ग पर कवर्धा से लगभग 17 कि.मी. पूर्व की ओर मैकल पर्वत श्रृंखला के गोद में बसे ग्राम छपरी के निकट चौरागांव नामक गांव की सीमा मे स्थित है।
छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहा जाने वाला भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ का लगभग अधिकतम परिपूर्ण स्थिति में विद्यमान प्राचीन स्मारक है। 11वीं शताब्दी के अंत (लगभग 1089 ई) निर्मित इस मंदिर की स्थापत्य परंपरा में भारतीय संस्कृति एवं कला की सम्मोहक छवि व्याप्त है| भोरमदेव में धर्म और आध्यात्म आधारित कला प्रतीकों के साथ – साथ लौकिक जीवन के विविध पक्ष मुखरित हैं | ( Bhoramdev Mandir Kawardha Chhattisgarh : Bhoramdev Temple kawardha chhattisgarh )
किवदन्ती है, कि गोंड़ जाति के उपास्य देव भोरमदेव (जो कि महादेव शिव का एक नाम है) के नाम पर निर्मित कराये जाने पर इसका नाम भोरमदेव पड़ गया और आज भी इसी नाम से प्रसिद्ध है।
मंदिर की स्थापत्य कला शैली, मालवा की परमार कला शैली की प्रतिछाया है। छत्तीसगढ़ के पूर्व-मध्यकाल (राजपूत काल) में निर्मित सभी मंदिरों में मोरमदेव मंदिर सर्वश्रेष्ठ है। इसे छत्तीसगढ़ का खजुराहो भी कहा जाता है। इस मंदिर का निर्माण श्री लक्ष्मण देव राय द्वारा कराया गया था| ( Bhoramdev Mandir Kawardha Chhattisgarh : Bhoramdev Temple kawardha chhattisgarh )
इसकी जानकारी हमें वर्तमान में मण्डप में रखी हुई एक दाढ़ी-मुछ वाले योगी की बैठी हुई मूर्ति (जो कि 0.89 से.मी. ऊंची एवं 0.67 से.मी. चौड़ी है) पर उत्तीर्ण लेख से ज्ञात होती है। प्रतिमा पर उत्कीर्ण दूसरे लेख में कलचुरि संवत् 840 तिथि दी हुई है| इससे यह जानकारी प्राप्त होती है कि यह मंदिर छठे फणि नागवंशी शासक श्री गोपालदेव के शासन में निर्मित हुआ था।
पूर्वाभिमुख प्रस्तर निर्मित यह मंदिर नागर शैली का सुंदर उदाहरण है | मंदिर में तीन प्रवेश द्वार हैं। प्रमुख द्वार पूर्व दिशा की ओर, दूसरे का मुख दक्षिण की ओर, तीसरा उत्तराभिमुखी है।
निर्माण योजना की दृष्टि से इसमें तीन अर्द्ध मण्डप, उससे लगे हुए मण्डप तत्पश्चात अंतराल का भाग और अंत में गर्भगृह है। अर्द्ध मण्डप के द्वार शाखाओं पर शैव द्वारपाल, परिचारक, परिचारिका प्रदर्शित है और लता दुम अलंकरण है।( Bhoramdev Mandir Kawardha Chhattisgarh : Bhoramdev Temple kawardha chhattisgarh )
मण्डप के तीनों दिशाओं के द्वारों के दोनों ओर पार्श्व में एक-एक स्तंभ है, जिनकी यष्टि अष्ट कोणीय हो गई है। इनकी चौकी उल्टे विकसित कमल के समान है, जिस पर कीचक बने हुए हैं जो छत का भार थामे हुए हैं। मण्डप में कुल 16 स्तंभ हैं, जो अलंकरण युक्त हैं |
मण्डप की छत का निर्माण प्रस्तरों को जमाकर किया गया है| छत पर शतदल कमल बना हुआ है। मण्डप में गरूड़ासीन लक्ष्मी नारायण प्रतिमा एवं ध्यानमग्न राजपुरूष की पद्मासन में बैठी हुई प्रतिमा रखी है ।
गर्भगृह का मुंह पूर्व की ओर है तथा धरातल से 1.50 मीटर गहरा है। इसमें बीचों बीच विशाल जलाधारी पर कृष्णप्रस्तर निर्मित शिवलिंग प्रतिष्ठित है, जिसकी सीध में ऊपर की छत अलंकृत शतदल कमल बना है |
गर्भगृह में पूजित स्थिति में पुंचमुखी नाग प्रमिता, नृत्य गणपति की अष्ट भुजी प्रतिमा, ध्यान मग्न राजपुरूष की पद्मासन में बैठी हुई प्रतिमा तथा उपासक दंपत्ति की प्रतिमा भी दर्शनीय है |
वर्तमान में मंदिर के क्रमशः: संकरे होते हुए ऊंचे गोलाकार अलंकृत शिखर में कलश नहीं है। शेष पूरा मंदिर अपनी मूल स्थिति में है। शिखर भाग पंक्तिबद्ध अलंकृत अंग शिखरों से युक्त है |( Bhoramdev Mandir Kawardha Chhattisgarh : Bhoramdev Temple kawardha chhattisgarh )
मंदिर में जंघाभाग की बाहय भित्तियां अलंकरण युक्त हैं। जंघाभाग में देवी-देवताओं की प्रतिमाएं उत्कीर्ण है। जिसमें विष्णु ,शिव, चामुण्डा, गणेश आदि की सुंदर प्रतिमाएं उल्लेखनीय है। ( Bhoramdev Mandir Kawardha Chhattisgarh : Bhoramdev Temple kawardha chhattisgarh )
चतुर्भुज विष्णु की स्थानक प्रतिभा, लक्ष्मी नारायण की बैठी हुई प्रतिमा एवं छत्र धारण किए हुए द्विभुजी वामन प्रतिमा, वैष्णव प्रतिमाओं का प्रतिनिधित्व करती है। अष्टभुजी चामुण्डा एवं चतुर्भुजी सरस्वती की खड़ी हुई प्रतिमाऐं देवी प्रतिमाओं का सुन्दर उदाहरण है |
अष्टभुजी गणेश की नृत्यरत प्रतिमा, शिव की चतुर्भुजी प्रतिमाएं, शिव की अर्द्धनारीश्वर रूप वाली प्रतिमा, शिव परिवार की प्रतिमाओं के सुंदर मनोहरी उदाहरण है। मंदिर के जंघा पर कोणार्क के सूर्य मंदिर एवं खजुराहो के मंदिरों की भांति लौकिक गृहस्थ जीवन से संबंधित अनेक मिथुन दृश्य तीन पंक्तियों में कलात्मक अभिप्रायों समेत उकेरे गए हैं,
जिनके माध्यम से समाज के गृहस्थ जीवन को अभिव्यक्त करने का प्रयास किया गया है। इसमें मिथुन मूर्तियों का बाहुल््य है। इन प्रतिमाओं में नायक-नायिकाओं, अप्सराओं, नर्तक-नर्तकियों की प्रतिमाएं अलंकरण के रूप में निर्मित की गई हैं। प्रदर्शित मिथुन मूर्तियों में कुछ सहज मैथुन विधियों का चित्रण तो हुआ है। कुछ काल्पनिक विविधों को भी दिखलाने का प्रयास किया गया है, |( Bhoramdev Mandir Kawardha Chhattisgarh : Bhoramdev Temple kawardha chhattisgarh )
पुरूष नर्तक एवं नारी-नर्तकियों से यहां आभास होता है कि दसवीं-ग्यारहवीं शताब्दी में इस क्षेत्र के स्त्री-पुरूष नृत्य कला में रूचि रखते थे। नर्तकी प्रतिमाएं कला-साधना में मग्न दिखलाई पड़ती हैं।
मंजीरा, मृदंग, ढोल, शहनाई, बांसुरी एवं वीणा आदि वाद्य उपकरण, मूर्तियों में बजाए जाते हुए प्रदर्शित हुए हैं। मंदिर परिसर में संग्रहित प्रतिमाओं में विभिन्न योद्धा प्रतिमाएं एवं सती स्तंभ प्रमुख हैं।
भोरमदेव मंदिर की परिसीमा में ही मुख्य मंदिर के पार्श्व में उत्तर की ओर चार मीटर की दूरी पर एक ईंट निर्मित शिव मंदिर विद्यमान है। इसका मुख पूर्व की ओर है। तल-विन्यास की दृष्टि से इसके मण्डप एवं गर्भगृह दो अंग है| मण्डप मूलतः 6 स्तंभों पर आधारित है |( Bhoramdev Mandir Kawardha Chhattisgarh : Bhoramdev Temple kawardha chhattisgarh )
वर्तमान में बांये पार्श्व के दो स्तंभ टूट चुके हैं, जिनकी अब केवल कुंभी मात्र शेष है | मण्डप में गर्भगृह की ओर मुख किए हुए नंदी अवशिष्ट है | गर्भगृह में मूल शिवलिंग अपने स्थान पर नहीं है, जो संभवतः विनष्ट हो चुका है | यह मंदिर दक्षिण कोसल में ईटों के मंदिर निर्माण की परंपरा के उत्कृष्ट कला का उदाहरण है|( Bhoramdev Mandir Kawardha Chhattisgarh : Bhoramdev Temple kawardha chhattisgarh )
भोरमदेव मंदिर के दक्षिण में लगभग आधा किलोमीटर की दूरी पर चौराग्राम के समीप खेती के मध्य एक प्रस्तर निर्मित शिव मंदिर विद्यमान है,जिसका नाम मण्डवा महल है। इस मंदिर का निर्माण 1349 ईस्वी में फणि नागवंशी शासक रामचंद्र का हैहयवंशी राजकुमारी अंबिका देवी के साथ विवाह के उपलक्ष्य में हुआ था।
प्रस्तर निर्मित यह मंदिर पश्चिमाभिमुख है। यह आयताकार है। निर्माण योजना की दृष्टि से इस मंदिर में गर्भगृह, अंतराल और मण्डप हैं | मंदिर का बाहरी भाग विभिन्न मिथुन मूर्तियों से अलंकृत है।
भोरमदेव मंदिर के दक्षिण पश्चिम दिशा में 1 कि.मी. की दूरी पर छेरकी महल नामक शिव मंदिर है। इसका मुख पूर्व दिशा की ओर है। फणि नागवंशी शासनकाल में छेरी (बकरीयां) चराने वाले चरवाहों को समर्पित है, छेरकी महल नामक शिव मंदिर गर्भगृह के मध्य में जलाधारी पर कृष्ण प्रस्तर निर्मित शिवलिंग स्थापित है।
ईंट निर्मित दीवारें अलंकरण विहीीन है। स्थापत्य विद्या एवं तोरण द्वार में निर्मित मूर्तियों की समानता को देखते हुए इसका निर्माण खण्डवा महल से बहुत अधिक परवर्ती नहीं मालूम पड़ता है| ईंट व प्रस्तर निर्मित होने के कारण क्षेत्रीय मंदिर वास्तु की दृष्ठि से इसका महत्व है |( Bhoramdev Mandir Kawardha Chhattisgarh : Bhoramdev Temple kawardha chhattisgarh )
आवास व्यवस्था-( Housing system in Bhoramdev mandir)
भोरमदेव एवं सरोदादादर में पर्यटन मंडल का विश्राम गृह एवं निजी रिसॉर्ट उपलब्ध है तथा कवर्धा (17कि.मी.) में विश्राम गृह एवं निजी होटल्स उपलब्ध हैं |
कैसे पहुंचे-( How to reach Bhoramdev Temples)
वायु मार्ग:–रायपुर (134 कि.मी.) निकटतम हवाई अड्डा है जो मुंबई, दिल्ली, नागपुर, हैदराबाद, कोलकाता, बेगलुरू, विशाखापट्नम एवं चैन्नई से जुड़ा हुआ है।
रेल मार्ग:-हावड़ा-मुंबई मुख्य रेल मार्ग पर रायपुर (134 कि.मी.) समीपस्थ रेलवे जंक्शन |
सड़क मार्ग:-रायपुर (116 कि.मी.) एवं कवर्धा (18 कि.मी.) से दैनिक बस सेवा एवं टैक्सियां उपलब्ध हैं।( Bhoramdev Mandir Kawardha Chhattisgarh : Bhoramdev Temple kawardha chhattisgarh )
इन्हे भी पढ़े :-
👉 माँ मड़वारानी मंदिर : आखिर क्यों मंडप छोड़ भाग आयी थी माता मड़वारानी
👉 पाताल भैरवी मंदिर : शिव , दुर्गा , पाताल भैरवी एक ही मंदिर में क्यों है ?
👉 माता कौशल्या मंदिर : वह धरती जिसने भगवान राम की माता कौशल्या को जन्म दिया !