महाजनपदों के युग में गोरखपुर , Mahajanpado ke yug me Gorakhpur:
सोलह जनपद–
महाभारत युद्ध के पश्चात् भारतीय इतिहास के साथ गोरखपुर जनपद का इतिहास भी अन्धकार में पड़ जाता है। पुराणों में मगध साम्राज्य की राजवंशावलियों के अतिरिक्त और कुछ ऐतिहासिक सामग्री नहीं मिलती। हाँ, बौद्ध और जैन साहित्य से धुंधला प्रकाश मिलता है। प्रारम्भिक बौद्ध और जैन साहित्य प्रायः धार्मिक है, किन्तु प्रसंग से उनमें राजनैतिक और सामाजिक की भी चर्चा आ जाती है। ग्रंथों में सोलह जनपदों (जातीय भूमि, राज्य, राष्ट्र) के नाम आते हैं जिनको वे ‘सोलस महा जनपद’ कहते हैं। अंगुत्तर निकाय7 में निम्नलिखित जनपदों के नाम मिलते हैं – (1) कासी (2) कोसल (3) अंग (4) मगध (5) वज्जि (6) मल्ल (7) चेतिय (8) पंस (वत्स) (9) कुरु (10) पञ्चाल (11) मच्छ (12) सूरसेन (13) अस्सक (14) अवन्ति (चेदि) (15) गन्धार (16) कम्बोज.
बौद्धग्रंथ महावस्तु में जनपदों की सूची थोड़ी भिन्न है। इसमें पश्चिमोत्तर के गन्धार और कम्बोज छोड़ दिये गये हैं और उनके बदले शिवि और दशार्ण सम्मिलित कर लिये गये हैं। जैन भगवती सूत्र में यह सूची थोड़ी और भिन्न है-
(1) अंग (2) वंग (3) नगह (4) मलय (5) मालव (6) अच्छ (7) वच्छ (8) कोच्छ (9) पाट (पाण्ड्य) (10) लाध (राध) (11) वज्जि (12) मौलि (13) कासी (14) कोसल (15) अवह (16) समुत्तर.
विकेन्द्रीकरण-
ऊपर की सूचियाँ देखने से कई राजनैतिक बातें स्पष्ट हो जाती हैं। उत्तर भारत में प्राचीन काल के साम्राज्य नष्ट हुये से मालूम पड़ते हैं। जरासन्ध का निरंकुश उदीयमान साम्राज्य तो श्रीकृष्ण पाण्डव मैत्री से टूट ही गया था किन्तु ब युधिष्ठिर के समय में निर्मित पाण्डव साम्राज्य भी स्थायी न हुआ और संभवतः जनमेजय के बाद टूट गया। फलस्वरूप हिन्दुस्तान में छोटे-छोटे बिल्कुल स्वतंत्र राज्यों का उदय हुआ जो किसी एक सत्ता का आधिपत्य नहीं मानते थे। भारत के राजनैतिक जीवन में साम्राज्यवाद के विरुद्ध प्रतिक्रिया हुई। विकेन्द्रीकरण की प्रवृत्ति काफी दूर तक आगे बढ़ गयी। राजनैतिक जगत् में और भी कई परिवर्तन दिखायी पड़ते हैं। मध्यदेश के सूदूर पूर्वोत्तर में एक राज्य अंग प्राचीनकाल से चला आता हुआ दिखायी पड़ता है। किन्तु प्राचीन सूर्यवंशी वैशाल और वैदेह राज्य के नाम नहीं हैं। उनके स्थान पर • वज्जिराष्ट्र की गणना ऊपर की सूची में है। इसी तरह प्राचीन प्रतिष्ठान के चन्द्रवंश का पता भी नहीं है। उसके स्थान पर वत्स (वंश अथवा वच्छ) और चेदि दो राज्यों का उल्लेख है। काशी और कोशल बहुत कुछ संकुचित होकर बचे हुये हैं।
मल्लराष्ट्र-
गोरखपुर जनपद में भी एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुआ। यहाँ पर सरयू और बड़ी गंडक के बीच में केवल एक राष्ट्र मल्ल का उल्लेख है। चन्द्रकान्त के मल्लों ने तो कुशावती और शरावती को पहले ही अपने अधीन कर लिया था। इधर उन्होंने पश्चिमी कारुपथ (बस्ती) और गोपालक (गोपालपुर) पर भी अपना आधिपत्य जमा लिया। महाजनपदों के युग में मल्लराष्ट्र कोसल से बिल्कुल स्वतंत्र अलग राष्ट्र हो गया।