गोरखपुर में मुख्य धर्म सम्प्रदाय , Gorakhpur me mukhya Dharm Sampraday: जनपद में सबसे प्राचीन और सबसे अधिक प्रचलित धर्म हिन्दूधर्म है। इसका सबसे प्राचीन क्रमबद्ध रूप वैदिक धर्म था। यह धर्म भूतवाद, बहुदेववाद, एकेश्वरवाद, सर्वेश्वरवाद आदि अवस्थाओं को पार कर अद्वैतवाद के विकास तक ऋग्वेद के समय में ही पहुँच गया था।
वैदिक ऋषियों ने धार्मिक और दार्शनिक चिन्तन और विचार में काफी उन्नति कर ली थी। उन्होंने ब्रह्म, आत्मा, पुनर्जन्म, कर्म, मोक्ष आदि ऊँचे सिद्धान्तों का आविष्कार किया। परन्तु सामान्य जनता अनेक प्राकृतिक देवताओं अग्नि, इन्द्र, वरूण, विष्णु, रुद्र, सोम आदि में विश्वास करती थी। मुख्य वैदिक देवता 12 आदित्य, 11 रुद्र और 8 वसु थे। अनेक पूर्ण अथवा अर्द्ध देवयोनियाँ इनके अतिरिक्त कल्पित की गयी थी। लोग पितरों में भी विश्वास करते थे। इस विश्वास के आधार पर पूजापद्धति में प्रार्थना, यज्ञ और श्राद्ध सम्मिलित थे। धीरे-धीरे वैदिक कर्मकाण्ड का विस्तार हुआ।
उसमें अनावश्यक व्यय, हिंसा और दुरूहता बढ़ने लगी और यज्ञप्रधान वैदिक धर्म जनता का धर्म न रहकर राजाओं, श्रीमानों और सेठ साहूकारों का धर्म हो गया। इस कारण से विक्रम से 500 वर्ष पूर्व धार्मिक प्रतिक्रिया हुई और बौद्ध तथा जैन सुधारवादी धर्मों का उदय हुआ। उन्होंने वैदिक कर्मकाण्ड और वेद के प्रमाणवाद का खण्डन किया, किन्तु वैदिक नीति का ही अवलम्बन कर उन्होंने नैतिक सिद्धान्त दया, करूणा, मैत्री आदि पर विशेष जोर दिया। इस प्रकार एक ही धर्मसरिता की तीन धारायें हो गयीं (1) मुख्य वैदिक धर्म (2) बौद्ध धर्म और (3) जैन धर्म |
प्राचीन इतिहास के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि कोसल राज्य के अभिन्न भाग होने के कारण गोरखपुर जनपद में प्राचीन आर्यों की बस्ती और वैदिक ऋषियों के आश्रम थे। इसलिये यहाँ प्रारम्भ में वैदिक धर्म की प्रधानता थी।
परन्तु सुधारक धर्मों के उदय के बाद यह जनपद नयी सुधारणाओं का भी केन्द्र रहा, भगवान् बुद्ध का जन्म शाक्य गणतंत्र की राजधानी कपिलवस्तु में हुआ था और भगवान् महावीर का सम्बन्ध भी गोरखपुर जनपद से था। (मल्लों की एक राजधानी पावा में उनका निर्वाण हुआ था)। इन दोनों महात्माओं की चारिका और उपदेश से गोरखपुर जनपद बहुत ही प्रभावित हुआ।
यह अवस्था लगभग गुप्तकाल तक बनी रही। चीनी यात्री फाहियान के यात्रा वर्णन और उत्कीर्ण लेखों से मालूम होता है कि इस समय से बौद्ध और जैन धर्म का ह्रास शुरू हुआ। इसके पहले तीनों भारतीयों धर्मों में भक्तिमार्ग का उदय हो गया था- वैदिक धर्म में वैष्णव, शैव तथा शाक्त; बौद्ध धर्म में महायानी पंथ और जैन धर्म में तीर्थकरों की भक्तिमूलक पूजा प्रचलित थी।
प्राचीन वैदिक धर्म अपनी उदारता, समन्वय की प्रतिभा और अन्य धर्मों को अपने में मिलाने की शक्ति के कारण अपने सहयोगी धर्मों से प्रभावित किन्तु उनको अपने विशाल शरीर में समेटते हुये नये रूप में प्रकट हुआ जिसको पौराणिक हिन्दू धर्म कहते हैं। इसमें अवतारवाद, भक्तिमार्ग, मंदिरों में मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा, दान, व्रत, पौष्टिक और शान्तिक आदि धार्मिक कृत्यों की प्रधानता थी। धीरे-धीरे भगवान् बुद्ध हिन्दू धर्म के अवतारों में सम्मिलित हो गये और सम्पूर्ण बौद्ध और जैन जनता क्रमशः वैदिक धर्म के नये रूप पौराणिक हिन्दू धर्म में वापस आ गयी।
पौराणिक हिन्दूधर्म अबाध रूप से मुसलिम आक्रमण के पूर्व तक चलता रहा। जिस तरह प्राचीन वैदिक धर्म में कर्मकाण्ड के विस्तार से जड़ता और दुरूहता आ गयी थी उसी प्रकार मंदिरप्रधान, सम्पत्तिसंचयी, एकान्तभावनामूलक भक्तिमार्गी हिन्दूधर्म भी अपने ही भार से दबने लगा। किन्तु इसके पहले कि कोई आन्तरिक सुधारणा हिन्दू धर्म में उत्पन्न होती पहले अरबों तथा बाद में मध्य एशिया से हुये नवमुसलिम तुर्कों के आक्रमण हिन्दुस्तान पर सं. 1250 वि. के लगभग प्रारम्भ हुये। इनके साथ इस्लाम हिन्दुस्तान में आया। इस्लाम प्रचारक धर्म था और इसके पीछे तीव्र राजनीति थी।
बल, प्रलोभन, जाल आदि हथकंडों से बहुसंख्यक हिन्दू मुसल्मान बनाये गये। थोड़े से स्वेच्छापूर्वक भी मुसल्मान हुये। इन राजनैतिक और धार्मिक घटनाओं का प्रभाव गोरखपुर जनपद पर कम हुआ, क्योंकि मुसल्मान अकबर के समय तक उस पर अपना नियमित आधिपत्य नहीं जमा पाये थे। फिर भी देश की सामान्य अवस्था का थोड़ा बहुत प्रभाव होता ही रहा।
अकबर के बाद से लेकर नवाबों के शासनकाल तक इस्लाम स्वीकार करने वालों की संख्या बढ़ती रही। इस्लाम कट्टर एकेश्वर वादी, मूर्तिपूजा का विरोधी और पूजा पद्धति में सादा धर्म था। प्रारंभिक आक्रमणों की कटुता कम होने से हिन्दूधर्म और इस्लाम एक दूसरे के निकट आये और परस्पर प्रभावित होने लगे।
मुसलिम अकमण के समय में ही कई सन्त महात्मा हुये जिन्हों ने त्रस्त हिन्दू जनता, और कभी-कभी हिन्दू मुसल्मान दोनों को धार्मिक रहस्य और आशा तथा सान्वना का उपदेश दिया। इसी काल में बाबा गोरखनाथ जी हुये जिन्होंने गोरखपुर जनपद में नाथपंथ के साथ-साथ हठयोग का प्रचार किया। गोरखपुर जनपद से कबीर का भी धना सम्बन्ध था। कबीर के दोहे, वचन और वाणी के याद करने वाले और कबीर पंथ के मानने वाले आज भी जनपद में बहुत से लोग हैं।
लोक संग्रही वैष्णव धर्म के प्रचार में गोस्वामी तुलसीदास जी का नाम विशेष उल्लेखनीय है। ये सरयूपारीण ब्राह्मण थे और गोरखपुर जनपद से उनका सम्पर्क था। आजकल वैष्णव धर्म के सब से बड़े मठाधीश पवहारी बाबा हैं। नानक पंथ और सिक्ख सम्प्रदाय के मानने वाले भी इस जनपद में कुछ लोग हैं।
वैसे तो ईसाई अनुश्रुति के अनुसार ईसाई धर्म ईसा की प्रथम शर्तादी में ही हिन्दुस्तान में आ गया था, परन्तु गोरखपुर जनपद में इसका प्रवेश अंग्रेजों के आगमन के साथ हुआ। यह भी प्रचारक धर्म था और इसके पीछे राजनीति थी। यद्यपि इसके द्वारा जनता पर प्रत्यक्ष अत्याचार कम हुये किन्तु प्रलोभन इसका भी बड़ा अब था। जनपद में कई ईसाई मिशन हैं और कई हजार की संख्या में लोग ईसाई हो गये हैं।
युरोपियों के साथ थोड़े से यहूदी भी जनपद में आ गये। जरथुम (पारसी धर्म थोड़े से व्यापारी पारसियों के साथ गोरखपुर जनपद में आया। यह प्रचारक धर्म नहीं है। बीसवीं शताब्दी विक्रम के उत्तरार्द्ध में इस्लाम और ईसाई धर्म द्वारा हिन्दू धर्म के ऊपर आक्रमणों की प्रतिक्रिया में आर्य समाज का उदय हुआ और गोरखपुर जनपद में भी उसकी शाखायें खुलीं। यह कोई अलग धर्म नहीं, किन्तु एक सुधारक समाज है।
जनपद में वर्तमान हिन्दू धर्म का वर्णन करना आसान काम नहीं। यह एक विशाल सामाजिक संघटन और धर्म संघ है। इसके मानने वालों में भूतवादी, एकेश्वरवादी, बहुदेववादी और सर्वश्वरवादी सभी धार्मिक विचारधारा के लोग हैं। समाज का निचला स्तर भूत-प्रेत, पितर, गन्धर्व, राक्षस, देव, दानव आदि मे विश्वास करने वाला और प्रायः भूतवादी है,
यद्यपि उसमें इस बात की चेतना है। कि ये सभी योनियाँ एक ईश्वर के ही अंग हैं। हिन्दू देवमंडल में वैदिक देवता- बारह आदित्य, ग्यारह रुद्र और आठ बसु, अनेक पौराणिक देवता ब्रह्मा विष्णु, शिव, सूर्य आदि, बहुसंख्यक देवियाँ पार्वती, दुर्गा, काली, चामुंडा, बाराही आदि छोटे-छोटे बहुत से देवता और अप्सरा, यक्ष, किन्नर, गन्धर्व आदि ।
सम्मिलित हैं। देवताओं की संख्या 33 से बढ़ती-बढ़ती 33 करोड़ हो गयी है जो प्रायः हिन्दुस्तान में हिन्दुओं की संख्या के बराबर है। इन देवताओं के अतिरिक्त ग्रह नक्षत्र, नदी, वृक्ष, पशु, पक्षी, जल, वायु आदि सभी की पूजा हिन्दू करते हैं। यदि देखा जाय तो हिन्दुओं के लिये कुछ भी अपूज्य नहीं है। इसका परिणाम यह हुआ है कि यदि एक और धार्मिक भावना जीवन के सभी स्रोतों में घुस गयी है। तो दूसरी ओर धर्म के नाम पर अनेक मूढ़ विश्वास जनता में प्रचलित हैं।
साम्प्रदायिक दृष्टि से जनपद में वैष्णव, शैव, शाक्त, सौर आदि सभी सम्प्रदाय हैं। किन्तु यहाँ की जनता साम्प्रदायिक नहीं है। प्रायः लोग पंचदेवोपासक ब्रह्मा, विष्णु, शिव, सूर्य और दुर्गा की पूजा करने वाले और सभी देवताओं के प्रति आदर रखने वाले हैं। हिन्दू धर्म को मानते हुये कई हिन्दू और अहिन्दू सन्त-महात्माओं के चलाये हुये पंथ को मानने वाले लोग भी हिन्दू धर्म में हैं, जैसे गोरखपंथी, नानकर्षथी, कबीरपंथी आदि।
ऊपर लिखी हुई सभी भिन्नता होते हुये भी कुछ विश्वास और धार्मिक आचार ऐसे हैं जो सभी हिन्दुओं में समान रूप से पाये जाते हैं, जैसे
(1) एक सर्व शक्तिमान ईश्वर में विश्वासा (2) वेद-शास्त्र में गंभीर श्रद्धा।
(3) आत्मा में विश्वास ।
(4) गोवंश, कर्म, पुनर्जन्म और मोक्ष में आस्था ।
(5) गौ और ब्राह्मण का आदर।
इनके अतिरिक्त हिन्दू स्वभाव से ही धार्मिक होता है। उसको ईश्वर के प्रति अपने कर्तव्य का बोध होता है; वह ईश्वर की पूजा करता और उसकी सहायता और पथप्रदर्शन के लिये प्रार्थना करता है। मनुष्य के प्रति मनुष्य के कर्तव्य का भी हिन्दू को भान है और उसके नीतिशास्त्र का संसार के नीतिशास्त्र में ऊँचा स्थान है। हाँ, उसके जीवन में धर्म और नीति के बीच में कोई विभाजक रेखा खींचना महा कठिन है।
नहीं हुआ. हिन्दू धर्म की छोर पर बहुत सी ऐसी जातियाँ हैं जो श्रर्द्धसभ्य और हिन्दूधर्म और सभ्यता से अर्द्ध प्रभावित हैं। इनका समाजीकरण अभी पूरा है। उच्च वर्ग के हिन्दुओं ने उनको अपने किनारे लाकर छोड़ दिया है। यदि हिन्दू धर्म ने इनको ऊपर उठाकर पूर्णतः अपने में नहीं मिलाया तो उसके दायरे से उनके निकल जाने की संभावना है, यद्यपि उनमें हिन्दुत्व की भावना गहरी है और इसी में जीना और मरना वे अच्छा समझती हैं।
जनपद में हिन्दूधर्म के अतिरिक्त अन्य भारतीय धर्म सिक्ख, जैन और बौद्ध है, जिनकी परम्परा, जन्मभूमि और बहुत से दार्शनिक और नैतिक विचार हिन्दुओं के समान हैं। सिक्छ यहाँ पहले बहुत कम थे; केवल कुछ नानकपंथी साधू रहते थे। किन्तु डुमरी राज्य सिक्खों को मिल जाने से कुछ लोग पंजाब से यहाँ आ गये। आजकल इंजीनियरी, ड्राइवरी और दूसरी नौकरियों में सिक्ख इस जनपद में काम करते हैं।
इनकी मनुष्य संख्या इस समय लगभग दो-ढाई सौ होगी। प्राचीन काल में जैन धर्म के मानने वाले इस जनपद में काफी थे। गुप्तकाल तक इस धर्म के अनुयायी यहाँ मिलते थे किन्तु 10वीं शताब्दी से 18वीं शताब्दी तक इनकी संख्या नहीं के बराबर हो गयी थी।
आधुनिक जैन प्रान्त के पश्चिमी जनपदो और दूसरे प्रान्त से व्यापारी रूप में यहाँ आये हैं और विशेषतः अग्रवाल जाति में पाये जाते हैं। इनकी संख्या डेढ़-दो सौ से अधिक न होगी। बौद्धधर्म जो कभी जनपद में बहुत व्यापक था, आज उसके मानने वालों की संख्या सब धर्मों से कम है, यद्यपि प्रभाव रूप से अब वह में वर्तमान है। इसके अनुयायी 50-60 से शायद ही अधिक हों।
हिन्दूधर्म के बाद संख्या की दृष्टि से जनपद में दूसरा धर्म इस्लाम है। ये अधिकतर पडरौना और महराजगंज तहसील और गोरखपुर शहर में बसे हुये हैं।
अधिकांश मुसल्मान हिन्दू से मुसल्मान हुये हैं, अतः उनकी रहन-सहन और रोति-रिवाज बहुत से हिन्दुओं जैसे ही हैं। ये एकेश्वरवादी होते हुये देवी-देवता और सन्त-महात्माओं की पूजा करते हैं। इस्लाम की दो शाखाओं-सुन्नी और शिया के मानने वाले मुसल्मान यहाँ पाये जाते हैं। इनमें से अधिकांश प्रथम शाखा के हो हैं। इस्लाम के धार्मिक सिद्धान्त और संक्षेप में निम्नलिखित हैं-
(1) तौहीद अर्थात् ईश्वर की एकता । (2) हजरत मुहम्मद ईश्वर की दूत
(3) कुरान ईश्वरीय पुस्तक । (4) नमाज या प्रार्थना ईश्वर की प्रसन्न करने का साधन
इस्लाम प्रचारक धर्म है। भारत वर्ष में आने के साथ इसने राजनैतिक बल तथा प्रलोभन से बहुतों को मुसल्मान बनाया। राजनैतिक शक्ति क्षीण हो जाने के बाद इसकी प्रचारक शक्ति भी कम हो गयी। आजकल इसकी संख्यावृद्धि का कारण जनता के प्रति इसका सेवाभाव अथवा बौद्धिक तर्कवाद नहीं, किन्तु इसकी सन्तानोत्पत्ति की प्रबल शक्ति और हिन्दुओं की कमजोरी संकीर्णता और वर्जनशीलता है।
हिन्दूधर्म में से बहिष्कृत अथवा भगे हुये लोगों को अपने में मिला लेने की इस्लाम अद्भुत शक्ति है। ईसाई धर्म जनपद का सबसे नवागन्तुक धर्म है, किन्तु इसकी उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है। ईसाई धर्म के मुख्य विश्वास और सिद्धान्त इस्लाम से मिलते-जुलते हैं :
(1) एकेश्वरवाद
(3) बाइबिल धार्मिक पुस्तक
(2) महात्मा ईसा ईश्वर के पुत्र
(4) प्रार्थना ईश्वर की पूजा
ईसाई धर्म मानने वालों में कुछ तो युरोपियन और ऐंग्लो इंडियन हैं जो सरकारी और रेलवे नौकरियों में या धर्मप्रचारक के रूप यहाँ हैं और शेष, अधिकांश में, देशी लोगों में से ही ईसाई हुये हैं। इनका बड़ा भाग हिन्दू जाति के निचले स्तर से निकला हुआ है। यूरोप के कई देशों, इंग्लैण्ड, अमेरिका और आस्ट्रेलिया के कई मिशन ईसाइयत के प्रचार का काम जनपद में करते हैं।
ईसाइयों में से कुछ तो रोमन कैथॉलिक सम्प्रदाय के हैं, किन्तु अधिकांश इंग्लैण्ड के ऐंग्लिकन चर्च को मानने वाले हैं। ईसाइयत के प्रचार में बल की अपेक्षा सेवा भाव और प्रलोभन की प्रधानता रही है। स्पताल, अनाथालय, स्कूल, कॉलेज आदि खोलकर प्रारंभ में बहुत लोगों को ईसाई धर्म की ओर आकृष्ट किया गया। परन्तु अब इस प्रकार से ईसाई धर्म में दीक्षित होने वालों की संख्या कम हो रही है।
आजकल प्रायः सामाजिक अत्याचार तथा बहिष्कार के कारण हिन्दू समाज से निकले लोग और अनाथालय में पले बच्चे ही ईसाइयों की संख्या बढ़ा रहे हैं।