गोरखपुर के सभी गणतंत्र राज्य , Gorakhpur ke sabhi Gadtantra rajya:
साम्राज्यवाद की प्रतिक्रिया-
महाजनपदों के युग में साम्राज्यवाद के विरुद्ध जो प्रतिक्रिया प्रारम्भ हुई थी। उसकी पराकाष्ठा गणतंत्रों के युग में हुई। पाली ग्रंथों से स्पष्ट मालूम होता है कि उत्तर भारत में पश्चिम में कोसल, पूर्व में अंग, उत्तर में हिमालय और दक्षिण में वत्स राज्य के बीच छोटे-छोटे राज्यों ने राजतंत्र (एक व्यक्ति का राज्य) का परित्याग करके गणतंत्र (पंचायती अथवा प्रजातांत्रिक राज्य) की स्थापना की।
देश के राजनैतिक जीवन में यह एक बहुत बड़ा प्रयोग था। गोरखपुर जनपद में कई एक गणतंत्र स्थापित हुये। ये गणतंत्र बड़े ही प्रतिभासम्पन्न और शक्तिशाली थे। इनकी राजनीति, समाजनीति, धर्म और संस्कृति में देन उच्चकोटि की है। वास्तव में गोरखपुर जनपद का सबसे गौरवमय इतिहास इसी युग में निर्मित हुआ था। गणतंत्र जिन गणतंत्रों की चर्चा पाली ग्रंथों में मिलती है उनकी गणना निम्नलिखित प्रकार से की जा सकती है
(1) कपिलवस्तु के शाक्य (2) रामग्राम के कोलिय (3) पिप्लीवन के मौर्य (4) पावा के मल्ल (5) कुशीनगर के मल्ल (6) मिथिला के विदेह (7) वैशाली के लिच्छवि (8) अल्लकप्प के बुलि (9) सुंसुमारगिरि के भग्ग (भार्गव) (10) केसपुत्र कालम.
प्राचीन राज्यों से सम्बन्ध ऊपर के गणतंत्रों में प्रथम पाँच गोरखपुर जनपद में थे। मिथिला के विदेह और वैशाली के लिच्छवि और अल्लकप्प के बुलि क्रमशः उत्तरी बिहार और आरा में थे। ये प्राचीन सूर्यवंशी वैदेहों, वैशालों और कारूपों के वंशज थे। सुंसुमारगिरि के भग्ग अथवा भार्गव कौशाम्बी के वत्सों के पड़ोसी और आजकल के मिर्जापुर जिले में स्थित थे। ये प्राचीन प्रतिष्ठान के चन्द्रवंशियों के वंशज थे। केसपुत्र के कालमों के सम्बन्ध में कुछ भी बतलाना कठिन है।
उनके स्थान और वंश का अभी तक कुछ परिचय नहीं मिला है। सम्भव है कि केसपुत्त (केशिपुत्र) का कुछ सम्बन्ध शतपथ ब्राह्मण में उल्लिखित केशिन् से हो, जिनकी चर्चा पञ्चालों के साथ आती है। इस दशा में ये युक्तप्रान्त के पश्चिमी भाग में कहीं रहे होंगे। बुद्ध के शिक्षक आलर कालम वंश के ही थे। इन गणतंत्रों की शासनप्रणाली, सामाजिक और सम्बन्ध, आचार-व्यवहारादि प्रायः सभी समान थे।