गोरखपुर के रामग्राम के कोलिय , रामजनपद , Gorakhpur ke ramgram ke koliy , Ramjanpad:
रामग्राम के कोलिय : रामजनपद
वंश – परिचय
दीघनिकाय पर बुद्धघोप की टीका में शाक्य और कोलिय वंश की उत्पत्ति का जो वर्णन है उसके अनुसार कोलिय वंश शाक्य कन्या और काशी के राजा राम के सम्बन्ध से उत्पन्न हुआ था। इसमें राम के सजातीय बहुत क्षत्रिय काशी से आकर सम्मिलित हो गये थे किन्तु ऐसा जान पड़ता है कि कोलियों का मातृपक्ष से सम्बन्ध अधिक था।
अतः दिव्यावदान में कोलियों को भी इक्ष्वाकुवंशी कहा गया है। भगवान् बुद्ध की राख में भाग लेने के समय कोलियों ने उनके साथ अपनी सजातीयता प्रकट की थी। काशी के राजा राम किस वंश के थे, यह निश्चित रूप से बतलाया जा सकता है। वे नागवंशी क्षत्रिय थे। कोशी का ऐल अथवा चन्द्रवंश बहुत पहले नष्ट हो गया था।
चन्द्रवंश के ह्रास के बाद काशी और मगध दोनों में नागवंशी, राज्यों की स्थापना हुई। नागवंशी शिशुनाग पहले काशी का ही राजा था। यहाँ से मगव में जाकर वहाँ उसने शैशुनाग वंश की स्थापना की। काशी से ही कोलिय भी रामजनपद में आये थे। बौद्ध गाथाओं में लिखा मिलता है कि रामग्राम में भगवान् बुद्ध के अवशेष पर जो स्तूप बना था उसकी पूजा नाग करते थे। वास्तव में ये नाग सर्प नहीं, रामग्राम के नागवंशी क्षत्रिय ही थे। दीघ निकाय के परिनिब्बाण सुत्तान्त में स्पष्ट लिखा हुआ है कि रामजनपद के निवासी नागवंशी थे|
राजधानी अधिकांश बौद्धग्रंथों में कोलियों की राजधानी रामग्राम बतलायी गयी है। दीघनिकाय के ऊपर बुद्धघोप की टीका में कोलिया के कोलनगर अथवा व्याघ्रपद्या कहा गया है। कोलनगर नाम तो कोलवृक्षों के आधिक्य के कारण पड़ा, और बस्ती होने के पूर्व यहाँ पर व्याघ्र घूमा करते थे, इसलिये इसका नाम ‘व्याघ्रपद्या’ भी रखा गया था। किन्तु ये दोनों ही नाम अशोभन थे।
अतः कुछ दिनों के बाद कोलियों के मूलपुरुष राम के नाम पर इसका नाम रामग्राम पड़ा और उनका राष्ट्र रामजनपद रामग्राम की स्थिति रामग्राम की स्थिति के सम्बन्ध में ऐतिहासिकों में मतभेद है। किन धम्म-पद- अट्ठकथा के अनुसार यह तो निश्चित है कि यह नगर रोहिणी के रहा होगा (रोहिणी के पश्चिम शाक्यों का राज्य था)। इसकी स्थिति रोहिणी को बाय घाटी के दक्षिण भाग में ही होना चाहिये, क्योंकि उत्तर की ओर मल्लराष्ट्र फैला हुआ था। एस०सी०यल० कार्यायल के अनुसार रामपुर देवरिया प्राचीन रामग्राम है।
यह स्थान मुंडेरा से 1% मील दक्षिणपूर्व मरवा ताल के किनारे है। एक स्तूप का भग्नावशेष रामपुर देवरिया से 500 फीट उत्तरपूर्व में है और दो तालले के बीच स्थित है। कार्यालय का विचार है कि यह वही स्तूप है जिसको कोलियाँ मे भगवान् बुद्ध के अवशेष से भाग लेकर उसके ऊपर बनवाया था। प्रस्तुत लेखक के विचार में रामपुर देवरिया प्राचीन रामग्राम नहीं हो सकता। चीनी यात्री हुयेनसंग ने रामग्राम स्तूप की यात्रा की थी। उसके यात्रा वर्णन के अनुसार स्तूप रामग्राम के दक्षिण-पूर्व में था। कार्लायल साहब का कहना है कि यात्री ने दिशा भ्रम से लिख दी थी, वातव में स्तूप उत्तर-पूर्व था। परन्तु ऐसा मानने के लिये कोई यथेष्ट कारण नहीं है।
रामपुर देवरिया को रामग्राम सिद्ध करने के लिये कार्यालय को ऐसा मानना पड़ा था। रमग्राम और रामगढ़ताल वास्तव आधुनिक गोरखपुर ही प्राचीन रामग्राम के स्थान पर बसा हुआ है। रामगढ़ताल का नाम इस बात का द्योतक है। ध्यान देने की बात है कि नाम ‘रामगढ़’ है, रामताल नहीं। अतः स्पष्ट है कि इसके किनारे किसी समय का गढ़ (दुर्ग-राजधानी वाला नगर) था। ताल नगर से दक्षिण-पूर्व दिशा में था और इसी के किनारे कोलियों ने भगवान् बुद्ध के अवशेष का स्तूप बनाया था।
हुयेनसंग अपने यात्रावर्णन में इसी स्तूप की चर्चा करता है। उसकी बतायी हुई दिशा इससे मेल खाती है। यह सब है कि आजकल रामगढ़ताल के किनारे किसी स्तूप का भग्नावशेष नहीं है। किन्तु इसके लिये उत्तरदायी राप्ती नदी और रामगढ़ ताल हैं। लंका के बौद्ध ऐतिहासिक में लिखा हुआ है रामग्राम में बने हुये स्तूप को नदी बहा ले गयी। इसलिए हुयेनसंग ने जिस स्तूप को देखा था वह मूल धातु स्तूप (भगवान बुद्ध के अवशेष पर बना हुआ) नहीं था, किन्तु उसके बदले में बना हुआ दूसरा स्तूप था। बौद्धधर्म के ह्रास के बाद जब स्तूप मरम्मत के अभाव में गिरने पड़ने लगे तो रामग्राम में नवनिर्मित स्तूप की भी वही दशा हुई राप्ती तथा रामगढ़ताल ने अपना अधिकार उस पर जमा लिया। शताब्दियों से रामगढ़ताल भरता हुआ नगर की ओर से हटता जा रहा है। इसका प्रभाव भग्नावशेषों पर भी पड़ा है।
कोलिय राज्य का विस्तार-
कोलिय राज्य रोहिणी के पूर्व उसकी दक्षिणी घाटी में और रोहिणी तथा अचिरावती (आधुनिक राप्ती) के संगम के आगे राप्ती के दक्षिण में था। बौद्ध साहित्य में राप्ती के दक्षिण किसी दूसरे राज्य का संकेत नहीं है। जान पड़ता है महाभारतकालीन गोपालक राज्य नष्ट हो गया था अथवा कोलिय राज्य में मिल गया था। इस तरह गोरखपुर की सदर तहसील का दक्षिणी भाग और बाँस गाँव तहसील का पश्चिमी भाग रामजनपद में सम्मिलित था।