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Danteshwari Mandir, Dantewara Chhattisgarh | दंतेश्वरी मंदिर, दंतेवाड़ा छत्तीसगढ़
वैसे तो देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का ही जिक्र है, लेकिन कुछ स्थानीय मान्यताएं अलग कहानी कहती हैं। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा के दंतेश्वरी माता मंदिर को 52वां शक्तिपीठ भी गिना जाता है।
मान्यता है कि यहां देवी सती का दांत गिरा था। इसी पर इस इलाके का नाम दंतेवाड़ा पड़ा। इस मंदिर को लेकर कई तरह की कहानियां और किवदंतियां यहां प्रसिद्ध हैं।
पौराणिक कथा:-
मान्यता अनुसार बस्तर के पहले काकातिया राजा अन्नम देव वारंगल से यहां आए थे। उन्हें दंतेवश्वरी मैय्या का वरदान मिला था। अन्नम देव को माता ने वर दिया था कि जहां तक वे जाएंगे, उनका राज वहां तक फैलेगा लेकिन इस पर शर्त ये थी कि राजा को पीछे मुड़कर नहीं देखना होगा|
और मैय्या उनके पीछे-पीछे जहां तक जाती, वहां तक की जमीन पर उनका राज हो जाता। शर्त के अनुसार जहां अन्नम देव के रूकता वहीं मैय्या ने भी रूक जाना था। अन्नम देव ने चलना शुरू किया और वे कई दिन और रात चलते रहे। वे चलते-चलते शंखिनी और डंकनी नदियों के संगम पर पहुंचे।
यहां उन्होंने नदी पार करने के बाद माता के पीछे आते समय उनकी पायल की आवाज महसूस नहीं की। सो वे वहीं रूक गए और माता के रूक जाने की आशंका से उन्होंने पीछे पलटकर देख लिया। माता तब नदी पार कर रही थी।
राजा के रूकते ही मैय्या भी रूक गई और उन्होंने आगे जाने से इनकार कर दिया। दरअसल नदी के जल में डूबे पैरों में बंधी पायल की आवाज पानी के कारण नहीं आ रही थी और राजा इस भ्रम में कि पायल की आवाज नहीं आ रही है, शायद मैय्या नहीं आ रही है सोचकर पीछे पलट गए।
वचन के अनुसार मैय्या के लिए राजा ने शंखिनी और डंकनी नदी के संगम पर एक सुंदर घर यानि मंदिर बनवा दिया। तब से मैय्या वहीं स्थापित है। दंतेश्वरी मंदिर के पास ही शंखिनी और डंकनी नदी के संगम पर मां दंतेश्वरी के चरणों के चिन्ह मौजूद है और यहां सच्चे मन से की गई मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती है।
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