छत्तीसगढ़ के बस्तर के लोहे से बना है दिल्ली का प्रसिद्ध लौह स्तंभ

Rate this post

बस्तर के लोहे से बना है दिल्ली का प्रसिद्ध लौह स्तंभ

दिल्ली में कुतुब मीनार के निकट स्थित एक विशाल लोह स्तम्भ है। यह अपने आप में प्राचीन भारतीय धातुकर्म का नायाब उदाहरण है। धातु विज्ञानियों ने बताया है कि इस स्तंभ को बनाने के लिए बैलाडीला की खान से निकले अयस्क का उपयोग किया गया है। इसकी खासियत यह है कि 16 सौ साल से भी अधिक समय गुजर जाने के बाद भी इसमेंजंग नहीं लगा है। इस लौह स्तम्भ में लोहे की मात्रा करीब 98 फीसदी है।

शुद्ध लोहे से बने इस स्तंभ की ऊंचाई सात मीटर से भी ज्यादा है जबकि वजन 6000 किलो से भी अधिक है। रासायनिक परीक्षण से पता चला है कि इस स्तंभ का निर्माण गर्म लोहे के 20-30 किलो के कई टुकड़ों को जोड़ कर किया गया है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि करीब 1600 साल पहले गर्म लोहे के टुकड़ों को जोड़ने की तकनीक क्या इतनी विकसित थी. क्योंकि उन टुकड़ों को इस तरीके से जोड़ा गया है कि पूरे स्तंभ में एक भी जोड़ दिखाई नहीं देता।

गुप्त साम्राज्य से जुड़ा है नाता

कथित रूप से राजा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य (राज 375 – 413) ने इसका निर्माण कराया था, किन्तु कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पहले निर्माण किया गया। संभवत 912 ईपू में माना जाता है कि मथुरा में विष्णु पहाड़ी पर निर्मित भगवान विष्णु के मंदिर के सामने इसे खड़ा किया गया था, जिसे 1050 ईस्वी में तोमर वंश के राजा और दिल्ली के संस्थापक अनंगपाल ने लाया।

12 सौ से 16 सौ साल पहले बनाया गया है

लौह स्तंभ में सबसे आश्चर्य की बात है इसमें जंग का न लगना माना जाता है कि स्तंभ को बनाते समय इसमें फोस्फोरस की मात्रा अधिक मिलाई गई थी। लेकिन फास्फोरस की खोज तो 1669 ईस्वी में हैम्बर्ग के व्यापारी हेनिंग ब्रांड ने की थी जबकि स्तंभ का निर्माण उससे करीब 1200 साल पहले किया गया था।

Leave a Comment