सोनपान – लखनलाल गुप्त | Sonpan Chhattisgarhi Nibandh By Lakhanlal Gupt

Share your love
4.8/5 - (40votes)

सोनपान – लखनलाल गुप्त | Sonpan Chhattisgarhi Nibandh By Lakhanlal Gupt

(1) छत्तीसगढ़ में संझौती बेरा दशहरा के दिन नवा पोसाक पहिन के लड़का सियान जमो चिन गाजा बाजा के सगे जरन तिरन रावन के पुतला जलाय बर पहुँच जायय।सबके साहू म पुतला जलाय जायय जेखर पहिले सोनपान के पूजा होयय अऊ सोनपान ल जमोझन अपन अपने हाथ म रखये सबसे पहिली भगवान ल सोनपान जमौझन अरपित करवंय येखर बाद छोटे-बड़े सोनपान भेंट करे के बाद मिल-भेंट करयय सही में विजय के चिन्हारी के रूप में दिये जावय। (2) येती बिहनिया ले घर में खड्ग, तरवार ल मांजे के काम घलो सुरू रहय, आज घरो घर खड्ग के पूजा होयय। ये दिन ल हिन्दु मन साल भरले अगोरत रहियय येला बड़ पवित्र दिन माने जाये।काहे के, ये दिन आर्य के जीत के पताका अनार्य के किल्ला में फहराये रहिस हे। ये वही सुभ-दिन आय जउन दिन भगवान राम हर रावण ला खतम कर आर्य संस्कृति के रक्षा करे रहिन ।(3) नवरात मनइया मन नव दिन ले उपास रहियय उंखर विश्वास है के ये सबै मं जउन अनुष्ठान होयय तेखर बड़ फायदा हौयय। काहे के, संयम में रहे के कारन परिवर्तन होये के कारन, आने वाला कष्ट व्याधि से अनुष्ठान करड्या बचे रहियंय, दूसर हवन अऊ यज्ञ के घुंवा ले हवा सुद्ध हो जायय। जेखर कारन, किसम-किसम के रोग राई के समाप्ति हो जायय। खराब हवा ल बने करे खातीर हवन सबले बढ़िया उपाय आय। येखरे सेती हमार जुन्ना रिसी मुनी मन येखर बर जादा जोर दिये है।(4) सही में दशहरा आज भगवान राम के राक्षसी रावण ऊपर अलौकिक बिजय के यादगार में मनाय जावय। येखर दस दिन पहिली अऊ कोनो-कोनो एक महिना आघू ले रामलीला सुरु हो जय । ये लीला महात्मा तुलसीदास के रामचरितमानस के आधार म खेले जाथय। ये लीला म राम के जीवन के जमा उतार चढाव के जिंदगानी के लीला करथय। (5) दशहरा परब क्षत्री मन के माने जायय, पर आज पूरा देस के जम्मो मनखे येला राष्ट्रीय परव मानके मनायंय। कोनो नव दुर्गा के कारन, कोनो वीर पूजा के कारन, कोनो राम के उपासना के कारन, व्यापारी अपन बेपार के कारन, अउ कतको झन रमायन के पाठ करके जन-जागरन करायय। 

लखनलाल गुप्त का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

अथवा

लखनलाल गुप्त का साहित्य साधना पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।

छत्तीसगढ़ी निबन्ध के विकास में लखनलाल गुप्त का महत्वपूर्ण स्थान है। आपका जन्म 1 जुलाई, 1933 को बिलासपुर में हुआ था। आपने मैट्रिक की परीक्षा के वाराणसी में रहकर उत्तीर्ण की थी। एम. कॉम. और एल-एल. बी. की परीक्षाएँ आपने पण्डित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर से उत्तीर्ण कीं। लखनलाल गुप्त की प्रतिभा बहुआयामी है।छत्तीसगढ़ी में आपने कहानी, नाटक, कविता, निबन्ध आदि सभी विधाओं पर अपनी लेखनी को गति दी। उन्होंने उपन्यास भी रचे। उनके ‘चन्दा अमरित बरसाइस’ उपन्यास (1965) को छत्तीसगढ़ी के द्वितीय उपन्यास होने का गौरव प्राप्त है। इस उपन्यास के सम्बन्ध में मुकुटधर पाण्डे का कथन है-‘चंदा अमरित बरसाइस’ यथा नाम तथा गुण है।  पद-पद पर अमृत टपकता है। कथानक सरल और सहज है। आंचलिक जनजीवन का चित्रण स्वाभाविक बन पड़ा है।रचनाएँ-लखनलाल गुप्त की प्रकाशित पुस्तकें काव्य-सैनिक गान, सत्यमेव जयते, पद्मप्रभा, सँझौती के बेरा। उपन्यास- चन्दा अमरित बरसाइस। कहानी /एकांकी संग्रह-सरग ले डोला आइस आत्मकथा-सुरता के सोन किरन । बाल साहित्य-हाथी घोड़ा पालकी, छत्तीसगढ़ी बाल नाट्य नाटक-जाग- छत्तीसगढ़ जाग।भाषा-शैली-लखनलाल गुप्त की भाषा में दो रूप मिलते हैं। प्रथम रूप में विचारात्मक आते हैं, जिसकी भाषा संयत एवं गम्भीर है। दूसरा रूप आलोचनात्मक निबन्धों का आपकी भाषा प्रौढ़ है। इसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों की झलक दिखाई देती है। इसी से भाषा संस्कृत गर्भित और प्रांजल है।

 लखनलाल गुप्त की भाषा-शैली का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

भाषा-शैली– लखनलाल गुप्त द्वारा रचित निबन्ध सोनपान की भाषा चुस्त दुरुस्त वह छत्तीसगढ़ी के सम्पूर्ण गुणों का पालन करती है। कहीं-कहीं वर्णन में सजीवता और शब्द हसाव भाव व्यंजित होते हैं। शब्द चयन ऐसा है कि जो अपने भाव आप कह देते हैं। इन शब्दों प्रयोग निबन्धकार की कुशलता पर निर्भर करता है-“दशहरा के ये सुघ्घर तिथि अघाते च इरावना समे में पड़यय। ये वो समे होथे जब बरषा ऋतु के घड़घड़ात गजरन, शरद रितु के डर डर में भागे लगथय।ऊपर की प्रत्येक पंक्ति का शब्द ऐसा है जो भावार्थ बतलाता है। इस तरह के वाक्य प्रयोग जहाँ भी होंगे अपनी छटा बिखरेंगे ही।कहावतों-मुहावरों के प्रयोगों से कथन में आकर्षण आना स्वाभाविक बात है जो लोक चंदन के लिए सूत्रों का कार्य करते हैं।

“हमर छत्तीसगढ़ में रावण के पुतला जघा जघा जलाय जाथय। बिलासपुर के सनीचरी पड़ाव  में रावण, कुम्भकरण अउ मेघनाद तीनों के बड़े-बड़े बॉस के खपची कमचिल में बने कुठला ला जलायय।”

निबन्ध में कहीं-कहीं पर छत्तीसगढ़ के खेतिहर किसानों का चित्रण इस प्रकार हुआ है वह अपने रूप, गुण, स्वभाव के साथ सजीव सामने उपस्थित हो जाता है-“खेतिहर किसान अपन खेतन मं बीजहा बोये के काम इही दिन ले सुरू कर देयय | “ऊपर के उदाहरणों से स्पष्ट है कि निबन्ध की भाषा-शैली अपने ढंग की अनूठी है जो दिना सजी-संवारी भाषा अनगढ़ शब्दावली और सादी अभिव्यक्ति में भी मार्मिक सटीक और आकर्षक है। उसमें व्यक्त जीवन-दर्शन, जीवनानुभूति, वातावरण, प्रकृति चित्रण, रस आदि अनूठे हैं।लखनलाल गुप्त की भाषा में दो रूप मिलते हैं। प्रथम रूप में विचारात्मक निबंध आते है, जिसकी भाषा संयत एवं गंभीर है। दूसरा रूप आलोचनात्मक निबंधों का है। आपकी भाषा प्रौढ़ है। इसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों की झलक दिखाई देती है। इसी से यह भाषा संस्कृत गर्भित और प्रांजल है।.इसके अलावा आपकी भाषा में चपलता, प्रवाह, व्यंग्य, वक्रता और कहावतें दिखाई देती है तथा व्यावहारिक और सरल आपकी भाषा है। वे मुख्यतः वक्ता और अध्यापक है। अध्यापकीय सरलता उनकी भाषा में सदैव रहती है। आपकी भाषा में शिथिलता, अव्यवस्था नाम मात्र को भी प्राप्त नहीं होती है। इसके साथ ही आपकी भाषा प्रवाहपूर्ण, सारगर्भित और अलंकृत भी है। शैली के संबंध में यही कहा जा सकता है कि वह विविध रूपों वाली है। कहीं व्यावहारिक, कहीं मुहावरेदार, कहीं आलंकारिक तथा कहीं प्रौढ़ और कहीं लंबे-लंबे वाक्य और कही छोटे-छोटे वाक्य आपकी शैली की प्रमुख विशेषताएँ हैं।लखनलाल गुप्त की भाषा अर्थ गाम्भीर्य से भरी है व निबन्ध चित्रात्मक हैं। ओजस्विता इनकी भाषा की प्रधान विशेषता है, जिसका प्रभाव बोधगम्यता प्रदान करता है। परिष्कृत, भाषा, सहज और कृत्रिमता से दूर होती हुई सपाट और इकहरी है।शैली-शैली के सम्बन्ध में यहीं कहा जा सकता कि वह विविध रूपों वाली है। आपकी शैली को निम्नलिखित रूपों में विभाजित किया जा सकता है(1) विचारात्मक शैली-यह शैली विचारों से परिपूर्ण है। इसमें वाक्य न छोटे हैं और न ही लम्बे इस शैली के द्वारा अपने विचारों को पूर्णतया समझाने की तथा आदर्श उपस्थित करने की कोशिश की है। (2) गवेषणात्मक शैली-इसका प्रयोग सांस्कृतिक निबन्धों में हुआ है। इसकी भाषा संस्कृतगर्भित है तथा वाक्य लम्बे हैं।(3) आलोचनात्मक शैली-इस शैली में आपने आलोचनाएँ ही लिखी हैं। इसकी भाषा संस्कृतगर्भित होते हुए भी सरल और साहित्यिक है।(4) व्याख्यात्मक शैली-इस शैली का प्रयोग दार्शनिक विषयों के लिये किया गया है।(5) व्यंग्यात्मक शैली-इसके अन्तर्गत हास्य और व्यंग्य को लिया गया है। व्यंग्य आकर्षक, शिष्ट और साहित्यिक है।(6) भावात्मक शैली-इस शैली में आपके भाषात्मक निबन्ध हैं, जो भाव विभोर होकर लिखे गये हैं। इसमें प्रश्नों की भरमार रहती है। इस प्रकार यह कह सकते हैं कि श्री गुप्त उच्चकोटि के आलोचक, निबन्धकार और शैलीकार हैं।

इन्हे भी पढ़े :

👉बाबा सत्यनारायण धाम रायगढ | Baba Satyanarayan Dham Chhattisgarh👉लुतरा शरीफ बिलासपुर छत्तीसगढ़ | Lutra Sharif Bilaspur Chhattisgarh👉शदाणी दरबार छत्तीसगढ़ | Shadani Darbar Raipur Chhattisgarh👉छत्तीसगढ़ के धार्मिक स्थल | Chhattisgarh ke Dharmik Sthal👉श्री गुरु सिंह सभा गुरुद्वारा | Shree Guru Singh Sabha Gurudwara Chhattisgarh
Share your love
Rajveer Singh
Rajveer Singh

Hello my subscribers my name is Rajveer Singh and I am 30year old and yes I am a student, and I have completed the Bachlore in arts, as well as Masters in arts and yes I am a currently a Internet blogger and a techminded boy and preparing for PSC in chhattisgarh ,India. I am the man who want to spread the knowledge of whole chhattisgarh to all the Chhattisgarh people.

Articles: 1064

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *