नमस्ते विद्यार्थीओ आज हम पढ़ेंगे शिकारी पारधी जनजाति छत्तीसगढ़ Shikari Pardhi Janjati Chhattisgarh shikari pardhi tribe chhattisgarh के बारे में जो की छत्तीसगढ़ के सभी सरकारी परीक्षाओ में अक्सर पूछ लिया जाता है , लेकिन यह खासकर के CGPSC PRE और CGPSC Mains में आएगा , तो आप इसे बिलकुल ध्यान से पढियेगा और हो सके तो इसका नोट्स भी बना लीजियेगा ।
शिकारी पारधी जनजाति छत्तीसगढ़ Shikari Pardhi Janjati Chhattisgarh Shikari Pardhi Tribe Chhattisgarh
✅ शिकारी पारधी जनजाति की उत्पत्ति
शिकारी, पारधी जनजाति छत्तीसगढ़ की एक अनुसूचित जनजाति हैं। राज्य के अधिकांश क्षेत्रों में अनुसूचित जनजाति के रुप में भारत सरकार ने अधिसूचित किया है। कई जिले व तहसीलों में ये अनुसूचित जनजाति अधिसूचित नहीं है। जनगणना 2011 में इनकी जनसंख्या छत्तीसगढ़ में 13476 दर्शाई गई है। पुरुषों की जनसंख्या 6667 तथा स्त्रियों की जनसंख्या 5809 दर्शित है। ( शिकारी पारधी जनजाति छत्तीसगढ़ Shikari Pardhi Janjati Chhattisgarh shikari pardhi tribe chhattisgarh )
शिकारी, पारधी जाति की उत्पत्ति के संबंध में ऐतिहासिक अभिलेख उपलब्ध नहीं है। पारधी शब्द संस्कृत के “पारधं” अर्थात् शिकार से उत्पन्न हुआ माना जाता है। इनमें प्रचलित किवदंती अनुसार महाभारत काल में भगवान महादेव ने पारधी शिकारी का रुप लेकर एक जंगली बराह का शिकार किया था। बराह को महादेव के तीर के साथ-साथ लगा था।
अतः शिकार पर अधिकार हेतु महादेव और अर्जुन में युद्ध हुआ था। अर्जुन ने पारधी रूप महादेव का पैर उन्हें पटकने के लिये पकड़ा; किन्तु भगवान महादेव प्रसन्न होकर अर्जुन को वरदान दिये। इन्हीं पारधी, शिकारी रूपधारी भगवान शिव से अपनी उत्पत्ति मानते हैं। ( शिकारी पारधी जनजाति छत्तीसगढ़ Shikari Pardhi Janjati Chhattisgarh shikari pardhi tribe chhattisgarh )
✅ शिकारी पारधी जनजाति का रहन-सहन
शिकारी, पारधी ग्राम में अन्य जातियों के साथ निवास करते हैं, किन्तु इनका पारा (मुहल्ला) ग्राम के एक किनारे पर अलग होता हैं। इनका घर छोटा एवं कम ऊँचाई का होता है, जो मिट्टी का बना होता है। इसमें घासफूस या देशी खपरैल का छप्पर होता है।
इनके मकान में मुख्यतः एक रसोई घर और एक कमरा होता है। बाहरी भाग परछी (बैठक), रसोईघर (रंधनीखोली) तथा मुख्य कमरा माईमर कहलाता है। ( शिकारी पारधी जनजाति छत्तीसगढ़ Shikari Pardhi Janjati Chhattisgarh shikari pardhi tribe chhattisgarh )
पुरुष पंछा, गमछा, धोती, सलूका, बंडी, कुरता आदि पहनते हैं। महिलायें बारह हाथ का लुगड़ा पहनती थीं। पहले ये ब्लाउज नहीं पहनती थीं। नवयुतियाँ अब साड़ी, ब्लाउज पहनती हैं। महिलाएँ हाथ में काँच की चूड़ियाँ, बाहों में पहुंची, कान में खिनवा, झुमका, बाला (रिंग), नाक में फूली, गले में सुर्रा, रुपिया माला, कमर में करधन, बांहों में पोंहची, पैरों में सांटी, लच्छा, तोड़ा, पैर की अंगुलियों में बिछिया पहनती हैं। इनके अधिकांश गहने गिलट या नकली चाँदी के होते हैं। महिलायें देवार स्त्रियों से हाथ, पैर, बाहों, माथे एवं ठोड़ी आदि पर गोदना गुदवाती हैं।
शिकारी, पारधी जनजाति के घरों में अनाज रखने की कोठी, अनाज पीसने का जाता, धान कूटने का ढेकी, मूसल, सोने के लिए चटाई, चारपाई, ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र, भोजन बनाने हेतु मिट्टी, एल्युमिनियम, स्टील के कुछ बर्तन, कुल्हाड़ी, कुदाली, हसिया, कृषि उपकरण, पक्षी पकड़ने के “फांदा” (फंदे), खण्डाऊ फांदा, पक्षी रखने का निरलो आदि होता है। ( शिकारी पारधी जनजाति छत्तीसगढ़ Shikari Pardhi Janjati Chhattisgarh shikari pardhi tribe chhattisgarh )
इनका मुख्य भोजन, चावल, कोदो का भात, बासी, पेज, मूंग, उड़द, तिवड़ा को दाल, मौसमी सब्जी है। मांसाहार में शिकार के समय पकड़े गये तितर, बटेर, खरगोश, घर में पालतू मुर्गी, मछली, बकरा, चूहा, हिरण आदि का मांस खाते हैं। महुआ से निर्मित शराब पीते हैं। पुरुष धूम्रपान करते हैं।
✅ शिकारी पारधी जनजाति के व्यवसाय
शिकारी, पारधी जंगलों में तीतर, बटेर, सियार, खरगोश, जंगली मुर्गा-मुर्गी, फाख्ता तथा चिड़ियों को स्वयं निर्मित जालों से पकड़ते हैं। उन्हें गाँव में या शहर के होटलों में बेच लेते हैं। इसके अतिरिक्त छींद के पत्ते से चटाई, झाडू, टोकनी बनाकर स्थानीय लोगों को बेचते हैं। स्थानीय लोगों के बीमारी का ईलाज शिकार से प्राप्त वस्तुओं से करते हैं, जैसे- बच्चों को नजर से बचाने के लिए गिद्ध व मोर के नाखून को गले में पहनना, नाखून को जलाकर मोहनी दवा बनाकर बेचने से भी इनकी आमदनी होती है।
आमतौर पर शिकारी खेती नहीं करते, परन्तु खाली समय में अन्य किसानों के खेतों में मजदूरी कर लेते हैं। जिनके पास थोड़ी कृषि भूमि है, वे कोदो, धान, उड़द, तिड़या, तिल आदि बोते हैं। वर्षा ऋतु में स्वयं के उपयोग हेतु मछली पकड़ते हैं। ( शिकारी पारधी जनजाति छत्तीसगढ़ Shikari Pardhi Janjati Chhattisgarh shikari pardhi tribe chhattisgarh )
✅ शिकारी पारधी जनजाति के परम्परा
शिकारी, पारधी पितृवंशीय, पितृसत्तात्मक, पितृ निवास स्थानीय जनजाति है। इनमें संयुक्त परिवार की अपेक्षा एकांकी परिवार अधिक पाये जाते हैं। पारधी में 12 गोत्र पाये जाते हैं- 1. सिसोदिया, 2. चौरसिया, 3. सोलंखी, 4. मच्छीमार, 5. तितोड़ी, 6. कथरियो, 7. मरारियो 8. मालियो, 9. गवारो 10. रहिरियो, 11. चुआर और 12. कुरगल शिकारी में नेताम, पुवार, गवाड़ा, मरकाम, डिरिया, कोसारिया, सोरी, छेदाम, कुंजाम, मरई आदि गोत्र पाये जाते हैं।
इस जनजाति की गर्भवती महिलाएँ प्रसव के दिन तक अपनी आर्थिक तथा पारिवारिक कार्य करती हैं। शिकारी, पारधी प्रसव कार्य माईघर में नहीं करते। घर की परछी या घर के पीछे झोपड़ी बनाकर करते हैं। शिशु का नाल (नार) दायी (सुईन) द्वारा खपरैल या बारीक कमची से काटकर घर के बाहर ही गड़ाते हैं। प्रसूता को मिट्टी के बर्तन में खाना देते हैं। ( शिकारी पारधी जनजाति छत्तीसगढ़ Shikari Pardhi Janjati Chhattisgarh shikari pardhi tribe chhattisgarh )
पौष्टिक दवा के रूप में सोंठ, गुड़, तिल के लड्डू, सूखा नारियल देते हैं। प्रसूता को पाँच दिनों तक अशुद्ध मानी जाती है। छठे दिन छठी मनाई जाती है। इस दिन प्रसूता व शिशु को नहलाते हैं। बच्चे को पूजा स्थल में लाते हैं तथा देवी-देवता का प्रणाम कराते हैं। आगंतुक उपहार स्वरूप बच्चे को रुपया देते हैं। बच्चे का नाम मुखिया या बुजुगों द्वारा रखा जाता है। घर की शुद्धि के लिए दारू या महुए का पानी छिड़का जाता है। घर को गोबर से लिपाई की जाती है।
शिकारी, पारधी जनजाति में एक ही गोत्र में विवाह वर्जित होता है। आमतौर पर 18-20 साल लड़के साथ 16-18 साल की लड़की का विवाह तय किया जाता है। विवाह तय करते समय लड़के वाला लड़की वाले के यहाँ जाकर बीड़ी (माखुर) देता है और कहता है- “आज से हमारा समधी बन जाओ हमारी बीड़ी पीओ”, बीड़ी स्वीकार करने पर संबंध तय माना जाता है। ( शिकारी पारधी जनजाति छत्तीसगढ़ Shikari Pardhi Janjati Chhattisgarh shikari pardhi tribe chhattisgarh )
लड़के का पिता अनाज, दाल व कुछ रकम लड़की के पिता को देता है। विवाह की रस्म बुजुर्ग व्यक्ति के देखरेख में संपन्न कराते हैं। गुरांवट, लमसेना विवाह भी समाज मान्य है। विधवा, त्यक्ता स्त्री को पुनर्विवाह (चूड़ी पहनाना) की अनुमति हैं। पैठ, उरिया आदि में सामाजिक पंचायत कुछ जुर्माना लेकर मान्य करते हैं।
इस जनजाति में मृत व्यक्ति को दफनाते हैं। तीन दिन तक शोक अवस्था में चूल्हा नहीं जलाते हैं। तीन दिन बाद तीज नहावन होता है। तीसरे दिन ही नाई सबके नाखून काटता है तथा तेल लगाता है। घर के सगे संबंधियों के नाई बाल बनाता है। स्त्री-पुरुष दोनों में दसवें दिन रिश्तेदार स्नान कर मृत्यु भोज देते हैं। ( शिकारी पारधी जनजाति छत्तीसगढ़ Shikari Pardhi Janjati Chhattisgarh shikari pardhi tribe chhattisgarh )
इस जनजाति में लगभग दस-दस गाँवों के लोग मिलकर अपने सामाजिक मुखिया का वंश परम्परा के आधार पर चयन करते हैं। इनकी जाति पंचायत में पंच, सचिव, चपरासी आदि पद रहते हैं। इस पंचायत में विवाह, तलाक, जाति नियम विरोधी अन्य कार्यों के लिए बैठक बुलाई जाती है। परम्परागत तरीके से जुर्माना, दारू-बीड़ी और भोज लेकर विवादों का निपटारा करते हैं।
✅ शिकारी पारधी जनजाति के देवी-देवता
इस जनजाति के प्रमुख देवी-देवताओं में ठाकुर देव, बूढ़ा देव, छप्पन कोट देवी, सायली देवी, देवी नोकोट, तेतीसकोट, शीतलादेवी, काली देवी, रायसकोतर देवी महाकाली, गंगादेवी, मालिया देवी, सिंगभवानी आदि हिंदू देवी-देवता राम, कृष्ण, हनुमान, शिव की भी पूजा करते हैं। सूर्य, चंद्रमा, नदी, वृक्ष, नाग को भी देवी-देवता मानते हैं।
देवी-देवता की पूजा में मुर्गे बकरे की बलि देते हैं। ये भूत-प्रेत, जादू-टोना में विश्वास करते हैं। जादू के प्रभाव को दूर करने वाला “बैगा” कहलाता है। बच्चों को भूत-प्रेत, टोनही की नजर से बचाने के लिये हाथ में सफेद या काली चूड़ी, गले में ताबीज पहनाते हैं। ( शिकारी पारधी जनजाति छत्तीसगढ़ Shikari Pardhi Janjati Chhattisgarh shikari pardhi tribe chhattisgarh )
शिकारी पारधी जनजाति के गीतों में शिकार व छिंद कटाई के समय गाये जाने वाले गीत सुआ गीत, ददरिया, पुरवागीत, सरकी (झाडू) गीत, बिहावगीत, देवी गीत आदि प्रमुख हैं। पुरुष होली में रहस, करमा तथा राम सप्ताह नृत्य करते हैं। स्त्रियाँ दिवाली के समय पड़की नाचने जाती हैं। विवाह अवसर पर स्त्री-पुरुष सभी नाचते गाते हैं।
जनगणना 2011 में इस जनजाति की साक्षरता 45.2 प्रतिशत दर्शाई गई है। पुरुषों में साक्षरता 54.7 प्रतिशत तथा स्त्रियों में 35.7 प्रतिशत थी। ( शिकारी पारधी जनजाति छत्तीसगढ़ Shikari Pardhi Janjati Chhattisgarh shikari pardhi tribe chhattisgarh )
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