संत धर्मदास के पद | Sant Dharmdas ke Pad Sant Dharmdas ke Rachnaye
(1)
गुरु पइयां लागवं नाम लखा दीजो हो।। टेक।।
जनम-जनम का सोया मनुवा, सब्दन मार जगा दीजो हो।
घट अंधियार नैन नहिं सूझे, ज्ञान का दीप जगा दीजो हो।
विष की लहर उठत घट अंतर, अमृत बूँद चुंवाय दीजो हो
गहिरी नदिया अगम बोहाय, खेय के पार लगा दीजो हो।
धर्मदास की अरज गुसाई, अब की पार लगाय दीजो हो।
(2)
नैनन आगे ख्याल घनेरा।
जेहि कारन जग डौलत भस्मै, सो साहेब घट लीन्ह बसेरा।
का संझा का प्रात सबेरा, जहं देखूं तहं साहेब मेरा।
अस्थ-उरथ बिच लगन लगी है, साहेब घट मं कर लीन डेरा।
साहेब कबीर एक भाला दीन्हा, धरमदास घट ही बिच फेरा।
(3)
भजन करो भाई रे, अइसन तन पाय के।
नहि रहे लकापति रावन, नहि रहे दुर्योधन राई रे।
मात-पिता सुत ठाढ़े भाई-बंद, आयो जमराज पकर ले जाही रे।
लाल खंभ पर देत ताड़ना, बिन सतगुरु को होत साई रे।
धरमदास के अरज गोसांई, नाम कबीर कहौ गोहराई रे।।
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