पाव जनजाति छत्तीसगढ़ Paw Janjati Chhattisgarh paw tribe chhattisgarh

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नमस्ते विद्यार्थीओ आज हम पढ़ेंगे पाव जनजाति छत्तीसगढ़ Paw Janjati Chhattisgarh paw tribe chhattisgarh के बारे में जो की छत्तीसगढ़ के सभी सरकारी परीक्षाओ में अक्सर पूछ लिया जाता है , लेकिन यह खासकर के CGPSC PRE और CGPSC Mains में आएगा , तो आप इसे बिलकुल ध्यान से पढियेगा और हो सके तो इसका नोट्स भी बना लीजियेगा । 

पाव जनजाति छत्तीसगढ़ Paw Janjati Chhattisgarh paw tribe chhattisgarh

पाव जनजाति की उत्पत्ति 

पाव जनजाति छत्तीसगढ़ की अल्पसंख्यक जनजाति है। जनगणना 2011 के अनुसार इनकी जनसंख्या 12729 दर्शित है। प्रमुख निवास क्षेत्र बिलासपुर जिले के शहडोल से जुड़े हुए क्षेत्र है।

इस जनजाति की उत्पत्ति के संबंध में ऐतिहासिक अभिलेख नहीं है। इस जनजाति में प्रचलित किवदंती के अनुसार प्राचीन काल में इनके पूर्वज पवईगढ़ में रहते थे, जिसे कारण से इन्हें “पाव” कहा जाता है। ( पाव जनजाति छत्तीसगढ़ Paw Janjati Chhattisgarh paw tribe chhattisgarh )

पाव जनजाति का रहन-सहन 

पाय जनजाति के लोग गाँव में अन्य जनजातियों गोंड, कंबर आदि के साथ गाँव में निवास करते हैं। इनके घर प्रायः मिट्टी एवं लकड़ी के बने होते हैं। घर की छत घासफूस की होती है, कुछ घरों में देशी खपरैल की छत भी पाई जाती है। घर में सामान्यतः दो-तीन कमरे होते हैं। घर का फर्श मिट्टी का होता है, जिसे गोबर से लीपते हैं। घर की दीवार की पुताई “छुई” ( पीली या सफेद) मिट्टी से करते हैं।

घरेलू वस्तुओं में भोजन बनाने व खाने के लिए मिट्टी व एल्युमिनियम के बर्तन, चारपाई, जांता (चक्की), ओढ़ने-बिछाने के कपड़े, मछली पकड़ने की जाल, कृषि उपकरण, नृत्य संगीत के वाद्य यंत्र पाये जाते हैं। ( पाव जनजाति छत्तीसगढ़ Paw Janjati Chhattisgarh paw tribe chhattisgarh )

बबूल, हरें या नीम की दातुन से दाँतों की सफाई करते हैं तथा स्नान करते हैं। स्त्रियाँ सिर के बाल काली मिट्टी से धोती हैं। शरीर तथा सिर पर स्त्री-पुरुष गुल्ली या तिल का तेल लगाते हैं। बालों को कधी से संवारते हैं स्त्रिम चोटी बनाकर जूदा बनाती हैं। पुरुष कमर के नीचे भाग में धोती तथा ऊपरी भाग में कुर्ता पहनते हैं। सिर पर पगड़ी बाँधते हैं। स्त्रियाँ पोलका (ब्लाउज) तथा लुगड़ा पहनती हैं।

महिलाएँ हाथ, पैर, चेहरे पर गोदना गुदवाती हैं। इनका मुख्य भोजन कोदो, कुटकी, चावल तथा मकई (भुट्टा) का पेज है। उड़द, मसूर, अरहर, मूंग तथा बटरा (मटर) आदि की दाल तथा मौसमी सब्जी, फल आदि है। मांसाहार में मछली, बकरा, हिरण, खरगोश खाते हैं। त्योहार तथा उत्सव में महुए की शराब पीते हैं। ( पाव जनजाति छत्तीसगढ़ Paw Janjati Chhattisgarh paw tribe chhattisgarh )

पाव जनजाति के व्यवसाय 

पाव जनजाति मुख्यतः कृषि, वनोपज संग्रह, मजदूरी पर आश्रित है। चावल, मक्का, ज्वार, कोदो, कुटकी, उर्दा (उड़द), मूंग, अलसी, राई इनके प्रमुख कृषि उपज है। कृषि भूमि असिंचित होने के कारण पैदावार बहुत कम होती है।

जंगल से महुआ, गुल्लो, तेंदू पत्ता, लाख, चिरौंजी, आँवला आदि संग्रह कर स्थानीय बाजार में बेचते हैं। जंगली कंदमूल, फल स्वयं के उपयोग के लिये एकत्र करते हैं। वर्षा ऋतु में स्थानीय नदी एवं नाले से स्वयं के उपयोग के लिये मछली पकड़ते हैं। ( पाव जनजाति छत्तीसगढ़ Paw Janjati Chhattisgarh paw tribe chhattisgarh )

छत्तीसगढ़ के पाव जनजाति में उपजाति की जानकारी नहीं मिली, किन्तु उमनिहा, मुसगुड़िया, किसान, कनौजिया, खापडीहा आदि गोत्र पाये जाते हैं। विवाह के समय वर पक्ष तथा वधू पक्ष का गोत्र अलग-अलग होना आवश्यक है।

पाव जनजाति की परम्परा 

इस जनजाति की गर्भवती महिलाएँ प्रसव के दिन तक अपनी आर्थिक तथा पारिवारिक कार्य करती रहती हैं। संतानोत्पत्ति को भगवान की देन मानते हैं। प्रसव कराने हेतु स्थानीय दाई को बुलाते हैं, परिवार व रिश्तेदारों की महिलाएँ भी प्रसव के समय उपस्थित रहती हैं। प्रसव के उपरांत दाई बच्चे का नाल ब्लेड या चाकू से काटती है, नाल को घर के किसी कोने में गड्ढा खोदकर गड़ाते हैं।

प्रसूता को गुड़, सोंठ, काली मिर्च, अजवायन, गोंद आदि मिलाकर लड्डू बनाकर खिलाते हैं। छठे दिन छठी मनाते हैं। शिशु तथा प्रसूता को नहलाकर, सूरज तथा कुल देवी-देवता को प्रणाम कराते हैं। रिश्तेदारों को खाना खिलाते हैं तथा दाई को अनाज, वस्त्र आदि देते हैं। ( पाव जनजाति छत्तीसगढ़ Paw Janjati Chhattisgarh paw tribe chhattisgarh )

इस जनजाति में लड़कों का विवाह उम्र 17 से 18 वर्ष तथा लड़कियों की 15 से 16 वर्ष मानी जाती है। विवाह का प्रस्ताव लड़के पक्ष से लड़की वालों के यहाँ भेजा जाता है। सहमति मिलने पर वर का पिता वधू के पिता को अनाज तथा कुछ पैसे देता है। विवाह की रस्म जाति के बुजुर्ग व्यक्ति संपन्न कराते हैं। इस जनजाति में सेवा विवाह, विनिमय, चूड़ी पहनाकर, विधवा पुनर्विवाह को सामाजिक मान्यता है।

मृत्यु पश्चात् मृत शरीर को दफनाया जाता है। संपन्न व्यक्ति का अग्नि संस्कार किया जाता है। तीसरे दिन घर की लिपाई पुताई कर वस्त्रों को धोते हैं। 10वें दिन पुरुष दाढ़ी, मूँछ कटाते हैं तथा सिर के बालों का मुण्डन कराते हैं पुरुष व महिलाएँ स्नान के बाद मृतक आत्मा, पूर्वजों की तर्पण व पूजा करके रिश्तेदारों को दिया जाता है। मृत्यु भोज दिया जाता है । ( पाव जनजाति छत्तीसगढ़ Paw Janjati Chhattisgarh paw tribe chhattisgarh )

पाव जनजाति में परम्परागत जाति पंचायत (सामाजिक पंचायत) पाई जाती है। जाति पंचायत मुखिया को “गौटिया ” कहते हैं। मुखिया का पद वंशानुगत होता है। इस पंचायत में जाति के देवी-देवताओं की पूजा व्यवस्था करना तथा अनैतिक संबंध, विवाह एवं उत्तराधिकार आदि विवादों को परम्परागत ढंग से निपटारा करते हैं।

पाव जनजाति के देवी-देवता 

इस जनजाति के मुख्य देवी-देवताओं में बड़का देव (बूढ़ा देव), ठाकुर देव, दूल्हा देव, बूढीमाई आदि हैं। हिंदू देवी-देवताओं में राम, कृष्ण, हनुमान, गणेश, लक्ष्मी तथा सूर्य, चंद्रमा, वृक्ष, नदी, नाग आदि की पूजा करते हैं। ( पाव जनजाति छत्तीसगढ़ Paw Janjati Chhattisgarh paw tribe chhattisgarh )

इनके प्रमुख त्योहार हरेली, नागपंचमी, नवरात्रि, दशहरा, दिवाली और होली है। भूत-प्रेत व जादू टोना पर इस जनजाति के लोग काफी विश्वास करते हैं।

इस के तथा में रहस इस जनजाति के लोग त्योहार तथा उत्सवों में करमा-शैला, रहस आदि नृत्य करते हैं तथा करमा, फाग, सेवा, भजन आदि लोकगीत गाते हैं। इस जनजाति की अपन विशिष्ट बोली नहीं है। छत्तीसगढ़ी बोलते हैं। ( पाव जनजाति छत्तीसगढ़ Paw Janjati Chhattisgarh paw tribe chhattisgarh )

2011 के जनगणना में पाव जनजाति की साक्षरता 61.4 प्रतिशत दर्शित है। पुरुषों में साक्षरता 72.8 प्रतिशत तथा स्त्रियों में साक्षरता 50.00 प्रतिशत थी।

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source : Internet

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Rajveer Singh
Rajveer Singh

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