पहाड़ी कोरवा जनजाति छत्तीसगढ़ Pahadi korva janjati chhattisgarh pahadi korva tribe chhattisgarh

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नमस्ते विद्यार्थीओ आज हम पढ़ेंगे  पहाड़ी कोरवा जनजाति छत्तीसगढ़ Pahadi korva janjati chhattisgarh pahadi korva tribe chhattisgarh के बारे में जो की छत्तीसगढ़ के सभी सरकारी परीक्षाओ में अक्सर पूछ लिया जाता है , लेकिन यह खासकर के CGPSC PRE और CGPSC Mains में आएगा , तो आप इसे बिलकुल ध्यान से पढियेगा और हो सके तो इसका नोट्स भी बना लीजियेगा ।

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पहाड़ी कोरवा जनजाति की उत्पत्ती 

छत्तीसगढ़ में पहाड़ी कोरवा विशेष पिछड़ी जनजाति जशपुर, सरगुजा, बलरामपुर तथा कोरबा जिले में निवासरत है। सर्वेक्षण वर्ष 2005-06 के अनुसार इनकी कुल जनसंख्या 34122 थी। वर्तमान में इनकी जनसंख्या बढ़कर लगभग 40 हजार से अधिक हो गई है। ( पहाड़ी कोरवा जनजाति छत्तीसगढ़ Pahadi korva janjati chhattisgarh pahadi korva tribe chhattisgarh )

पहाड़ी कोरवा जनजाति की उत्पत्ति के संबंध में ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। कालोनिल डॉल्टन ने इन्हें कोलारियन समूह से निकली जाति माना है। किवदतियों के आधार पर अपनी उत्पत्ति राम-सीता से मानते हैं। वनवास काल में राम-सीता व लक्ष्मण धान के एक खेत के पास से गुजर रहे थे। पशु-पक्षियों से फसल की सुरक्षा हेतु एक मानवाकार पुतले को धुनष-बाण पकड़ाकर खेत के मेद में खड़ा कर दिया था।

सीता जी के मन में कौतुहल करने की सूझी। उन्होंने राम से उस पुतले को जीवन प्रदान करने को कहा। राम ने पुतले को मनुष्य बना दिया वही पुतला कोरवा जनजाति का पूर्वज था एक अन्य मान्यता के अनुसार शंकर जी ने सृष्टि का निर्माण किया। तत्पश्चात् उन्होंने सृष्टि में मनुष्य उत्पन्न करने का विचार लेकर रतनपुर राज्य के काला और बाला पर्वत से मिट्टी लेकर दो मनुष्य बनाये। काला पर्वत की मिट्टी से बने मानव का नाम कइला तथा बाला पर्वत की मिट्टी से बने हुये मानव का नाम घुमा हुआ। तत्पश्चात् शंकर जी ने दो नारी मूर्ति का निर्माण किया जिनका नाम सिद्धि घुमा हुआ।

तत्पश्चात् शंकर जी ने दो नारी मूर्ति का निर्माण किया जिनका नाम सिद्धि तथा बुद्धि था। कइला ने सिद्धि के साथ विवाह किया, जिनसे तीन संतानें हुई, पहले पुत्र का नाम कोल, दूसरे पुत्र का नाम कोरवा तथा तीसरे पुत्र का नाम कोडाकू हुआ। कोरवा के भी दो पुत्र हुये। एक पुत्र पहाड़ में जाकर जंगलों को काटकर दहिया खेती करने लगा, पहाड़ी कोरवा कहलाया। दूसरा पुत्र जंगल को साफ कर हल के द्वारा स्थाई कृषि करने लगा, डिहारी कोरवा कहलाया।

पहाड़ी कोरवा जनजाति का रहन-सहन 

पहाड़ी कोरवा जनजाति मुख्यतः पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करती है। घर की दीवाल लकड़ी व बाँस से बनाते थे, जिस पर घास-फूंस का छप्पर होता था। वर्तमान में घर मिट्टी का बनाते हैं, जिस पर छप्पर देशी खपरैल का होता है। घर का फर्श मिट्टी का बना होता है, जिसे 8-10 दिन में एक बार मिट्टी या गोबर से लीपते हैं। घर प्राय: एक कमरे या दो कमरे का होता है।( पहाड़ी कोरवा जनजाति छत्तीसगढ़ Pahadi korva janjati chhattisgarh pahadi korva tribe chhattisgarh )

घरेलू वस्तुओं में भोजन बनाने का कुछ बर्तन, तीर धुनष, कुल्हाड़ी, कुछ बाँस के टोकरे आदि होते हैं। पुरुष व महिलाएँ सप्ताह में एक या दो बार स्नान करते हैं। महिलाएँ एवं पुरुष सिर के बालों को लंबे रखते हैं। बालों को पीछे की ओर बाँध लेते हैं। स्त्रियाँ बालों में गुल्ली या मूँगफली का तेल लगाकर अब कंघी करने लगी हैं। स्त्रियाँ गिलट के गहने जैसे हाथ में कड़े, ऍठी, नाक, कान में लकड़ी या गिलट के आभूषण पहनती हैं।

पुरुष सामान्यतः कमर के नीचे लंगोटी लगाता है या पंछा पहनता है, शरीर का ऊपरी भाग खुला रहता है। कुछ लोग अब बंडी पहनने लगे हैं। स्त्रियाँ सिर्फ लुगरा पहनती हैं।( पहाड़ी कोरवा जनजाति छत्तीसगढ़ Pahadi korva janjati chhattisgarh pahadi korva tribe chhattisgarh )

इनका प्रमुख भोजन कोदो, कुटकी, गोदली की पेज, कभी-कभी चावल की भात व जंगली कंदमूल, भाजी व मौसमी सब्जी है। मांसाहार में मुर्गी, सभी प्रकार के पक्षी, मछली, केकड़ा, बकरा,हिरण, सुअर आदि का मांस खाते हैं। महुआ से शराब बनाकर पीते हैं। पुरुष चोंगी पोते हैं।

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पहाड़ी कोरवा जनजाति कृषि और व्यवसाय 

इस जनजाति का आर्थिक जीवन मुख्यतः जंगली ऊपज संकलन शिकार पर आधारित था। वर्तमान में स्थाई बस कर कोदो-कुटकी, गोदली, धान, मक्का, उड़द, मूंग, कुलथी आदि की खेती करने लगे हैं। असिंचित व पथरीली जमीन होने के कारण उत्पादन बहुत कम होता है, जिनके पास कम कृषि भूमि है, वे अन्य जनजातियों के. खेतों में मजदूरी करने जाने लगे हैं।( पहाड़ी कोरवा जनजाति छत्तीसगढ़ Pahadi korva janjati chhattisgarh pahadi korva tribe chhattisgarh )

जंगली उपज में मुख्यतः कंदमूल, भाजी, महुआ, चार, गोंद, तेंदूपत्ता, शहद, आंवला आदि एकत्र करते हैं। गोंद, तेंदूपत्ता, चार, शहद, आँवला को स्थानीय बाजारों में बेचते हैं। पुरुष बच्चे पक्षियों का शिकार तीर-धनुष से करते हैं। पुरुष व महिलाएँ मछली, केकड़ा, घोंघा भी वर्षा ऋतु व अन्य ऋतु छोटे नदी-नाले से पकड़ते हैं। इसे स्वयं खाते हैं। 

कोरवा जनजाति मुख्यतः दो उपसमूहों में बंटी हुई है। एक समूह जो शिकार, बनोपज संग्रह तथा दहिया खेती करते थे। शिकार तथा वनोपज की खोज में एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ घुमंतू जीवन व्यतीत करते थे. उन्हें पहाड़ी कोरवा कहा जाता है।( पहाड़ी कोरवा जनजाति छत्तीसगढ़ Pahadi korva janjati chhattisgarh pahadi korva tribe chhattisgarh )

दूसरा समूह जो पहाड़ी कोरवा की अपेक्षा कुछ विकसित होकर स्थाई कृषि करने लगे तथा ग्रामों में स्थाई घर बनाकर रहने लगे। “डिह” (गाँव) में स्थाई रूप से रहने के कारण इन्हें डिहारी कोरवा कहा जाता है। पहाड़ी कोरवा जनजाति में मुड़िहार, हसदा, ऐदमे,फरमा, समाउरहला, गोनु, बंडा, इदिनवार, सोनवानी, भुदिवार, बिरबानी आदि गोत्र पाये जाते हैं

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पहाड़ी कोरवा जनजाति रिति-रिवाज 

इस जनजाति की गर्भवती महिलाएँ प्रसव के दिन तक सभी आर्थिक तथा पारिवारिक कार्य करती हैं। प्रसव के लिये पत्तों से निर्मित अलग झोंपड़ी बनाते हैं, जिसे ‘कुम्बा’ कहते हैं। प्रसव इसी झोंपड़ी में स्थानीय डाई जिसे ‘डॉगिन’ कहते हैं. की सहायता से कराते हैं।( पहाड़ी कोरवा जनजाति छत्तीसगढ़ Pahadi korva janjati chhattisgarh pahadi korva tribe chhattisgarh )

बच्चे का नाल तौर के नोक या चाकू से काटते हैं। नाल झोपड़ी में ही गढ़ाते हैं। प्रसूता को हल्दी मिला भात खिलाते हैं। कुलथी, एंटीमी जिंद की जड़, सरई छाल, साँठ-गुड़ से निर्मित कांदा भी पिलाते हैं। छठे दिन छठी मनाते हैं, बच्चे तथा माता को नहलाकर सूरज, धरती व कुल देवी को प्रणाम कराते हैं। महुआ से निर्मित शराब मित्रों को पिलाते हैं।

विवाह उम्र लड़कों में 16-20 वर्ष और लड़कियों में 15-18 वर्ष पाई जाती है। विवाह का प्रस्ताव वर पक्ष की ओर से होता है। विवाह में अनाज, दाल, तेल, गुड़, कुछ रुपये वधू के पिता को दिया जाता है। विवाह मंगनी, सूत बघौनी, विवाह और गौना, इस प्रकार चार चरण में पूरा होता है। विवाह के 2-3 वर्ष बाद गौना होता है। फेरा करने का कार्य जाति का मुखिया संपन्न कराता है।( पहाड़ी कोरवा जनजाति छत्तीसगढ़ Pahadi korva janjati chhattisgarh pahadi korva tribe chhattisgarh )

इनमें “गुरावट” (विनिमय), “लमसेना” (सेवा विवाह), “पैठ्” (घुसपैठ), “उरिया” (सहपलायन) आदि भी पाया जाता है। विधवा पुनर्विवाह, देवर-भाभी का पुनर्विवाह भी मान्य है।

मृत्यु होने पर मृतक को दफनाते हैं। 10वें दिन स्नान कर देवी-देवता एवं पूर्वजों की पूजा करते हैं। मृत्यु भोज देते हैं। जिस झोंपड़ी में मृत्यु हुई थी, उसे नष्ट कर नई झोपड़ी बनाकर रहते हैं।( पहाड़ी कोरवा जनजाति छत्तीसगढ़ Pahadi korva janjati chhattisgarh pahadi korva tribe chhattisgarh )

इनमें अपनी परम्परागत जाति पंचायत पाई जाती है। जाति पंचायत का प्रमुख “मुखिया” कहलाता है। इस पंचायत में पटेल, प्रधान और घाट आदि पदाधिकारी होते है। कई ग्राम मिलकर गठित जाति पंचायत का मुखिया टोलादार कहलाता है। इस पंचायत में वधूमूल्य, विवाह, तलाक, अन्य जाति के साथ विवाह या अनैतिक संबंध आदि मामले निपटाये जाते हैं। जाति के देवी-देवता की पूजा व्यवस्था भी जाति पंचायत द्वारा कराई जाती है।

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पहाड़ी कोरवा जनजाति के देवी-देवता  

इनके प्रमुख देवी-देवता ठाकुरदेव, सुरियारानी, शीतलामाता, इल्हादेव आदि हैं। इसके अतिरिक्त नाग, बाघ, वृक्ष, पहाड़, सूरज, चांद, धरती, नदी आदि को भी देवता मानकर पूजा करते हैं। पूजा के अवसर पर मुर्गे की बलि देते हैं व शराब चढ़ाते हैं। इनके प्रमुख त्योहार दशहरा, नवाखानी, दिवाली, होली आदि हैं। भूत-प्रेत, जादू-टोना में भी विश्वास करते हैं। इनमें मंत्र जादू के जानकार व्यक्ति देवार बैगा कहलाता है।( पहाड़ी कोरवा जनजाति छत्तीसगढ़ Pahadi korva janjati chhattisgarh pahadi korva tribe chhattisgarh )

इस जनजाति के लोग करमा, बिहाव, परघनी, रहस आदि नाचते हैं। लोकगीतों में करमा गीत, बिहाव गीत, फाग आदि प्रमुख हैं। इसकी अपनी विशिष्ट बोली है, जिसे कोरवा बोली कहते हैं।

वर्ष 2005-06 में कराये गये सर्वेक्षण में पहाड़ी कोरवा जनजाति में साक्षरता 22.02 प्रतिशत पाई गई थी। वर्तमान में बढ़कर पहले से अधिक हो चुकी है।( पहाड़ी कोरवा जनजाति छत्तीसगढ़ Pahadi korva janjati chhattisgarh pahadi korva tribe chhattisgarh )

 

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source : Internet

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Rajveer Singh
Rajveer Singh

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