मुरिया जनजाति के युवागृह घोटुल | Muriya janjati ke yuvagriha ghotul

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मुरिया जनजाति के युवागृह घोटुल | Muriya janjati ke yuvagriha ghotul
मुरिया जनजाति के युवागृह घोटुल | Muriya janjati ke yuvagriha ghotul

नमस्ते विद्यार्थीओ आज हम पढ़ेंगे मुरिया जनजाति के युवागृह घोटुल | Muriya janjati ke yuvagriha ghotul के बारे में जो की छत्तीसगढ़ के सभी सरकारी परीक्षाओ में अक्सर पूछ लिया जाता है , लेकिन यह खासकर के CGPSC PRE और CGPSC Mains और Interview पूछा जाता है, तो आप इसे बिलकुल ध्यान से पढियेगा और हो सके तो इसका नोट्स भी बना लीजियेगा ।

 मुरिया जनजाति के युवागृह घोटुल | Muriya janjati ke yuvagriha ghotul

मध्यप्रदेश के दक्षिण पूर्व में स्थित बस्तर जिला, मध्यप्रदेश का क्षेत्रफल की दृष्टि से सर्वाधिक बड़ा जिला है। भारत के क्षेत्रफल की दृष्टि से सर्वाधिक बड़े तीन जिलों में इसकी गणना होती है। “भारत का सर्वाधिक बड़ा जिला लद्दाख है, जिसका क्षेत्रफल 82,665 वर्ग किलोमीटर, दूसरा बड़ा जिला कच्छ है, क्षेत्रफल 45,652 वर्ग किलोमीटर है। और तीसरा बड़ा जिला बस्तर है जिसका क्षेत्रफल 39,114 वर्ग किलोमीटर है।” मध्यप्रदेश के शेडूल कास्ट, शेडूल ट्राईब, आर्डर (संशोधित नियम) 1976 दिनांक 18 सितम्बर के अनुसार शेडूल ट्राइब के क्रमांक 16 पर गोंड के अन्तर्गत माडिया, वायसन हार्न माडिया, दंडामी माड़िया, धुर्वा, दोरला हिल माडिया, मुरिया शामिल है।”

क्षेत्रफल की दृष्टि से विस्तृत मगर जन संख्या की दृष्टि से विरल यह अचल एक साथ विभिन्न विषय शास्त्रियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। नृतत्व शास्त्री समाज शास्त्री, भूगर्भ शास्त्री, भूगोल शास्त्री के साथ-साथ यह इतिहास वेत्ताओं को भी अपनी ओर आकर्षित करता है। सभी को अध्ययन अन्वेषण के पर्याप्त आयाम प्रदान करने वाला यह आदिवासी बाहुल्य अंचल चर्चित एवं वर्णित रहा है। ( मुरिया जनजाति के युवागृह घोटुल | Muriya janjati ke yuvagriha ghotul )

वर्तमान बस्तर जिले के नारायणपुर तहसील का कुल क्षेत्रफल 3140 वर्ग किलोमीटर है, जनसंख्या 1,97,074। अन्तागढ़ और कोण्डागांव तहसील में निवास करने वाली मुरिया जनजाति पिछले पच्चास वर्षों से शोध व अनुसंधान का केन्द्र बना हुआ है। मुरियों के बारे में सी ग्लासफर्ड ने अपने रिपोर्ट में लिखा है-जगदलपुर के चारों ओर पश्चिम से नागाटोका से जैपुर रियासत की सीमा तक तथा सीतापुर से 30-40 मील इन्द्रावती के उत्तर में सर्वाधिक कृषि भूमि में मुरिया लोगों का निवास है। ये चतुर कृषक हैं, इनके गांव प्रायः साफ सुथरे और आराम प्रद होते हैं।

1921 की जनगणना के अनुसार मुरियों की जनसंख्या 1,24,993 थी तथा 1961 की जनगणना के अनुसार उनकी जनसंख्या 3,10,675 थी। 1947 में बेरियर एल्विन लिखित वृहादाकार ग्रंथ- “द मुरिया एण्ड देयर घोटुल” ने न केवल भारत के वरन विश्व के समाज शास्त्रियों का ध्यान घोटुल नामक मुरिया संस्था की ओर आकृष्ट किया। ( मुरिया जनजाति के युवागृह घोटुल | Muriya janjati ke yuvagriha ghotul )

प्रस्तुत लेख के प्रारंभ में ही यह स्पष्ट कर देना समीचीन होगा कि मुरियों के जिस संस्था के बारे में इतना कुछ लिखा गया है। उस संस्था का सही नाम घोटुल नहीं गोटुल है। “यह गोंडी शब्द गो + दुल इन दो शब्दों के मेल से बना हुआ है, गो माने गोंगा अर्थात दुःख और क्लेष निवारण शक्ति जिसे विद्या कहा जाता है और टुल माने ठिया या ठाना जिसे स्थल कहा जाता है। इस तरह गोटुल का अर्थ गोंगा स्थल अर्थात विद्या स्थल होता है। ‘

यद्यपि भारत व विश्व की कुछ अन्य जातियों व स्थलों में युवा गृहों की स्थिति प्रमाणित होती है लेकिन उनका उद्देश्य अत्यन्त सीमित है। ( मुरिया जनजाति के युवागृह घोटुल | Muriya janjati ke yuvagriha ghotul )

मुरिया जनजाति की संस्था घोटुल

मुरिया जनजाति की संस्था घोटुल “सामाजिक और धार्मिक जीवन का एक केन्द्र है और इसीलिए वस्तर का घोटुल (गोटुल) विश्व का सर्वाधिक विकसित और सावधानी पूर्व संगठित संस्था है। मुरिया अंचल में पारंपरिक रूप से विद्यमान गोटुल संस्था का इतिहास बहुत पुराना है, बस्तर अंचल में मुरिया जनजाति के इतिहास से अविछिन्न रूप से जुड़ा हुआ यह इतिहास है। जातियों का इतिहास उस ढंग से प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है जैसा राजनैतिक इतिहास । मुरिया अंचल में पारंपरिक रूप से वर्णित “मूर दिन चो मुरिया राजा” यह आभास दिलाता है। कि मुरिया इस अंचल में प्रारंभ से ही निवास करते आ रहे हैं, त्रेतायुगीन राम के काल में भी यह जाति विद्यमान थी। पारंपरिक लोक कथा सत्यांश रखती है, यह निर्विवाद है।

‘युवा-गृह’ अपने प्रकार के अनुसार विभिन्न उद्देश्यों की परिपूर्ति के लिए स्थापित किये गये थे। गोटुल की उत्पत्ति के संदर्भ में विश्वकर्मा अपने विचार व्यक्त करती हैं कि- “ऐसा प्रतीत होता है, अपने परिवार जनों को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से, कुछ लोगों के द्वारा रात्रि जागरण आवश्यक था। संभवतः उसी आग जलाना हंसी मजाक तथा आमोद प्रमोद का संयोग, इस उद्देश्य के साथ अच्छी तरह बैठ जाता है। संभवतः इसी उद्देश्य से युवा गृहों की उत्पत्ति हुई होगी। ( मुरिया जनजाति के युवागृह घोटुल | Muriya janjati ke yuvagriha ghotul )

जहां तक बस्तर का सवाल है, बस्तर में युवा गृह का जन्मदाता लिंगों को माना जाता है एल्विन का यह उद्धरण- “जब लिगों मरा तो लोगों ने उसकी याद में सर्वत्र घोटुल (गोटुल) स्थापित किये जिससे उसकी आत्मा सुखी रहे”। सर्वेक्षण से यह गलत सिद्ध होता है। श्री कंगाली ने लिखा है कि वास्तव में लिंगों ने अपने जीवन काल में ही सेमल वृक्ष के नीचे बैठा कर मुरिया बालकों को धार्मिक व बौद्धिक शिक्षा दे कर गोटुल का प्रारंभ किया था।

नारायणपुर अंचल में लिंगों से संबंधित जो जनश्रुति प्रचलित है उसके अनुसार लिंगों के उह और भाई थे, लिंगों सबसे छोटा था, वे सब एक ही मकान में साथ-साथ रहते थे। छह बड़े भाइयों का जब विवाह हो गया तब लिंगों उनसे पृथक रहने लगा। यह आवश्यक था कि सबसे छोटा अविवाहित भाई अपने विवाहित भाइयों के दाम्पत्य सम्बन्धों को (लैंगिक सम्बन्धों को) न जाने न देखे। लिंगों का पृथक मकान डिण्डामहल या अविवाहितों का महल कहलाया। लिंगों का काल निर्धारण नहीं किया जा सका है, लिंगों प्रकरण ऐतिहासिक कम, पारंपरिक अधिक है। सच्चाई यही है कि महान लिंगों- महान संगठक, महान संगीतकार और महान समाज सुधारक था। ( मुरिया जनजाति के युवागृह घोटुल | Muriya janjati ke yuvagriha ghotul )

गोटुल संस्था के उद्देश्य

मुरिया अंचल में सर्वेक्षण से गोटुल संस्था के उद्देश्यों के बारे में अनेक मत-मतान्तर मिलते हैं जो एक दूसरे के पूरक हैं। मुरिया जनजाति में गोटुल संस्था लोकप्रिय थी लोकप्रिय है और लोकप्रिय रहेगी, क्योंकि जिन सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु जिन सामाजिक मूल्यों को बनाये रखने के लिए यह स्थापित थी उन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अभी भी उनका अस्तित्व बना रहना आवश्यक है। गोटुल संस्था की स्थापना जिन उद्देश्यों से की गई थी, वे थे

(1) बच्चों को यौन संबंधों की जानकारी से पृथक रखना :-

बच्चों को माता-पिता के संबंध या यौन संबंध से दूर रखना रहा है।

उपरोक्त कथन की पुष्टि-मुरिया समाज के प्रमुखों बड़े बुजुर्गों के द्वारा आज भी की जाती उनका कहना है कि बच्चों की उपस्थिति में पति-पत्नी का एक साथ सोना, यौन संबंधरत होना पाप है, इसलिए बच्चा जब थोड़ा समझदार हो जाता है, तो उसे सोने के लिए घोटुल भेज दिया जाता है। ( मुरिया जनजाति के युवागृह घोटुल | Muriya janjati ke yuvagriha ghotul )

(2) बच्चों को उचित शिक्षा दिलाना :-

गोंडी गीत में नामकरण के अवसर पर सयानी महिलाएं बच्चे के मां-बाप को उपदेश देती है ।

“लोंदा लेका उन्दी खाण्डू मंता ।
मानवाना जीवा पुटसी वायता ।।
पति मोदूर कमोक धमुक चोलता।
मुसार सगा गोटुल ते न आयता ॥
परोल मून्द सावरी जोरू कान्डाल।
सगा गोटुल ने वाटसो सियाना ।।”

अर्थात:-

तुम्हारा यह बच्चा जो लगभग एक माह का है, अभी केवल मांस का एक पिण्ड है। उसकी परवरिश के लिये उसे उचित शिक्षा देने के लिए तीन वर्ष के बाद उसे घोटुल अवश्य भेजना। ( मुरिया जनजाति के युवागृह घोटुल | Muriya janjati ke yuvagriha ghotul )

(3) सेवाभाव जागृत करना :-

पोटूल की स्थापना का यह भी एक प्रमुख उद्देश्य है, इस संदर्भ में गंगाले अपने विचार व्यक्त करते हैं कि ‘गोटुल के सह जीवन से वह जन सेवा मंत्र का अधिष्ठाता बन जाता है, इसके दिलो-दिमाग में सेवाभाव जागृत होकर वह सर्व कल्याणवादी बन जाता है। बस्तर के जनजातीय जीवन की धड़कन स्पन्दन है घोटुल। यह वह समन्वयकारी संस्था है जो केवल वनवासियों के सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को सबल बनाती है बल्कि समाजगत और व्यक्तिगत उन्नति का सिंह द्वार भी खोलती है। ( मुरिया जनजाति के युवागृह घोटुल | Muriya janjati ke yuvagriha ghotul )

(4) सामाजिकता की शिक्षा देना :-

ऐसी सामाजिकता यहां एक सबके लिए है, सब एक के लिए है। “मुरिया पोटुल एक ऐसी संस्था होती है, जहां मुरिया युवक-युवतियां भावी जीवन के लिए तैयार होते हैं। वे यहां एक साथ रहकर एक दूसरे की भावनाओं विश्वासों एवं विचारधाराओं को समझने का सुअवसर प्राप्त करते हैं। यहीं इन्हें अपने परम्परागत सांस्कृतिक घटकों एवं जीवन मूल्यों का प्रशिक्षण व्यवहारिक रूप से दिया जाता है।”

(5) जीवन साथी चुनने में सहायक:-

मुरिया समाज में गोल संस्था की उपादेयता इस संदर्भ में उल्लेखनीय है कि यह वैवाहिक संबंध के पूर्व युवा युवतियों का आपस में दूसरे को समझने में सहायक होती है। इस समाज मे मेरे पुरे भाई-बहनों में विवाह की प्राथमिकता होती है ऐसी स्थिति में अधिकांश मामलो में पति-पत्नी के रूप में जीवनयापन करना, यह स्पष्ट रहता है। ( मुरिया जनजाति के युवागृह घोटुल | Muriya janjati ke yuvagriha ghotul )

एल्विन ने संभवत: इसी को भ्रमवश जोडीदार का नाम देकर और आकड़े देकर यह प्रतिपादित किया है कि दो हजार विवाहित पुरुषों का सर्वेक्षण करन से ज्ञात हुआ कि सात सौ बीस पुरुष जोडीदार पोल में अपनी पत्नियों से पूर्व परिचित रहे हैं।

यहां उल्लेख कर देना आवश्यक समझता हूँ कि बस्तर का मुरिया गोटुल यौन-शुक्षा का केन्द्र नहीं है जैसे एल्विन व अन्य लेखकों ने वर्णित किया है। गोटुल के एक प्रमुख पदाधिकारी माझी ने दृढ़ता पूर्वक यौन शिक्षा केन्द्र के रूप में गोटुल का चित्रित किये जाने का विरोध किया, उसने कहा- मेरे अपने सगे भाई-बहन इस गोटुल में रोज सोने आते हैं, उनकी उपस्थिति में क्या मैं किसी लड़की के साथ यौनाचार कर सकता हूँ। ( मुरिया जनजाति के युवागृह घोटुल | Muriya janjati ke yuvagriha ghotul )

आज का गोटुल

परिवर्तन प्रकृति का नियम है, परिवर्तन की प्रक्रिया व गति में अन्तर हो सकता है मगर  ऐतिहासिक सच्चाई यही है कि परिवर्तन एक सतत प्रक्रिया का नाम है।

आदिवासी अंचल में परिवर्तन की प्रक्रिया बहुत धीमी रहती है, परंपरागत आस्थाओं, संस्थाओं व विश्वासों को आदिवासी सहज ही छोड़ने को तैयार नहीं होता। गोटुल को अच्छी तरह से समझे बूझे बिना उसे आउट डेटेड संस्था समझ कर इस संस्था का समाप्त करने का प्रयास किया जा रहा है। यह प्रयास निंदनीय है इस प्रचार पर रोक लगना आवश्यक है। नारायणपुर अंचल के कुछ गांव ऐसे हैं, जहां इस प्रकार के दुष्प्रयास, दुष्प्रचार के बावजूद मुरिया गोटुल, विरोधियों के छाती पर मूंग दलते विद्यमान है। बाहरी लोगों की आंख की किरकिरी बना हुआ है।

इन अंचलों का दौरा कर प्राथमिक स्रोत से तथ्य संकलित करने पर मालूम होता है कि मुरिया जनजाति अपने गोटुल को अरने (गौर) के सिग जैसे सुन्दर और मूल्यवान और उड़द की दाल जैसा प्रिय बतलाते हैं। नारायणपुर तहसील मुख्यालय से दो किलोमीटर की दूरी में स्थित ग्राम सुलेगा में गोटुल अपने पुरातन अवस्था में कायम है और उसका प्रयोग नियमित रूप से मुरिया युवक करते हैं। सड़कों शासकीय कर्मचारियों व अधिकारियों के अंचल में पहुंचने के बावजूद गोटुलों का अस्तित्व विद्यमान हैं। ( मुरिया जनजाति के युवागृह घोटुल | Muriya janjati ke yuvagriha ghotul )

गोटुल के अस्तित्व के प्रश्न पर एक उच्च स्तरीय सभा तत्कालीन बस्तर जिलाध्यक्ष श्री आरसी. व्ही. पी. नरोहना की उपस्थिति में सन् 1952-53 में आयोजित हुई थी। जिसमें तीव्र वाद विवाद के पश्चात इस निष्कर्ष पर पहुंचा गया था कि मांझी मुरिया अपने गांवों में सभा कर पक्ष विपक्ष में निर्णय लें कि गोटुल की वर्तमान स्थिति में क्या और कितना परिवर्तन किया जाए।

सन् 1952-53 के पश्चात् विभिन्न मुरिया गांवों में गोटुल के प्रश्न पर बैठकें आयोजित हुई। इस प्रश्न पर जनवरी 1992 में बाघबेड़ा के परगना मांझी श्री सोनूराम एवं दुकारू के नेतृत्व में ग्राम रेमावंड में भूमकाली बैठक हुई। इस बैठक में निर्णय लिया गया कि चेलिक मोटियारिन (युवक-युवति) गोटुल में रात को अपने दैनिक गतिविधियों के पश्चात युवतियां अपने-अपने घर सोने के लिये चली जाएं और युवक चाहें तो गोटुल में हो सो जाएं। उपरोक्त निर्णयानुसार आस पास के गांवों के गोटुल के सदस्य आंशिक रूप से पालन कर रहे हैं किन्तु पूर्ण रूपेण नहीं। ( मुरिया जनजाति के युवागृह घोटुल | Muriya janjati ke yuvagriha ghotul )

इस प्रकार से मुरिया गोटुल अनेक उतार-चढ़ाव के बावजूद अपने मूलरूप को बनाये रखने में सफल रहा है। गोटुल विहीन मुरिया समाज या गांव की कल्पना नहीं की जा सकती रोटी कपड़ा और मकान के पश्चात गोटुल ही मुरिया आदिवासियों की अनिवार्य आवश्यकता है। 

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Source : Internet

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Rajveer Singh
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