महर्षि अत्रि और छत्तीसगढ़ | Maharishi Atri aur Chhattisgarh छत्तीसगढ़ में महृषि अत्रि के प्रमाण , पुराणों के इतिहास जो छत्तीसगढ़ के है प्रमाण ।
महर्षि अत्रि और छत्तीसगढ़ | Maharishi Atri aur Chhattisgarh
साप्तर्षियों में एक नाम महर्षि अत्रि का है। श्रीमद् भागवत (स्कंध 4) के अनुसार महर्षि कर्दम की नी कन्यायें में से एक अनुसूया का विवाह ब्रह्मर्षि अत्रि से हुआ था। अनुसूया जी भगवान कपिल देव की बहन आर कर्दप देवहूति की कन्या हैं। भगवान श्रीरामचंद्रजी ने जगजननी सीता जी को भाँति-भाँति के गहने कपड़े और सठी धर्म का उपदेश दिया था।
एक बार जब अत्रि मुनि तपस्यारत थे तब उनके समक्ष ब्रह्माजी प्रकट हुए। मुनि से सृष्टि रचने अनुरोध का किया ब्रह्माजी के आदेश पर वे अपनी पत्नी को लेकर पर्वत पर आ गये। वहीं उन्होंने निर्विघ्या नदी के तट पर अपना आश्रम स्थापित किया। वैनगंगा का ही प्राचीन नाम निर्विन्ध्या है। उत्तम संतान की कामना से वे पुनः कठोर तप करने लगे। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर। बह्मा, विष्णु, महेश प्रकट हुए। कालांतर में वरदान के फलस्वरूप उन्हें तीन पुत्र हुए चन्द्रमा, दत्रात्रेय और दुर्वासा । महर्षि अत्रि और छत्तीसगढ़ | Maharishi Atri aur Chhattisgarh
यह कथा श्रीमद् भगवत के चौथे स्कन्ध में वर्णित है। इसी कथा का उल्लेख जयदयाल गोयन्दका ने भी अपनी टीका में किया है। श्रीमद् भागवत पुराण के अनुसार अत्रि मुनि सती अनुसूया को लेकर ऋक्ष पर्वत पर आश्रम बना कर रहने लगे थे । ऋक्ष पर्वत सप्तकुल पर्वतों में से एक है। छत्तीसगढ़ इसी पर्वत की पीठ पर अवस्थित है। वायु, वामन, ब्रह्म, मत्स्य,. ब्रह्माण्ड पुराणों तथा महाभारत ( भीष्म पर्व में महानदी को ऋक्ष एवंत से निकली नदी कहा गया है)। वायु, ब्रह्मा मार्कण्डेय तथा वामन पुराणों में सोन, नर्मदा, तमसा को भी ऋक्ष पर्वत से निकली नदियाँ कहा गया है
डा. हिरालाल शुक्ल ने भी नर्मदा के दक्षिण में महानदी के स्रोत पर्यंत ऋक्ष पर्वत का विस्तार माना है। पश्चिम में वैनगंगा वैदूर्य पर्वत (सतपूडा) और ऋक्ष पर्वत को पृथक करती है। प्राचीन काल में दक्षिण कोसल का विस्तार पश्चिम में वैनगंगा नदी तक था।
अत्रि मुनि इसी वैनगंगा के तट बनाया था किन्तु बाद में उन्होंने रायपुर जिले की धमतरी तहसील में कहीं आश्रम बना लिया। ऋषि मुनि प्रायः स्थान बदलते रहते थे। वाल्मीकि ऋषि ने भी तमसा तट से अपना आश्रम हटा कर तुरतुरिया में स्थापित किया था। वस्तुतः ये ऋषि-मुनि, विन्ध्य के दक्षिण में सांस्कृतिक अभियान के लिये आये थे।महर्षि अत्रि और छत्तीसगढ़ | Maharishi Atri aur Chhattisgarh
अत्रि मुनि राम के समकालीन थे यह श्रीमद् भागवत के विवरण के अनुसार कर्दम ऋषि की एक कन्या हविर्भू पुलस्य को ब्याही गयी थी। हविर्भू के दो पुत्र हुए- अगस्त और विश्रवा, विश्रवा के पुत्र का नाम यक्षराज कुवेर था । विश्रवा की दो पत्नियाँ थी । उनकी दूसरी पत्नी केशनी से रावण, कुम्भकर्ण और विभीषण उत्पन्न हुए। इसर प्रकार अत्रि, अंगिरा, अगस्त, कुबेर, रावण आदि भगवान श्रीराम के समकालीन थे। जब राम अनि मुनि के आश्रम में पहुँचे तो मुनि अत्यंत वृद्ध हो चुके थे। अपने वनवासमहर्षि अत्रि और छत्तीसगढ़ | Maharishi Atri aur Chhattisgarh
काल में राम, सीता और लक्ष्मण अनि मुनि के आश्रम में रुके थे। भारतेन्दु के सखा और उस युग के कवि एवं शैलीकार ठाकुर जगमोहन सिंह ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ श्यामा स्वप्न में इसी क्षेत्र को राम के वन गमन का मार्ग बताया है सम्राट अशोक के शिलालेखों में भी इस क्षेत्र को विन्ध्याटवी राज्य ही कहा गया है।
प्रश्न यह है कि जब सकुल पर्वतों में विन्ध्य और ऋक्ष पर्वतों को भिन्न भिन्न बताया गया है तब ऋक्ष पर्वत के राज्यों को विन्ध्यारवी क्यों कहा गया है? वास्तविकता यह है कि पुराणकरों ने सुविधा की दृष्टि से सम्पूर्ण देश को 7 भौगोलिक विभागों में बांट दिया था (1) उदीच्य (2) प्राच्य (3) अपरांतक (4) मध्व (5) विन्ध्य (6) दक्षिणापथ (7) पर्वत । अक्ष वैदूर्य, मेकल, गंधमादन आदि पर्वतों पर बसे राज्य भी विन्ध्य विभाग में परिगणत किये गये हैं ।
पं. सुन्दरलाल त्रिपाठी के अनुसार राम ऋषि-मुनियों के प्रति जनस्थान में राक्षसों के अत्याचार की कथा सुनकर पावित अत्रि आश्रम में प्रवृष्ट हुए। अत्रि आश्रम दण्डक महावन की उत्तर सीमारेखा पर था। अतएव छत्तीसगढ़ के पूर्वांत में कहीं अत्रि आश्रम हो सकता है राम, सीता और लक्ष्मण महानदी के किनारे-किनारे धमतरी तहसील तक पहुँचे। वहीं कहीं अत्रि मुनि का आश्रम था।
इस तहसील में एक गांव है जिसका नाम है अतरमरा % मरा% शब्द मद्री या मढ़ा का अपभ्रंश है। मढ़ा का अर्थ होता है मठ या आश्रम। अत्रि शब्द बिगड़ कर अंतर हो गया। इस प्रकार उस गाँव का नाम अंतरमरा पड़ गया।महर्षि अत्रि और छत्तीसगढ़ | Maharishi Atri aur Chhattisgarh
सीताजी ने महासती अनसूया के पास बैठकर ध्यानपूर्वक उनसे उपदेश ग्रहण किया। अनुसूया भी तपश्चर्या में महामुनि अत्रि से कम नहीं थीं। एक बार जब इस क्षेत्र में बारह वर्षों नहीं हुई तब अनुसूया ने कठोर तपस्या की। उनके तपोबल से घनघोर वर्षा हुई। महासती अनुसूया नेताजी को दिव्य वस्त्र, माला और अंगराग प्रदान किया दूसरे दिन श्रीराम ने अत्रि मुनि से आगे प्रवास की आज्ञा माँगी तब महामुनि उन्हें सावधान करते हुए सूचित किया कि यहाँ से आगे दण्डक महावन है। आगे का मार्ग राक्षसों से भरा पड़ा ।
उनका उपद्रव बढ़ता ही जा रहा है। ये राक्षस तपस्वियों को मार डालते हैं। उत्तर रामचरित के अनुसार वाल्मीकि आश्रम में कुश तथा लब के साथ अत्रेय भी शिक्षा ग्रहण कर रही थी इस अत्रेयी का अत्री मुनि से क्या संबंध था, यह स्पष्ट नहीं हैं। संभवतः अत्रेयी अत्रि मुनि की नातिन रही हो। अत्रि आश्रम से वाल्मीकि का तुततुरिया स्थित आश्रम कुछ ही घण्टों की दूरी पर हैं।
इससे भी यही सत्य प्रतीत होता हैं, कि अत्रि तथा वाल्मीकि के आश्रम रायपुर जिले में ही स्थित थे। धर्मशास्त्र के रचयिताओं में, अत्रि मुनि का नाम अग्रिम पंक्ति में हैं। मनुस्मृति से पता चलता है कि अत्रि एक प्राचीन धर्मशास्त्रकार थे। बहुत सी हस्तप्रतियां है जिनमें अत्रेय-धर्मशास्त्र 9 अध्यायों में है हस्तलिखित प्रतियों में अत्रि स्मृति या अत्रि-संहिता नामक ग्रंथ मिलता है। ब्रह्मर्षि, अत्रि और महासती अनुसूया के कारण छत्तीसगढ़ की धरती अत्यंत पवित्र मानी जाती है ।
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