रामचन्द्र ने अपने पुत्र कुश और लव को भी अपने जीवन काल में, जब स्वयं अयोध्या से शासन कर रहे थे, छोटे-छोटे प्रदेश राज्य करने को दिया। “स्थिर बुद्धिवाले राम ने शत्रुरूपी हाथियों के लिये अंकुश के समान भयदायक कुश को कुशावती का राज्य दे दिया और अपने मधुर वचनों से सज्जनों की आँखों से प्रेमाश्रु की धारा बहाने वाले लव को शरावती का राज्य दिया। “50 अब प्रश्न यह है कि कुशावती और शरावती कहाँ पर स्थित थीं?
इस पर पुराणों से कोई विशेष प्रकाश नहीं पड़ता। उनसे केवल यह मालूम होता है कि कुश ने कुशस्थली नाम की एक नगरी बसायी। कुछ विद्वानों ने इस नगरी को गुजरात और कुछ ने विन्ध्य में रखने की चेष्टा की है। किन्तु इन दोनों ही प्रदेशों पर उस समय पौरवों और यादवों का राज्य था। इसलिये कुशस्थली उपर्युक्त स्थानों में नहीं रखी जा सकती। गुजरात कुशस्थली (द्वारकापुरी) तो कुश से भी प्राचीन मगरी थी अतः उसको कुश द्वारा स्थापित बतलाना ऐतिहासिक व्यक्तिक्रम है। को कुशावती नगरी का इतिहास थोड़े परिवर्तन के साथ कुशजातक नामक बौद्ध ग्रंथ में मिलता है। उसमें लिखा है
“प्राचीन काल में, मल्लराष्ट्र में कुशावती राजधानी में इक्ष्वाकु नामक राजा धर्मपूर्वक राज्य करते थे। आज यह निर्विवाद सिद्ध है कि इतिहास प्रसिद्ध मल्लराष्ट्र की राजधानी कुशावती (कुशीनारा, कुणिग्रामक, कुशनगर) वर्तमान कुशीनगर ( कसया, गोरखपुर- जनपद में स्थित) ही थी। कुशावती कारुपथ के पूर्वी छोर पर किन्तु कोसल राज्य के अन्तर्गत थी। (कोसल राज्य की पूर्वी सीमा बड़ी गंडक थी)। जिस तरह अंगद के नाम पर अंगदीया और चन्द्रकेतु के नाम पर चन्द्रकान्ता बसायी गयी थी उसी तरह कुश के नाम पर कुशावती नगरी बसायी गयी। शरावती (लव की राजधानी) की स्थिति बतलाना प्रायः असंभव है, परन्तु यह अनुमान किया जा सकता है कि यह कुशावती से पूर्व और उससे बहुत दूर नहीं थी।
कुशावती कुश को बहुत प्रिय थी और कुश ने उसकी बड़ी शोभा और समृद्धि बढ़ायी रामचन्द्र के देहावसान के बाद कुश का उनके उत्तराधिकारी के रूप में राज्याभिषेक हुआ। किन्तु कुशावती के लिये कुश की इतनी ममता थी कि कुछ दिनों तक वे कुशावती को ही अपनी राजधानी बनाकर कोसलराज्य पर शासन करते रहे। 52 इससे अयोध्या की श्री हत हो गयी। इस कारण अयोध्यावासियों को बड़ा दुःख हुआ ।
कालिदास ने अपनी कविता की भाषा में वर्णन किया है कि स्वयं अयोध्या की नगर देवी कुश के पास गयी और अपनी दुर्दशा की कहानी कहती हुई अन्त में प्रार्थना की; “जैसे तुम्हारे पिता राम ने राक्षसों को मारने के लिये जो शरीर धारण किया था उसको छोड़कर परमात्मा में लीन हो गये वैसे तुम भी इस राजधानी कुशावती को छोड़कर अपनी कुल- परम्परा की राजधानी अयोध्या में चलकर रहो। 53 कुश ने नगर-देवी की यह बात माल ली और अयोध्या के महत्व को समझकर के वहीं वापस चले गये।
उनके साथ ही लव शरावती छोड़कर अयोध्या गये और पुराणों के अनुसार उन्होंने श्रावस्ती को अपनी राजधानी बनाया। 4 कुश और लव के अयोध्या लौट जाने का परिणाम यह हुआ कि कोसल राज्य का प्रायः पूर्वीभाग लक्ष्मण के पुत्र चन्द्रकेतु के अधिकार में आ गया। उन्होंने चन्द्रकान्ता छोड़कर कुशावती (कुशीनगर) क अपनी धाम बनाया और तभी से कुशावती (कुशीनगर) मल्लराष्ट्र की राजधानी हुई, जो बौद्धकाल तक बनी रही।