कृषि यंत्रीकरण किसे कहते है ? Krishi Yantrikaran Kise Kahte hai
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कृषि में यंत्रीकरण से अर्थ यांत्रिक शक्ति द्वारा उन क्रियाओं को करने से है जो सामान्यतः बैलों अन्य पशुओं या मानवीय शक्तियों द्वारा सम्पन्न की जाती है।
उदाहरण – जुताई-बुवाई हेतु हल के स्थान पर ट्रेक्टर,
फसल काटने हेतु – हार्वेस्टर, थ्रेसर
सिंचाई हेतु-पंप सेट, स्प्रिंकलर, ड्रिप सिंचाई
कृषि उपकरणों की विशिष्टताएं भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा तैयार की जाती वही इन्हें मानकीकृत करता है।
कृषि यंत्रीकरण के पक्ष में तर्क
- प्रति हेक्टेयर उत्पादन में वृद्धि- खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में सहायक
- उत्पादन लागत में कमी, कार्य शीघ्रता से कृषकों की आय में वृद्धि, उसर भूमि को कृषि योग्य बनाने में सहायक
- बड़े पैमाने पर कृषि संभव- कृषि का व्यवसाय के रूप में विकास
- श्रम की कुशलता में वृद्धि : कृषि कर्म में सुधार
- उपभोक्ताओं का लाभ : सस्ता खाद्य-Krishi Yantrikaran Kise Kahte hai
- सहायक उद्योगों का विकास- रोजगार में वृद्धि
कृषि यंत्रीकरण की सीमितताएँ
- छोटे एवं बिखरे खेत
- पूंजी का अभाव
- बेरोजगारी का भय
- पशु शक्ति का आधिक्य
- कृषकों में अशिक्षा
- ईंधन की कमी
कृषि संबंधी महत्वपूर्ण जानकारी
मिश्रित कृषि (Mixed Farming) –
- जब कृषि के साथ पशुपालन, रेशमकीट पालन, मधुमक्खी पालन, कुक्कुटपालन, मछलीपालन आदि भी किया जाता है तो इसे मिश्रित कृषि कहा जाता है.
मिश्रित शस्यन (Mixed Cropping)-
- जब भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने एवं कीटों से रक्षा के लिए एक साथ एक से अधिक फसल एक खेत में ली जाती है तो उसे मिश्रित शस्यन कहा जाता है. जैसे- कपास के साथ भिंडी उगाने से कपास को ब्लेक आर्म से बचाया जा सकता है.-Krishi Yantrikaran Kise Kahte hai
स्थानांतरित या झूम कृषि (Shift Cultivation )-
- इस प्रकार की कृषि में सर्वप्रथम जंगल को काटा जाता है एवं उसे सुखाने- जलाने के बाद कृषि करके 2-3 फसल लिया जाता है, भूमि की उर्वरता समाप्त होने पर नए स्थान पर किसी अन्य जंगल को काटा जाता है. इस प्रकार की खेती आदिवासी समुदायों द्वारा की जाती है. यह खेती वनों के विनाश का प्रमुख कारण है.
वाणिज्यिक या नकदी फसलें-
- व्यापारिक फसलें वे फसलें जिन्हें उगाने का मुख्य उद्देश्य व्यापार करके धन अर्जित करना होता है. ये फसलें प्राय: कच्चे माल के रूप में प्रयोग की जाती हैं. इन फसलों में प्रमुख रूप से सम्मिलित हैं
- तिलहन फसलें->मूंगफली, सरसों, तिल, अलसी, अण्डी, सोयाबीन और सूर्यमुखी आदि
- शर्करा युक्त फसलें->गन्ना और चुकन्दर आदि
- रेशे वाली फसलें->जूट, मेस्टा, सनई, कपास आदि
- उद्दीपक फसलें->तम्बाकू, अफीम आदि
- पेय फसलें->चाय, कहवा आदि
फसलों का मौसम आधारित वर्गीकरण
भारत में मोटे तौर पर तीन फसल ऋतुएं होती है- खरीफ, रबी और जायद,
खरीफ:-
- इसकी बुआई जून-जुलाई में एवं कटाई अक्टूबर-नवंबर में होती है. इन फसलों के लिए अधिक पानी एवं आर्द्रता की आवश्यकता होती है,
- मुख्य फसलें– धान, ज्वार, बाजरा, मक्का, सोयाबीन, कपास, मूंगफली, गन्ना,अरहर आदि.
रबी:-
- इसकी बुआई अक्टूबर-नवम्बर एवं कटाई मार्च-अप्रैल में होती है. इसमें खरीफ की अपेक्षा कम पानी की आवश्यकता होती है,
- मुख्य फसलें- गेहूं, जौ, चना, मटर, ज्वार, अलसी, तोरिया और सरसों.
जायद फसलें-
- यह ग्रीष्म की एक छोटी फसल ऋतु है.
- मुख्य फसलें- तरबूज, ककड़ी, खीरा, खरबूज.
उर्वरक
- चीन और अमेरिका के बाद भारत विश्व में रासायनिक उर्वरकों का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता देश है।
- भारत में नाइट्रोजन, फास्फेट, पोटैशियम उर्वरकों का अनुशंसित उपयोग अनुपात क्रमश: 4: 2 : 1 है.
कृषि जोत
कृषि जोतों का वर्गीकरण
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- कृषि गणना के अनुसार 2015-16 में भारत में कृषि जोतों का औसत आकार 1.08 हैक्टेयर है.
- देश में 86.1% किसान सीमान्त एवं लघु कृषक हैं जिनके पास कुल क्रियाशील कृषि क्षेत्रफल का केवल 46.9% है.-Krishi Yantrikaran Kise Kahte hai
- छत्तीसगढ़ में कृषि जोतों का औसत आकार लगभग 1.24 हैक्टेयर है.
देश में राज्यवार क्रियाशील कृषि जोतों का औसत आकार
- सर्वाधिक–नगालैण्ड में (4.87 हे.)
- सबसे कम–केरल में (0.18 हे.)
कृषिगत लागत व मूल्य आयोग
1965 में स्थापना, यह आयोग विभिन्न कृषि वस्तुओं के लिए न्यूनतम समर्थन कीमतों, वसूली कीमतों तथा जारी कीमतों की सिफारिश करता है.
मूल्य नीति
समर्थन मूल्य Minimum Support Price
- समर्थन कीमतें किसानों द्वारा उत्पादित फसलों को खरीदने के लिए सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम मूल्य है. इस मूल्य पर सरकार किसानों की उपज को खरीदती है. यह किसानों को मूल्य सुरक्षा प्रदान कर लाभप्रद मूल्य सुनिश्चित करती है.
- इस योजना को 1966 में आरंभ किया गया था। प्रतिवर्ष केन्द्र सरकार द्वारा 25 प्रमुख कृषि फसलों के लिए MSP की घोषणा की जाती है। जिसमें खरीफ सीजन की 14 फसलें, रबी सीजन की 7 फसलें एवं 4 अन्य वाणिज्यिक फसलें शामिल हैं।-Krishi Yantrikaran Kise Kahte hai
वसूली कीमत Procurement Price
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली से बेचे जाने वाले सामान को सरकार बाजार से खरीदती है. यह खरीदी जिस मूल्य पर की जाती है उसे ही वसूली कीमत कहते हैं. वसूली कीमत पर सरकार खाद्यान्नों को बाजार से व्यापारी की भांति खरीदती है. इसी कीमत पर बफर भंडारों के लिए भी खरीदी की जाती है.
जारी कीमत Issue Price
- इस कीमत पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से सरकार उपभोक्ताओं को खाद्यान्न बेचती है. किसे कहते है
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