कोंध जनजाति छत्तीसगढ़ Kondh janjati chhattisgarh kondh tribe chhattisgarh

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नमस्ते विद्यार्थीओ आज हम पढ़ेंगे कोंध जनजाति छत्तीसगढ़ Kondh janjati chhattisgarh kondh tribe chhattisgarh  के बारे में जो की छत्तीसगढ़ के सभी सरकारी परीक्षाओ में अक्सर पूछ लिया जाता है , लेकिन यह खासकर के CGPSC PRE और CGPSC Mains में आएगा , तो आप इसे बिलकुल ध्यान से पढियेगा और हो सके तो इसका नोट्स भी बना लीजियेगा ।

कोंध जनजाति छत्तीसगढ़ Kondh Janjati Chhattisgarh Kondh Tribe Chhattisgarh

कोंध जनजाति की उत्पत्ति 

कोंध मुख्यतः उड़ीसा और आंध्र की जनजाति है। लगभग 200 वर्ष पूर्व इस जनजाति के कुछ लोग छत्तीसगढ़ में उड़ीसा से आकर बसे थे। 2011 में जनगणना अनुसार छत्तीसगढ़ में इनकी जनसंख्या 10991 दर्शित है। इनमें पुरुष 5386 तथा स्त्रियाँ 5605 थी। राज्य में इस जनजाति के लोग मुख्यतः महासमुंद एवं रायगढ़ जिले में निवासरत हैं। इन्हें खाँड, कांध भी कहा जाता है। ( कोंध जनजाति छत्तीसगढ़ Kondh janjati chhattisgarh kondh tribe chhattisgarh )

इनकी उत्पत्ति के संबंध में कोई ऐतिहासिक अभिलेख उपलब्ध नहीं है। कोंध शब्द की व्यत्पत्ति द्रवीड़ शब्द “कोंड” अर्थात् “पर्वत” से मानी गई है। संभवतः “कॉड ” क्षेत्र (पर्वतीय क्षेत्र) में रहने वाले लोगों को कौंध कहा जाता है। कुछ विद्वानों इन्हें द्रवीड़ पूर्व के लोग मानते हैं। इनकी अपनी बोली “काँधी” (कुई) कहलाती है ।

कोंध जनजाति के रहन-सहन 

छत्तीसगढ़ में कोंध जनजाति के लोग महासमुंद और रायगढ़ जिले में सवरा, कंवर, बिंझवार, गोंड आदि जनजातियों के साथ गाँव में निवास करते हैं। इनके घर है. जिस पर घासफूस या देशी खपरैल को छ सामान्यतः मिट्टी के होते हैं, जिस पर घासफूस या देशी खपरैल का उप्पर होता है। घर में प्रायः दो कमरे पाये जाते हैं।

घरेलू वस्तुओं में अनाज रखने की कोठी, धान कूटने का मूसल, अनाज पीसने का जांता, चूल्हा, मिट्टी व एल्युमिनियम, पीतल के बर्तन.. कृषि उपकरण, वाद्य यंत्र, मछली पकड़ने के जाल, तीर-धनुष आदि होता है। ( कोंध जनजाति छत्तीसगढ़ Kondh janjati chhattisgarh kondh tribe chhattisgarh )

यस्त्र-विन्यास में पुरुष पंछा (छोटी धोती) और बंडी पहनते हैं, महिलाएँ लुगड़ा पहनती हैं। महिलाएँ हाथ, पैर, दुड़ी, मस्तक आदि पर गुदना गुदाती हैं। महिलाएँ नाक में फूली, कान में खिनवा, गले में सुरड़ा, रुपिया या काँच के मनकों की माला, हाथ में चूड़ियाँ, पटा आदि आभूषण पहनती हैं। आभूषण सामान्यतः गिलट, नकली चाँदी या पीतल की होती है।

इनका मुख्य भोजन, चावल या कोदो की पेज, भात, बासी, उड़द, मूंग, कुलथी, बेलिया की दाल, मौसमी सब्जी, कंदमूल, भाजी आदि है। मांसाहार में मछली, मुर्गा, बकरा, खरगोश, हिरण, सुअर, जंगली पक्षी, केकड़ा, गिलहरी आदि का मांस खाते हैं। महुआ से शराब बनाते हैं तथा पीते हैं। धूम्रपान के रूप में बोड़ी पीते हैं। ( कोंध जनजाति छत्तीसगढ़ Kondh janjati chhattisgarh kondh tribe chhattisgarh )

कोंध जनजाति के व्यवसाय 

इनके पूर्वजों का परम्परागत व्यवसाय पोहु खेती (आदिम कृषि), शिकार, वनोपज संकलन था। वर्तमान में स्थाई कृषि मजदूरी, जंगली उपज संग्रह करते हैं। इनके मुख्य कृषि उपज कोदो, धान, उड़द, मूंग, कुलथी, मढ़िया, हल्दी आदि हैं। जंगल से लाख, तेन्दू पत्ता, गोंद, चार, तेंदू, महुआ, शहद, सरई बीज, हर्य आदि संकलन कर बेचते हैं। जंगली कंदमूल और भाजी, फल आदि एकत्र कर खाते हैं।

जिनके पास कृषि भूमि नहीं है, वे दूसरे कृषकों के खेतों में मजदूरी करते हैं। कभी-कभी खरगोश, जंगली पक्षियों, गोह आदि का शिकार करते हैं। पहले हिरण का भी शिकार करते थे। अब प्रतिबंध के कारण शिकार नहीं करते। वर्षा ऋतु में स्वयं के उपयोग के लिए मछली, केकड़ा आदि पकड़ते हैं। ( कोंध जनजाति छत्तीसगढ़ Kondh janjati chhattisgarh kondh tribe chhattisgarh )

कोंध जनजाति के परम्परा 

कोंध पितृवंशीय, पितृ निवास स्थानीय, पितृसत्तात्मक जनजाति है। इनके मुख्य उप समूह डोंगरिया (जंगल) काँध, कुटिया (पहाड़ी) कोंध, पेंगा कोंध, झुरिया कोंध , जामिया (पहाड़ों की चोटी पर) कोंध, नानगुली कोंध, सीतहा कोंध आदि। उप समूह पुनः बहिर्विवाही वंश समूह में विभक्त होते हैं, जैसे जकासिया, हौका, प्रास्का, कडराका आदि है।

इनके प्रमुख गोत्र बच्छा, छत्रा, हीडोका, केलका, कॉजाका, मंदींगा, कदम, नरसिंघा आदि हैं। एक ही गोत्र के लड़के-लड़कियों के बीच विवाह नहीं होता । गोत्र के जीव-जन्तु, वृक्ष-लता आदि पर आधारित टोटम पाये जाते हैं। ( कोंध जनजाति छत्तीसगढ़ Kondh janjati chhattisgarh kondh tribe chhattisgarh )

इस जनजाति की गर्भवती महिलाएँ प्रसव के दिन तक आर्थिक एवं पारिवारिक सभी कार्य करती हैं। प्रसव स्थानीय सुइन दाई या बुजुर्ग महिलाएँ घर पर कराती हैं। छठे दिन बच्चे के सिर मुण्डन करते हैं तथा प्रसूता के नाखून काटते हैं। प्रसूता व शिशु को नहलाकर बच्चे को तीर-कमान का स्पर्श कराते हैं। माना जाता है कि इससे बच्चा बड़ा होकर तीर-कमान चलाने में निपुण होगा।

विवाह उम्र लड़कों की 15 से 19 वर्ष तथा लड़कियों की 13 से 16 वर्ष मानी जाती है। विवाह प्रस्ताव वर पक्ष की ओर से होता है। विवाह के लिये मामा या बुआ की लड़की को प्राथमिकता देते हैं। वर के पिता वधू के पिता को सुक भरना के रूप में चावल, दाल, तेल, शराब, नगद 100 से 500 रुपये बकरा या सुअर, लुगड़ा आदि देते हैं। विवाह की रस्म बुजुगों के देखरेख में संपन्न होता है।

उढ़रिया (सहपलायन) और बुकु या पैटू (घुसपैठ ) प्रथा को सामाजिक पंचायत द्वारा कुछ जुर्माना लेकर विवाह की मान्यता दी जाती है। विधुर, विधवा, त्यगता, देवर-भाभी पुनर्विवाह पाया जाता है। पहले इनमें “युवागृह” पाया जाता था। लड़कों का युवागृह ” धांगड़ामर” और लड़कियों का ” धांगड़ीघर” कहलाता था । ( कोंध जनजाति छत्तीसगढ़ Kondh janjati chhattisgarh kondh tribe chhattisgarh )

मृत्यु होने पर मृतक को दफनाते थे। अब कुछ लोग जलाने भी लगे हैं। दसवें दिन रिश्तेदार सिर के बाल, दाढ़ी, मूंछ मुण्डन कराते हैं तथा स्नान करते हैं। घर की सफाई करते हैं। मृतक से आत्मका की वापसी की आशा में दो राहे पर मुर्गे के सामने चावल बिखरते हैं। मुर्गे द्वारा चावल चुगने पर आत्मा का आगमन माना जाता है। मुर्गे की बलि देकर धनुष से कपड़ा उठाकर आत्मा को उसमें बैठने कहकर घर के कोने में ले जाकर स्थापित करते हैं। रिश्तेदारों को भोज देते हैं।

इनमें परंपरागत जाति पंचायत (समाज पंचायत) पाई जाती हैं। जाति पंचायत का प्रमुख गौटिया कहलाता है। इनके धार्मिक कार्यों का प्रमुख “जानी” कहलाता है। वह भी समाज पंचायत के कार्य में सहयोग करता है। अन्य व्यक्ति सदस्य होते हैं। ( कोंध जनजाति छत्तीसगढ़ Kondh janjati chhattisgarh kondh tribe chhattisgarh )

इस पंचायत में अनैतिक संबंध, अन्य जाति के पुरुष या स्त्री से विवाह, तलाक, वधू मूल्य, वैवाहिक विवाद, सम्पत्ति का बँटवारा आदि का परंपरागत तरीके से निपटारा किया जाता है।

कोंध जनजाति के देवी देवता और त्यौहार 

कोध जनजाति में अनेक देवी-देवता पाये जाते हैं। इनके प्रमुख देवी-देवता बेला या बूरापेन्नु (सूर्य) तथा इनकी पत्नी “तारी माता”, धरती माता, शीतला माता आदि है। नदी, पर्वत, वृक्ष, बाघ, नाग आदि को भी देवता मानकर पूजा करते हैं। ( कोंध जनजाति छत्तीसगढ़ Kondh janjati chhattisgarh kondh tribe chhattisgarh )

इनके प्रमुख त्योहार दशहरा (चावल जात्रा), अगहन जात्रा तथा चैत्र जात्रा (माहुल जात्रा), दिवाली, होली आदि हैं। चावल जात्रा में नया चावल और चैत्र जात्रा में नवा महुआ खाते हैं। देवी-देवता पूर्वजों की पूजा दशहरा के दिन करते हैं। मुर्गा, बकरा की बलि देते हैं। कहा जाता है कि इनमें 100-150 वर्ष पहले नरबलि की प्रथा थी, जिसे अंग्रेजों के शासनकाल में बंद कराया गया था। भूत-प्रेत, जादू-टोना में काफी विश्वास करते हैं।

इनके प्रमुख लोक नृत्य विवाह नृत्य, हरेली नृत्य, जात्रा नृत्य आदि हैं। विवाह एवं नृत्य के अवसर पर लोकगीत गाते हैं। वर्तमान में भजन, फाग आदि भी गाते हैं। ( कोंध जनजाति छत्तीसगढ़ Kondh janjati chhattisgarh kondh tribe chhattisgarh )

छत्तीसगढ़ की कोंध जनजाति में साक्षरता 2011 की जनगणना में 64.7 प्रतिशत दर्शाई गई है। पुरुषों में साक्षरता 77.4 प्रतिशत तथा स्त्रियों में 52.4 प्रतिशत थी।

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source : Internet

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