कोल जनजाति छत्तीसगढ़ Kol Janjati Chhattisgarh kol tribe chhattisgarh

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नमस्ते विद्यार्थीओ आज हम पढ़ेंगे कोल जनजाति छत्तीसगढ़ Kol Janjati Chhattisgarh kol tribe chhattisgarh  के बारे में जो की छत्तीसगढ़ के सभी सरकारी परीक्षाओ में अक्सर पूछ लिया जाता है , लेकिन यह खासकर के CGPSC PRE और CGPSC Mains में आएगा , तो आप इसे बिलकुल ध्यान से पढियेगा और हो सके तो इसका नोट्स भी बना लीजियेगा । 

कोल जनजाति छत्तीसगढ़ Kol Janjati Chhattisgarh Kol Tribe Chhattisgarh

कोल जनजाति की उत्पत्ति 

कोल जनजाति की जनसंख्या छत्तीसगढ़ में 2011 की जनगणना में 20873 है। इनमें पुरुष 10433 तथा स्त्रियों 10440 थी। इनके पूर्वज मध्य प्रदेश के शहडोल, सीधी जिले से प्रवर्जित होकर सीमावर्ती छत्तीसगढ़ के बिलासपुर एवं कोरिया जिले में आकर बस गये थे। ( कोल जनजाति छत्तीसगढ़ Kol Janjati Chhattisgarh kol tribe chhattisgarh )

कोल जनजाति के उत्पत्ति के में ऐतिहासिक अभिलेख उपलब्ध नहीं है, किन्तु कोल जनजाति का उल्लेख भील एवं किरात के साथ संस्कृत साहित्यों, रामायण तथा रामचरित मानस में वन्य जाति के रूप में मिलता है, जिन्होंने वनवास काल में राम, लक्ष्मण तथा सीताजी की सेवा की थी। कुछ लोग अपने को रामायण के “शिवरी” (शबरी) के वंशज मानते हैं। कोल जनजाति कोलारियन समूह की एक प्राचीन जनजाति है।

कोल जनजाति का रहन-सहन 

इनके घर मिट्टी के बने होते हैं, छप्पर घास-फूस या देशी खपरैल से निर्मित होता है। मकान में आंगन रहता है, इसे प्रायः गोबर से लीपते हैं। सामान्यतः घर में दो कमरे पाये जाते हैं। मकान के अंदर के एक भाग में पालतू जानवरों के रहने हेतु स्थान होता है। ( कोल जनजाति छत्तीसगढ़ Kol Janjati Chhattisgarh kol tribe chhattisgarh )

घरेलू वस्तुओं में चारपाई, ओढ़ने-बिछाने के कपड़े, भोजन बनाने व खाने के बर्तन, मूसल, कुल्हाड़ी, कृषि उपकरण, मछली पकड़ने का जाल आदि पाये जाते हैं।

इस जनजाति के पुरुष धोती, बंडी पहनते हैं। स्त्रियाँ चोली, कोंचली, घाघरा और लुगड़ा पहनती हैं। इनके गहने प्रायः चाँदी, गिलट, नकली चाँदी और कांसे के बने होते हैं। हाथों में जाती है। स्त्रियों की पहचान मानी हाथों में काँच की चूड़ियाँ एवं सिंदूर सुहागिन स्त्रियों की ( कोल जनजाति छत्तीसगढ़ Kol Janjati Chhattisgarh kol tribe chhattisgarh )

स्त्री-पुरुष प्रातः उठकर नीम, बबूल, करंज आदि के दातून से दाँतों की सफाई कर प्रतिदिन स्नान करते हैं। इनका मुख्य भोजन गेहूँ, मक्का, जुआर आदि की रोटी, कोदो, कुटकी तथा चावल का भात, उड़द, मूंग, चना, कुलथी की दाल, मौसमी सब्जी आदि हैं। मांसाहार में मुर्गी, मछली, बकरा, हिरण, जंगली सुअर, विभिन्न प्रकार के पक्षी का मांस कभी-कभी खाते हैं। त्योहारों पर महुआ की शराब पीते हैं। पुरुष बीड़ी पीते हैं।

कोल जनजाति का व्यवसाय 

इस जनजाति के लोग मुख्यतः कृषि, कृषि मजदूरी, वनोपज संग्रह आदि पर निर्भर हैं। शिक्षा की कमी के कारण ये लोग शासकीय सेवा में कम आ पाते हैं। मजदूरी का कार्य हेतु स्त्री-पुरुष दोनों जाते हैं। ( कोल जनजाति छत्तीसगढ़ Kol Janjati Chhattisgarh kol tribe chhattisgarh )

यह जनजाति मुख्यतः दो उपजातियों में विभक्त है। मध्य प्रदेश के जबलपुर संभाग में निवासरत अधिकांश कोल गवठिया कोल कहलाते हैं जबकि रीवा संभाग में निवासरत भूमिया कोल के नाम से जाने जाते हैं। छत्तीगसद में अधिकांशतः भूमिया कोल निवासरत हैं। उपजाति कई बहिर्विवाही गोत्रों में विभक्त है। इनके प्रमुख गोत्र हैं- ठाकुरिया, रातुल, बरबार, चेरो, बारगीया मवासी, बर्न कथोठिया, सोनवानी, कुम्हारिया, कधरिया, भुवार, रकंटा, करपतिया, नथुनिया आदि हैं।

कोल जनजाति के परम्परा 

गर्भवती महिलाएँ प्रसव के दिन तक आर्थिक एवं पारिवारिक समस्त कार्य करती हैं। प्रसव घर पर ही कराया जाता है। प्रसव के पश्चात् स्त्री को 6 दिन तक अस्वच्छ माना जाता है। प्रसूता को सोंठ, गुड़, जड़ी-बूटी, अजवायन, पीपर आदि का काढ़ा पिलाते हैं। छठे दिनं “छठी” मनाते हैं। ( कोल जनजाति छत्तीसगढ़ Kol Janjati Chhattisgarh kol tribe chhattisgarh )

शिशु एवं प्रसूता को नहलाकर घर की साफ-सफाई कर सूरज व देवी-देवता की पूजा करते हैं। रिश्तेदारों को चाय, बीड़ी, दारू पिलाते हैं। इस जनजाति में लड़कियों का विवाह प्रायः 15 वर्ष की उम्र में लड़कों का विवाह 17-18 वर्ष की उम्र में किया जाता है।

इनमें “हधनैना” या “सूक” (वधू मूल्य) की प्रथा पाई जाती है। हधनैना का निर्धारण प्रायः मंगनी के पूर्व ही दोनों पक्षों की सहमति के आधार पर तय किया जाता है। हथनैना लड़की को दिया जाता है। वर्तमान में यह 500/- रुपये से 5000/- तक है। विवाह की रस्म जाति के बुजुर्ग व्यक्ति संपन्न कराते हैं। ( कोल जनजाति छत्तीसगढ़ Kol Janjati Chhattisgarh kol tribe chhattisgarh )

सामान्य विवाह के अतिरिक्त विनिमय विवाह, सेवा विवाह भी पाया जाता है। सहपलायन व घुसपैठ को भी जुर्माना अदा करने के बाद समाज द्वारा विवाह मान लिया जाता है। विधवा पुनर्विवाह की सामाजिक अनुमति है।

मृत्यु होने पर मृतक को सामान्यतः जलाते हैं। बच्चों को जमीन में दफनाया जाता है। श्मशान घाट से लौटते समय कुंए, तालाब या नदी में नहाते हैं। इसके बाद घर की सफाई की जाती है। तीसरे दिन परिवार के पुरुष अपने सिर के बाल, दाढ़ी, मूँछ कटाते हैं। दसवें दिन रिश्तेदारों को मृत्यु भोज देते हैं। ( कोल जनजाति छत्तीसगढ़ Kol Janjati Chhattisgarh kol tribe chhattisgarh )

 इनकी परम्परागत (सामाजिक) जाति पंचायत का मुखिया “गोतिया ” कहलाता है। गोतिया, बारगांवा वंश का होता है, जो पैतृक परम्परा के अनुसार सामाजिक पंचायत का मुखिया बनता है। गाँव के सभी प्रकार के वाद-विवाद एवं लड़ाई-झगड़ों का निपटारा स्वयं तथा अपने सहयोगियों के परामर्श के आधार पर “गोतिया ” द्वारा किया जाता है।

कोल जनजाति के देवी-देवता 

इनके प्रमुख देवी देवता दुल्हादेव, हरदौल, मंशादेव, नंगा बाबा, भैरो, काली देवी आदि। इसके अतिरिक्त हिंदू देवी-देवता सूरज, चंद्रमा, नदी, पहाड़, वृक्ष आदि की भी पूजा करते हैं। देवी-देवताओं की त्योहार, उत्सव आदि में पूजा के समय मुर्गा, बकरा आदि की बलि भी देते हैं। इनके प्रमुख त्योहार नवरात्रि, नागपंचमी, होली, दशहरा, दिवाली आदि हैं।

इस जनजाति के लोग जादू-टोना पर भी काफी विश्वास करते हैं। बीमारी का ईलाज गुनिया द्वारा तंत्र-मंत्र से कराते हैं। ( कोल जनजाति छत्तीसगढ़ Kol Janjati Chhattisgarh kol tribe chhattisgarh )

ये लोक गीतों के कुशल गायक होते हैं। संगीत के लिये ढोलक, टिमकी, कटवाल, मंजीरा आदि का उपयोग करते हैं। लोक गीतों में दोदर, राई, फाग, भजन आदि गाते हैं।

वर्ष 2011 की जनगणना अनुसार छत्तीसगढ़ की कोल जनजाति में साक्षरता 58.3 प्रतिशत दर्शित है। पुरुषों में साक्षरता 69.2 प्रतिशत तथा स्त्रियों में साक्षरता 47.4 प्रतिशत थी। ( कोल जनजाति छत्तीसगढ़ Kol Janjati Chhattisgarh kol tribe chhattisgarh )

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source : Internet

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Rajveer Singh
Rajveer Singh

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